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ये काफ़ी पहले का पढ़ा शेर है। शायद इस तरह से:
शायर बहुत शातिर टाइप का होगा। वो मेहनत सारी हंसने वाले से करवाना चाहता है और जब उसका अंतिम फ़ल (आंसू) निकलेगा तो दावा ठोंक देगा ये मेरा दर्द है।
अपने आसपास देखता हूं तो बेसाख्ता हंसने वाले लोग कम होते जा रहे हैं। जिसको देखो अपने चेहरे पर बोझ लिये घूमता है। संभ्रांत जीवन में उन्मुक्त हंसी को उजड्डपन से जोड़ दिया गया है। ठहाके का गंवारपने से जबरियन गठबंधन करा दिया गया है।
हमारे एक मित्र हैं। योगेन्द्र कुमार पाठक। बांदा के हैं। आजकल दिल्ली में। वे हंसते हैं तो हंसी सुनकर मजा आ जाता है। दिल्ली की आपा-धापी में अभी भी उनकी हंसी बरकरार है। सुनकर मन खुश हो जाता है। उनका ठहाका सुनकर ही हमने २०-२२ साल पहले एक कविता लिखी थी-
कल एक साथी हमारे दफ़्तर में आया। सुबह-सुबह। चेहरा लटका हुआ। एक दिन पहले बास से झगड़ा हुआ था। झगड़े की नियामत सुबह तक लदी थी।
हमने कहा- इस लटके चेहरे के साथ तुम हसीन तो लग रहे हो लेकिन उत्ते हसीन नहीं जित्ते मुस्कराते हुये लगते हो।
वह खिलखिलाने लगा। फ़िर सफ़ाई देने लगा – मैं हंसता हूं तो फ़िर इसी तरह की उजड्ड हंसी हंसता हूं।
कहीं न कहीं यह भाव घुसा दिया गया है कि कार्य स्थल पर खुलकर हंसना कार्यसंस्कृति के विरुद्ध है।
न जाने कित्ते अहम पाले हम अपने को सहजता से दूर सकते हैं। साजिशन असहज होते हैं। लोगों को लगता है कि अगर वे हंसने लगे तो लोग उनको गम्भीरता से न लेगें। अनुशासन के नाम अपने चेहरे पर इस्पात चढ़ाये रहते हैं। उनको यह अंदाज ही नहीं होता कि इस्पात पर जंग लग जाता है।
लोगों को यह लगता है कि कि चेहरे पर बारह बजाये रहने से आदमी सरदार हो जाता है।
हंसी के मौके आसपास न जाने किन-किन रूपों में बिखरे रहते हैं पता ही नहीं चलता। वे अनायास आपके पास आकर खड़े हो जाते हैं। आप उनको तव्वजो न देंगे तो वे आपके पास से चले जायेंगे।
हमारे एक बास थे। उनके आगे के कुछ दांत टूटे थे। लेकिन वे हंसने परहेज न करते। बुजुर्गवार जब बहुत जोर से हंसते तो फ़ाइल मुंह के आगे कर लेते जैसे गांवों में नयी नवेली दुलहनें घूंघट की ओट से हंसती हैं।
एक निर्मल हंसी अनेक दुखों को दूर कर देती है। हंसी एक नियामत है। दुख तो समाज में हैं हीं। विसंगतियां भी हैं। हर बात पर हंसते रहना अच्छी बात नहीं। लेकिन हंसने के मौके गंवाना भी कम बुरी नहीं।
परसाईजी ने एक लेख लिखा है- वनमानुष नहीं हंसता। इस लेख में परसाईजी कहते हैं-
अपनी-अपनी आदत होती है। मुझे मौज-मजे में रहना सहज लगता है। विकट से विकट परिस्थितियों में बहुत देर तक उदास नहीं रह पाता। परेशानियां आती हैं, बनी रहती हैं लेकिन हम उनको भी अपनी पार्टी में शामिल कर लेते हैं। वे भी खिलखिलाने लगती हैं। खिलखिलाते हुये कित्ती हसीन लगती हैं।
कल ज्ञानजी ने भी लिखा- फ़ुरसतिया की सतत मौज की सप्लाई का नाब का रेग्यूलेटर कहां हैं?
ज्ञानजी चूंकि ज्ञानी हैं। अंग्रेजी में कहें तो इंटेक्चुअल। सीधे कॊई बात नहीं कह सकते, लोग समझ जायेंगे। इसीलिये कहे- रेग्युलेटर किधर है। एक ज्ञानी से हम इसका अनुवाद कराये । उसने बताया कि इसका मतलब है कि- फ़ुरसतिया की हंसी का टेटुआ कहां हैं? (लाओ तो जरा दाब देते हैं)
कल की चिट्ठाचर्चा में सतीश सक्सेना जी ने हमसे आशा की -आप बहुत गंभीर रहने वालों की ऐसी तैसी करते रहोगे जिससे हम लोग हंसना सीखते रहें !
हम यही कहना चाहते हैं कि बिना बात के गंभीर रहने वालों अपनी ऐसी-तैसी कराने के लिये किसी के मोहताज नहीं होते। वे अपनी ऐसी-तैसी में आत्मनिर्भर होते हैं।
हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने लिखा है- अगर तानाशाह हिटलर और मुसोलिनी को हंसी के इंजेक्शन दिये जायें तो वे हंसने लगेगें। उनकी क्रूरता ,कठोरता जाती रहेगी। वे मानवीय और लोकतांत्रिक हो जायेंगे।
जोनाथन स्विफ़्ट ने लिखा है- जितनी देर आदमी हंसता है उतनी देर उसके मन में मैल नहीं रहता। उतनी देर उसका कोई शत्रु नहीं रहता। ईर्ष्या ,द्वेष, घृणा के भाव नहीं रहते।
सतीश सक्सेनाजी ने लिखा है- गंभीर रहने वाले कुछ नाम जिन्हें हंसना कम आता है – ज्ञानदत्त,सुभाष भदौरिया, रचना, अजित वडनेरकर, पंगेबाज, दिनेश राय द्विवेदी, शास्त्री जी,अनीता, राकेश खंडेलवाल और डॉ अमर ज्योति!
