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…एक ब्लागर की डायरी
By फ़ुरसतिया on May 7, 2010
स्थान: एक रद्दी की ठेलिया।
पात्र: रद्दी की ठेलिया पर मौजूद कुछ फ़टी-पुरानी डायरियां।
मौसम: कुछ चिपचिपा सा ही कहना चाहिये।
समय: अब छोडिये सब पूछ लेगें का? कुछ तो निजता का सम्मान करिये।
दिन: किसी इतवार का!
माहौल: ये दिल मांगे मोर वाला।
सुबह से घर में पचीस बार बताया जा चुका है कि हम कुछ करते नहीं। उस समय मन किया कि काश! गुस्सा आ जाये और कुछ ऊटपटांग बोलकर इस झमेले से शान से निकल आयें लेकिन गुस्सा ससुरा आया ही नहीं। गुस्सा डीलर ने बाद में बताया कि सारा गुस्सा तो बुद्धिजीवी घराने के यहां के लोग ले गये हैं। पता चला कि आजकल गुस्सा किये बिना किसी को कोई बुद्धिजीवी मानता ही नहीं। गुस्सा बुद्धि का आइडेन्टिटी कार्ड हो गया है।
बहरहाल मजबूरी में चलो भाग चलें पूरब की ओर सोचते हुये अकेले घर से बाहर आ गये। मुझे लगा कि हो न हो सिद्धार्थ को भी ऐसे ही सुनने को मिला हो कि आप कुछ करते नहीं और वे बोर होकर घर से निकल लिये हों। फ़िर मजबूरी में भगवान बन गये।
खैर, हम घर से बाहर निकले तो बाहर ही एक रद्दी वाला दिख गया। मैंने सोचा उससे भाव-ताव करके घर में मौजूद रद्दी बेंचकर कुछ काम किया जाये। मैं उससे रद्दी के भाव-ताव की जानकारी लेते हुये उसके पास मौजूद किताबें वगैरह देखने लगा क्योंकि मुझे किसी ने बताया था कि दुनिया की सबसे बेहतरीन पठन सामग्री रद्दी की दुकान पर ही मिलती है। किताबें उलटते-पुलटते वहीं कुछ डायरियां मिलीं जो कि फ़टीं-पुरानीं थी। गली-गुली थीं। उनको एक नजर देखने से ही मुझे लग गया कि इनमें होमवर्क या परचून का सामान लिखने जैसे महत्वपूर्ण काम होकर कुछ ऐरे-गैरे लेखन का काम ही हुआ है। पलटने पर पता चला कि वे किसी ब्लॉगर की डायरियां थीं। उनमें लिखी बातें पढ़कर पता चला कि हरेक डायरी में राइटिंग अलग-अलग थी। इससे लगा कि वे अलग-अलग ब्लॉगरों की डायरियां थीं। किसी में नाम पता नहीं लिखा था। न तारीख दिख रही थी। कोई सिलसिला नहीं। समय का अन्दाजा नहीं लग रहा था कि कब लिखीं गयीं। लेकिन एक बार जब उनको पढ़ना शुरू किया तो मामला रोचक लगा। वे अलग-अलग हीं लेकिन सब आत्माओं में एक ही परमात्मा रहता है के सिद्धान्त के अनुसार एक ही ब्लॉगर की डायरियां लग रहीं थी। उन डायरियों के कुछ अंश आप भी देखेंगे? देखिये:
भैयाजी ने फोन पर बताया है कि ब्लॉग में और सब कुछ करते रहना लेकिन विनम्रता का दामन मत छोड़ना। विनम्र बने रहो और हो सके तो थोड़ी मूर्खता भी मिला लो। ये दो आइटम अगर अपने पास रख सके तो ससुरा कोई माई का लाल तुम्हारा ब्लॉग-बांका नहीं कर सकता। मैंने देखा कि भैया जी का सारा जीवन ब्लॉगमय हो चुका है। एक दिन उनकी पत्नी झल्ला रहीं थीं कि घर में आटा नहीं है, दाल इत्ती मंहगी हो गयी है, सब्जी लानी है। इसपर उन्होंने पत्नी को पुचकारते हुये कहा- रुको जानी तुम्हारी सब मांगे पूरी करता हूं। इतना कहकर उन्होंने ब्लॉग पोस्ट लिख डाली- आटा, दाल, सब्जी और पत्नी के साथ एक दिन। पता चला पोस्ट तो हिट हो गयी लेकिन भैयाजी की इज्जत अपने घर में और पिट गई!
भैयाजी से कल मेरे सामने ही कोई मिलने आया। वो किसी काम में उनकी सहायता मांग रहा था। भैयाजी ने उसको आश्वासन दिया कि हमसे जो बनेगा हम अवश्य सहायता करेंगे। उसने साफ़-साफ़ पूछा कि बता तो दें कि वे क्या सहायता करेंगे। भैयाजी ने उदारता पूर्वक कहा कि आपकी समस्या पर यदि कोई पोस्ट लिखेगा तो हम फ़ौरन उस पर टिप्पणी करेंगे।
आज मेरे ब्लॉग पर तमाम टिप्पणियां आईं हैं। कई लोगों ने मेरे लेखन को स्तरीय और कुछ ने बहुत स्तरीय बताया है। यहां तक कि भैयाजी तक ने भी यही लिखा है। पता नहीं क्यों मुझे अच्छा नहीं लगा। मैं सोचता रहा क्या मैं सही में ऐसा लिखने लगा कि लोग स्तरीय/बहुत स्तरीय कहकर निकल लें। बाद में भैयाजी ने बताया कि मुझको दूसरे के ब्लॉग पर टिप्पणियां करते रहने चाहिये।
मैंने भैयाजी से पूछा कि फ़ीडबर्नर का क्या झमेला है। ये गैसबर्नर जैसी ही कोई चीज होती है क्या? वे बोले इस सब चोचले में न पड़ो। तुम देखते रहो सब लोग ब्लॉग पोस्टों का लिंक खुदै तुमको मेल से भेजेंगे। बाद में मुझे लगा भैयाजी सच थे।
मेल बक्सा पूरा भर गया है। तमाम ब्लॉगरों की पोस्टों के लिंक मेल से आकर मेरे मेल बॉक्स पर कब्जा कर लिये हैं। एक हसीन टाइप के ब्लॉगर ने तो बाकायदा पत्र तक लिखा है-दीदी, मेरी पोस्ट पर कमेंट नहीं किया तो मैं आपके पास आकर आपके ही रुमाल से अपने आंसू पोछूंगा। थमझ लीझिये। बाद में उसी ब्लॉगर की एक और मेल आ गयी जिसमें उसी पोस्ट का जिक्र करते हुये लिखा था- भाईसाहब, आप आजकल अपने छोटे भाई का बिल्कुल ख्याल नहीं करते। आप मेरी पोस्ट को भले पढ़ें या न पढ़ें लेकिन कम से कम टिप्पणी तो कर दिया करें। मुझे लगा कि पहली मेल उसने गलती से भेज दी होगी। मासमेलिंग में ये छोटी-मोटी गलतियां तो हो ही जाती हैं।
कल बड़ी मजेदार घटना हुई। भैयाजी बाहर गये थे। रात को एक बजे फ़ोन आया। बोले -यार एक जरूरी काम था कर दोगे? हमने कहा-बताइये आपके लिये जान हाजिर है। भैयाजी बोले-जान तुम अपने पास रखो। बस ये करो कि मेरे नाम से इन-इन ब्लॉग की लेटेस्ट पोस्ट पर कमेंट कर दो। अपनी आई डी और पासवर्ड मैं तुमको एस.एम.एस. कर दे रहा हूं। मैंने पूछा क्या कमेंट करना है। उन्होंने कहा -बस अच्छा, बहुत अच्छा। छोटी पोस्टों पर अच्छा बड़ी पर बहुत अच्छा। मैंने पोस्टों के साइज देखकर कर दिये। बाद में पता चला कि एक ब्लॉगर ने अपनी चोट लगने की बात का विशद वर्णन किया उस पर भी मैंने बहुत अच्छा लिख दिया था। लौटकर भैयाजी ने फोन पर उस ब्लॉगर को अपनी तबियत,परिवार, परेशानी का हवाला देकर टिप्पणी रफ़ा-दफ़ा कराई। भैया जी ने बाद में मुझे कभी कमेंट करने को नहीं कहा। अच्छा ही है। कोई किसी की बेगार क्यों करे?
ब्लॉगजगत में इत्ता भाईचारा है कि अगर सारे भाईचारे को सिलकर/जोड़कर पृथ्वी के ऊपर फ़ैलाया जाये तो पृथ्वी का व्यास कई किलोमीटर बढ़ जाये। लेकिन मुझे पता है कि ब्लॉगर लोग ऐसा होने नहीं देंगे क्योंकि फ़िर उनको पृथ्वी का व्यास नये सिरे से याद करना पड़ेगा।
बचपन से पढ़ते आये हैं कि चांदी ऊष्मा का सबसे अच्छा सुचालक होता है। लेकिन यहां ब्लॉगजगत में कुछ लोग इत्ती जल्दी गर्म होते हैं कि चांदी क्या चांदी का बाप तक उनकी गर्मी सुचालकता के आगे फ़ेल है। लेकिन लोग पूर्वाग्रह के चलते चांदी के आगे कुछ सोचना ही नहीं चाहते और लोगों को उनका उचित स्थान नहीं मिल रहा है।
कुछ लोग ब्लॉग जगत में इत्ता उम्दा लिखते हैं कि उनका लिखा मुझे आजतक पल्ले नहीं पड़ा। ऐसे ही एक उम्दा ब्लॉगर के लेखन की तारीफ़ करते हुये मैंने उनसे उनकी लेखन प्रक्रिया पूछी तो उन्होंने बताया कि वे पहले दो-तीन अलग-अलग विषय पर अलग-अलग समय में पोस्टें लिखते हैं। फ़िर उनको आपस में आंख मूंदकर मिला देते हैं और फ़ेंट सा देते हैं। इसके बाद ध्यान से देखते हैं कि कहीं कोई लाइन ऐसी तो नहीं दिख रही जिससे उस पोस्ट का कोई मतलब निकाल सके। अगर ऐसी कोई लाइन दिख गयी तो उसे वे फ़ौरन सर से जुयें की तरह निकाल बाहर कर देते हैं। इसके बाद एकदम अलग तरह का शीर्षक लगाकर पोस्ट कर देते हैं। मैंने उनसे पूछा कि लेकिन आप तो समझते होंगे कि आपने किस पोस्ट में क्या लिखा है! वे बोले- बिरादर मैं इस मामले में अपने पाठक से अलग नहीं हूं। जिस दिन मुझे अपनी किसी पोस्ट का मतलब समझ में आ गया उस दिन मैं ब्लॉग लिखना छोड़ दूंगा।
कोटेशन के बारे में एक जमे हुये ब्लॉगर ने बताया कि कोटेशन देते समय विषय का मुंह नहीं ताकना चाहिये। जो कोटेशन याद आये उसे ठेल देना चाहिये। कोटेशन अंग्रेजी या फ़िर संस्कृत में या फ़िर अबूझ उर्दू/फ़ारसी में हो तो हिसाब अच्छा जमता है। जब तक अर्थ न दिया तबतक कोटेशन कोई पढ़ता नहीं है लेकिन भौकाल बनता है। कोटेशन देने से यह सुविधा भी रहती है कि अगर पोस्ट में कमी होगी तो कोटेशन संभाल लेगा/कोटेशन कमजोर होगा तो ब्लॉग हिसाब बराबर कर लेगा। कुछ भी हो पढ़े-लिखे और विद्वान होने कहलाने से कोई ससुरा रोक ही नहीं सकता। रोकने की कोशिश करे तो एक ठो और पोस्ट धांस देना।
देख रहा हूं कि ब्लॉगिंग का स्तर दिन पर दिन गिर रहा है। भाईचारा का हल्ला मचाने वाले बहुत हैं लेकिन निभाने वाले दिन पर दिन कम होते जा रहे हैं। पहले एक ब्लॉगर ब्लाग लिखने की घोषणा करता था ,पचास उससे लिखवाने में जुट जाते थे। लेकिन अब ऐसा बहुत कम देखने में आता है। अब तो उल्टे लोग लिखना बंद करने की धमकी देने पर मुस्कराते हुये शुभकामनायें देते हैं। इसी लिये अच्छे ब्लॉगरों ने लिखना बंद करना अब बंद कर दिया है। ऐसा काम करने का क्या फ़ायदा जिसमें दिखावे की सहानुभूति भी न मिले।
कल एक ब्लॉगर मीट से आया। एक ब्लॉगर दूसरे से मिलकर बहुत निराश हो गये। उनको बड़ा खराब लगा कि वे एकदम वैसे ही थे जैसा उन्होंने उनके बारे में सोच रखा था। वे बड़ी आशा से आये थे कि शायद मिलने के बाद उनकी राय बदले लेकिन वे निराश होकर लौटे। किसी के मनमुताबिक होना भी उसको तकलीफ़ दे सकता है यह मैंने पहली बार देखा।
भैयाजी ने कल बहुत विस्तार से समझाया है कि हर समय विनम्रता मत लादे घूमा करो। कभी-कभी बदतमीजी भी दिखाया वर्ना तुमको कोई ईमानदार ब्लॉगर समझेगा ही नहीं। सब यही समझेंगे कि विनम्र बना रहता है, बहुत घाघ है। बदतमीजी, अक्खड़ता और लम्पटता दिखाये बिना कोई तुमको ईमानदार मानेगा ही नहीं। जिन लोगों की ईमानदार की छवि है वे मूलत: अच्छे, सच्चे, दिल और दिमाग के साफ़ और बेहद अच्छे निर्मल मन वाले लेकिन ईमानदार दिखने के लिये बदतमीजी, अक्खड़ और लम्पटता का नाटक करते हैं। वे वैसे बिल्कुल नहीं हैं जैसा लोग उनको समझते हैं।
उन्होंने मुझे बहुत प्यार से समझाते हुये कहा- बेटर लेट दैन नेवर।
ब्लॉगरमीट में ही एक और मजे की बात दिखी। दो लोग आपस में किसी बात पर जोर-जोर से लड़ से रहे थे। बाद में पता चला कि वे भाईचारा दिखा रहे थे। आपस में एक-दूसरे को अपने-अपने भाईचारे का मुजाहिरा कर रहे थे। दोनों लोग एक-दूसरे के ब्लॉग पर किये कमेंट की अपनी-अपनी पासबुक भी लाये थे। मिलान कर रहे थे। तीन-चार बार मिलान करने के बाद एक टिप्पणी का हिसाब नहीं मिल रहा था। मुझसे लैपटाप लेकर उनमें से एक ने दूसरे के ब्लॉग पर टिप्पणी की और अपना टिप्पणी आडिट बन्द किया। मुझे लगा कि जिस दिन ब्लॉगजगत से भाईचारा विदा होगा वह दिन ब्लॉगजगत का आखिरी दिन होगा।
कल बड़े मजे की बात हुई। दफ़्तर में बॉस ने और घर में घरैतिन बॉस ने किसी बात पर डांट दिया था। वैसे तो यह आम बात है लेकिन कल कुछ ज्यादा हो गया सो मन बहलाने के लिये मैं अपनी फ़र्जी आईडी से कई ब्लॉग पर टिप्पणियां कर रहा था। जो ब्लॉग सामने दिखा उसमें मैंने धांय-धांय टिपियाना शुरू किया। कुछ में बहुत ऊल-जलूल लिखा। इसके बाद मैं चादर तानकर सो गया। रात में मेरे दोस्त का फोन आया- साले, फ़र्जी आई.डी. से कमेंट करना तुझको इसीलिये सिखाया था कि मेरे ही ब्लॉग पर ये हरकत करो। मैंने -अरे कौन बोल रहे हैं भाईसाहब आपकी आवाज साफ़ नहीं आ रही है। कहकर अपनी बला टाली। कुछेक कमेंट मिटाये और सबेरे पोस्ट लिखी कि मेरा ब्लॉग किसी ने हैक कर लिया है। कोई मेरे नाम से गलत कमेंट करता है तो कृपया मुझे सूचित करें। पोस्ट लिखने के बाद दीदी का फोन भी आया -भैया तुमको कम से कम मेरे ब्लॉग पर तो कमेंट करने के पहले सोचना चाहिये। लोग क्या कहेंगे। मुझे लगा कि ब्लॉग कभी-कभी टेंशन रिलीज करने के बजाय बढ़ाता भी है।
ब्लॉगजगत की बेसिरपैर की बहसें देखकर लगता है हिन्दुस्तान-पाकिस्तान को आपस में कटाजुज्झ करने की बजाय एक-एक ठो आफ़िसियल ब्लॉग खोल लेना चाहिये। सेनायें बैरकों में भेज देनी चाहिये। राजनयिकों को बुलाकर ब्लॉग लेखन में लगा देना चाहिये। जो लड़ाई-झगड़ा , बहस-मुबाहिसा करना है ब्लॉग के जरिये कर लो। इस सब से हज्जारों करोड़ पैसा बचेगा। दोनों देश भड़ से पैसे वाले हो जायेंगे। गांधीजी और जिन्नाजी की राह भी फ़ालो हो जायेगी। दोनों अपने काम समझा-बुझा-बहसियाकर और अड़ियल बने रहकर निकालते थे। ब्लॉगिंग में भी हर बहस में यही होता है। पांच बहस करने वाले, पचास समझाने-बुझाने वाले। कोई नुकसान तो है नहीं। पहले फ़्री-फ़ंड में ब्लॉगर पर करें इसके बाद अपनी-अपनी साइट बना लें। बहस पर इत्ती हिट होंगी, इत्ते कमेंट मिलेंगे कि विज्ञापन की आमदनी का पैसा ही दोनों देशों की जीडीपी से आंखे मिलाने लगा।
मेरी पक्की सहेली मुझसे आजकल बहुत नाराज है। मुझसे गलती ये हुई मैंने उसकी पोस्ट पर कमेंट करने के अपनी कम पक्की सहेली की पोस्ट पढ़ ली और उस पर कमेंट कर दिया। वह इसी बात पर रुठ गयी। बाद में मैंने उसकी पोस्ट पर उसकी हाइट जितना ही कमेंट किया लेकिन उसके गुस्से की हाइट और भी ज्यादा है। मुझे लगा कि हम लोग भी पुरुष ब्लॉगरों की तरह होते जा रहे हैं।
सुबह-सुबह भैयाजी का फोन आया। उसी समय मैं उनकी ही पोस्ट पढ़ रहा था। गला भर आया था। भैया जी का नम्बर देखकर मैंने थोड़ा गला और भर लिया और रुंधे गले से बताया कि उनका दुख का पहाड़ बहुत भारी है। भैयाजी ने हंसते और खिलखिलाते हुये बताया कि अरे वो तो मैंने तीन दिन पहले लिखी थी। फ़्रेश मूड से लिखी थी इसलिये गहरी हो गयी। फोन रखने के पहले भैयाजी ने सलाह दी कि अपनी इस समय की फोटो खैंच के रख लो। जब कभी दुखी पोस्ट लिखना तब सटा देना। अच्छी प्रतिक्रियायें मिलेंगी।
सब लोग ब्लॉगजगत के बारे में बयान देते रहते हैं। कोई कहता है दस साल में ब्लॉग जगत में ये होगा। कोई कहता है पन्द्रह साल में। कोई बीस में। मुझे पहले तो समझ में नहीं आया कि मैं कित्ते साल में कहूं। लेकिन जब सब लोग कुछ न कुछ कहते हैं तो मुझे कहना पड़ेगा वर्ना ऑड ब्लॉगर आउट हो जाऊंगा। बाद में मैंने तय किया मैं तेरह साल की बात करूंगा। ब्लॉगजगत अगले तेरह साल में जबरदस्त रूप से आगे आयेगा। तेरह साल की बात मैंने इसलिये कही कि अभी तक किसी ने यह बात कही नहीं थी। ब्लॉग जगत में अलग तरह की बात करने वाले को लोग ज्यादा भाव देते हैं। बेभाव की तारीफ़ करते हैं।
ब्लॉग जगत में दुनिया में पहली बार ये प्रयोग करने, वो प्रयोग करने का चलन है। मैं भी कुछ बातें करने की सोच रहा हूं जिनके लिये मैं कह सकूं कि दुनिया में इससे पहले ऐसा किसी ने नहीं किया। इसके लिये मैं जुगाड़ में लगा हूं। सोचता हूं इनमें से कुछ कर ही डांलूं:
१. वाटरप्रूफ़ लैपटाप लेकर नहाते हुये कोई पोस्ट लिखूं जिसका शीर्षक हो- नहाते हुये दुनिया की पहली पोस्ट।
२. मोहल्ले के किसी गुंडे से भिड़ जाऊं और पिटते हुये माइक्रो पोस्ट लिख डालूं- पिटते हुये दुनिया की पहली पोस्ट।
३. रेल की चैन खींच कर रेल खड़ी कर दूं। टीटी आये तो जुर्माना भरते हुये पोस्ट लिखूं- जुर्माना भरते हुये दुनिया की पहली पोस्ट।
४. दौड़ते हुये मोबाइल से टाइप करने का अभ्यास करते हुये लिखूं- भागते हुये दुनिया की पहली पोस्ट।
५. लोगों के बीच लड़ाई-झगड़ा निपटाते हुये पोस्ट लिखूं- झगड़ा निपटाते हुये दुनिया की पहली पोस्ट!
