http://web.archive.org/web/20140419214445/http://hindini.com/fursatiya/archives/548
आज प्रत्यक्षा का जन्मदिन है। इसके पिछले साल जब इसी मौके पर उनके बारे में लिखा गया था तबसे उनकी एक किताब- जंगल का जादू तिल-तिल आ चुकी है। कहानियां लिखना तो जारी ही था अब छपने भी लगीं हैं। ब्लाग लेखन उसी अनुपात में कम हो गया है।
उनके बारे में पहले भी लिखा जा चुका है-वे कवियत्री है, कथाकार है, चित्रकार हैं, मूर्तिकार हैं, धुरंधर पाठिका हैं, संगीतप्रेमी हैं और चिट्ठाकार तो खैर हैं हीं। उनकी रुचियों और क्षमताऒं की सूची बड़ी लंबी है। वो तो कहो उनके ऊपर आलस्य का ठिठौना लगा है वर्ना मानव सभ्यता के सबसे काबिल लोगों में उनका नाम शामिल करने की मुहिम शुरू हो गयी होती।
अनूप भार्गव का मानना है कि- प्रत्यक्षा को शब्दों में कैद करना सरल काम नहीं है!
वहीं अनामदास का कहना है-प्रत्यक्षा, नीलिमा, सुजाता, बेजी…नारद पर मौजूद देवियाँ…एक जैसी विदुषी हैं. उनका अपना अंदाज़ है, उनमें नए ज़माने की योग्य और दक्ष महिला वाला आत्मविश्वास और तेवर है. वे विवादों से बचती हुई दिखती हैं लेकिन उनकी विचारों की गहराई, समझ और चिंतनशीलता पर आप शक नहीं कर सकते.
जन्मदिन के मौके पर प्रत्यक्षा को कुछ सवाल भेजे गये थे। जुकाम-खांसी के बावजूद उनके जबाब समय से आ गये। सवाल-जबाब हाजिर हैं। प्रत्यक्षा को जन्मदिन की मुबारकबाद देते हुये आपके सामने पेश करता हूं। उनके बारे में और जानकारी/बातचीत के लिये नीचे जो लिंक दिये हैं उन पर क्लिक करके आप पढ़ सकते हैं।
सवाल:आजकल आप ब्लागिंग में कम सक्रिय हैं क्या बात है?
जबाब:लती का लत ऐसे कहाँ छूटता है .. धीरे धीरे विथ्ड्रावल सिम्पटम्स के साथ साथ कम होता है ..तो लत छोड़ने के क्रम में हैं अभी!
सवाल:लेखन के हिसाब से पिछला साल आपका काफ़ी सफ़ल सा रहा। किताब छपी,कहानियां आयीं, ढेर एस.एम.एस. मिले तारीफ़ में! कईसा लगता है ई सब?
जबाब:पहले ही बताया था तारीफ का हम बिलकुल भी बुरा नहीं मानते .. लेकिन सीरीयसली .. लिखाई की तो शुरुआत ही हुई है ..
सवाल:आपका काफ़ी विधाओं में दखल है। यह कित्ता सहयोगी है लेखन में और कित्ता बाधक?
जबाब: लेखन एक आनंद देता है जिसकी जगह अपनी है ..उसमें कुछ भी बाधक नहीं … सब चीज़ों के लिये समय अपने आप निकलता है ..दिमाग या मन कभी भी खाली क्यों रहे .. कुछ करते रहने , कुछ होते रहने की अपेक्षा का अपना एक अलग आनंद है ..
सवाल:मुझे ऐसा लगता है कि आपके लेखन में स्मृतियां काफ़ी हावी रहती हैं ,अतीत, यादें….। कुछ खास बात?
जबाब:सब स्मृतियों को दर्ज़ करने के लिये ही तो लिखना शुरु किया … यही तो खास है!
सवाल:आजकल कविता लिखना कम हो गया ! क्यों?
जबाब:इसलिये कि अब लेख कवितामय होने लगे
सवाल:आपका सामान्य बी.पी. कित्ता रहता है?