ज्ञानजी असल में ज्ञानी व्यक्ति हैं। ज्ञानबीड़ी सुलगाये रहते हैं लेकिन हमने उनको कई बार हंसी सुनी है। हंसते हैं तो बड़े क्यूट लगते हैं।
अजित वडनेरकर तो बेचारे गंभीरता के आरोप से घबरा गये और अपने ब्लाग पर कोलगेटिय़ा हंसी वाली फोटो लगा ली। हंसी का प्रमाणपत्र।
अनीताजी को भी हमने हंसते सुना है। वे लिखें भले न लेकिन हंसने में कोई राशनिंग नहीं रखती।
पंगेबाज बेचारा काम के बोझ का मारा है। वो हंसाने में ही इत्ता दोहरा हो जाता है कि हंसने का मौका उसके हाथ से सरक जाता होगा। या फ़िर उसको लगता है कि शायद न हंसने से लोग उसे ज्ञानी-गंभीर समझने लगेंगे।
और लोगों के बारे में हम कुछ न कहेंगे क्योंकि ये हमारे बड़े-बुजुर्ग हैं। बड़े-बुजुर्गों की शान में ज्यादा गुस्ताखी नहीं करनी चाहिये। शास्त्रीजी के बारे में कुछ कहना ऐसे भी खतरनाक है। कुछ लिखेंगे तो वे उसे अपने ब्लाग पर लटका देंगे।
पता नहीं लोगों ने यह धारणा कैसे बना ली कि हंसते रहने वाला आदमी गैर सम्वेदनशील होता है। लोगों को लगता है कि अगर वे हंसने लगे तो उनको गम्भीरता से न लेगें। लेकिन अक्सर होता यह है कि ऐसे लोगों की गम्भीरता हास्यास्पद लगती है। हंसी-मजाक अपने में एक नियामत है। आप अकड़े रहकर जो काम नहीं करा सकते वो हंसी-खुशी करा सकते हैं। हंसी-हंसी में जो काम हो जाते हैं वो पता नहीं चलते।
लंबा लेख हो गया। बात की बेबात में। हंसी पर एक लंबी कविता कभी होली के मौसम में लिखी थी। आप इसे देखियेगा मौका मिले तो।
इतवार मुबारक हो। लेख खतम हो गया। अब तो मुस्कराइये। मुस्कान के बारे में लिखा भी है मैंने-
हंसी की एक बच्ची है
जिसका नाम मुस्कान है
यह अलग बात है कि उसमें
हंसी से कहीं ज्यादा जान है।
इत्ता अगर पढ़ लिये तो कित्ता अच्छा किये। अब तो मुस्करा दें।
आज होली का त्योहार है,
हम सबकी खुशियों का विस्तार है
हर हाल में हंसने का आधार है
हंसी का भी बहुत बड़ा परिवार है
कई बहने है जिनके नाम है-
सजीली,कंटीली,चटकीली,मटकीली
नखरीली और ये देखो आ गई टिलीलिली,
हंसी का सिर्फ एक भाई है
जिसका नाम है ठहाका
टनाटन हेल्थ है छोरा है बांका
हंसी के मां-बाप ने
एक लड़के की चाह में
इतनी लड़कियां पैदा की
परिवार नियोजन कार्यक्रम की
ऐसी-तैसी कर दी.
हंसी की एक बच्ची है
जिसका नाम मुस्कान है
अब यह अलग बात कि उसमें
हंसी से कहीं ज्यादा जान है.
एक बार हमने सोचा -
देंखे दुनिया में कौन
किस तरह हंसता है
इस हसीना के चक्कर में
कौन सबसे ज्यादा फंसता है
मैंने एक साथी कहा
यार जरा हंसकर दिखाओ
वो बोला -पहले आप
मैं बोला मैं तो हंस लेता हंसता ही रहता
पर डरता हूं लोग बेहया कहेंगे
-बीबी घर गयी है ,फिर भी हंस रहा है
लगता है फिर कोई चक्कर चल रहा है
इस बात को सब काम छोड़कर
वे मेरी बीबी को बतायेंगे
तलाक तो खैर क्या होगा
वो मुझे हफ्तों डंटवायेंगे
सो दादा यह वीरता आप ही दिखाइये
ज्यादा नहीं सिर्फ दो मिनट हंसकर बताइये
इतने में दादा के ढेर सारे आंसू निकल आये
पहले वो ठिठके ,शरमाये,हकलाये फिर मिनमिनाये
-हंसूंगा तो तुम्हारी भाभी भी सुन लेगी
बिना कुछ पूंछे वह मेरा खून पी लेगी
कहेगी-मैं हूं घर में फिर यह खुश किस बात पर है
बीबी का डर,लाजो शरम सब रख दिया ताक पर है
वहां से निकला पहुंचा मैं आफिस,साहब से बोला
साहब ने मुझको था आंखो-आंखो में तोला
मैंने कहा -साहब जरा हंसने का तरीका बताइये
साहब लभभग चीखकर बोले
हमको ऊ सब लफड़ा में मत फंसाइये
हंसना है तो अपने दस्तखत में
हंसने का प्रपोजल बनाइये
बड़का साहब से अप्रूव कराइये
फिर जेतना मन करे हंसिये-हंसाइये
पर हमको तो बक्स दीजिये-जाइये
बड़का साहब से पूंछा
साहब आप गुनी है,ज्ञानी हैं
अनुभव विज्ञानी है
खाये हैं खेले हैं
जिंदगी के देखे बहुत मेले हैं
हमको भी कुछ अनुभव लाभ बताइये
हंसने का सबसे मुफीद तरीका बताइये
साहब बोले अब तुम्ही लोग हंसो यार
हमारी तो उमर निकल गई
अब हंसना है बिल्कुल बेकार
तुम्हारे इत्ते थे तो हम भीं बहुत हंसते थे
पूरी दुनिया को अंगूठे पे रखते थे
तुम ऐसा करो पुरानी फाइलें पलट डालो
उनमें हंसी के रिकार्ड मिल जायेंगे
नमूने तो पुराने हैं पर ट्रेंड मिल जायेंगे
फाइलें में कुछ न मिला सब दे गई गयीं धोका
सोचा भाभियों से पूछ लें होली का भी है मौका
हमने पूंछा भाभी जी जरा हंस कर दिखाइये
वे बोली भाई साहब ये तो बाहर गये हैं
आप ऐसा करें कि तीन दिन बाद आइये
मैंने कहा अरे उसमें भाई साहब कि क्या जरूरत
आप कैसे हंसती हैं जरा बेझिझक बताइये
वे बोली नहीं भाई साहब अब हम
हरकाम प्लानिंग से करते हैं
सिर्फ संडे को हंसते है
आप उसी दिन आइये नास्ता कीजिये
हमारी हंसी के नमूने ले जाइये
अगर जल्दी है तोचौपाल चले जाइये
वहां लोग हंसते हैं खिलखिलाते हैं
बात-बेबात ठहाके लगाते हैं
आप अगर जायें तो मेरे लिये भी
चुटकुले नोट कर लाइयेगा
क्योंकि अब तो ये पिटी-पिटाई सुनाते हैं
हंसाते हैं कम ज्यादा खिझाते हैं
इस सब से मैं काफी निराश फिर भी आशावान था थोड़ा
सोच -समझ कर मैंने स्कूटर अस्पताल को मोड़ा
डा.झटका से मिला हेलो-हाय की ,सीधे-सीधे पूंछा
यहां अस्पाताल में लोग किस तरह हंसते है
डा. लगभग चीख कर बोले -क्या बकते हैं?