मैंने देखा है कि ब्लॉगजगत में दुख बहुत इज्जत की निगाहों से देखा जाता है। जो अच्छी तरह दुखी हो लेता है, रो लेता है उसकी बरक्कत की पक्की गारंटी है। कुछ लोगों की पोस्टें देखकर तो लगता है कि इनके जीवन से बचपन के दुख भरे/अभाव भरे दिन निकाल दिये जायें तो इनका ब्लॉग तो बिना तर माल के परियोजना की तरह हो जाये। लोगों के दुख के होर्डिंग देखकर लगता है अभिव्यक्ति के मामले में ये निरालाजी से चार पांव आगे हैं। निरालाजी अपने सारे दुख दो लाइन में ही कह पाये( दुख ही जीवन की कथा रही/क्या कहूं आज जो कही नहीं)। लेकिन यहां भाई लोगों की अभिव्यक्ति का स्तर निरालाजी की अभिव्यक्ति से बहुत अधिक मुखर है। कुछ पोस्टों को बांचकर तो इत्ती रुलाई आती है कि लगता है ये आंसू अगर बुंदेलखंड भेजे जा सकते तो वहां सूखे की जगह बाढ़ की समस्या हो जाती। मुझे अच्छी तरह से दुखी होना सीखना चाहिये।
दस ब्लॉग चलाने वाले दोस्त ने ग्याहरवां ब्लॉग बनाया है। कारण पूछने पर उसने बताया कि यह ब्लॉग उसने ब्लॉगिंग छोड़ने की घोषणा करने के लिये बनाया है। इसके पहले उसे याद ही नहीं रहता था कि किस ब्लॉग से उसने ब्लॉगिंग बंद करने की घोषणा की। इसके चलते कई बार ऐसा हुआ कि एक से छोड़ा तो दूसरे में क्यों लिख रहे हो। लोग खिल्ली उड़ाने लगते थे और बेइज्जती खराब होती थी। अब कम से कम ब्लॉगिंग बन्द करने और वापस आने का हिसाब-किताब तो रख सकेगा। पता चला पहली ही पोस्ट , आदतन, उसने ब्लॉग लिखना छोड़ने की घोषणा की है। दोस्तों ने भी आदतन उसका ब्लॉगजगत में आने का स्वागत किया है। एक ने कहा टिपियाया है- आपके जाने से ब्लॉगजगत सूना हो जायेगा। भैयाजी से मैंने पूछा कि ये क्या माजरा है? भैयाजी -बोले सब ससुरे ब्लॉगरपना झाड़ रहे हैं। तुम इस सब चक्कर में न पड़ो। जहां-जहां बताया वहां-वहां टिपिया के आओ। आज फ़र्जी वाली आई से मत टिपियाना!
ब्लॉगर की डायरियां बांचते-बांचते मैं इतना खो गया कि समय का पता ही नहीं चला। मैंने रद्दी की ठेलिया वाले से उसकी रद्दी खरीदने की बात कही। उसने मेरी रुचि देखकर मझे मुफ़्त में सारी डायरियां दे दीं। शायद वो अपनी ठेलिया से कबाड़ हटाना चाह रहा हो। या क्या पता वो कोई पुराना ब्लॉगर रहा हो। देखते हैं कि ब्लॉगिंग के सामान्य सिद्धान्तों में इसका कोई जिक्र है क्या?
आप बताइयेगा आपके क्या विचार हैं! आखिर आप भी तो ब्लागर हैं न!
पात्र: रद्दी की ठेलिया पर मौजूद कुछ फ़टी-पुरानी डायरियां।
मौसम: कुछ चिपचिपा सा ही कहना चाहिये।
समय: अब छोडिये सब पूछ लेगें का? कुछ तो निजता का सम्मान करिये।
दिन: किसी इतवार का!
माहौल: ये दिल मांगे मोर वाला।
सुबह से घर में पचीस बार बताया जा चुका है कि हम कुछ करते नहीं। उस समय मन किया कि काश! गुस्सा आ जाये और कुछ ऊटपटांग बोलकर इस झमेले से शान से निकल आयें लेकिन गुस्सा ससुरा आया ही नहीं। गुस्सा डीलर ने बाद में बताया कि सारा गुस्सा तो बुद्धिजीवी घराने के यहां के लोग ले गये हैं। पता चला कि आजकल गुस्सा किये बिना किसी को कोई बुद्धिजीवी मानता ही नहीं। गुस्सा बुद्धि का आइडेन्टिटी कार्ड हो गया है।
बहरहाल मजबूरी में चलो भाग चलें पूरब की ओर सोचते हुये अकेले घर से बाहर आ गये। मुझे लगा कि हो न हो सिद्धार्थ को भी ऐसे ही सुनने को मिला हो कि आप कुछ करते नहीं और वे बोर होकर घर से निकल लिये हों। फ़िर मजबूरी में भगवान बन गये।
खैर, हम घर से बाहर निकले तो बाहर ही एक रद्दी वाला दिख गया। मैंने सोचा उससे भाव-ताव करके घर में मौजूद रद्दी बेंचकर कुछ काम किया जाये। मैं उससे रद्दी के भाव-ताव की जानकारी लेते हुये उसके पास मौजूद किताबें वगैरह देखने लगा क्योंकि मुझे किसी ने बताया था कि दुनिया की सबसे बेहतरीन पठन सामग्री रद्दी की दुकान पर ही मिलती है। किताबें उलटते-पुलटते वहीं कुछ डायरियां मिलीं जो कि फ़टीं-पुरानीं थी। गली-गुली थीं। उनको एक नजर देखने से ही मुझे लग गया कि इनमें होमवर्क या परचून का सामान लिखने जैसे महत्वपूर्ण काम होकर कुछ ऐरे-गैरे लेखन का काम ही हुआ है। पलटने पर पता चला कि वे किसी ब्लॉगर की डायरियां थीं। उनमें लिखी बातें पढ़कर पता चला कि हरेक डायरी में राइटिंग अलग-अलग थी। इससे लगा कि वे अलग-अलग ब्लॉगरों की डायरियां थीं। किसी में नाम पता नहीं लिखा था। न तारीख दिख रही थी। कोई सिलसिला नहीं। समय का अन्दाजा नहीं लग रहा था कि कब लिखीं गयीं। लेकिन एक बार जब उनको पढ़ना शुरू किया तो मामला रोचक लगा। वे अलग-अलग हीं लेकिन सब आत्माओं में एक ही परमात्मा रहता है के सिद्धान्त के अनुसार एक ही ब्लॉगर की डायरियां लग रहीं थी। उन डायरियों के कुछ अंश आप भी देखेंगे? देखिये:
एक ब्लॉगर की डायरी
आज मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया है। अच्छा लग रहा है। तमाम लोगों ने स्वागत कर डाला है। कुछ लोगों ने तमाम बेहतर और साफ़-सुथरा लेखन की आशायें भी कर डालीं। उनमें से तमाम कूड़ा लेखन करने वाले भी हैं। बताओ ससुर आप कूड़ा फ़ैलाओ और हम साफ़ लेखन करें। हम क्या ब्लॉग-मेहतर हैं जो केवल साफ़-सफ़ाई का काम करें!भैयाजी ने फोन पर बताया है कि ब्लॉग में और सब कुछ करते रहना लेकिन विनम्रता का दामन मत छोड़ना। विनम्र बने रहो और हो सके तो थोड़ी मूर्खता भी मिला लो। ये दो आइटम अगर अपने पास रख सके तो ससुरा कोई माई का लाल तुम्हारा ब्लॉग-बांका नहीं कर सकता। मैंने देखा कि भैया जी का सारा जीवन ब्लॉगमय हो चुका है। एक दिन उनकी पत्नी झल्ला रहीं थीं कि घर में आटा नहीं है, दाल इत्ती मंहगी हो गयी है, सब्जी लानी है। इसपर उन्होंने पत्नी को पुचकारते हुये कहा- रुको जानी तुम्हारी सब मांगे पूरी करता हूं। इतना कहकर उन्होंने ब्लॉग पोस्ट लिख डाली- आटा, दाल, सब्जी और पत्नी के साथ एक दिन। पता चला पोस्ट तो हिट हो गयी लेकिन भैयाजी की इज्जत अपने घर में और पिट गई!
