Thursday, September 28, 2023

कोलकाता -एक संवेदनशील शहर



कोलकता पहली बार गये थे 40 साल पहले। 1983 में ।साइकिल से। इलाहाबाद से कन्याकुमारी जाते हुए। 9 दिन में पहुँचे थे इलाहाबाद से कलकत्ता। तीन दिन घूमे थे। उसके बाद अनेक बार आना हुआ लेकिन हर बार टुकड़े-टुकड़े ही घूमे। लौट गये यह सोचते हुए कि अगली बार तसल्ली से घूमेंगे।
इस बार जब गये तो दमदम गेस्ट हाउस में काम करने वाले कामगार ने कहा -‘अनेक दिन बाद आये।’ होटल में टिकते तो कौन पूछता -‘अनेक दिन बाद आए।’ होटल में एक तरह की बन्दिस भी लगती ही की पता नहीं कौन चीज के पैसे लग जायें। गेस्ट हाउस में ड्राइवर जितनी बार आया उतनी बार हमने कहा -‘चाय पी लो। खाना खा लो।’ किसी पाँच सितारा होटल में ठहरते तो ख़ुद भी खाना बाहर खाते अगर वह किराए में शामिल नहीं होता।
कामगार ठेके पर काम करता है। न्यूनतम मजदूरी से भी कम मिलता होगा। लेकिन यही सुकून की बात कि पिछले बीस साल से वहीं लगा है। कुछ देर बात करने पर बताया कि इस महीना का पगार अभी नहीं आया। दिहाड़ी पर काम करते कर्मचारी को भुगतान महीने के आख़िरी सप्ताह तक न मिले यह ठेकेदारी प्रथा में सामान्य बात है।
लौटने की फ़्लाइट शाम साढ़े तीन की थी। शाम की फ़्लाइट बुक करते हुए सोचा था कि इस बार कोलकता में कॉलेज स्ट्रीट जाएँगे। हर बार सोचते हैं, हर बार रह जाता था।
कॉलेज स्ट्रीट भारत के साथ-साथ एशिया का सबसे बड़ा पुस्तक बाजार और पूरी दुनिया में सबसे बड़ा सेकेंडहैंड पुस्तक बाजार है। 900 मीटर लंबी इस सड़क को किताबों का मोहल्ला/कालोनी भी कहते हैं (बंगाली में बोई पारा )। इस सड़क पर कोलकाता के कई शिक्षा संस्थान हैं। कॉलेज स्ट्रीट का इतिहास 1817 से मिलता है जब डेविड हेयर ने तत्कालीन हिंदू समुदाय के सदस्यों के बच्चों को उदार शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से द हिंदू कॉलेज की स्थापना की थी।
कॉलेज स्ट्रीट के तमाम क़िस्से सुन रखे थे। सोचा इस बार देख ही लिया जाये।
दस बजे बुलाया ड्राइवर को। लेकिन निकलते-निकलते सवा ग्यारह बज गये। गूगल मैप के हिसाब बारह बजे पहुँच जाना था। लेकिन सड़क पर ट्रॉफ़िक जाम के चलते पहुँचने का समय बढ़ता गया। सड़क पर भीड़ बढ़ते देखकर वहाँ रुकने का समय कम होते -होते शून्य के क़रीब हो गया। यह सोचा कि रुकेंगे नहीं बस पाँव फिराकर चले आयेंगे।
दिन की धूप थी। सड़क पर ट्रैफ़िक होमगार्ड छाता लगाये ट्रैफ़िक नियंत्रण कर रहा था। सड़क पर चलते लोग भी ,ख़ासकर महिलायें ,धूप से बचने के लिए छाता लगाये थी। एक युवा जोड़ा भी छाते के नीचे शायद सवारी के इंतज़ार में खड़ा दिखा। लड़का छाता पकड़े था। लड़की इधर -उधर और फिर लड़के को देखकर उससे बतिया रही थी। जोड़ा जिस तसल्ली से गप्पगुम था उसे देखकर लगा कि उनको कहीं आना जाना नहीं था। वहीं खड़े होकर बतियाना था।
छाते के नीचे जोड़े को देखकर अपन को ख़ुद का लिखा शेर बिना याद किए याद आ गया:
तेरा साथ रहा बारिशों में छाते की तरह
भीग तो पूरा गये पर हौसला बना रहा।
शेर याद तो आ गया लेकिन ‘याद मैनेजर’को हड़काया कि एकदम बाज़ारू हो गये हो। चंट सेल्समैन। बारिश का शेर धूप में ख़पा रहे हो। ‘याद मैनेजर’ ने मुस्कराते हुए कहा कि मौसम कोई हो छाता तो बचाने का ही काम कर रहा है। शेर भी खप जाएगा , आप चिंता न करें।
इस बीच ड्राइवर ने अपने बारे में बता डाला। 2018 में पूजा के दिनों में पिता नहीं रहे। शादी लव मैरिज से बनाया। इंटरकास्ट। बीबी ब्राह्मण ख़ुद अनुसूचित जाति का। लेकिन कोई ज़्यादा लफड़ा नहीं हुआ। बीस साल हो गये शादी को। एक बच्चा है , क्लास फ़ोर में पढ़ता है। बेटे , पत्नी और परिवार के फ़ोटो , विडियो दिखाये। सब ख़ूबसूरत।
‘प्यार की शुरुआत कैसे हुई?’ पूछने पर बताया। पास में रहती थी। अच्छी लगी तो बात का कोशिश किया। थोड़ा डाँटा-फाटा हुआ पहले फिर बात शुरू हुआ और फिर शादी बना लिया। पत्नी को नौकरी भी मिला था , एयरहोस्टेस का आफ़र भी मिला था लेकिन बेटे के कारण छोड़ दिया।
‘लव मैरिज बीस साल पहले हुआ। अब भी प्यार बना है कि नहीं ?’ हमारे इस सवाल के जबाब में ड्राइवर ने कहा -‘अच्छा है। चलता है । नरम गरम तो चलता रहता है।वो थोड़ा ज़िद्दी है। उसके कारण शराब छोड़ दिया। बेटे पर भी असर पड़ेगा न। सब ठीक है। अच्छा है।’