यहां अभी तक मैंने ऐसा कोई केस नहीं देखा
आपको किसी और बीमारी का हुआ होगा धोखा
क्योंकि हंसी तो भयंकर छूत की बीमारी है
एक से दस,दस से सौ तक फैलती इसकी क्यारी है
एक बार फैलने पर इसका कोई इलाज नहीं होता
यह हर एक को अपनी गिरफ्त में ले लेती है
सारा वातावरण गुंजायमान होता है
मैं बोला फिर भी हंसी का कोई मरीज आया तो
आप उसका इसका कैसे करेंगे?
इस लाइलाज समस्या से कैसे निपटेंगे?
डा.बोले -रोग कोई हो इलाज एक ही तरीके से करते है
शुरु हम कुनैन के तीन डोज से करते हैं
फिर हम अपने यहां हर उपलब्ध खिलाते हैं
दवायें खत्म हो जाने के बाद
हम मरीज को सिविल हास्पिटल भिजवाते हैं
कुछ दिनों में मरीज की इच्छा शक्ति लौट आती है
उसकी तबियत अपने आप ठीक हो जाती है
सो आप चिंता मत कीजिये घर जाइये
भगवान का नाम जपिये चैन की बंशी बजाइये
इसके बाद मैंने सोचा बच्चे तो मासूम होते हैं
कम से कम वे तो अंगूठा नहीं दिखायेंगे
न हंस पर कहने पर जरूर मुस्करायेंगे
मैंने एक बच्चे को पकड़ा गुदगुदाया
लेकिन यह क्या उसकी तो आंख से आंसू निकल आया
बोला-अंकल आजकल हम छिपकर,बहुत किफायत से हंसते हैं
क्योंकि हम अपने नंबर कटने से बहुत डरते हैं
हर हंसी पर ‘सरजी’प्रोजेक्ट वर्क बढ़ा देते हैं
ठहाके पर तो टेस्ट के नंबर घटा देते हैं
इससे मम्मी-पापा अलग परेशान होते हैं
कुछ देर स्कूल को कोसते हैं फिर गुस्सा हम पर उतार देते हैं
इसीलिये हम अपनी हंसी का पूरा हिसाब रखते हैं
दिन भर में दो बार मुस्कराते हैं,एक बार हंसते हैं
ठहाका तो हफ्ते में सिर्फ एक बार लगाते हैं
इतना सब सुनकर हंसने के लिये मैं खुद गुदगुदी करता हूं
हंसी गले तक आती है फिर लौट जाती है
हंसी का कोई प्रायोजक नहीं मिलता है
अपने आप हंसना घाटे का सौदा लगता है
ऐसे में कौन किसे हंसाये ,किसे गुदगुदाये
सब अपने में व्यस्त हैं परेशान -हड़बड़ाये,
यही सब सोचकर मैंने अपनी कलम उठायी
होली का मौका मुफीद समझा और यह कविता सुनायी.
अनूप शुक्ल
हंसी की एक बच्ची है जिसका नाम मुस्कान है
By फ़ुरसतिया on November 2, 2008
ये आवाहन है शायर का कि सुनने वाला इत्ता हंसे कि उसकी आंख से आंसू छलक पड़ें और उन्हीं आंसुओं को देखकर शायर दावा करे कि यही मेरा दर्द है।
अपनी हंसी के साथ मेरा गम भी निबाह दो,
इतना हंसो कि आंख से आंसू छलक पड़े!
शायर बहुत शातिर टाइप का होगा। वो मेहनत सारी हंसने वाले से करवाना चाहता है और जब उसका अंतिम फ़ल (आंसू) निकलेगा तो दावा ठोंक देगा ये मेरा दर्द है।
अपने आसपास देखता हूं तो बेसाख्ता हंसने वाले लोग कम होते जा रहे हैं। जिसको देखो अपने चेहरे पर बोझ लिये घूमता है। संभ्रांत जीवन में उन्मुक्त हंसी को उजड्डपन से जोड़ दिया गया है। ठहाके का गंवारपने से जबरियन गठबंधन करा दिया गया है।
हमारे एक मित्र हैं। योगेन्द्र कुमार पाठक। बांदा के हैं। आजकल दिल्ली में। वे हंसते हैं तो हंसी सुनकर मजा आ जाता है। दिल्ली की आपा-धापी में अभी भी उनकी हंसी बरकरार है। सुनकर मन खुश हो जाता है। उनका ठहाका सुनकर ही हमने २०-२२ साल पहले एक कविता लिखी थी-
हम देखते हैं कि हमारे आसपास हमारे देखते-देखते हास्य बोध गुम सा हो गया है। किसी से मौज लो तो वो उसे समझने की कोशिश में मशगूल हो जाता है। काम और हंसी में ३६ का आंकड़ा लोग जरूरी सा मानने लागे हैं।
किसी बहुत ऊंची पहाड़ी से कोई सोता फ़ूटे
पसर जाये जंगल के सीने पर झरना बनकर!
कल एक साथी हमारे दफ़्तर में आया। सुबह-सुबह। चेहरा लटका हुआ। एक दिन पहले बास से झगड़ा हुआ था। झगड़े की नियामत सुबह तक लदी थी।
हमने कहा- इस लटके चेहरे के साथ तुम हसीन तो लग रहे हो लेकिन उत्ते हसीन नहीं जित्ते मुस्कराते हुये लगते हो।
वह खिलखिलाने लगा। फ़िर सफ़ाई देने लगा – मैं हंसता हूं तो फ़िर इसी तरह की उजड्ड हंसी हंसता हूं।
कहीं न कहीं यह भाव घुसा दिया गया है कि कार्य स्थल पर खुलकर हंसना कार्यसंस्कृति के विरुद्ध है।
न जाने कित्ते अहम पाले हम अपने को सहजता से दूर सकते हैं। साजिशन असहज होते हैं। लोगों को लगता है कि अगर वे हंसने लगे तो लोग उनको गम्भीरता से न लेगें। अनुशासन के नाम अपने चेहरे पर इस्पात चढ़ाये रहते हैं। उनको यह अंदाज ही नहीं होता कि इस्पात पर जंग लग जाता है।
लोगों को यह लगता है कि कि चेहरे पर बारह बजाये रहने से आदमी सरदार हो जाता है।
हंसी के मौके आसपास न जाने किन-किन रूपों में बिखरे रहते हैं पता ही नहीं चलता। वे अनायास आपके पास आकर खड़े हो जाते हैं। आप उनको तव्वजो न देंगे तो वे आपके पास से चले जायेंगे।
हमारे एक बास थे। उनके आगे के कुछ दांत टूटे थे। लेकिन वे हंसने परहेज न करते। बुजुर्गवार जब बहुत जोर से हंसते तो फ़ाइल मुंह के आगे कर लेते जैसे गांवों में नयी नवेली दुलहनें घूंघट की ओट से हंसती हैं।
एक निर्मल हंसी अनेक दुखों को दूर कर देती है। हंसी एक नियामत है। दुख तो समाज में हैं हीं। विसंगतियां भी हैं। हर बात पर हंसते रहना अच्छी बात नहीं। लेकिन हंसने के मौके गंवाना भी कम बुरी नहीं।
परसाईजी ने एक लेख लिखा है- वनमानुष नहीं हंसता। इस लेख में परसाईजी कहते हैं-
मैं व्यंग्य इसीलिये लिखता रहा हूं कि हर आदमी हंसता हुआ दिखे। कोई मनहूस , चिंतित या रोनी सूरत का न हो। हंसना बहुत अच्छी बात है। प्राणियों में मनुष्य ही ऐसा है जिसे हंसने की क्षमता प्रकृति ने दी है।अक्सर जिम्मेदार और ज्ञानी टाइप के लोग मुझसे कहते रहते हैं -तुम हमेशा मौज के मूड में रहते हो। हंसते रहते हो। हर बात पर ही,ही ,ही करते रहना कोई अच्छी बात है क्या?
अपनी-अपनी आदत होती है। मुझे मौज-मजे में रहना सहज लगता है। विकट से विकट परिस्थितियों में बहुत देर तक उदास नहीं रह पाता। परेशानियां आती हैं, बनी रहती हैं लेकिन हम उनको भी अपनी पार्टी में शामिल कर लेते हैं। वे भी खिलखिलाने लगती हैं। खिलखिलाते हुये कित्ती हसीन लगती हैं।
ज्ञानजी चूंकि ज्ञानी हैं। अंग्रेजी में कहें तो इंटेक्चुअल। सीधे कॊई बात नहीं कह सकते, लोग समझ जायेंगे। इसीलिये कहे- रेग्युलेटर किधर है। एक ज्ञानी से हम इसका अनुवाद कराये । उसने बताया कि इसका मतलब है कि- फ़ुरसतिया की हंसी का टेटुआ कहां हैं? (लाओ तो जरा दाब देते हैं)
कल की चिट्ठाचर्चा में सतीश सक्सेना जी ने हमसे आशा की -आप बहुत गंभीर रहने वालों की ऐसी तैसी करते रहोगे जिससे हम लोग हंसना सीखते रहें !
हम यही कहना चाहते हैं कि बिना बात के गंभीर रहने वालों अपनी ऐसी-तैसी कराने के लिये किसी के मोहताज नहीं होते। वे अपनी ऐसी-तैसी में आत्मनिर्भर होते हैं।
हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने लिखा है- अगर तानाशाह हिटलर और मुसोलिनी को हंसी के इंजेक्शन दिये जायें तो वे हंसने लगेगें। उनकी क्रूरता ,कठोरता जाती रहेगी। वे मानवीय और लोकतांत्रिक हो जायेंगे।
जोनाथन स्विफ़्ट ने लिखा है- जितनी देर आदमी हंसता है उतनी देर उसके मन में मैल नहीं रहता। उतनी देर उसका कोई शत्रु नहीं रहता। ईर्ष्या ,द्वेष, घृणा के भाव नहीं रहते।
सतीश सक्सेनाजी ने लिखा है- गंभीर रहने वाले कुछ नाम जिन्हें हंसना कम आता है – ज्ञानदत्त,सुभाष भदौरिया, रचना, अजित वडनेरकर, पंगेबाज, दिनेश राय द्विवेदी, शास्त्री जी,अनीता, राकेश खंडेलवाल और डॉ अमर ज्योति!
ज्ञानजी असल में ज्ञानी व्यक्ति हैं। ज्ञानबीड़ी सुलगाये रहते हैं लेकिन हमने उनको कई बार हंसी सुनी है। हंसते हैं तो बड़े क्यूट लगते हैं।
अजित वडनेरकर तो बेचारे गंभीरता के आरोप से घबरा गये और अपने ब्लाग पर कोलगेटिय़ा हंसी वाली फोटो लगा ली। हंसी का प्रमाणपत्र।
अनीताजी को भी हमने हंसते सुना है। वे लिखें भले न लेकिन हंसने में कोई राशनिंग नहीं रखती।
पंगेबाज बेचारा काम के बोझ का मारा है। वो हंसाने में ही इत्ता दोहरा हो जाता है कि हंसने का मौका उसके हाथ से सरक जाता होगा। या फ़िर उसको लगता है कि शायद न हंसने से लोग उसे ज्ञानी-गंभीर समझने लगेंगे।
और लोगों के बारे में हम कुछ न कहेंगे क्योंकि ये हमारे बड़े-बुजुर्ग हैं। बड़े-बुजुर्गों की शान में ज्यादा गुस्ताखी नहीं करनी चाहिये। शास्त्रीजी के बारे में कुछ कहना ऐसे भी खतरनाक है। कुछ लिखेंगे तो वे उसे अपने ब्लाग पर लटका देंगे।
पता नहीं लोगों ने यह धारणा कैसे बना ली कि हंसते रहने वाला आदमी गैर सम्वेदनशील होता है। लोगों को लगता है कि अगर वे हंसने लगे तो उनको गम्भीरता से न लेगें। लेकिन अक्सर होता यह है कि ऐसे लोगों की गम्भीरता हास्यास्पद लगती है। हंसी-मजाक अपने में एक नियामत है। आप अकड़े रहकर जो काम नहीं करा सकते वो हंसी-खुशी करा सकते हैं। हंसी-हंसी में जो काम हो जाते हैं वो पता नहीं चलते।
लंबा लेख हो गया। बात की बेबात में। हंसी पर एक लंबी कविता कभी होली के मौसम में लिखी थी। आप इसे देखियेगा मौका मिले तो।
इतवार मुबारक हो। लेख खतम हो गया। अब तो मुस्कराइये। मुस्कान के बारे में लिखा भी है मैंने-
हंसी की एक बच्ची है
जिसका नाम मुस्कान है
यह अलग बात है कि उसमें
हंसी से कहीं ज्यादा जान है।
इत्ता अगर पढ़ लिये तो कित्ता अच्छा किये। अब तो मुस्करा दें।
मेरी पसंद
यह कविता होली के मौके पर करीब अठारह साल पहले की है। लंबी है। समय हो पढ़ डालिये। लेख से कम बोरिंग न होगी। पहले भी इसे पोस्ट कर चुके हैं वैसे तो।आज होली का त्योहार है,
हम सबकी खुशियों का विस्तार है
हर हाल में हंसने का आधार है
हंसी का भी बहुत बड़ा परिवार है
कई बहने है जिनके नाम है-
सजीली,कंटीली,चटकीली,मटकीली
नखरीली और ये देखो आ गई टिलीलिली,
हंसी का सिर्फ एक भाई है
जिसका नाम है ठहाका
टनाटन हेल्थ है छोरा है बांका
हंसी के मां-बाप ने
एक लड़के की चाह में
इतनी लड़कियां पैदा की
परिवार नियोजन कार्यक्रम की
ऐसी-तैसी कर दी.
हंसी की एक बच्ची है
जिसका नाम मुस्कान है
अब यह अलग बात कि उसमें
हंसी से कहीं ज्यादा जान है.
एक बार हमने सोचा -
देंखे दुनिया में कौन
किस तरह हंसता है
इस हसीना के चक्कर में
कौन सबसे ज्यादा फंसता है
मैंने एक साथी कहा
यार जरा हंसकर दिखाओ
वो बोला -पहले आप
मैं बोला मैं तो हंस लेता हंसता ही रहता
पर डरता हूं लोग बेहया कहेंगे
-बीबी घर गयी है ,फिर भी हंस रहा है
लगता है फिर कोई चक्कर चल रहा है
इस बात को सब काम छोड़कर
वे मेरी बीबी को बतायेंगे
तलाक तो खैर क्या होगा
वो मुझे हफ्तों डंटवायेंगे
सो दादा यह वीरता आप ही दिखाइये
ज्यादा नहीं सिर्फ दो मिनट हंसकर बताइये
इतने में दादा के ढेर सारे आंसू निकल आये
पहले वो ठिठके ,शरमाये,हकलाये फिर मिनमिनाये
-हंसूंगा तो तुम्हारी भाभी भी सुन लेगी
बिना कुछ पूंछे वह मेरा खून पी लेगी
कहेगी-मैं हूं घर में फिर यह खुश किस बात पर है
बीबी का डर,लाजो शरम सब रख दिया ताक पर है
वहां से निकला पहुंचा मैं आफिस,साहब से बोला
साहब ने मुझको था आंखो-आंखो में तोला
मैंने कहा -साहब जरा हंसने का तरीका बताइये
साहब लभभग चीखकर बोले
हमको ऊ सब लफड़ा में मत फंसाइये
हंसना है तो अपने दस्तखत में
हंसने का प्रपोजल बनाइये
बड़का साहब से अप्रूव कराइये
फिर जेतना मन करे हंसिये-हंसाइये
पर हमको तो बक्स दीजिये-जाइये
बड़का साहब से पूंछा
साहब आप गुनी है,ज्ञानी हैं
अनुभव विज्ञानी है
खाये हैं खेले हैं
जिंदगी के देखे बहुत मेले हैं
हमको भी कुछ अनुभव लाभ बताइये
हंसने का सबसे मुफीद तरीका बताइये
साहब बोले अब तुम्ही लोग हंसो यार
हमारी तो उमर निकल गई
अब हंसना है बिल्कुल बेकार
तुम्हारे इत्ते थे तो हम भीं बहुत हंसते थे
पूरी दुनिया को अंगूठे पे रखते थे
तुम ऐसा करो पुरानी फाइलें पलट डालो
उनमें हंसी के रिकार्ड मिल जायेंगे
नमूने तो पुराने हैं पर ट्रेंड मिल जायेंगे
फाइलें में कुछ न मिला सब दे गई गयीं धोका
सोचा भाभियों से पूछ लें होली का भी है मौका
हमने पूंछा भाभी जी जरा हंस कर दिखाइये
वे बोली भाई साहब ये तो बाहर गये हैं
आप ऐसा करें कि तीन दिन बाद आइये
मैंने कहा अरे उसमें भाई साहब कि क्या जरूरत
आप कैसे हंसती हैं जरा बेझिझक बताइये
वे बोली नहीं भाई साहब अब हम
हरकाम प्लानिंग से करते हैं
सिर्फ संडे को हंसते है
आप उसी दिन आइये नास्ता कीजिये
हमारी हंसी के नमूने ले जाइये
अगर जल्दी है तोचौपाल चले जाइये
वहां लोग हंसते हैं खिलखिलाते हैं
बात-बेबात ठहाके लगाते हैं
आप अगर जायें तो मेरे लिये भी
चुटकुले नोट कर लाइयेगा
क्योंकि अब तो ये पिटी-पिटाई सुनाते हैं
हंसाते हैं कम ज्यादा खिझाते हैं
इस सब से मैं काफी निराश फिर भी आशावान था थोड़ा
सोच -समझ कर मैंने स्कूटर अस्पताल को मोड़ा
डा.झटका से मिला हेलो-हाय की ,सीधे-सीधे पूंछा
यहां अस्पाताल में लोग किस तरह हंसते है
डा. लगभग चीख कर बोले -क्या बकते हैं?
यहां अभी तक मैंने ऐसा कोई केस नहीं देखा
आपको किसी और बीमारी का हुआ होगा धोखा
क्योंकि हंसी तो भयंकर छूत की बीमारी है
एक से दस,दस से सौ तक फैलती इसकी क्यारी है
एक बार फैलने पर इसका कोई इलाज नहीं होता
यह हर एक को अपनी गिरफ्त में ले लेती है
सारा वातावरण गुंजायमान होता है
मैं बोला फिर भी हंसी का कोई मरीज आया तो
आप उसका इसका कैसे करेंगे?
इस लाइलाज समस्या से कैसे निपटेंगे?
डा.बोले -रोग कोई हो इलाज एक ही तरीके से करते है
शुरु हम कुनैन के तीन डोज से करते हैं
फिर हम अपने यहां हर उपलब्ध खिलाते हैं
दवायें खत्म हो जाने के बाद
हम मरीज को सिविल हास्पिटल भिजवाते हैं
कुछ दिनों में मरीज की इच्छा शक्ति लौट आती है
उसकी तबियत अपने आप ठीक हो जाती है
सो आप चिंता मत कीजिये घर जाइये
भगवान का नाम जपिये चैन की बंशी बजाइये
इसके बाद मैंने सोचा बच्चे तो मासूम होते हैं
कम से कम वे तो अंगूठा नहीं दिखायेंगे
न हंस पर कहने पर जरूर मुस्करायेंगे
मैंने एक बच्चे को पकड़ा गुदगुदाया
लेकिन यह क्या उसकी तो आंख से आंसू निकल आया
बोला-अंकल आजकल हम छिपकर,बहुत किफायत से हंसते हैं
क्योंकि हम अपने नंबर कटने से बहुत डरते हैं
हर हंसी पर ‘सरजी’प्रोजेक्ट वर्क बढ़ा देते हैं
ठहाके पर तो टेस्ट के नंबर घटा देते हैं
इससे मम्मी-पापा अलग परेशान होते हैं
कुछ देर स्कूल को कोसते हैं फिर गुस्सा हम पर उतार देते हैं
इसीलिये हम अपनी हंसी का पूरा हिसाब रखते हैं
दिन भर में दो बार मुस्कराते हैं,एक बार हंसते हैं
ठहाका तो हफ्ते में सिर्फ एक बार लगाते हैं
इतना सब सुनकर हंसने के लिये मैं खुद गुदगुदी करता हूं
हंसी गले तक आती है फिर लौट जाती है
हंसी का कोई प्रायोजक नहीं मिलता है
अपने आप हंसना घाटे का सौदा लगता है
ऐसे में कौन किसे हंसाये ,किसे गुदगुदाये
सब अपने में व्यस्त हैं परेशान -हड़बड़ाये,
यही सब सोचकर मैंने अपनी कलम उठायी
होली का मौका मुफीद समझा और यह कविता सुनायी.
अनूप शुक्ल
हमदोनों हाथ से थामत हैं,वे सरकत हैं मखमल जैसे.
खाई में गिरे वे ना निकरे,हमहुँ तो फँसे दलदल जैसे.
दिन रात तुम्हारे ज़ुल्मों को हम रहत सहत निर्बल जैसे.
जिसका नाम मुस्कान है
यह अलग बात है कि उसमें
हंसी से कहीं ज्यादा जान है।
आज तो मौसम कुछ अलग सा लग रहा है…… बात मुस्कुराहटों की हो रही है……. अपनी बात भी रखी जा रही है…..कुल मिला कर माहोल खुशनुमा सा लग रहा है……ओह्ह …… हैप्पी सन्डे
बोले तो फुल्ली जस्टीफाइड लेख।
आप कैसे एक एक लाइन पर हंसा लेते हो ? जैसे आप चेलेंज करते हो की बेटा हंसना मत ! पर बिना हँसे आपको कोई पढ़ ही नही सकता ! हमको तो लट्ठ लेकर लोगो को हंसाना पड़ता है की हंस नही तो लट्ठ चिपका देंगे ! और आपकी पोस्ट रात को पढ़ही नही सकते ! क्यों ? वो इसलिए की अगर ताई सो गई और हमने आप की पोस्ट पढ़ना शुरू कर दी तो शुरू में तो मंद मंद मुस्करा कर काम चल जाता है ! पर कहाँ जाकर रावण वाली अठ्ठहासी हँसी छुट जायेगी , कहना मुश्किल है ! और इसी वजह से हम अक्सर कई बार लट्ठ खा चुके हैं ! सो विशेष ख्याल रखते हैं की आपकी पोस्ट और चिठ्ठाचर्चा को दिन में ही निपटा दे !
भाई शुक्ल जी कोई गण्डा ताबीज हो तो हमको भी बाँध दीजिये !
बहुत शुभकामनाए ! आपका लिखा पढ़ कर तबियत दुरुस्त हो जाती है ! या यूँ कहिये एक टाईम दवाई का खर्चा बच जाता है !
कविता भी पढ़ाई
पर वो तो रहा होगा निर्मोही
जिसे इत्ते पर भी हंसी न आई।
चेहरे से काली घटा उतरी
और खिलखिलाहट न आहट मचाई
आपने होली भी मनाई
हंसी भी मनाई
हंसना भी मनाया
मुस्कराना भी सिखाया
फुरसत में हैं आप
।
मैं तो यूं कहूं कि
आप हैं फुरसत के पितामह
इतना गहन अध्ययन हंसते
हंसते तो कोई फुरसत का सरदार
ही परोस सकता है
और बिना हंसे कोई कैसे उठ सकता है ?