जबाब: 120/ 80 ..हर बार
सवाल: पिछला सवाल इसलिये कि इस साल मैंने देखा कि आप काफ़ी लोगों से
नाराज हुईं। मुझसे भी नाराजगी जाहिर की। ऐसा इस बार देखा। टिप्पणीकार तक को
भी हड़का दिया। क्या यह बताने के लिये था कि देखो हम हड़का भी लेते हैं।
जबाब:हर समय तटस्थ रहना गलत बात है । हर मुद्दे पर लड़ाई करना , नाराज़ होना भी गलत है लेकिन जहाँ बात कहनी चाहिये फर्मली , सयंत तर्रीके से ..वहाँ कहनी चाहिये ज़रूर …सही बात पर स्टैंड भी लेना चाहिये .. लेकिन ये करने में मैंने अगर शालीनता खोई है तो उसका अफसोस है .. स्टैंड लेने का अफसोस नहीं..
सवाल: आपके कुछ बिम्ब लगातार आपका पीछा करते हैं। एक तो सिगरेट, दूसरे
मुसड़ी हुये कपड़े और इसी तरह कुछ और। यह अनायास होता है कि सायास आते
हैं?क्या आपको यहसास है कि कौन से बिम्ब आप अनायास दोहराती हैं?
जबाब: पूरा लेखन ही सायास आनायस का खेल है ..बिम्ब बेचारे कैसे छूटें ?
सवाल: आपके लेखन का प्रवाह जबरदस्त है। लेकिन अक्सर आप जो विदेशी
लेखकों का जिकर करती हैं और वो भी उनके अंग्रेजी उद्धरण के साथ तो हमारे
जैसे साधारण पाठक की हवा उड़ जाती है। आतंकित हो जाते हैं हम तो। इस बारे
में कुछ बयानबाजी करिये।
जबाब: आहा ..यही तो चाहती हूँ ..लोग भरपूर आतंकित हों .. कहीं तो डराऊँ हप्प हप्प !
सवाल: आप इधर इत्ता बहुत व्यस्त सी हो गयीं! इत्ता कि काम में ही जुड़े
रहने से घृणा तक होने का नोटिस लगा दिया। बहुत दिन से घृणा बरकरार है। ऐसा
क्यों?
जबाब:जब तक काम है नोटिस लगा रहेगा .. मेन ऐट वर्क लगाना चाहती थी फिर ऑब्वियस कारणों से जमा नहीं
सवाल:इधर क्या पढ़ा? कोई उपन्यास पूरा पढ़ा? उसके बारे में बताया जाये?
जबाब: अमोस ओज़ ..इनके बारे में किताबी कोना में लिखा , नटालिया गिंसबर्ग की मनज़ोनी फैमिली , हनीफ कुरैशी की कुछ कहानियाँ , पामुक की इस्ताम्बुल , ज्ञानरंजन की कुछ कहानियाँ ..बस इतना ही इधर के कुछ महीनों में .. पढ़ाई कुछ सुस्त चाल है आजकल!
सवाल:अपनी सबसे पसंदीदा पांच किताबों के नाम बतायें?
जबाब:ये मुश्किल है ..सिर्फ पाँच क्यों ?
सवाल:आप काफ़ी दिन से ब्लागिंग में हैं। जब आपने शुरू किया तब कीब्लागिंग में और आज की ब्लागिंग में क्या मुख्य चीज पाती हैं?
जबाब:नम्बर … सौ से हज़ार की भीड़
सवाल: क्या बेहतर हुआ है?
जबाब:क्वालिटी और वरायटी!
सवाल: क्या खराब?
जबाब:अच्छे ब्लॉग्स को भीड़ में खोजना मुश्किल हो गया है ..शायद नये ब्लॉग्स में कई ऐसे है जो मेरे मन माफिक होंगे पर मुझे पता नहीं!
सवाल: अपनी दो-तीन सबसे बेहतर पोस्ट के लिंक दें! कविता/लेख के अलग-अलग भी दे सकती हैं।
जबाब:आपको जो अच्छे लगे वो बताईये!
सवाल: सबसे खराब भी कोई हो तो!
जबाब:ये भी आप पर छोड़ा!
सवाल: आपकी आवाज घणी अच्छी है। पाडकास्टिंग काहे नहीं किया जाता नियमित?