इसी सिलसिले में किसी बात पर उसने कहा -‘ हम उसको आज तक ‘आई लव यू’ तक नहीं बोला।’
हमको हँसी आ गई। हमने कहा -‘कैसी मोहब्बत कि आज तक उसका शुरुआती नारा तक नहीं निकला मुँह से?’
मन किया कि उनको संगत का विश्वनाथ त्रिपाठी का वह इंटरव्यू सुनायें जिसमें वे अपनी दिवंगता जीवनसंगिनी के प्रति प्रेम न प्रकट करने का अफ़सोस करते हैं। लेकिन बात इधर -उधर हो गई।(विश्वनाथ त्रिपाठी जी से Anjum Sharma की बातचीत का लिंक कमेंटबॉक्स में )
रास्ते में जाम के चलते देर होती गई। जब दो किलोमीटर रह गया कॉलेज स्ट्रीट तो जाम जैसे धरने में बदल गया। पूरी सड़क सी ठहर गई।
सड़क के जाम से निर्लिप्त सड़क किनारे एक रिक्शे में बैठे , लेटे, सड़क के जाम से निर्लिप्त दो बुजुर्ग गप्परत थे। कोई मतलब नहीं दीन दुनिया से। एक के सर पर हैट, दूसरे का सर खुला। पैर रिक्शे की रेलिंग पर। रिक्शे के पहिये पर ताला। अन्दाज़-ए-गुफ़्तगू ऐसा गया कोई बड़े सियासी नेता किसी बहुत बड़ी समस्या पर चर्चा कर रहे हों। ये तो मासूम लोग हैं। किसी रोज़मर्रा की समस्या से निपट रहे होंगे। सड़क के जाम से बेख़बर । वह तो उनके लिये आम बात है ।सियासी लोग भी इसी अन्दाज़ में अपनी योजनाओं पर चर्चा करते होंगे -‘कैसे विरोधी को निपटाया जाये, कैसे चुनाव जीता जाये, कैसे तमाम जगह क़ब्ज़ा जमाया जाये।’ अवाम की तमाम परेशानियाँ उनके लिए रोज़मर्रा की बात होती होगी जिस पर तवोज्जो देना फ़ालतू समय बर्बाद करना लगता होगा। कई समस्याएँ तो उनकी उपेक्षा करने से ही हल हो जाती हैं।
रिक्शे पर बैठे बुजुर्गों को तसल्ली से बतियाते देखकर लगा यह कोलकता की ख़ासियत है। यहाँ जगह लोग बतियाते, अड्डेबाज़ी करते दिख जाते हैं। कई जगह लोग फुटपाथ पर शतरंज , कैरम खेलते दिख जाते हैं।कभी भारत के प्रधान मंत्री जी ने कोकलता को मरता हुआ शहर कहा था। बड़ा बवाल हुआ था। मुझे कोलकाता हमेशा जीवंत, संवेदनशील शहर लगता है जहां कहीं से भी आया गरीब से गरीब इंसान भी इज्जत से जीवन बसर कर सकता है।
थोड़ा आगे ही एक सार्वजनिक शौचालय दिखा। उसकी दीवार पर सुंदर लोकचित्र जहां ख़ुशनुमा लगा वहीं उसके सामने ही सड़क पर उठने के इंतज़ार में पड़ा कूड़ा देखकर लगा कि यहाँ सफ़ाई और गंदगी की गठबंधन सरकार चल रही है ।
इस बीच घड़ी एक बजाने की तरफ़ बड़ी। दो किलोमीटर दूर कॉलेज स्ट्रीट अभी भी बीस मिनट के फ़ासले पर दिख रहा था ।हमें लगा कि देर हुई तो फ़्लाइट छूट जायेगी। हम वापस लौट लिए।
लौटते हुए सड़क किनारे एक टपरी पर चाय पी। बुजुर्ग महिला बांग्ला में बता रही थी कि उसको ब्रेनस्ट्रोक हुआ था। माथा बहुत दर्द करता है। थर्मस से कुल्हड़ में चाय उड़ेलते हुए अपनी कहानी बताती रही। हम कुछ न समझते हुए भी सब बूझते गये। चाय बिस्कुट के बाईस टका हुए। हमारे पास पाँच सौ रुपये का नोट था। उसके पास न चिल्लर थे न फ़ोन पे। पैसे ड्राइवर ने दिये। तीस रुपये। आठ रुपये वापस करने के लिए भी वह इधर-उधर करने लगी। शायद थे नहीं। हमने कहा -‘छोड़ दो।’ ड्राइवर ने छोड़ दिया। बुजुर्ग महिला ने हमको अनेक आशीष दिये।
वहीं खड़े चाय पीते हुये एक रिक्शा वाला और एक आटोवाला वॉकयुद्ध कर रहे थे। बांगला में। पूछा तो पता चला रिक्शा वाला आटनेवाले को हड़का था कि वह यहाँ क्यों खड़ा होता है। उसका सवारी क्यों उठाता है?
आगे फुटपाथ पर एक आदमी लेटा हुआ किसी से बतिया था ।शायद वह वहीं खड़े ट्रक का ड्राइवर था। वहीं पास में बैठा लड़का मोबाइल में मुंडी घुसाये व्यस्त था।
ड्राइवर ने हमको हवाई अड्डे पर छोड़ दिया। हमने चाय के पैसे के साथ कुछ और पैसे उसको दिये। दुनिया में अपनी शर्तों पर आर्थिक सहायता देने वाले संस्थानों की तर्ज़ पर हमने हिदायत दी -‘अपने बेटे के लिए चाकलेट ले जाना और अपनी पत्नी को आई लव यू बोलना।’
हमारी कही बात पर अमल करने को कहकर वह चला गया। हम भी चले आये । पता नहीं उसने हमारी बात पर अमल किया या नहीं। फ़ोन करके पूछते हैं। 😊
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Wednesday, September 27, 2023

