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लिटरेचर इज ब्रिलियेंट इल्लिटरेसी
By फ़ुरसतिया on November 27, 2012
दो पोस्टें हाथ से
लिखी। हाशिये का लिखा पढ़ने में गर्दनें अकड़ गयीं। अकड़ी गर्दन खतरनाक होती
है। इसलिये ’हस्तब्लॉगिंग’ फ़िर कभी। वैसे सोचा यह भी था कि अच्छी स्याही
वाला पेन लायेंगे। लिखते-लिखते लव हो जाने वाला। फ़िर गाढ़ी ’इंकब्लॉगिंग’
करेंगे ताकि साफ़ दिखे। लेकिन तब तक कम्प्यूटर ठीक हो गया इसलिये ऐसे ही।
जब तक कम्प्यूटर गड़बड़ाया था तब तक हाथ से लिखकर उसको स्कैन करके इधर-उधर से पोस्ट करते रहे। हमारे पास एक ठो टेबलेट भी है। उसमें हिंदी का कीबोर्ड तो विद्वानों की सलाह से उतारकर जमा लिये लेकिन हिंदी लिखने में सब करम हो गये। सब जुगत लगाने के बाद निराश होने की सोच ही रहे थे कि तार की मरम्मत हो गयी। हमने निराशा से कहा- फ़िलहाल तो आप पधारें। फ़िर कभी मुलाकात होगी- सी यू लेटर।
कम्प्यूटर का ऐसा हुआ कि हमारे लैपटॉप का तार गड़बड़ा गया था। बिजली की सप्लाई लैप्पी तक पहुंच ही नहीं रही थी। लैपटॉप का कोई आधार कार्ड तो बना नहीं है जो बिजली सीधे खाते में पहुंच जाये- सब्सिडी की तरह। पता किया तो बोले भाई कि नया मॉडम लेना ही पड़ेगा। दाम बताइन पांच सौ से पच्चीस सौ। पांच सौ वाले की कौनौ गारण्टी नहीं। पच्चीस वाले की साल भर।
कल फ़िर तार मय मॉडम के संभाल के दुकान-दुकान टहले। आखिर में एक बिजली वाले ने बिजली का तार जोड़ दिया हिसाब से। बीस रुपये में। हम खुश। अब समझ नहीं आ रहा है कि बचत कित्ते की बतायें- 480 की 2480 की। लेते तो वैसे शायद सस्ता वाला ही लेकिन बचत सोचते हैं 2480 वाली ही बतायें। CAG वालों की तरह।
कल फ़िर एहसास हुआ कि रिपेयरिंग का महत्व कम नहीं है। एफ़.डी.आई.(FDI) वाले आयेंगे तो नये सामान खरीदने पर ही जोर देंगे। रिपेयर वाले कम हो जायेंगे। इसलिये सोचते हैं FDI के खिलाफ़ हो जायें।
कल फ़िराक गोरखपुरी के दो इंटरव्यू सुने। क्या अंदाज है बुजुर्गवार का। सिगरेट सुलगाते हुये मस्ती से बतियाते हुये। बोले- लिटरेचर इज ब्रिलियेंट इल्लिटरेसी। साहित्य में जबरियन कठिन शब्द लिखना मक्खी मारने जैसा है। साहित्य की भाषा ऐसी होनी चाहिये कि तरकारी बेचने वाला भी समझ सके। एक प्रोफ़ेसर के बारे में बताते हुये बोले- उनको सिर्फ़ यह डर रहता था कि कहीं उनकी बात लड़के समझ न जायें।
आप भी देखिये उनकी बातचीत के दो टेप- फ़िराक कद्रदानों के बीच।
फ़िराक कहते हैं -सजावटी भाषा बीमारी होती है। सहज बोली के हिमायती फ़िराक साहब तुलसी के प्रशंसक थे। फ़िराक साहब के बारे में हमारा लिखा एक और पढिये -यहां।
कल किरकिट में इंडिया का पूरा पाकिस्तान हो गया। अभी मैच शुरु नहीं हुये थे कि विज्ञापन आने शुरु हो गये थे मीडिया में – क्या भारत इंग्लैंड की पुंगी बजायेगा। पहले मैच में भारत ने उनको हराया। पुंगी बजायी। अगलें में शायद अंग्रेज टीम ने कहा -लाओ हम भी ट्राई करते हैं। हमसे लेकर हमारी ही पुंगी बजा दी। जित्ता क्रिकेट का जुनून रहता है हमारे यहां उससे लगता है कि गांधी जी बेकार ही देश भर में टहलते रहे देश की आजादी के लिये अलख जगाने में। एक अच्छी क्रिकेट टीम बनाते और रगड़ देते इंगलैंड को। फ़ूट लेता इंगलैड न जाने कब का। मैन ऑफ़ द मैच को प्रधानमंत्री बना देते। कप्तान को राष्ट्रपति। चयनकर्ताओं को लोकपाल बना देते। बेचारे अन्ना हजारे चैन से रहते। केजरीवाल की अनुप्रास अलंकार (आम आदमी) वाली पार्टी बनने से बच जाती। लेकिन सब मनचाहा होता कहां हैं।
मनचाहा होता अगर तो दफ़्तर का समय क्यों हो गया होता और हम अपनी बात शुरु करते ही खतम करने के लिये मजबूर क्यों होते।
खैर चलिये। आप मजे करिये। तब तक हम आते हैं जरा दफ़्तर तक टहलकर। काम निपटाकर।
जब तक कम्प्यूटर गड़बड़ाया था तब तक हाथ से लिखकर उसको स्कैन करके इधर-उधर से पोस्ट करते रहे। हमारे पास एक ठो टेबलेट भी है। उसमें हिंदी का कीबोर्ड तो विद्वानों की सलाह से उतारकर जमा लिये लेकिन हिंदी लिखने में सब करम हो गये। सब जुगत लगाने के बाद निराश होने की सोच ही रहे थे कि तार की मरम्मत हो गयी। हमने निराशा से कहा- फ़िलहाल तो आप पधारें। फ़िर कभी मुलाकात होगी- सी यू लेटर।
कम्प्यूटर का ऐसा हुआ कि हमारे लैपटॉप का तार गड़बड़ा गया था। बिजली की सप्लाई लैप्पी तक पहुंच ही नहीं रही थी। लैपटॉप का कोई आधार कार्ड तो बना नहीं है जो बिजली सीधे खाते में पहुंच जाये- सब्सिडी की तरह। पता किया तो बोले भाई कि नया मॉडम लेना ही पड़ेगा। दाम बताइन पांच सौ से पच्चीस सौ। पांच सौ वाले की कौनौ गारण्टी नहीं। पच्चीस वाले की साल भर।
कल फ़िर तार मय मॉडम के संभाल के दुकान-दुकान टहले। आखिर में एक बिजली वाले ने बिजली का तार जोड़ दिया हिसाब से। बीस रुपये में। हम खुश। अब समझ नहीं आ रहा है कि बचत कित्ते की बतायें- 480 की 2480 की। लेते तो वैसे शायद सस्ता वाला ही लेकिन बचत सोचते हैं 2480 वाली ही बतायें। CAG वालों की तरह।
कल फ़िर एहसास हुआ कि रिपेयरिंग का महत्व कम नहीं है। एफ़.डी.आई.(FDI) वाले आयेंगे तो नये सामान खरीदने पर ही जोर देंगे। रिपेयर वाले कम हो जायेंगे। इसलिये सोचते हैं FDI के खिलाफ़ हो जायें।
कल फ़िराक गोरखपुरी के दो इंटरव्यू सुने। क्या अंदाज है बुजुर्गवार का। सिगरेट सुलगाते हुये मस्ती से बतियाते हुये। बोले- लिटरेचर इज ब्रिलियेंट इल्लिटरेसी। साहित्य में जबरियन कठिन शब्द लिखना मक्खी मारने जैसा है। साहित्य की भाषा ऐसी होनी चाहिये कि तरकारी बेचने वाला भी समझ सके। एक प्रोफ़ेसर के बारे में बताते हुये बोले- उनको सिर्फ़ यह डर रहता था कि कहीं उनकी बात लड़के समझ न जायें।
आप भी देखिये उनकी बातचीत के दो टेप- फ़िराक कद्रदानों के बीच।
फ़िराक कहते हैं -सजावटी भाषा बीमारी होती है। सहज बोली के हिमायती फ़िराक साहब तुलसी के प्रशंसक थे। फ़िराक साहब के बारे में हमारा लिखा एक और पढिये -यहां।
कल किरकिट में इंडिया का पूरा पाकिस्तान हो गया। अभी मैच शुरु नहीं हुये थे कि विज्ञापन आने शुरु हो गये थे मीडिया में – क्या भारत इंग्लैंड की पुंगी बजायेगा। पहले मैच में भारत ने उनको हराया। पुंगी बजायी। अगलें में शायद अंग्रेज टीम ने कहा -लाओ हम भी ट्राई करते हैं। हमसे लेकर हमारी ही पुंगी बजा दी। जित्ता क्रिकेट का जुनून रहता है हमारे यहां उससे लगता है कि गांधी जी बेकार ही देश भर में टहलते रहे देश की आजादी के लिये अलख जगाने में। एक अच्छी क्रिकेट टीम बनाते और रगड़ देते इंगलैंड को। फ़ूट लेता इंगलैड न जाने कब का। मैन ऑफ़ द मैच को प्रधानमंत्री बना देते। कप्तान को राष्ट्रपति। चयनकर्ताओं को लोकपाल बना देते। बेचारे अन्ना हजारे चैन से रहते। केजरीवाल की अनुप्रास अलंकार (आम आदमी) वाली पार्टी बनने से बच जाती। लेकिन सब मनचाहा होता कहां हैं।
मनचाहा होता अगर तो दफ़्तर का समय क्यों हो गया होता और हम अपनी बात शुरु करते ही खतम करने के लिये मजबूर क्यों होते।
खैर चलिये। आप मजे करिये। तब तक हम आते हैं जरा दफ़्तर तक टहलकर। काम निपटाकर।
Posted in बस यूं ही | 11 Responses
Batkahi Editor की हालिया प्रविष्टी..फिजा डरावनी है लेकिन शहर है अमन का!
sushma की हालिया प्रविष्टी..पतझड़
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..अमां कायदे से पेश आओ….
अभी कल परसों ही तो डीडी भारती पर आगरा बाजार सीरियल की एक कड़ी देख रहा था जिसमें ककड़ी वाला एक शायर से कहता है कि तनिक मेरी ककड़ियों पर शेर कह दो और शायर अपने गुमान में चूर ककड़ियों पर शेर कहने से मना कर देता है, तंज भी कस जाता है कि कहो तो मीर से लिखा लायें.
आगे की कड़ी नहीं देख पाया। लेकिन ये तरकारी वाली पंक्तियां मुझे बरबस आगरा बाजार का वो सीन याद दिला गईं।
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..अमां कायदे से पेश आओ….
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..शिक्षा – रिक्त आकाश
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..अपनी फ़िक्र पहले…