जबाब:आवाज़ ठीक ठीक है , वाचन बुरा ..तो हिम्मत जुटानी पड़ती है!
सवाल:जन्मदिन कैसे मनाया जायेगा?
जबाब:किताबें खरीदूँगी .. कुछ अच्छा संगीत सुनूँगी ..
सवाल: सवाल कों के जबाब देना कैसा लगा?
जबाब:मुश्किल मुश्किल
२. प्रत्यक्षा- जन्मदिन के बहाने बातचीत
३.प्रत्यक्षा-जन्मदिन मुबारक
४.अभिव्यक्ति में प्रत्यक्षा की कहानी
५. साथी चिट्ठाकार पर एक नजर – प्रत्यक्षा –या कहूं कि प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या
६.ब्लॉग-चर्चा : ‘प्रत्यक्षा’ का हमनाम ब्लॉग
७. सीढियों के पास वाला कमरा
८. दो मित्रों को जन्मदिन की बधायी
जिनके पैरों में बँधे थे
छोटे छोटे संदेसे
किसी मंदिर के कँगूरे से
बजती घँटियाँ
आवाज़ जो टकरातीं थी
सामने की पहाड़ी से
उन कविताओं को सुनते
गिरते हैं शब्द
किसी तालाब में
सतह पर फैलता है वृत
अर्थ गायब हो जाते हैं
कभी तल पर बालू में
कभी गोल चमकीले पत्थर में
कभी तैरती मछली के पेट में
बात हमेशा अपना सिरा खोजती है
चाहे कितना फेंको उसे
मछुआरे जाल में
बँधेगी आखिर
आखिर
फँसेगी आखिर आखिर
कोई कागज़ की नाव तो नहीं
या कोई बोतल में बन्द
चिट्ठी भी नहीं
जो मिलेगी
सदियों बाद
किसी बच्चे को
समन्दर के किनारे
रेत का घर बनाते
या फिर कौन जाने
किसी टाईमवार्प में
किसी अतीत के समय में
अपने पूरे रहस्य से भरपूर ?और
तुम कहोगे
अरे ! ये तो मेरे ही शब्द हैं जिन्हें कहा था
मैंने सदियों पहले किसी भविष्य में ..
प्रत्यक्षा
…सही बात पर स्टैंड भी लेना चाहिये-प्रत्यक्षा
By फ़ुरसतिया on October 26, 2008
उनके बारे में पहले भी लिखा जा चुका है-वे कवियत्री है, कथाकार है, चित्रकार हैं, मूर्तिकार हैं, धुरंधर पाठिका हैं, संगीतप्रेमी हैं और चिट्ठाकार तो खैर हैं हीं। उनकी रुचियों और क्षमताऒं की सूची बड़ी लंबी है। वो तो कहो उनके ऊपर आलस्य का ठिठौना लगा है वर्ना मानव सभ्यता के सबसे काबिल लोगों में उनका नाम शामिल करने की मुहिम शुरू हो गयी होती।
अनूप भार्गव का मानना है कि- प्रत्यक्षा को शब्दों में कैद करना सरल काम नहीं है!
वहीं अनामदास का कहना है-प्रत्यक्षा, नीलिमा, सुजाता, बेजी…नारद पर मौजूद देवियाँ…एक जैसी विदुषी हैं. उनका अपना अंदाज़ है, उनमें नए ज़माने की योग्य और दक्ष महिला वाला आत्मविश्वास और तेवर है. वे विवादों से बचती हुई दिखती हैं लेकिन उनकी विचारों की गहराई, समझ और चिंतनशीलता पर आप शक नहीं कर सकते.
जन्मदिन के मौके पर प्रत्यक्षा को कुछ सवाल भेजे गये थे। जुकाम-खांसी के बावजूद उनके जबाब समय से आ गये। सवाल-जबाब हाजिर हैं। प्रत्यक्षा को जन्मदिन की मुबारकबाद देते हुये आपके सामने पेश करता हूं। उनके बारे में और जानकारी/बातचीत के लिये नीचे जो लिंक दिये हैं उन पर क्लिक करके आप पढ़ सकते हैं।
जबाब:लती का लत ऐसे कहाँ छूटता है .. धीरे धीरे विथ्ड्रावल सिम्पटम्स के साथ साथ कम होता है ..तो लत छोड़ने के क्रम में हैं अभी!