हंसना नहीं बीमारी है
हंसना एक सामाजिक जिम्मेदारी है
कवि रघुवीर सहाय ने लिखा है खूब
हंसो हंसो जल्दी हंसो
सिर्फ कविता ही नहीं
उनकी इस नाम की पुस्तक भी है
पर उसमें चुटकुले नहीं
कविता ही भरी हैं, पूरी हैं
पर जितनी पूरी हैं
वे खाने के लिए नहीं
हंसने के लिए हैं
अरे नहीं, कचौरियां वहां नहीं हैं
उनके पास किताब में
कचौरियां परोसने की फुरसत ही नहीं है।
फुरसतिया जी आप जरूर
अपनी एक पोस्ट में
हंसी की कचौरियां परोसें
देखना सब खा जायेंगे
हंसते हंसते
हंसने के लिए पायेंगे
फिर नये नये रस्ते (रिश्ते)
।
फुरसत में तो हम भी हैं आज
पर हंसी की कचौरियां आप ही परोसें
आपसे इतनी है दरख्वास्त।
की होँसी होँसी में अपना ऊ जो है, का बोकते हँय मेसेजवा… नू, त ऊसको देना केतना
मुस्कील हय ई बड़का बिद्वान लोग सब नहिं न बूझेगा । अकबरवा एकबार बीरबल से बोलिस
कि गधहवा को गूदगूदी लगा के हँसा के देखाओ.. त बीरबल कान पकड़ लिहीन बादसहवा का
नहीं.. अपना कान पकड़ के बोलिन के हाज़ूर गदहवा को गूदगूदायंगे त दूलत्तिये न मारेगा,तनि
पीछला दुन्नो गोर बान्ह के हँसायंगे त पिच्छे से पोंक मारेगा.. सो ईसका कोनो फैदा नहीं हय ।
अनूप भाई, विद्वता बघारने की रोचक शैली ईश्वर सबको दे, ताकि ग्रहण करना बेवकूफ़ों के बस
में हो जाय.. नहीं तो जय हो गुरु, जय हो गुरु से आगे कोई पट्ठा बढ़ ही नहीं पायेगा ।
हाँ, आपकी कविता का एक एक टुकड़ा मस्त करेला है !
की होँसी होँसी में अपना ऊ जो है, का बोकते हँय मेसेजवा… नू, त ऊसको देना केतना
मुस्कील हय ई बड़का बिद्वान लोग सब नहिं न बूझेगा । अकबरवा एकबार बीरबल से बोलिस कि गधहवा को गूदगूदी लगा के हँसा के देखाओ.. त बीरबल कान पकड़ लिहीन बादसहवा का नहीं.. अपना कान पकड़ के बोलिन के हाज़ूर गदहवा को गूदगूदायंगे त दूलत्तिये न मारेगा, मुला पीछला दुन्नो गोर बान्ह के हँसायंगे त पिच्छे से पोंक मारेगा.. सो ईसका कोनो फैदा नहीं हय ।
अनूप भाई, विद्वता बघारने की रोचक शैली ईश्वर सबको दे, ताकि ग्रहण करना बेवकूफ़ों के बस में हो जाय.. नहीं तो जय हो गुरु, जय हो गुरु से आगे कोई पट्ठा बढ़ ही नहीं पायेगा ।
हाँ, आपकी कविता का एक एक टुकड़ा मस्त करेला है !
पिछली टिप्पणी में नाम पता गलत हो गया था, सो यह टिप्पणी रिठेल है..
रिठेल कविता पर रिठेल टिप्पणी कौनो नाज़ायज़ नहीं माना जाय !
बहुत शानदार!
हम तो हँसते हैं भैया. कोई मेहनत भी नहीं लगती हँसने में. हाँ, सीरियसता का लबादा ओढ़ने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ती है. हम तो ऐसे ही हैं जी.
बिना ये सोचे हुए कि लोग क्या कहेंगे..मौज लेने वाला कहें, हँसने वाला कहें, कामेडियन कहें, स्टैंड-अप कामेडियन कहें, सिट-अप कामेडियन कहें, पुश-अप कामेडियन कहें…मन हो तो बफून भी कह सकते हैं. लेकिन अपना हँसना जारी रहेगा जी. जब किसी से पूछ कर हँसते नहीं तो पूछ कर हँसना बंद क्यों करें?
वैसे सतीश जी की निजी राय पर मै इत्तेफाक नही रखता खास तौर से … नीरज जी के बारे में कही बात को सिरे से ग़लत मानता हूँ ,आशा करता हूँ की वे ब्लॉग जगत में दूसरे के सम्मान की रक्षा करेगे ….सन्डे मनाने से पहले .एक शेर छोडे जा रहा हूँ …..
कुछ लोग लिखते है ज़िंदगी की बाते
शेर लिखने वाले सब शायर नही होते
2 – “फ़ुरसतिया की सतत मौज की सप्लाई का नाब का रेग्यूलेटर कहां हैं?”
3 – “फ़ुरसतिया की हंसी का टेटुआ कहां हैं? (लाओ तो जरा दाब देते हैं)”
4 – “ज्ञानजी असल में ज्ञानी व्यक्ति हैं। ज्ञानबीड़ी सुलगाये रहते हैं लेकिन हमने उनको कई बार हंसी सुनी है। हंसते हैं तो बड़े क्यूट लगते हैं।”
5 – “अजित वडनेरकर तो बेचारे गंभीरता के आरोप से घबरा गये और अपने ब्लाग पर कोलगेटिय़ा हंसी वाली फोटो लगा ली। हंसी का प्रमाणपत्र।”
6 – “शास्त्रीजी के बारे में कुछ कहना ऐसे भी खतरनाक है। कुछ लिखेंगे तो वे उसे अपने ब्लाग पर लटका देंगे।”
मजा आ गया !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
लिखने की स्टाइल से आप दोआबा के लगते हैं?
फ़िर पढने जा रहा हूँ /
कुछ जवाब मिल गया होगा !
धन्यवाद
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार,
किसी का दर्द मिल सके तो दे उतार,
जीना इसी का नाम है।
कि हंसी जानवर और इंसान के बीच का बहुत बडा फ़र्क है !!हंसता हुआ आदमी जिंदादिल होता है और जिंदगी जिंदादिली का ही नाम है !!
मुस्कान और हँसी दोनोँ को हमारा भी सलाम पहुँचे ..अनूप भाई आप अपने साथोयोँ से कितना नेह रखते हो वह साफ है -
आपने मेरे कहे का ग़लत अर्थ लगाया, मैंने नीरज जी और डॉ सुभाष भदौरिया (जो कि ग़ज़ल के सिद्धहस्त विद्वान् हैं, और मैं ग़ज़ल के बारे में कुछ समझ नही रखता, ) दोनों विद्वानों की चर्चा उनके सम्मान में की है, भाव बड़े स्पष्ट हैं, आशा है दोबारा पढेंगे ! मैं ब्लाग जगत में किसी के प्रति दुर्भावना की सोच भी नही सकता…
@शिव कुमार मिश्रा जी,
ने अपने आखिरी लाइनों में जो कुछ कहा है रचना जी उसे मेरा उत्तर मान सकती हैं , शिव जी का आभारी हूँ मेरा जवाब देने के लिए !
@अनूप भाई
आपने बहुत प्यारी चर्चा की आज, मैं आज तक नही समझ पाता हूँ की ब्लाग जगत में हम लोग एक दूसरे को भली भांति न जानते हुए भी,एक दूसरे को नीचा दिखने के प्रयत्न में लगे रहते हैं ! स्वच्छ हंसी में भी लोग मतलब ढूँढने क्यों लगते हैं, हंसने हँसाने में क्या सम्मान और विद्वता कम हो जाती है, हम बड़ों से अच्छे तो बच्चे होते हैं, आपस में हंस कर एक दूसरे के साथ प्यार बांटते हैं और बिछड़ते समय बिलखते हैं !
मैंने उक्त कमेंट्स में अपने कुछ ब्लाग मित्रों को संदेश देने की चेष्टा की थी कि अनूप शुक्ला की हंसी(उक्त चिटठा चर्चा में आपकी कविता), एक आमंत्रण है आपको साथ आकर हंसने के लिए …पर लगता है मेरी चेष्टा असफल ही रही! शायद मैं अपने मित्रों की भावनाओं को पहचाननें में अयोग्य हूँ !
आपका आभारी हूँ अनूप भाई पहचानने के लिए !
अतः क्या कहें इन लोगों का जो हर समय हा हा ठी ठी करते हैं. हम से तो कोशिश करके हा हा ही ही के उपर कुछ नहीं होता.
कविता तो हमारी शुरु से पसंदीदा रही है यह वाली..आज आलेख भी पसंद की श्रेणी में आ गया.
वैसे आप इतना सिरियस कैसे रह लेते हैं??
bilkul sahii shrii satish saxena ji
आपका लिंक “मेरे गीत” पर दिया है,
“अपने शानदार व्यक्तित्व का अहसास दिलाना यदि आवश्यक है तो मुसकान और हंसना अवश्य सीखिए ! और आप कितने लोकप्रिय हैं यह अपने आप न कहकर दूसरों को कहने दें ! अनूप शुक्ल ने अपनी सौम्य हंसी बिखेरते हुए बहुत कुछ गंभीर लिखा है ! बेहद उपयोगी लेख !”
बिना बात के गंभीर रहने वालों अपनी ऐसी-तैसी कराने के लिये किसी के मोहताज नहीं होते। वे अपनी ऐसी-तैसी में आत्मनिर्भर होते हैं।
ये भी खूब कही।
हम्म, मैं नहीं इत्तेफ़ाक रखता इस बात से। हंसते तो वे वैसे भी होंगे लेकिन उसका क्रूरता के कम होने से कोई लेना देना नहीं है!! क्या फिल्मों और टीवी सीरियलों में नहीं देखे हैं कि विलेन सबसे अधिक हंसता है, हीरो से भी अधिक जो कि बेचारा थोड़ा बहुत मुस्कुराता ही है, और हंसने के साथ ही विलेन की क्रूरता भी बढ़ती जाती है, सैडिस्टिक लॉफ़्टर यू नो!!
बकिया तो चकाचक ही लगे है।
और आपको टैग किया है, अपनी पढ़ी पुस्तकों में से कोई पाँच कथन उद्धृत करने हैं, यहाँ देखिए:
http://hindi.amitgupta.in/2008/11/04/read-and-remember/
कम से कम वे तो अंगूठा नहीं दिखायेंगे
न हंस पर कहने पर जरूर मुस्करायेंगे
मैंने एक बच्चे को पकड़ा गुदगुदाया
लेकिन यह क्या उसकी तो आंख से आंसू निकल आया
बोला-अंकल आजकल हम छिपकर,बहुत किफायत से हंसते हैं
क्योंकि हम अपने नंबर कटने से बहुत डरते हैं
हर हंसी पर ‘सरजी’प्रोजेक्ट वर्क बढ़ा देते हैं
ठहाके पर तो टेस्ट के नंबर घटा देते हैं
इससे मम्मी-पापा अलग परेशान होते हैं
कुछ देर स्कूल को कोसते हैं फिर गुस्सा हम पर उतार देते हैं
इसीलिये हम अपनी हंसी का पूरा हिसाब रखते हैं
दिन भर में दो बार मुस्कराते हैं,एक बार हंसते हैं
ठहाका तो हफ्ते में सिर्फ एक बार लगाते हैं
सच में बहुत ही चिंता का विषय है ये
वाह सबने सब कह दिया अब क्या कहें सिर्फ़ इसके आप हंसी की गोली जरा और स्ट्रोंग कर दें
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इसके बाद मैंने सोचा बच्चे तो मासूम होते हैं
कम से कम वे तो अंगूठा नहीं दिखायेंगे
न हंस पर कहने पर जरूर मुस्करायेंगे
मैंने एक बच्चे को पकड़ा गुदगुदाया
लेकिन यह क्या उसकी तो आंख से आंसू निकल आया
बोला-अंकल आजकल हम छिपकर,बहुत किफायत से हंसते हैं
क्योंकि हम अपने नंबर कटने से बहुत डरते हैं
हर हंसी पर ‘सरजी’प्रोजेक्ट वर्क बढ़ा देते हैं
ठहाके पर तो टेस्ट के नंबर घटा देते हैं
इससे मम्मी-पापा अलग परेशान होते हैं
कुछ देर स्कूल को कोसते हैं फिर गुस्सा हम पर उतार देते हैं
इसीलिये हम अपनी हंसी का पूरा हिसाब रखते हैं
दिन भर में दो बार मुस्कराते हैं,एक बार हंसते हैं
ठहाका तो हफ्ते में सिर्फ एक बार लगाते हैं
सच में बहुत ही चिंता का विषय है ये
वाह सबने सब कह दिया अब क्या कहें सिर्फ़ इसके आप हंसी की गोली जरा और स्ट्रोंग कर दें.
sorry yeh anonymous dikha rahaa hai yeh mera comment tha…anita
जाकी रही भावना जैसी ….
हँसी पर सबसे सीरियस टिप्पणी कर दी ना? अब तो इस मूर्खता पर सबको हँसी आना लाजिमी है।
परसाईजी ने एक लेख लिखा है- वनमानुष नहीं हंसता। इस लेख में परसाईजी कहते हैं-
" मैं व्यंग्य इसीलिये लिखता रहा हूं कि हर आदमी हंसता हुआ दिखे। कोई मनहूस , चिंतित या रोनी सूरत का न हो। हंसना बहुत अच्छी बात है। प्राणियों में मनुष्य ही ऐसा है जिसे हंसने की क्षमता प्रकृति ने दी है।"
रचना त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..हाउसवाइफ मतलब हरफ़नमौला