स्कूल जाते बच्चे- समाज की सबसे सुनहरी आशा



सुबह नींद खुली तो घड़ी देखी। 6 बज गए थे। कुछ देर करवटें बदलते हुए सोचते रहे कि क्या करें अब? हर करवट पर नया विचार। उठें, लेटे रहें, मोबाइल देखें, व्हाट्सएप खोलें, पोस्ट लिखें, पढ़ें, कमेंट का जबाब दें, गुडमार्निंग यज्ञ पूरा कर लें, चाय पियें और भी तमाम चिल्लर विचार।
हर करवट पर नए विचार से आइडिया आया कि कभीं किसी सोच में ज्यादा फँसाव हो तो करवट बदल लेना चाहिए। नई करवट मतलब नया विचार। जनप्रतिनिधि लोग विचार को पार्टी या दल या विचारधारा मानते हैं। जहाँ फंसते हैं बदल लेते हैं।
चाय की बात याद आते ही लगा इस पर स्थिर हुआ जाए। चाय पी जाएं। गेस्ट हाउस में चाय के लिए बोलते हुए डर लगा की सही में ले न आये। बाहर निकलना स्थगित हो जाएगा। लिहाजा निकल लिए।
निकलते ही गेट पर स्कूल बस दिखी। एक पिता अपने बच्चों को बस में बिठाकर घर वापस आ चल दिया। पीछे से एक बच्ची आई। साथ मे उससे भी छोटा बच्चा होगा। शायद भाई। उसने बच्चे को बस में बिठाया। बाय किया। बस चल दी तो बगल में नुक्कड़ पर बैठे ऑटो में बैठकर चल दी। शायद वह और इसका भाई अलग स्कूल में पढ़ते होंगे।
चाय की दुकान पर कल वाले लड़के की जगह एक महिला थी। उसको चाय के लिए कहकर आसपास का मुआयना करते रहे। महिला ने हाथ की उंगलियां फिराकर कुल्हड़ की धूल झाड़ी और फिर हल्के से उसको काउंटर पर पटक कर कुल्हड़ ने चाय डाली। हम पीते हुए उससे बात करते रहे।
पता चला कि कल जो लड़का चाय की दुकान पर था वह महिला का बच्चा था। सुबह कुछ देर दुकान पर बैठकर दमदम फैक्ट्री चला जाता है। ठेके में मजदूरी करता है। दिन में मां बैठती है दुकान पर।
चाय पीते हुए टहलते हुए बेंच पर आकर बैठ गए। कल के मौनी बुजुर्ग भी वहीं बैठे थे। हमने इनसे बात करने की कोशिश की तो भन्नाकर उठे और चल दिये। हमको लगा हड़काएँगे भी। लेकिन वो गुस्से में ही दुकान के काउंटर पर जाकर खड़े हो गए। महिला ने उनको चाय और एक बिस्कुट दिया और वो वहीं पर फूल बेचती महिला के बगल में बैठकर चाय पीने लगे।
मॉनीबुज़ुर्ग के भन्नाकर उठने और चाय लेकर दूर जाकर बैठ जाने की बात सोचते हुए हमें भाव साम्य न होने के बावजूद दुष्यन्त कुमार का शेर याद आया:
लाहूलूहान नजारों का जिक्र आया तो
शरीफ लोग उठे और दूर जाकर बैठ गए।
आजकल यह बात हर जगह लागू है शायद इसीलिए याद आ गयी।
बगल में दमदम केंद्रीय विदयालय है। कुछ बच्चे स्कूल के बाहर खड़े दिखे। गेट खुला होने के बावजूद बच्चे बाहर खड़े थे। हमने पास में खड़ी दो बच्चियों से बातचीत करनी शुरू की यह पूछते हुए कि तुम लोग यहीं पढ़ती हो?
उन्होंने कहा -'हाँ।' उनके हां कहते ही बातों का सिलसिला शुरू हो गया।
पता चला कि स्कूल का समय आठ बजे से है। साढ़े सात के पहले स्कूल का गेट खुला होने के बावजूद अंदर नहीं जा सकते।
उन बच्चियों में कद से छोटी दिखने वाली बच्ची 10 में और बड़ी दिखने वाली बच्ची 8 में पढ़ती है। दोनों का फेवरिट विषय समाजशास्त्र है। एक की हावी डांसिंग है, दूसरी की पेंटिंग। पेंटिंग जब मौका मिलता है बनाती है।
कक्षा आठ में पढ़ने वाली बच्ची थोड़ा थकी सी लगी तो मैंने पूछा -'क्या रात देर तक जगी ?'
उसने कहा -'हां, एक्जाम की तैयारी करनी है। उसी के चलते देर तक जगी। साढ़े बारह बज गए सोते सोते।'
बच्चियों ने बात करते हुए बताया कि उनकी ज्यादातर दोस्ती लड़कियों से है। फेवरिट सहेलियां भी लड़कियां ही हैं। लड़कों से दोस्ती न होने का कारण बताया कि ज्यादातर लड़के मतलबी होते हैं। काम के वक्त पूछते हैं और काम निकल जाने पर बात नहीं करते।
काम का मतलब स्कूल ने एसाइनमेंट और प्रोजेक्ट वर्क जैसे काम। एक ने बताया कि स्कूल में एक्टिविटी के समय लड़के मस्ती करते हैं। जब टीचर पूछते हैं तो ऐसा बताते है कि उन्होंने भी किया काम। कुछ लड़के अच्छे भी छोटे हैं । लेकिन ज्यादातर ऐसे ही। मतलबी। कुछ लड़कियां भी क्लास बंक करके मस्ती मारती हैं।
इस बीच दस में पढने वाली बच्ची की कुछ और सहेलियां आ गईं। वह उनसे बतियाने लगी। एक लडक़ी पीठ पर बड़ा बस्ता लादे थी। लड़की ने उसकी पीठ पर धौल मारा और उसके बस्ते पर भी। दोनों चहकते हुए बतरस में डूब गईं।
दूसरी बच्ची से बात करते हुए पता चला कि उसके मां-पिता नहीं हैं। दो साल की थी तब पिता नहीं रहे। पांच साल की उमर में मां भी विदा हुईं। नाना-नानी और अब मामा-मामी भी उसके अभिभावक हैं। उसकी बड़ी बहन और छोटा भाई भी साथ ही रहते हैं। बड़ी बहन भी आठ में पढ़ती हैं। इसका एडमिशन जल्दी हो गया। मामा बिजनेस करते हैं। मामा बच्ची के आदर्श हैं। वह भी बड़ी होकर बिजनेस करना चाहती है।
'मां-पिता की याद आती है, उनको मिस करती होगी?' पूछने पर बच्ची ने कहा -'हां, कभी, कभी जब अकेले होती हूँ तो सोचती हूँ। लेकिन फिर ठीक जाता है।'
बच्ची के नाम का मतलब है जिसे सब प्यार करें। हमने पूछा कि तुमको सही में सब प्यार करते हैं? उसने कहा -'हां, मुझे तो ऐसा ही लगता है।'
पक्की सहेलियों के बारे में पूछने पर उसने दो सहेलियों के नाम बताए उनमें से एक उसको पढ़ने में सहायता करती है। दूसरी परेशानी में सलाह देती है।
बच्ची से उसकी ताकत और कमजोरी के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसकी जानने की इच्छा बहुत तगड़ी है। जब तक किसी चीज के बारे में पूरी जानकारी नहीं हो जाती तब तक लगी रहती है। कमजोरी के बारे में सोचते हुये बताया -'मुझको गुस्सा बहुत जल्दी आता है। हालांकि उतनी ही जल्दी शांत भी हो जाता है।'
इस पर हमने पूछा -'हम पर तो नहीं आ रहा गुस्सा।'
हंसते हुए उसने कहा-'नहीं, नहीं।'
हमने उन बच्चियों के फ़ोटो लेने के लिए पूछा। फोटो उनको दिखाए तो वे मुस्करायीं। हमको हाल में कश्मीर टूर में लड़कियों के लिए फोटो की याद आई। हमारी श्रीमती जी के साथ के फोटो उनको अच्छे लगे तो सबने अपने नम्बर और खाते बताकर फोटो उनको भेजने का अनुरोध किया था।
इस बीच एक बच्चा हांफता हुआ आया और बच्ची से बंगला में बतियाने लगा। बच्चा बहुत हड़बड़ी में था। जल्दी-जल्दी बतिया रहा था। उसके उसके बोलने पर होंठ के बीच सफेद बहुत छोटी फुंसी उचकती दिखती थी। बच्ची उससे आहिस्ते से बतिया रही थी। कुछ देर में गेट खुल गया और बच्चे स्कूल जाने लगे। बच्ची भी 'अंकल नमस्ते' कहते हुए चली गयी।
हमने एक चाय और ली। दुकान की महिला ने चाय उसी कुल्हड़ में उड़ेल दी। जब कुल्हड़ भर गया तो मुझे याद आया कि मेरी एक मित्र को चाय की केतली से कप में डाली जाती चाय की धार और केतली से उठती भाप के फोटो बहुत पसंद हैं। यह बात याद आते ही हमने उस महिला से कहा कि चाय फिर से कुल्हड़ में डाल दो। उसमें गिरती चाय की धार की फोटो लेनी है।
महिला ने देखा कि कुल्हड़ तो काफ़ी भरा हुआ है। फिर भी उसने पतली धार से थोड़ी चाय गिराई कुल्हड़ में जिसका फोटो हमने खींच लिया। मुझे लगता है कोई पुरुष दुकानदार होता तो इतनी सहजता से यह न करता।
वहीं चाय की दुकान पर ही खड़े एक आदमी ने केतली से सीधे पानी मुंह में डाला। हमने उसका भी फोटो लिया। केतली उसके मुंह पर छा गयी।
समय बीतते हुए स्कूल आते बच्चे बढ़ते गए। बस से उतरते बच्चे, ऑटो से आते बच्चे, स्कूटर से बच्चों की भेजने आते अभिभावक। एक पिता अपनी बच्ची का हाथ बहुत मजबूती से थामे हुए सड़क पार करता हुआ स्कूल की तरफ चला गया। मन किया उसका 'फोटो उठा 'पाते।
एक और मम्मी अपनी बिटिया का हाथ पकड़े उसे घसीटते हुए स्कूल की तरफ आती दिखीं। एक स्कूटर से भाई बहन उतरे। बहन बड़ी थी। उसने छोटे भाई के कंधे पर दोनों हाथ रखकर उसको स्कूल की तरह ठेला। शायद मन में कह रही हो -'चल मेरी घोड़ी टिकटिक।'
चाय पीकर पैसे दिए। बाइस रुपये हुए थे। पैसे देते हुए हमने कहा हमारे पास तो बीस ही हैं। महिला ने दस का नोट लौटाया तो हमें लगा नाराजगी में या खुशी में लौटाया। लेकिन उसने कहा -'आपने तीस रुपये दिए थे।' दस के तीन नोट चले गए होंगे साथ-साथ। दो को जाते देखकर तीसरा बोला होगा, तुम लोगों के बिना कैसे रहेंगे अकेले। बड़े नोटों के बीच डर लगता है, दम घुटता है।
महिला जब दस रूपये लौटाए तो हमने कहा -'पूरे ले लो। ' उसने दो रुपये लेकर आठ लौटा दिये। सिक्के। कोलकता में अभी भी सिक्को का चलन बना हुआ है।
सड़क पार करते हुए ट्राफिक सिपाही ने हाथ देकर रोक दिया। कुछ देर बाद रास्ता खुल गया। उसके बगल में खड़े होकर देखा कंधे पर TFG का बिल्ला लगा था। TFG का मतलब पूछा तो बताया उसने ट्राफिक होमगार्ड।
सड़क पार करने के बाद पलटकर फिर देखा स्कूल की तरफ। ढेर के ढेर बच्चे स्कूल की तरफ बड़े जा रहे थे। बच्चों को देखकर लगा कि किसी भी समाज के भविष्य के लिए स्कूल जाते बच्चे सबसे सुनहरी आशा होते हैं।