जबाब:पहले ही बताया था तारीफ का हम बिलकुल भी बुरा नहीं मानते .. लेकिन सीरीयसली .. लिखाई की तो शुरुआत ही हुई है ..
जबाब: लेखन एक आनंद देता है जिसकी जगह अपनी है ..उसमें कुछ भी बाधक नहीं … सब चीज़ों के लिये समय अपने आप निकलता है ..दिमाग या मन कभी भी खाली क्यों रहे .. कुछ करते रहने , कुछ होते रहने की अपेक्षा का अपना एक अलग आनंद है ..
जबाब:सब स्मृतियों को दर्ज़ करने के लिये ही तो लिखना शुरु किया … यही तो खास है!
जबाब:इसलिये कि अब लेख कवितामय होने लगे
जबाब: 120/ 80 ..हर बार
जबाब:हर समय तटस्थ रहना गलत बात है । हर मुद्दे पर लड़ाई करना , नाराज़ होना भी गलत है लेकिन जहाँ बात कहनी चाहिये फर्मली , सयंत तर्रीके से ..वहाँ कहनी चाहिये ज़रूर …सही बात पर स्टैंड भी लेना चाहिये .. लेकिन ये करने में मैंने अगर शालीनता खोई है तो उसका अफसोस है .. स्टैंड लेने का अफसोस नहीं..
जबाब: पूरा लेखन ही सायास आनायस का खेल है ..बिम्ब बेचारे कैसे छूटें ?
जबाब: आहा ..यही तो चाहती हूँ ..लोग भरपूर आतंकित हों .. कहीं तो डराऊँ हप्प हप्प !
जबाब:जब तक काम है नोटिस लगा रहेगा .. मेन ऐट वर्क लगाना चाहती थी फिर ऑब्वियस कारणों से जमा नहीं
जबाब: अमोस ओज़ ..इनके बारे में किताबी कोना में लिखा , नटालिया गिंसबर्ग की मनज़ोनी फैमिली , हनीफ कुरैशी की कुछ कहानियाँ , पामुक की इस्ताम्बुल , ज्ञानरंजन की कुछ कहानियाँ ..बस इतना ही इधर के कुछ महीनों में .. पढ़ाई कुछ सुस्त चाल है आजकल!
जबाब:ये मुश्किल है ..सिर्फ पाँच क्यों ?
जबाब:नम्बर … सौ से हज़ार की भीड़
जबाब:क्वालिटी और वरायटी!
जबाब:अच्छे ब्लॉग्स को भीड़ में खोजना मुश्किल हो गया है ..शायद नये ब्लॉग्स में कई ऐसे है जो मेरे मन माफिक होंगे पर मुझे पता नहीं!
जबाब:आपको जो अच्छे लगे वो बताईये!
जबाब:किताबें खरीदूँगी .. कुछ अच्छा संगीत सुनूँगी ..
जबाब:मुश्किल मुश्किल
आप यह भी पढ़ें:-
१.मरना तो सबको है,जी के भी देख लें२. प्रत्यक्षा- जन्मदिन के बहाने बातचीत
३.प्रत्यक्षा-जन्मदिन मुबारक
४.अभिव्यक्ति में प्रत्यक्षा की कहानी
५. साथी चिट्ठाकार पर एक नजर – प्रत्यक्षा –या कहूं कि प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या
६.ब्लॉग-चर्चा : ‘प्रत्यक्षा’ का हमनाम ब्लॉग
७. सीढियों के पास वाला कमरा
८. दो मित्रों को जन्मदिन की बधायी
मेरी पसन्द
उन फुदकती चिड़ियाँजिनके पैरों में बँधे थे
छोटे छोटे संदेसे
किसी मंदिर के कँगूरे से
बजती घँटियाँ
आवाज़ जो टकरातीं थी
सामने की पहाड़ी से
उन कविताओं को सुनते
गिरते हैं शब्द
किसी तालाब में
सतह पर फैलता है वृत
अर्थ गायब हो जाते हैं
कभी तल पर बालू में
कभी गोल चमकीले पत्थर में
कभी तैरती मछली के पेट में
बात हमेशा अपना सिरा खोजती है
चाहे कितना फेंको उसे
मछुआरे जाल में
बँधेगी आखिर
आखिर
फँसेगी आखिर आखिर
कोई कागज़ की नाव तो नहीं
या कोई बोतल में बन्द
चिट्ठी भी नहीं
जो मिलेगी
सदियों बाद
किसी बच्चे को
समन्दर के किनारे
रेत का घर बनाते
या फिर कौन जाने
किसी टाईमवार्प में
किसी अतीत के समय में
अपने पूरे रहस्य से भरपूर ?और
तुम कहोगे
अरे ! ये तो मेरे ही शब्द हैं जिन्हें कहा था
मैंने सदियों पहले किसी भविष्य में ..