भैयाजी से कल मेरे सामने ही कोई मिलने आया। वो किसी काम में उनकी सहायता मांग रहा था। भैयाजी ने उसको आश्वासन दिया कि हमसे जो बनेगा हम अवश्य सहायता करेंगे। उसने साफ़-साफ़ पूछा कि बता तो दें कि वे क्या सहायता करेंगे। भैयाजी ने उदारता पूर्वक कहा कि आपकी समस्या पर यदि कोई पोस्ट लिखेगा तो हम फ़ौरन उस पर टिप्पणी करेंगे।
आज मेरे ब्लॉग पर तमाम टिप्पणियां आईं हैं। कई लोगों ने मेरे लेखन को स्तरीय और कुछ ने बहुत स्तरीय बताया है। यहां तक कि भैयाजी तक ने भी यही लिखा है। पता नहीं क्यों मुझे अच्छा नहीं लगा। मैं सोचता रहा क्या मैं सही में ऐसा लिखने लगा कि लोग स्तरीय/बहुत स्तरीय कहकर निकल लें। बाद में भैयाजी ने बताया कि मुझको दूसरे के ब्लॉग पर टिप्पणियां करते रहने चाहिये।
मैंने भैयाजी से पूछा कि फ़ीडबर्नर का क्या झमेला है। ये गैसबर्नर जैसी ही कोई चीज होती है क्या? वे बोले इस सब चोचले में न पड़ो। तुम देखते रहो सब लोग ब्लॉग पोस्टों का लिंक खुदै तुमको मेल से भेजेंगे। बाद में मुझे लगा भैयाजी सच थे।
मेल बक्सा पूरा भर गया है। तमाम ब्लॉगरों की पोस्टों के लिंक मेल से आकर मेरे मेल बॉक्स पर कब्जा कर लिये हैं। एक हसीन टाइप के ब्लॉगर ने तो बाकायदा पत्र तक लिखा है-दीदी, मेरी पोस्ट पर कमेंट नहीं किया तो मैं आपके पास आकर आपके ही रुमाल से अपने आंसू पोछूंगा। थमझ लीझिये। बाद में उसी ब्लॉगर की एक और मेल आ गयी जिसमें उसी पोस्ट का जिक्र करते हुये लिखा था- भाईसाहब, आप आजकल अपने छोटे भाई का बिल्कुल ख्याल नहीं करते। आप मेरी पोस्ट को भले पढ़ें या न पढ़ें लेकिन कम से कम टिप्पणी तो कर दिया करें। मुझे लगा कि पहली मेल उसने गलती से भेज दी होगी। मासमेलिंग में ये छोटी-मोटी गलतियां तो हो ही जाती हैं।
कल बड़ी मजेदार घटना हुई। भैयाजी बाहर गये थे। रात को एक बजे फ़ोन आया। बोले -यार एक जरूरी काम था कर दोगे? हमने कहा-बताइये आपके लिये जान हाजिर है। भैयाजी बोले-जान तुम अपने पास रखो। बस ये करो कि मेरे नाम से इन-इन ब्लॉग की लेटेस्ट पोस्ट पर कमेंट कर दो। अपनी आई डी और पासवर्ड मैं तुमको एस.एम.एस. कर दे रहा हूं। मैंने पूछा क्या कमेंट करना है। उन्होंने कहा -बस अच्छा, बहुत अच्छा। छोटी पोस्टों पर अच्छा बड़ी पर बहुत अच्छा। मैंने पोस्टों के साइज देखकर कर दिये। बाद में पता चला कि एक ब्लॉगर ने अपनी चोट लगने की बात का विशद वर्णन किया उस पर भी मैंने बहुत अच्छा लिख दिया था। लौटकर भैयाजी ने फोन पर उस ब्लॉगर को अपनी तबियत,परिवार, परेशानी का हवाला देकर टिप्पणी रफ़ा-दफ़ा कराई। भैया जी ने बाद में मुझे कभी कमेंट करने को नहीं कहा। अच्छा ही है। कोई किसी की बेगार क्यों करे?