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Tuesday, September 26, 2023

चाय की तलाश में

 



सबेरे नींद खुलते ही चाय की याद आती है। घंटी बजाकर चाय के लिए बोलते हैं तो पता चला अभी दूध नहीं आया। सात बजे आएगा। यह भी बताया कि बाहर सड़क पार मिल जायेगा।
काफ़ी देर से बाहर निकलने की सोच रहे थे। आलस उठने नहीं दे रहा था। लेकिन चाय की इच्छा ने आलस को पटक दिया। उठ खड़े हुए। निकल लिए बाहर।
बाहर निकलते ही सड़क पर आते-जाते, चलते-भागते लोग दिखे। सड़क पार चाय की दुकान पर पहुँचे। चाय के लिए कहा। चाय वाले ने एक मुन्ने , छुटके कप को निकाला। हमने कहा बड़े कप में दे दो। उसने कहा -‘भांड में दे दें।’
कहने के साथ ही उसने कुल्हड़ पलटकर उसकी धूल झाड़ी। बाद में हमें लगा कोई यह भी समझ सकता था कि दुकान वाला कह रहा है -‘भाड़ में जाओ।’ इसके बाद वाक युद्ध शुरू हो सकता था। लेकिन हमारी समझदारी से संभावित बहस टल गई।
चाय की दुकान के बग़ल में एक फूल वाला ज़मीन पर बैठा माला गूँथ रहा था। महिला और पुरुष साथ-साथ माला बना रहे थे। लंबे सूजे को कोमल ,मासूम फूल की छातियों में घुसेड़कर उनको माला में पिरो रहे थे दोनों। हमको नंदलाल पाठक की की कविता की पंक्ति याद आई :
आपत्ति फ़ूल को है माला में गुथने में,
भारत मां तेरा वंदन कैसे होगा?
सम्मिलित स्वरों में हमें नहीं आता गाना,
बिखरे स्वर में ध्वज का वंदन कैसे होगा?
हमको लगा कि डाली से अलग हुए फूल की क्या औक़ात जो किसी माला में गूँथने से इंकार करे। उसको तो जहां कहा जाएगा लग जाएगा। लेकिन अब कवि जी की मर्ज़ी जो मन आये कह दें। वैसे भी आजकल जमाना बड़ा ख़राब है। पीड़ित और वंचित के ख़िलाफ़ ही मुक़दमे दायर हो रहे हैं और फ़ैसला भी उनके ख़िलाफ़ ही हो रहा है।
माला बनाती हुई महिला ने मुझसे पूछा -‘ माला लेना है क्या ?’ हमने नकार में सिर हिलाया और चुपचाप उन लोगों को माला बनाते देखते रहे।
चाय की दुकान पर एक बुजुर्ग बेंच पर बैठे थे। होंठ भींचे ऐसे जैसे गेट बंद कर रखा हो , कोई शब्द बाहर न निकल जाये। बुजुर्ग को देखकर हमको अपने भूतपूर्व प्रधानमंत्री राव जी याद आए। वे भी अक्सर ऐसे ही शांत , चुप दिखते हैं फ़ोटो में।
चाय वाले ने बताया कि बुजुर्ग दिखने में साधारण हैं। लेकिन हैं बहुत संपन्न। पाँच बेटे हैं। लड़की भी हैं। सबका शादी बना दिया। सबके पास मकान हैं। हमारी बात न मानो तो उनसे पूछ लो।
हमारी बात न मानो तो उनसे पूछ लो से हमको गाना याद आया -हमरी न मानो तो बजजवा से पूछो।
हमने किसी से न पूछकर बुजुर्ग से ही बातचीत करना शुरू किया। कुछ पूछा लेकिन वे बोले नहीं। होंठ और कस लिए। क्या पता शब्दों को हड़का भी दिया हो -‘ख़बरदार जो बाहर निकले। टांग तोड़ दूँगा एक -एक की।’
चाय की दुकान पर दो कुत्ते भी मौजूद थे। चुपचाप खड़े थे। हमने बिस्कुट का टुकड़ा डाला ज़मीन पर तो दोनों दुम हिलाने लगे। एक कुत्ता दुम हिलाने में इतना मशगूल हो गया कि उसके सामने का बिस्कुट भी दूसरा कुत्ता खा गया। हमने उसके एन मुँह के सामने एक और टुकड़ा डाला तब उसने लपककर खाया। थोड़ी देर और खड़े रहे दोनों। इसके बाद जब और बिस्कुट नहीं मिला तो दुम हिलाना बंद करके सड़क पर टहलने लगे।
चाय पीते हुए सामने की बेंच पर बैठे आदमी से गंगाघाट का रास्ता और दूरी पूछी तो उन्होंने पूरी तफ़सील से तीन चार तरीक़े बताये। बस नंबर, किराया और तमाम जानकारी। इतने तसल्ली से गूगल क्या बताएगा।
बताने के लहजे से लगा मूलतः बिहार से हैं। पूछा तो पता लग छपरा से हैं । बचपन में आये थे। तब से यहीं हैं। अब तो यही देश है। आते-जाते रहते हैं गाँव जब कोई बुलाता है।
छपरा का नाम सुनते ही गाना याद आया
आरा हीले, छपरा हीले, बलिया हीले ला ,
कि जब लचके मोर कमरिया
त सारी दुनिया हिलेला।
कभी सुने हुए चर्चित गीत कितनी दूर तक पीछा करते हैं ।
इस बीच एक चाय और पी। दो चाय और दो बिस्किट के दाम हुए बीस रुपये। भुगतान करते हुए हमें याद आया कि कल हवाई अड्डे पर चाय के दाम 25O रुपये से शुरू हुए थे। यहाँ चाय आठ रुपये की । तीस गुने का अंतर।
चाय पीकर वापस आते हुए सड़क पर जाते और आते हुए लोग दिखे। एक अख़बार वाला साइकिल पर तमाम अख़बार लादे ले जाते दिखा। जब बग़ल से गुजर गया तो लगा कि अख़बार के लेते तो अच्छा रहता।
एक रिक्शे वाला आहिस्ते से रिक्शा चलाते हुए सामने से आता दिखा। रिक्शा चलाते हुए उसने अंगौछे से मुँह पोंछा। उसके अँगौछे को देखकर मुझे राज्यसभा के सांसद प्रोफ़ेसर मनोज झा जी की याद आई।
संसद की बात से और भी बहुत कुछ याद आया लेकिन वह फिर कभी।
सड़क किनारे खड़े हुए आते -जाते लोगों को देखते रहे। एक महिला सड़क पार करके टहलते हुई गई और कुछ दे बाद दूध का पैकेट हिलाते हुए वापस लौटी। बसें सड़क को दबाती हुई तेज़ी से इधर-उधर आ जा रहीं थीं। एक आटो वाला आटो की स्टीयरिंग को सीने से सटाये हुए सा आता दिखा। एक रिक्शा वाला अपने रिक्शे में मोटर फिट किए ढेर सारा सामान लादे तेज़ी से आता दिखा और बाद में बग़ल से गुजरते हुए जाता दिखने लगा और कुछ देर में दूर जाकर दिखना बंद हो गया।
काफ़ी देर तक सड़क पर खड़े रहने के बाद याद आया कि गेस्ट हाउस में दूध आ गया होगा। लौट आये। चाय के लिए बोलकर इधर आ गये।

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Friday, September 22, 2023

ज्ञान चतुर्वेदी सम्मान


कल Arvind Tiwari जी से बात हुई। हाल ही में बाल-बाल बचे ज्ञान चतुर्वेदी सम्मान से सम्मानित होते-होते। किसी ने उनका नाम सम्मान के लिए प्रस्तावित कर दिया था। आयोजकों में से किसी ने पूछा होगा तो उन्होंने मना कर दिया। हमने उनके इस त्याग के लिए उनको बधाई दी तो उन्होंने शिकायत की कि आजकल तुम्हारी पोस्ट्स नहीं आ रहीं।
हम क्या जवाब देते ? लिखना-पढ़ना कम हुआ है। व्यस्तता जैसी बात भी नहीं। लेकिन मन नहीं किया बहुत दिन से। कुछ मित्र बात होने पर पूछते हैं -‘आजकल लिख नहीं रहे?’ इनमें से अधिकतर मित्र हमारे लिखे पर कभी प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करते। लेकिन कई बताते हैं कि उनका पूरा परिवार हमारी पोस्ट्स पढ़ता है। ख़ुशफ़हमी का भाव।
बात सम्मान से शुरू हुई थी। आज जगदीश्वर चतुर्वेदी जी का स्टेटस देखा। लिखा था :
“हिंदी महान भाषा है इसमें पुरस्कृत -सम्मानित लेखक-लेखिकाओं की बाढ़ आई हुई है और उसमें साहित्य का अंत हो गया है।”
हमको ख़ुद को मिले उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के दो सम्मान याद आए। साहित्य के अंत में हमारा योगदान।संस्थान से इनाम भले मिल गया लेकिन कहीं किसी अख़बार में उनकी चर्चा नहीं हुई।
बात सम्मान से शुरू हुई बात ख़त्म करने से पहले इस बार के ज्ञान चतुर्वेदी सम्मान से सम्मानित होने वाले मित्रों मलय जैन Maloy Jain जी और इंदरजीत कौरIndrajeet Kaur जी को बधाई। शुभकामनाएँ। दोनों ही मित्र अच्छे लेखक हैं। मिलने पर मिठाई खाई जाएगी।
पढ़ने लिखने की बात करें तो पहले पढ़ने से। आजकल पढ़ने की गति और निरंतरता बहुत कम हुई है। बमुश्किल दो-चार-दस पन्ने रोज़ पढ़ना हो पाता है। तमाम किताबें सरकारों द्वारा शुरू की अधूरी परियोजना सरीखी अधपढ़ी हैं। उनमें से काफ़ी किताबें ऐसी भी हैं जो लेखक मित्रों ने सप्रेम भेंट की हैं। मित्र आशा भले न करें लेकिन लगता है कि उनको पढ़कर उनपर कुछ न कुछ प्रतिक्रिया करनी चाहिए। तमाम उधारी बाक़ी है।
यही हाल लिखने का भी है। पहले नियमित लिखते थे। अब स्थगित हो गया है। पहले घूमते हुए जो दिखा वह लिख देते थे। आजकल घूमना कम हो गया है। घरघुसुवा हो गये हैं। सुबह शाम जब भी निकलने की सोचते हैं , फ़ौरन तय कर लेते हैं -कल से निकलेंगे। कल का इंतज़ार करते हुए न। जाने कितने कल निकल गये।
इस बीच साइकिल भी हाथ से निकल गई। हमारी साइकिल पर हमारे ही घर में रहने वाले लोगों ने क़ब्ज़ा कर लिया। कोई काम पर जाता है कोई बाज़ार। अब नई साइकिल मिली है तो लगता है चलेगी और नज़ारे दिखेंगे और लिखाई भी होगी।
हमारे लिखने में लफड़ा यह भी है कि आज जो दिखा वो अगर आज नहीं लिखा गया तो रह जाता है। इसी के चलते हाल की कश्मीर यात्रा की तमाम पोस्टें रह गयीं।
पोस्ट की बात से याद आया कि हमारे जन्मदिन पर मित्रों ने शुभकामनाएँ दी थीं। कुछ मित्रों ने बहुत प्यारी पोस्ट्स भी लिखीं थीं। मित्रों को धन्यवाद भी देना बकाया है। सभी मित्रों को उनकी पोस्ट्स पर अलग से धन्यवाद लिखेंगे। अभी सभी मित्रों के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ।
हमारा लेखन हमारी घुमाई से जुड़ा है। आज निकले घूमने। घर के बाहर सड़क पर जानवरों के गोबर एक लाइन में पड़ा दिखा। देखकर लगा कि जानवर कितने अनुशासित होते हैं। निपटते भी एक सीध ने हैं। कुछ देर में गोबर सड़क से उठ जाएगा। जानवरों के अनुशासन के निशान मिट जाएँगे।
आगे एक आदमी सड़क किनारे रखे ईंटों पर हाथ रखे कसरत कर रहा था। मन किया कि उसका वीडियो बनाएँ लेकिन मन की बात पर अमल करने के पहले न्यूटन के जड़त्व के नियम के अधीन काफ़ी आगे बढ़ गये थे।
रास्ते में तमाम लोग दूसरे के घरों के बाहर लगे कनेर, चाँदनी के पेड़ों से उचक-उचक कर फूल तोड़ते दिखे। लोगों के घरों से चुराये हुए फूल देवी-देवताओं पर चढ़ते हैं। वो लोग भी कुछ बोलते नहीं। चुपचाप ग्रहण कर लेते हैं। उनको पता नहीं है -‘जैसा खाओ अन्न, वैसा बने तन।’ क्या पता इसीलिए उनकी ताक़त कम होती जा रही हो। भक्तों की कातर पुकार पर भी कुछ कर नहीं पाते।
तमाम और नज़ारे देखते हुए लौटे। वापसी में एक दरबान स्कूटर पर जाता दिखा। स्कूटर के आगे पेडेस्ट्रिल पंखा खड़ा लिए जा रहा था जैसे स्कूटर में लोग आगे अपने बच्चों को खड़ा कर लेते हैं। पीछे वाले दरबान ने बताया कि रात में पंखा ख़राब हो गया था तो उठाकर लाये थे इस पंखे को। सुबह ठीक होगा।

आज की कहानी इतनी ही। बाक़ी फिर कभी।

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Saturday, September 02, 2023

तारीफ सुनने के लिए सम्पर्क करें

 



कल एक मित्र से बात हुई। करीब घण्टे भर। नेटवर्क गड़बड़ होने के कारण जब बात खत्म हुई तो हमने बातचीत के बारे में दुबारा सोचा। मुझे याद आया कि पूरी बातचीत के दौरान हम लोगों ने किसी न किसी या तो बुराई की या आपस में खुद की तारीफ। मतलब कुल मिलाकर नकारात्मक बातचीत। मजा तो आया बातचीत में लेकिन लगा कि समय बर्बाद हुआ।
हमने यह भी पाया कि ऐसा हम लोग अक्सर करते हैं। अपने आसपास के जुड़े लोगों को भी देखते हैं तो यही ट्रेंड देखते हैं। मौका मिलते ही मुंह में मुंह जोड़कर बुराई शुरू कर देते हैं।
इसका इलाज तो पता नहीं क्या है। लेकिन तय किया कि कम से कम आज किसी की बुराई नहीं करेंगे। सिर्फ और सिर्फ तारीफ। तारीफ भी झूठमूठ वाली नहीं करेंगे। सच्चे मन से करेंगे तारीफ ताकि अगले को लगे कि यह उच्च स्तर की तारीफ है। मनमुदित रखना है तो नकारात्मक बातचीत से दूर रहना चाहिए। आपको अपनी तारीफ सुननी हो तो सम्पर्क करें।
दुनिया इतनी खूबसूरत और प्यारी है। इस ख़ूबसूरती का जायजा लेना है आज। जो मिलेगा उसकी तारीफ करेंगे आज। झूठी नहीं सच्ची वाली तारीफ करेंगे। हर इंसान में कुछ न कुछ तो अच्छा होता ही है। वही देखेंगे।
आपका क्या विचार है इस बारे में?

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