प्रत्यक्षा
पढ़ कर यह खुशी हुई, सर्वप्रथम कि उनका एक आम ‘हें-हें’ व्यक्तित्व नहीं है..
दूसरे कि, ‘मेन एट वर्क’ न लगा पाने की ईमानदार व ज़ायज़ स्वीकारोक्ति !
मेरे चिट्ठाकारी के आरंभिक दिनों में ही,
मेरी एक टिप्पणी को लेकर हुई उनकी नाराज़गी भी याद है
बाद के दिनों की सहमति भी..
अलबता, संप्रति अपुन के ज़ेन्टलमैन शिवभाई के आगे उनकी नाराज़गी ’मिन्नी’ सी ही रही..
सो, कोई रंज़ नहीं, हम हड़क हड़क के भी उनके गीत गायेंगे
आज तो हैप्पी बड्डे टू यू गाने का मौका तो है ही !
एक अच्छा आलेख देने का आभार !
आप व प्रत्यक्षा जी के परिवार के सभी को त्योहार पर शुभकामनाएँ
और साथ साथ इती खरी खरी बातचीत पढवाने का शुक्रिया !!
प्रत्यक्षा जी उत्त्तरोत्तर प्रगति के सोपान पार करतीँ जायेँ यही
उनके जन्मदिन पर मेरी ओर से वीशीज़ के साथ कहूँगी-
और केक भी अवश्य खायेँ
Happy Birth Day Pratyaksha ~~
स स्नेह,
- लावण्या
प्रत्यक्षा जी को जन्म दिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
उन्हें जन्मदिन की बधाईयाँ !
इनकी कहानी “सीढियों के पास वाला कमरा” आप ही के ब्लॉग पर पढ़ी थी। भुलाये नहीं भूलती।
ये ब्लॉग जगत से मुंह मोड़ने की फिराक में हैं, लेकिन हम तो चाहते हैं कि आने वाले कई वर्षों तक इनके जन्मदिन की बधाइयाँ यहां उनके ब्लॉग में ही देने का अवसर मिले.
जन्म दिन की बधाई
भई अतीत की यादों वाले लेख, महीने मे कम से कम एक बार तो प्रकाशित जरुर किया करो।
इन सब को जन्म दिन की ढेर सारी बधाई ।
यूँ भी देखो ऊपर बोधिसत्व अब महान विचारक माने दे रहे हैं। ये आऊट ऑफ बोर्ड सेटलमेंट है का।
मौज एक तरफ.. प्रत्यक्षा व सुनील जैसे चिट्ठाकारों को पढ़ने का अवसर मिलना अपनी चिट्ठाकारी की उपलब्धि गिनते हैं हम
बस .. स्नेहसहित सबका आभार !
(वैसे मुझे भी आज ही पता चला कि हम इतने प्रतिभाशाली हैं इस नये ज्ञान के साथ इस बार का जन्मदिन … क्लाउड नाईन कहाँ है ?
कुछ कमेंट काफ़ी दिलचस्प लगे [:)]
आपको एवं प्रत्यक्षा जी के परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनायें।
प्रत्यक्षा जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं.
दीप मल्लिका दीपावली – आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं