Friday, February 10, 2006

हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती

http://web.archive.org/web/20110926081942/http://hindini.com/fursatiya/archives/105

इतवार के हिंदी दैनिक हिंदुस्तान में तीन साइकिल सवार के भारत दर्शन का समाचार छपा था। पिछले चार वर्षों में कुल ८४००० किमी की सड़क नाप चुके नवजवान। चार साल में यूपी के इन लड़कों ने तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक,पूर्वोत्तर भारत,पश्चिम भारत,कश्मीर भारत तथा पंजाब आदि घूम लिया। आठ लड़कों ने यात्रा शुरू की थी। कुछ लोग बिछड़ते गये। लेकिन इनका सफर जारी है।

इनकी कहानी पढ़कर हमें लगा कि अपनी कहानी आगे बढ़ाई जाये।

सासाराम से निकलते-निकलते सबेरे के आठ बज गये थे। गोलानी की आंख लाल हो रही थी। हम एक मेडिकल स्टोर में ‘लाकोला’ खरीदने गये। वहां के दुकानदार ने जिसका नाम कमलकिशोर था हमसे दवा के पैसे लेने से इंकार कर दिया तथा लगभग जबरदस्ती नाश्ता भी कराया। साथ में ‘आज‘ अखबार भी दिया जिसमें हमारी साइकिल यात्रा का समाचार छपा था।

कमलकिशोर ने बिहार की समस्याओं के बारे में अपनी समझ से बताया। उनके अनुसार-
बिहार में सभी तरह की समस्यायें हैं जो कि किसी भी राज्य में हो सकती हैं। यहां परीक्षाओं में अनुचित साधनों का प्रयोग धड़ल्ले से होता है।समस्याओं के मूल में राज्य की भृष्ट राजनीति है। जनता भी दोषी है। सासाराम में कुछ भी रचनात्मक कर पाने का अवसर एवं वातावरण न के बराबर है। बिहार के इंजीनियरिंग तथा मेडिकल कालेजों में प्रवेश में तमाम अनियमिततायें होतीं हैं।
सासाराम से बिना किसी उल्लेखनीय घटना के हम शेरघाटी पहुंचे। वहां से २० किमी दूर गया जाने के लिये हमें जीटी रोड छोड़ना पड़ा।गया लोग पुरखों का पिंडदान के लिये जाते हैं। हम घूमने के लिये गये। वहां अपने कालेज के संजीव कुमार सिंह के घर रहे-ठाठ से। बहुत बढ़िया खाना मिला। बहुत शानदार सत्कार। मजा आ गया।
ये तो अब पता चला कि प्रत्यक्षाजी पैदाइश भी गया की ही हैं। तब पता होता तो साथ ले लेते इनको भी बिहार से । रास्ते में हायकू,कविता वगैरह लिखतीं रहती।लेकिन इनके भाग्य में कहां बदी थी यायावरी।

गया के मच्छर सासाराम के मच्छरों से भी जबर थे। उनसे खून चुसवाते-चुसवाते सबेरा हो गया। वे दिलीप गोलानी पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हुये। मच्छरों तथा कीड़ों ने उसके मुंह को काट-काट के सुजा दिया था। जहां हम रुके थे उसके बगल के मद्रासी परिवार ने हमें बड़े अपनापे से नास्ते पर बुलाया। हमें यही लग रहा था कि भइये ये सभी जगह भारतीय संस्कृति के ‘अतिथि देवो भव’ की ही सरकार चल रही है। इतने अपनापे भरे माहौल से जल्दी उठने का मन नहीं कर रहा था। लेकिन हम उठे तथा करीब ९ बजे गया के विष्णुपद की ओर चले।

कई गलियों में घुसने-निकलने -चलने के बाद कुछ स्लेटी रंग लिये मंदिर दिखाई दिया। बादल छाये थे।पेट भरा था। मौसम ठंडा खुशनुमा था। शानदार नाश्ते तथा खूबसूरत मौसम की जुगलबंदी से मन प्रसन्न था। हम गया मंदिर न जाकर पास में स्थित शंकराचार्य मठ के पुरोहित तथा बिहार प्रेस से संबद्ध प्रसिद्ध जर्नलिस्ट श्री दत्तात्रेय शास्त्री से मिलने गये। शास्त्रीजी को हमारे आने के बारे में पहले ही श्रीमती चित्रा स्वामी ने( जिनके घर सबेरे नाश्ता किया था) बता दिया था। शास्त्रीजी ने हमें गया के इतिहास के बारे में बताया। जनहित में यहां बताया जा रहा है:-
गया/ विष्णुपद की चर्चा अष्टादश पुराणों में की गयी है। कहा जाता है कि भष्मासुर के वंशज गयासुर नामक राक्षस ने कोलाहल पर्वत पर अंगूठे के बल पर एक हजार वर्ष(!) तक तप किया। इन्द्र की कुर्सी डगमगायी। वे चिन्तित हुये। ब्रह्माजी को भेजा गया मामला निपटाने के लिये। गयासुर ने वरदान मांगा कि उसका शरीर देवताओं से भी पवित्र हो जाये तथा लोग उसके दर्शन मात्र से पापमुक्त होंने लगें। जैसा कि होता है कि देवता लोग वरदान देने का काम हमेशा बिना अकल लड़ाये करते हैं सो ब्रह्माजी ने भी किया। तथास्तु कह दिया।

वरदान का असर हुआ। लोग गयासुर के दर्शनकर उसी तरह पापमुक्त होने लगे जिस तरह थानेदार के दर्शन कर चोर-डकैत भयमुक्त हो जाते हैं।स्वर्ग की जनसंख्या विकासशील देशों की तरह बढ़ने लगी। इसी जनसंख्या बोझ से देवगण उसीतरह भुनभुनाने लगे जिस तरह विकसित देशों के लोग अपने यहां प्रवासियों की की बढ़ती संख्या देखकर भुनभुनाते हैं।फिर से ब्रह्माजी की ड्यूटी लगायी गयी।

ब्रह्माजी गये गयासुर के पास। बोले-मुझे यज्ञ के लिये पवित्र जगह चाहिये। तुम्हारा शरीर देवताओं से भी पवित्र है। अत: तुम लेट जाओ ताकि यह स्थान पवित्र हो जाये। गयासुर झांसे में आकर लेट गया। उसका शरीर पांच कोस में फैल गया।एक कोस में उसका सिर फैला था।यही छह कोस आगे चलकर गया की सीमा बने-पवित्र सीमा।ब्रह्माजी ने लेटे हुये गयासुर के सिर पर पहाड़,नदियां,पितर,धर्मशिला आदि को रखा। फिर भी उसका सिर हिलना बन्द नहीं हुआ। तो फिर विष्णुजी की सेवायें ली गयीं। विष्णुजी अपने चरण उस धर्मशिला के ऊपर रखे। वही चरण-चिन्ह आज विष्णुपद नाम से प्रसिद्ध हैं।
गयासुर ने फिर विष्णुजी से तीन वरदान मांगे-
१.यह स्थान गयासुर के नाम पर प्रसिद्ध हो।
२.यहां पिण्डदान हों।
३.यहां रोज एक शव आना चाहिये।
गयासुर ने यह धमकी भी दी कि जिसदिन यह बंद हो जायेगा उसदिन वह फिर से उठ खड़ा होगा। विष्णुजी के वरदान के कारण वह स्थान आज भी पूज्य है। विष्णुपद करीब डेढ़ फुट के अष्टभुजाकार सीमा के अंदर पत्थर की शिला पर बने हैं।
ऐसे देखने पर विष्णुपद नहीं दिखते लेकिन जब यहां दूध डाला जाता है तो पद-चिन्ह दिखते हैं। गया में हर तरफ पण्डों की आपाधापी ,लूटपाट दिखती है। यह धार्मिक,आध्यात्मिक केन्द्र कम कचहरी ज्यादा दिखती है। वकीलों के बस्तों की तरह पण्डे हर तरफ दिखते हैं।

बोधगया:-यहां भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुई थी। भगवान बुद्ध के अनुयायी सम्राट अशोक ने बुद्ध की स्मृति में यहां स्तूप का निर्माण कराया था। बाद में सम्राट समुद्रगुप्त ने इस स्थान पर वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया।बाद में २८० फुट ऊंचा यह मंदिर बख्तियार खिलजी के कोप का शिकार हुआ जिसने सन्‌ १२०५ में इसे तुड़वा दिया।बख्तियार खिलजी इस मंदिर के अलावा नालन्दा विश्वविद्यालय को भी नष्ट किया।बाद में ब्रिटिश काल में लार्ड कैनिंग ने १८८० में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। भगवान बुद्ध यहां कुल ४९ दिन रहे। इन उन्चास दिनों में सात विभिन्न स्थानों पर प्रत्येक में सात दिन के हिसाब से रहे।इन सातों स्थानों के नाम उन स्थानों पर भगवान बुद्ध द्वारा किये गये विभिन्न कार्यकलापों के अनुसार हैं।इन सात स्थानों का विवरण निम्नवत है:-
१)बुद्धकुण्ड:-इस स्थान पर आकर भगवान बुद्ध से सबसे पहले तपस्या की।पहले यहां बियावान जंगल था। अब एक कुण्ड बना हुआ है।जिसमें कमल खिलते हैं। कुण्ड के बीचोबीच चबूतरा है।
२)अशोक रेलिंग:-जिस वृक्ष के नीचे तथागत को ज्ञान प्राप्ति हुई थी उसके चारो ओर सम्राट अशोक ने जंगली जानवरों से सुरक्षा के लिये रेलिंग बनवाई थी। रेलिंग से पूरा मंदिर घिरा हुआ है। रेलिंग वास्तव में पत्थरों से बने स्तूप हैं।कुल ४८० स्तूपों में से कुछ समय के साथ टूट गये। भारत सरकार ने टूटे स्तूपों के अनुरूप स्तूप बनवाकर लगवा दिये हैं।
३)बोधिवृक्ष:-इसी पीपल के पेड़ के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुई तथा वे बुद्ध कहलाये।यहां पर बैठकर ही उन्होंने सात दिन तक तपस्या की थी।इस वृक्ष के तीन मूल नष्ट किये जा चुके हैं।वर्तमान मूल चौथा मूल है। पहला मूल अशोक की पत्नी ने नष्ट करवाया था तथा उसकी शाखायें सीलोन भेज दीं थीं ताकि उनके पति सांसारिक मोह से विमुख न हो जाये। दूसरा मूल राजा शशांक ने तथा तीसरा मूल ब्रिटिश शासन के दौरान नष्ट किया गया।
४) चक्रपाणि:-ज्ञानप्राप्ति के बाद बोधिवृक्ष से नीचे से उठकर तथागत सात दिन तक लगातार चलते रहे एक ही स्थान पर ।उनके चलने से उनके चरणों के नीचे कमल के फूल खिलने लगे(?)। सम्राट अशोक ने इस स्थानों पर स्तूप बनवाये हैं।
५)अनिमेषलोचन:-इस स्थान से भगवान बुद्ध सात दिन तक बोधि वृक्ष को देखते रहे।
६)रत्नागिरि:-यहां बैठकर भगवान बुद्ध ने सात दिनों तक तपस्या की।
७)अजापाल:-ज्ञानप्राप्ति के बाद बुद्ध ने जंगल से बाहर जाते हुये सबसे पहली बार जानवर चराने वालों के समूह को धर्मोपदेश दिया था।यहां सम्राट अशोक ने प्रवेश द्वार बनवा दिया था बाद में बख्तियार खिलजी ने इसके तीन टुकड़े कर दिये थे। यहीं पर वर्मा के राजा द्वारा लगवाया गया १२ मन का अष्टधातु का घंटा भी लगा है।
बुद्ध मंदिर से आगे जाने पर चीन,थाईलैंड तथा जापान आदि देशों के बौद्ध मंदिर हैं।चीन के बुद्ध मंदिर में तो बस एक प्रतिमा मात्र है।थाईलैंड का मंदिर भव्य,विशाल है।सुंदर पीले रंग का मंदिर तेज बारिश में अनूठा लग रहा था। जापान मंदिर व म्यूजियम हम देख नहीं पाये। इन मंदिरों में छोटे-छोटे बच्चे लपकते हुये परिक्रमा कर रहे थे।इतनी छोटी उम्र में धर्मपारायण बच्चे देखकर कुछ आश्चर्य भी हुआ।
बोधगया से आगे बढ़कर मगध विश्वविद्यालय के पास से गुजरते हुये सोचा यहां भी पांव फिरा लिया जाये। भौतिकी विभाग के प्रवक्ता यल.बी.श्रीवास्तव से मिले। श्रीवास्तवजी बलियाटिक थे।उन्होंने बिहार की शिक्षा व्यवस्था के बारे में तमाम बातें बताईं।उन दिनों अधिकांश विश्वविद्यालयों के सत्र दो-तीन साल पीछे थे।कभी-कभी परीक्षायें आठ-आठ महीने चलतीं थीं।
हम लोग मगध विश्वविद्यालय में काफी देर रुक गये। रात को फिर डोबी कस्बे में ही रुक गये।

मेरी पसंद

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।

नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है,
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना,गिरकर चढ़ना न अखरता है,
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती ,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा-जाकर खाली हाथ लौट आता है,
मिलते न सहेज के मोती पानी में,
बहता दूना उत्साह इसी हैरानी में,
मुठ्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो,
क्या कमी रह गयी,देखो और सुधार करो,
जब तक न सफल हो नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम,
कुछ किये बिना ही जय-जयकार नहीं होती,
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।

[यह कविता मैंने गांधी को नहीं मारा फिल्म में है। इसका लिंक स्वामीजी से पता चला। इस कविता के रचनाकार सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' बताये गये हैं। लेकिन जब मैंने निराला रचनावली देखी तो अभी तक उसमें यह कविता नहीं मिली।]

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

12 responses to “हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती”

  1. Naam mein kya hai.
    वाह भाई साहब आनन्द आ गया,
    गया बिना गए ही गया गया,
    आप तो हमारे लिए आज के प्रेमचन्द हो गए हैँ.
    जय हो.
  2. जीतू
    सही है, बहुत मौज आ रही है।
    एक चीज और कर दी जाय। प्रत्येक यात्रा वाली पोस्ट के शुरुवात मे पिछले और अन्त मे अगले लिंक की कड़ी दे दी जाय। ताकि पढने वाले को कोई परेशानी ना हो।
    अगर सारी कड़ियों का एक Table of Content बनाया जा सके तो बहुत बढिया रहेगा। किसी सहायता के लिये बन्दा हाजिर है।
  3. प्रत्यक्षा
    आपने बढिया घुमाया गया. सब काम की बातें पता चल गई.गया में पदाईश होने की वजह से लोगबाग यही पूछते हैं गया के विषय में . अब आपका पोस्ट पढ कर आराम से सब बताया जायेगा .
    प्रत्यक्षा
  4. आशीष
    “जैसा कि होता है कि देवता लोग वरदान देने का काम हमेशा बिना अकल
    लड़ाये करते हैं सो ब्रह्माजी ने भी किया। “

    ऐसा इसलिये होता था कि उस जमाने मे वकिल नही हुआ करते थे. आज के तारिख मे तो हर वरदान के लिये भगवान जी को “कांट्रेक्ट” साइन करना पडेगा, साथ मे दो गवाह भी चाहिये होंगे.तथास्तु से काम नही चलेगा.
    अगर जरूरी हुवा थो विडियो रिकार्डीग भी होगी(नही माने तो स्टींग आपरेशन भी हो सकता है)
    आडियो रीकार्डींग मे हो सकता है कि शुकुल देव की आवाज की जगह स्वामीजी आवाज मान ली जाये.
    अब देखो ना हिरण्यकश्यप के फूल्प्रूफ वरदान को कैसे तोडा मरोडा गया ! होलिका के वरदान की वाट लग गयी !
    बेचाते भस्मासूर को नचा नचा के उल्लू बना दिया गया !
  5. Amit
    अब देखो ना हिरण्यकश्यप के फूल्प्रूफ वरदान को कैसे तोडा मरोडा गया
    वो क्या है आशीष भाई कि जो वकील है वे भी भगवान द्वारा ही बनाए गए हैं, क्योंकि कदाचित् ब्रह्मा जी ने सोचा कि कोई तो विष्णु जी की टक्कर का भी होना चाहिए, ताकि आसुरी प्रवत्ति के लोगों को यह न लगे कि उनके हित के लिए ऐसे बुद्धिजीवी न बना परमपिता ब्रह्मा ने उनके साथ कोई अन्याय किया है!! ;)
  6. Ashutosh Dixit
    बहुत अच्छा लिखा है आपने.As far as I know, Harivansh Rai Bachchan is writer of above poem.
  7. फ़ुरसतिया » हमने दरोगा से पैसे ऐंठे
    [...]   रात को बगोदर पहुंच गये थे। प्रोग्राम के अनुसार हमें पांच जुलाई को ही बगोदर पहुंच जाना था लेकिन गया में दत्तात्रेय शास्त्री जी से मिलने के कारण बोधगया  में ठहरना हो गया तथा इसके बाद तेज बारिश ने बाधा पहुंचाई। कुछ समय मगध  विश्वविद्यालय  में भी लग गया।लिहाजा हम पांच जुलाई को केवल डोबी तक ही पहुंच पाये।रात डोबी में रुककर हम छह जुलाई को सबेरे बगोदर के लिये चले। [...]
  8. basant agrawal
    In website
    http://yoogesh.blogspot.com/2006/07/blog-post_26.html
    Harivansh Rai Bacchan claims its his poem
    check it….
  9. amit rai
    amit rai…
    I Googled for something completely different, but found your page…and have to say thanks. nice read….
  10. Pranav Dubey
    I just wanted to correct your information, हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती Kavita Bachchan ki hai.
  11. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] सूधो सनेह को मारग है 2.हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती 3.आपका संकल्प क्या है? 4.वनन में बागन में [...]
  12. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] सूधो सनेह को मारग है 2.हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती 3.आपका संकल्प क्या है? 4.वनन में बागन में [...]

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