लेखकों के खतों पर बातचीत। लेखक की कोई निजता नहीं होती।
सदियों-दशकों पहले कुछ रोशनियाँ लिफ़ाफ़ों में बंद कर प्रियजनों को भेजी गईं थीं, जो रविवार शाम मर्चेंट चेम्बर हाल के पहले तल पर शहर के साहित्यप्रेमियों की मौजूदगी में चमक उठीं। यह कुछ चुनिंदा ख़तों की ख़ुशबू थी, जिसका सुरूर क़रीब चार घंटे श्रोताओं पर तारी रहा। वक्ताओं के ख़ास अन्दाज़-ए-बयां ने ख़ुशबू और रोशनी की जुगलबंदी में रंग भर दिए। साहित्यिक संस्था अनुष्टुप की ‘लिफ़ाफ़े में कुछ रोशनी भेज दे’ शीर्षक से तीसरी गिरिराज किशोर स्मृति व्याख्यानमाला यादगार बन गई।
इस मौक़े पर पहला व्याख्यान प्रख्यात लेखक प्रियंवद का था। उन्होंने कहा कि मेरे विचार में लेखक की कोई निजता नहीं होती। वह कथा, उपन्यास, इंटरव्यू, संस्मरण, आत्मकथा, जीवनी आदि में खुद को ही तो खोलता है। ऐसे में उसके जीवन का सब कुछ सार्वजनिक होना चाहिए। यह एक तरह का साहित्य ही है। ख़त हर समय और समाज की अमूल्य धरोहर हैं। उन्होंने माँ को लिखे जेम्स जायस के पत्र,भाई थियो को लिखे चित्रकार वान गाग के पत्र, मित्र सुरेंद्रनाथ को लिखे शरतचंद्र के पत्रों के अंश सुनाए और कहा कि इनसे साहित्य की बेहतर समझ विकसित होती है। बताया कि पहला गिरमिटिया समेत कई चर्चित क्रतियो के लेखक स्व.गिरिराज किशोर और अन्य लेखकों में हुए पत्राचार को किताब की शक्ल में लाने का काम वह पिछले दो साल से कर रहे थे। यह काम पूरा हो चुका है। किताब के पहले खंड की पहली प्रति उन्होंने गिरिराज किशोर की पुत्री शिवा को सौंपी। किताब दो खण्डों में आएगी। हलीम मुस्लिम पी जी कालेज में उर्दू के प्रोफ़ेसर खान अहमद फ़ारुक ने अदबी खतूत के सफ़र पर कहा कि उर्दू अदीबों के ख़त भी मशहूर रहे हैं। इनमें ग़ालिब, अबुल कलाम आज़ाद, मोहम्मद अली रूदौलवी के खतूत ख़ास तौर पर मशहूर रहे हैं, क्योंकि वे आम रविश से हटकर लिखे गए हैं। अगर ग़ालिब के खतों पर बात की जाए तो उनकी ज़िंदगी, उनकी शायरी से कहीं बेहतर ढंग से उनके खतूत में नुमाया हुई है। साहित्यसुधी मनोचिकित्सक डा आलोक बाजपेई ने दिलचस्प अन्दाज़ में ख़त-ओ-किताबत की पुरानी दुनिया से लेकर मौजूदा वक्त में सोशल मीडिया के ज़रिए होने वाली बातचीत के अंतर को पेश किया। कार्यक्रम की शुरुआत लेखिका अनीता मिश्रा के स्वागत वक्तव्य से हुई। संचालन कर रहे डा आनंद शुक्ल ने मुक्तिबोध के खतों का ज़िक्र करते हुए ख़ूबसूरती से कार्यक्रम को गति दी। लेखक गिरिराज किशोर की बेटी शिवा ने अनुष्टुप परिवार व उपस्थित श्रोताओं को धन्यवाद दिया। कार्यक्रम में भावना मिश्रा, पंकज चतुर्वेदी, संध्या त्रिपाठी, सईद नकवी, प्रताप साहनी, मौलि सेठ आदि रहे।
दुनिया में केवल उसने मुझे पहचाना:
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मेरा 24 घंटे का साथी भेलू। इस दुनिया में केवल उसने मुझे पहचाना था। जब उसने मुझे काटा, तब सब लोग डर गए थे। उस वक्त रवि बाबू की पंक्तियाँ याद आई ‘तोमार प्रेम आघात, आछे नाइक अवहेला’ उसका प्रेम आघात था,पर अवहेला नहीं था। उसके पूर्व कभी इतना दर्द मुझे नहीं मिला। डाक्टर इलाज कर रहे हैं। पागल कुत्ते के काटने पर जो करना चाहिए,वही। 28 इंजेक्शन, जिनमें आजतक 10 लग चुके हैं, अब 18 बाक़ी रहे। इंसान को ज़िंदा रहना है,कारण -योर लाइफ़ इज टू वैलुएबल। बहरहाल, यह भी देख लिया जाए कि आख़िर कहाँ तक क्या होता है।
(मित्र सुरेंद्रनाथ को 25.04.1925 को लिखे लेखक शरतचंद्र का लिखा पत्र)
इंतज़ार है ….मुझसे क्या कहा जाएगा :
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मैं और कुछ नहीं कर सकता था। मैंने वही किया जो मेरे हाथ करना पसंद करते थे। मेरा ख़याल है बिना शब्दों के भी मुझे समझा जाना चाहिए। मैं उस दूसरी औरत को नहीं भूला जिसके लिए मेरा दिल धड़कता था, लेकिन वह दूर थी और उसने मुझे मिलने से इंकार कर दिया था, और यह औरत सर्दी में सड़कों पर बीमार, गर्भवती, भूखी भटक रही थी। …. तुम्हारे हाथों में मेरी रोटी है। क्या तुम इसे छीन लोगे और मुझसे मुँह मोड़ लोगे? मैंने सब कह दिया है। इंतज़ार है कि मुझसे आगे क्या कहा जाएगा?
( नीदरलैंड में जन्मे मशहूर चित्रकार वान गाग द्वारा मई 1882 को अपने भाई को थियो को लिखा पत्र)
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