ब्लॉगजगत में इत्ता भाईचारा है कि अगर सारे भाईचारे को सिलकर/जोड़कर पृथ्वी के ऊपर फ़ैलाया जाये तो पृथ्वी का व्यास कई किलोमीटर बढ़ जाये। लेकिन मुझे पता है कि ब्लॉगर लोग ऐसा होने नहीं देंगे क्योंकि फ़िर उनको पृथ्वी का व्यास नये सिरे से याद करना पड़ेगा।
बचपन से पढ़ते आये हैं कि चांदी ऊष्मा का सबसे अच्छा सुचालक होता है। लेकिन यहां ब्लॉगजगत में कुछ लोग इत्ती जल्दी गर्म होते हैं कि चांदी क्या चांदी का बाप तक उनकी गर्मी सुचालकता के आगे फ़ेल है। लेकिन लोग पूर्वाग्रह के चलते चांदी के आगे कुछ सोचना ही नहीं चाहते और लोगों को उनका उचित स्थान नहीं मिल रहा है।
कुछ लोग ब्लॉग जगत में इत्ता उम्दा लिखते हैं कि उनका लिखा मुझे आजतक पल्ले नहीं पड़ा। ऐसे ही एक उम्दा ब्लॉगर के लेखन की तारीफ़ करते हुये मैंने उनसे उनकी लेखन प्रक्रिया पूछी तो उन्होंने बताया कि वे पहले दो-तीन अलग-अलग विषय पर अलग-अलग समय में पोस्टें लिखते हैं। फ़िर उनको आपस में आंख मूंदकर मिला देते हैं और फ़ेंट सा देते हैं। इसके बाद ध्यान से देखते हैं कि कहीं कोई लाइन ऐसी तो नहीं दिख रही जिससे उस पोस्ट का कोई मतलब निकाल सके। अगर ऐसी कोई लाइन दिख गयी तो उसे वे फ़ौरन सर से जुयें की तरह निकाल बाहर कर देते हैं। इसके बाद एकदम अलग तरह का शीर्षक लगाकर पोस्ट कर देते हैं। मैंने उनसे पूछा कि लेकिन आप तो समझते होंगे कि आपने किस पोस्ट में क्या लिखा है! वे बोले- बिरादर मैं इस मामले में अपने पाठक से अलग नहीं हूं। जिस दिन मुझे अपनी किसी पोस्ट का मतलब समझ में आ गया उस दिन मैं ब्लॉग लिखना छोड़ दूंगा।
कोटेशन के बारे में एक जमे हुये ब्लॉगर ने बताया कि कोटेशन देते समय विषय का मुंह नहीं ताकना चाहिये। जो कोटेशन याद आये उसे ठेल देना चाहिये। कोटेशन अंग्रेजी या फ़िर संस्कृत में या फ़िर अबूझ उर्दू/फ़ारसी में हो तो हिसाब अच्छा जमता है। जब तक अर्थ न दिया तबतक कोटेशन कोई पढ़ता नहीं है लेकिन भौकाल बनता है। कोटेशन देने से यह सुविधा भी रहती है कि अगर पोस्ट में कमी होगी तो कोटेशन संभाल लेगा/कोटेशन कमजोर होगा तो ब्लॉग हिसाब बराबर कर लेगा। कुछ भी हो पढ़े-लिखे और विद्वान होने कहलाने से कोई ससुरा रोक ही नहीं सकता। रोकने की कोशिश करे तो एक ठो और पोस्ट धांस देना।
देख रहा हूं कि ब्लॉगिंग का स्तर दिन पर दिन गिर रहा है। भाईचारा का हल्ला मचाने वाले बहुत हैं लेकिन निभाने वाले दिन पर दिन कम होते जा रहे हैं। पहले एक ब्लॉगर ब्लाग लिखने की घोषणा करता था ,पचास उससे लिखवाने में जुट जाते थे। लेकिन अब ऐसा बहुत कम देखने में आता है। अब तो उल्टे लोग लिखना बंद करने की धमकी देने पर मुस्कराते हुये शुभकामनायें देते हैं। इसी लिये अच्छे ब्लॉगरों ने लिखना बंद करना अब बंद कर दिया है। ऐसा काम करने का क्या फ़ायदा जिसमें दिखावे की सहानुभूति भी न मिले।
कल एक ब्लॉगर मीट से आया। एक ब्लॉगर दूसरे से मिलकर बहुत निराश हो गये। उनको बड़ा खराब लगा कि वे एकदम वैसे ही थे जैसा उन्होंने उनके बारे में सोच रखा था। वे बड़ी आशा से आये थे कि शायद मिलने के बाद उनकी राय बदले लेकिन वे निराश होकर लौटे। किसी के मनमुताबिक होना भी उसको तकलीफ़ दे सकता है यह मैंने पहली बार देखा।
भैयाजी ने कल बहुत विस्तार से समझाया है कि हर समय विनम्रता मत लादे घूमा करो। कभी-कभी बदतमीजी भी दिखाया वर्ना तुमको कोई ईमानदार ब्लॉगर समझेगा ही नहीं। सब यही समझेंगे कि विनम्र बना रहता है, बहुत घाघ है। बदतमीजी, अक्खड़ता और लम्पटता दिखाये बिना कोई तुमको ईमानदार मानेगा ही नहीं। जिन लोगों की ईमानदार की छवि है वे मूलत: अच्छे, सच्चे, दिल और दिमाग के साफ़ और बेहद अच्छे निर्मल मन वाले लेकिन ईमानदार दिखने के लिये बदतमीजी, अक्खड़ और लम्पटता का नाटक करते हैं। वे वैसे बिल्कुल नहीं हैं जैसा लोग उनको समझते हैं।
उन्होंने मुझे बहुत प्यार से समझाते हुये कहा- बेटर लेट दैन नेवर।
ब्लॉगरमीट में ही एक और मजे की बात दिखी। दो लोग आपस में किसी बात पर जोर-जोर से लड़ से रहे थे। बाद में पता चला कि वे भाईचारा दिखा रहे थे। आपस में एक-दूसरे को अपने-अपने भाईचारे का मुजाहिरा कर रहे थे। दोनों लोग एक-दूसरे के ब्लॉग पर किये कमेंट की अपनी-अपनी पासबुक भी लाये थे। मिलान कर रहे थे। तीन-चार बार मिलान करने के बाद एक टिप्पणी का हिसाब नहीं मिल रहा था। मुझसे लैपटाप लेकर उनमें से एक ने दूसरे के ब्लॉग पर टिप्पणी की और अपना टिप्पणी आडिट बन्द किया। मुझे लगा कि जिस दिन ब्लॉगजगत से भाईचारा विदा होगा वह दिन ब्लॉगजगत का आखिरी दिन होगा।
कल बड़े मजे की बात हुई। दफ़्तर में बॉस ने और घर में घरैतिन बॉस ने किसी बात पर डांट दिया था। वैसे तो यह आम बात है लेकिन कल कुछ ज्यादा हो गया सो मन बहलाने के लिये मैं अपनी फ़र्जी आईडी से कई ब्लॉग पर टिप्पणियां कर रहा था। जो ब्लॉग सामने दिखा उसमें मैंने धांय-धांय टिपियाना शुरू किया। कुछ में बहुत ऊल-जलूल लिखा। इसके बाद मैं चादर तानकर सो गया। रात में मेरे दोस्त का फोन आया- साले, फ़र्जी आई.डी. से कमेंट करना तुझको इसीलिये सिखाया था कि मेरे ही ब्लॉग पर ये हरकत करो। मैंने -अरे कौन बोल रहे हैं भाईसाहब आपकी आवाज साफ़ नहीं आ रही है। कहकर अपनी बला टाली। कुछेक कमेंट मिटाये और सबेरे पोस्ट लिखी कि मेरा ब्लॉग किसी ने हैक कर लिया है। कोई मेरे नाम से गलत कमेंट करता है तो कृपया मुझे सूचित करें। पोस्ट लिखने के बाद दीदी का फोन भी आया -भैया तुमको कम से कम मेरे ब्लॉग पर तो कमेंट करने के पहले सोचना चाहिये। लोग क्या कहेंगे। मुझे लगा कि ब्लॉग कभी-कभी टेंशन रिलीज करने के बजाय बढ़ाता भी है।
ब्लॉगजगत की बेसिरपैर की बहसें देखकर लगता है हिन्दुस्तान-पाकिस्तान को आपस में कटाजुज्झ करने की बजाय एक-एक ठो आफ़िसियल ब्लॉग खोल लेना चाहिये। सेनायें बैरकों में भेज देनी चाहिये। राजनयिकों को बुलाकर ब्लॉग लेखन में लगा देना चाहिये। जो लड़ाई-झगड़ा , बहस-मुबाहिसा करना है ब्लॉग के जरिये कर लो। इस सब से हज्जारों करोड़ पैसा बचेगा। दोनों देश भड़ से पैसे वाले हो जायेंगे। गांधीजी और जिन्नाजी की राह भी फ़ालो हो जायेगी। दोनों अपने काम समझा-बुझा-बहसियाकर और अड़ियल बने रहकर निकालते थे। ब्लॉगिंग में भी हर बहस में यही होता है। पांच बहस करने वाले, पचास समझाने-बुझाने वाले। कोई नुकसान तो है नहीं। पहले फ़्री-फ़ंड में ब्लॉगर पर करें इसके बाद अपनी-अपनी साइट बना लें। बहस पर इत्ती हिट होंगी, इत्ते कमेंट मिलेंगे कि विज्ञापन की आमदनी का पैसा ही दोनों देशों की जीडीपी से आंखे मिलाने लगा।
मेरी पक्की सहेली मुझसे आजकल बहुत नाराज है। मुझसे गलती ये हुई मैंने उसकी पोस्ट पर कमेंट करने के अपनी कम पक्की सहेली की पोस्ट पढ़ ली और उस पर कमेंट कर दिया। वह इसी बात पर रुठ गयी। बाद में मैंने उसकी पोस्ट पर उसकी हाइट जितना ही कमेंट किया लेकिन उसके गुस्से की हाइट और भी ज्यादा है। मुझे लगा कि हम लोग भी पुरुष ब्लॉगरों की तरह होते जा रहे हैं।
सुबह-सुबह भैयाजी का फोन आया। उसी समय मैं उनकी ही पोस्ट पढ़ रहा था। गला भर आया था। भैया जी का नम्बर देखकर मैंने थोड़ा गला और भर लिया और रुंधे गले से बताया कि उनका दुख का पहाड़ बहुत भारी है। भैयाजी ने हंसते और खिलखिलाते हुये बताया कि अरे वो तो मैंने तीन दिन पहले लिखी थी। फ़्रेश मूड से लिखी थी इसलिये गहरी हो गयी। फोन रखने के पहले भैयाजी ने सलाह दी कि अपनी इस समय की फोटो खैंच के रख लो। जब कभी दुखी पोस्ट लिखना तब सटा देना। अच्छी प्रतिक्रियायें मिलेंगी।
सब लोग ब्लॉगजगत के बारे में बयान देते रहते हैं। कोई कहता है दस साल में ब्लॉग जगत में ये होगा। कोई कहता है पन्द्रह साल में। कोई बीस में। मुझे पहले तो समझ में नहीं आया कि मैं कित्ते साल में कहूं। लेकिन जब सब लोग कुछ न कुछ कहते हैं तो मुझे कहना पड़ेगा वर्ना ऑड ब्लॉगर आउट हो जाऊंगा। बाद में मैंने तय किया मैं तेरह साल की बात करूंगा। ब्लॉगजगत अगले तेरह साल में जबरदस्त रूप से आगे आयेगा। तेरह साल की बात मैंने इसलिये कही कि अभी तक किसी ने यह बात कही नहीं थी। ब्लॉग जगत में अलग तरह की बात करने वाले को लोग ज्यादा भाव देते हैं। बेभाव की तारीफ़ करते हैं।
ब्लॉग जगत में दुनिया में पहली बार ये प्रयोग करने, वो प्रयोग करने का चलन है। मैं भी कुछ बातें करने की सोच रहा हूं जिनके लिये मैं कह सकूं कि दुनिया में इससे पहले ऐसा किसी ने नहीं किया। इसके लिये मैं जुगाड़ में लगा हूं। सोचता हूं इनमें से कुछ कर ही डांलूं:
१. वाटरप्रूफ़ लैपटाप लेकर नहाते हुये कोई पोस्ट लिखूं जिसका शीर्षक हो- नहाते हुये दुनिया की पहली पोस्ट।
२. मोहल्ले के किसी गुंडे से भिड़ जाऊं और पिटते हुये माइक्रो पोस्ट लिख डालूं- पिटते हुये दुनिया की पहली पोस्ट।
३. रेल की चैन खींच कर रेल खड़ी कर दूं। टीटी आये तो जुर्माना भरते हुये पोस्ट लिखूं- जुर्माना भरते हुये दुनिया की पहली पोस्ट।
४. दौड़ते हुये मोबाइल से टाइप करने का अभ्यास करते हुये लिखूं- भागते हुये दुनिया की पहली पोस्ट।
५. लोगों के बीच लड़ाई-झगड़ा निपटाते हुये पोस्ट लिखूं- झगड़ा निपटाते हुये दुनिया की पहली पोस्ट!
मैंने देखा है कि ब्लॉगजगत में दुख बहुत इज्जत की निगाहों से देखा जाता है। जो अच्छी तरह दुखी हो लेता है, रो लेता है उसकी बरक्कत की पक्की गारंटी है। कुछ लोगों की पोस्टें देखकर तो लगता है कि इनके जीवन से बचपन के दुख भरे/अभाव भरे दिन निकाल दिये जायें तो इनका ब्लॉग तो बिना तर माल के परियोजना की तरह हो जाये। लोगों के दुख के होर्डिंग देखकर लगता है अभिव्यक्ति के मामले में ये निरालाजी से चार पांव आगे हैं। निरालाजी अपने सारे दुख दो लाइन में ही कह पाये( दुख ही जीवन की कथा रही/क्या कहूं आज जो कही नहीं)। लेकिन यहां भाई लोगों की अभिव्यक्ति का स्तर निरालाजी की अभिव्यक्ति से बहुत अधिक मुखर है। कुछ पोस्टों को बांचकर तो इत्ती रुलाई आती है कि लगता है ये आंसू अगर बुंदेलखंड भेजे जा सकते तो वहां सूखे की जगह बाढ़ की समस्या हो जाती। मुझे अच्छी तरह से दुखी होना सीखना चाहिये।
दस ब्लॉग चलाने वाले दोस्त ने ग्याहरवां ब्लॉग बनाया है। कारण पूछने पर उसने बताया कि यह ब्लॉग उसने ब्लॉगिंग छोड़ने की घोषणा करने के लिये बनाया है। इसके पहले उसे याद ही नहीं रहता था कि किस ब्लॉग से उसने ब्लॉगिंग बंद करने की घोषणा की। इसके चलते कई बार ऐसा हुआ कि एक से छोड़ा तो दूसरे में क्यों लिख रहे हो। लोग खिल्ली उड़ाने लगते थे और बेइज्जती खराब होती थी। अब कम से कम ब्लॉगिंग बन्द करने और वापस आने का हिसाब-किताब तो रख सकेगा। पता चला पहली ही पोस्ट , आदतन, उसने ब्लॉग लिखना छोड़ने की घोषणा की है। दोस्तों ने भी आदतन उसका ब्लॉगजगत में आने का स्वागत किया है। एक ने कहा टिपियाया है- आपके जाने से ब्लॉगजगत सूना हो जायेगा। भैयाजी से मैंने पूछा कि ये क्या माजरा है? भैयाजी -बोले सब ससुरे ब्लॉगरपना झाड़ रहे हैं। तुम इस सब चक्कर में न पड़ो। जहां-जहां बताया वहां-वहां टिपिया के आओ। आज फ़र्जी वाली आई से मत टिपियाना!
ब्लॉगर की डायरियां बांचते-बांचते मैं इतना खो गया कि समय का पता ही नहीं चला। मैंने रद्दी की ठेलिया वाले से उसकी रद्दी खरीदने की बात कही। उसने मेरी रुचि देखकर मझे मुफ़्त में सारी डायरियां दे दीं। शायद वो अपनी ठेलिया से कबाड़ हटाना चाह रहा हो। या क्या पता वो कोई पुराना ब्लॉगर रहा हो। देखते हैं कि ब्लॉगिंग के सामान्य सिद्धान्तों में इसका कोई जिक्र है क्या?
आप बताइयेगा आपके क्या विचार हैं! आखिर आप भी तो ब्लागर हैं न!
Posted in बस यूं ही | 35 Responses
पहले कितना गिरा था और अब कितना गिरा हैं ?? आप वरिष्ठ ब्लॉगर हैं कुछ तो तोला नापा होगा !!!
ब्लॉगजगत अगले तेरह साल में जबरदस्त रूप से आगे आयेगा।
अब २०१२ के बाद कौन बचेगा ब्लॉग लिखने को ??!!
majhedaar daayari..
uparwala blog likhne ke liye aapko aisi fursatein deta rahe… aur ham padhte rahein….
अब डायरियां आपके हाथ में भी आ रही हैं. जिनके सहारे ब्लागरी चलती थी, वो भी अब नहीं……
sahi he !
——–
पड़ोसी की गई क्या?
गूगल आपका एकाउंट डिसेबल कर दे तो आप क्या करोगे?
इसे 08.05.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
डायरियां आप के हाथ लग गयीं अब शिव जी का क्या होगा?
का काम करती है — (ब्लॉग में) लाग , युद्ध और महामारी के वक़्त !
………..
टीप-लिप्सा पर काफी सधा प्रहार किया है !
——-
और चटखा लगवाई पर कुछ नहीं कहा आपने ! इसे क्यों छोड़ दिया !
………
उलझाऊ-लेखन भी तो एक कला है .. कहते हैं कि कविता समझ में आ जाय तो
कवि कैसा ! … तो यह मानना गलत नहीं होगा कि ब्लॉग-जगत कवि-निर्मात्री भट्ठी
की भूमिका में है …
……….
भाईचारा ! कोई बड़ा और कोई छोटा नहीं ! हर भाई एक दुसरे के चारा की फिक्र में रहता
है , समर्पण में चारा के लिए ‘आनर किलिंग’ भी करता है .. यह भाईचारा तो बना ही
रहेगा , इसलिए मैं ब्लॉग-भविष्य को लेकर आश्वस्त हूँ !
………..
फर्जी आई.डी. कमेन्ट वाला वाकया तो गजब ही रहा ! लोग प्रेम में टेंसन भी दे देते हैं !
पाल्हा बदलते देर कहाँ लगती है ! अपनों से प्रेम में लोग फिर-फिर मुंह मारने पहुंचे रहते हैं !
…………
[ बड़ा लंबा है , आधा पढ़ कर टीपा हूँ , शेष आधा पढने फिर आउंगा , फिर टीपूंगा .... ]
फ़ॉर्मूला एकदम हिट है जी।
बहुत कुछ सीखने को मिला, हम भी करेंगे सहयोग ब्रलॉग जगत को रसातल में पहुंचाने का।
अद्भुत “ऊपर शिव भैया से उधार लिया हुआ”
……….
ब्लॉग-जगत में पूर्णरूपेण लैंगिक-निरपेक्षता है . कृतियाँ और विकृतियाँ
लिंगेतर प्रभाव के लिए जन-मन को अचूक तौर पर प्रभावित कर रही हैं !
………
” पहली पोस्ट ” वाला कांसेप्ट तो बहुतै हंसाऊ है ! इस क्रम में अन्य रसों
में एक वीभत्स रस की ओर भी जाना था ,,,जैसे ,,,, आप ही लिखें तो बेहतर
………..
यहाँ के दुःख में निरालापन कहाँ ! कल ही एक ब्लोगरा महादेवी वर्मा की
आत्मा को धता बता रही और कह रही थी — ” तू नहीं , मैं नीर भरी दुःख
की बदली ” … एक नारीवादी ब्लोगर ने दुखी ब्लोगरा के पक्ष में दलील दी
कि यह सही कह रही है , छायावाद के समय ‘ग्लोबलाइजेसन’ नहीं हुआ
था तो तब नारी सही मायने में तार्किक तौर पर नहीं रो पाती थी , इस लिए
‘नीर भरी दुःख की बदली’ पर इस ब्लोगरा का पेटेंट ……….. ……… दोनों ने
मिलकर महादेवी वर्मा को अश्रु-अंजलि भेंट की !
………..
एक ब्लॉग तो ऐसा बनना चाहिए जो ब्लोगिंग छोड़ने वालों का लेखा जोखा
प्रस्तुत करता हो … अंततः वर्ष भर का ग्राफ बना कर विश्लेषण होना चाहिए
उसमें … x – y अक्ष वाला …
x अक्ष = ब्लोगिंग छोड़ने वालों ली संख्या ………… [ करोड़ से क्या कम ]
y अक्ष = निकले हुए आंसुवों की मात्रा ………………[ अरल सागर तो भर ही जाना चाहिए :)]
…………
अच्छा लगा पढ़कर .. कबाड़खाने में जाते रहिये .. बड़े बेमोल कबाड़ हैं ये !
शिव जी तो अब तक अंगरेजी सीख चुके होंगे अच्छे से , अब
अंगरेजी ब्लॉग पर बौद्धिक -कार्य कर रहे होंगे ! तांडव और
ध्वंस में मामुली बुद्धि से काम नहीं चलता !
आपकी एक खास अदा है जो हर पीढ़ी को भाती है..हर पीढ़ी की समझ भी आपको खूब है. ब्लागर पीढ़ी तो आपही को देख कर अपने कम उम्र पर इठलाती है..!
शानदार लिखा आपने…वाकई शानदार…!
बहुत बहुत जानदार…लाजवाब….
नए आविष्कारों के लिए ख्याल तो बड़े ही जबरदस्त हैं!
वाटर प्रूफ लेपटोप![हा हा हा!]
- से पता चला कि आपने ऐसी कोई पोस्ट लिखी है।
- पढ़ने पर पता चला कि हाँ आपने ही लिखी है और
- समझने पर पता चला कि आप के सिवा और कोई नहीं लिख सकता इस तरह की फुरसतिया पोस्ट और
- टिपने पर पता चला कि इस अदभूत पोस्ट पर टीपना उससे भी ज्यादा मुश्किल है क्योंकि हर एक पैरा अपने आप में धांसू – धाकड और भी न जाने क्या क्या है
अरे वाह…कुछ दिन पहले से देखता हूँ कि शादी के निमंत्रण-पत्र
में छापा जाता है कि ‘मेले दीदी की छादी में जलूल से जलूल आना’
शादी में निमंत्रण-पत्र पर एक बात…विषय से हट कर है…लेकिन पता है
कि आप के लिए ये सब कच्चा माल है…हाँ, तो छापा जाता है कि
आप सपरिवार आमंत्रित हैं…अब बताइए कि अगर सब लोग सपरिवार
पहुँच जाएँ तो क्या इतने लोगों की व्यवस्था होती है…?
पहली पोस्ट पर क्या विचार है…हर जगह दुराचार है, भ्रष्टाचार है…
वैसे लाजवाब, अद्भुत! बेहद ताकतवर! पहलवान पोस्ट …जिसमें
शील है, शीलवान, बल है तो बलवान, वैसे ही ऐसी खुराफ़ाती
पहल है तो पहलवान…
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूँ…