कोलकता प्रवास के दौरान एक दिन हम विक्टोरिया मेमोरियल हाल देखने गए। पहले भी देख चुके हैं। कई साल पहले। अंदर का कुछ याद नहीं। अलबत्ता बाहर के दृश्य जो याद में थे वे तमाम घोड़े थे। घुले में हिनहिनाते और कुछ बग्घी में जुते । शायद लोग इन पर सवारी करके शाही जेहनी तौर पर गए जमाने की सैर कर लेते होंगे।
विक्टोरिया मेमोरियल के सामने चौड़ी सड़क अभी भी अतिक्रमण रहित है। सुखद है। मेमोरियल के सामने गेट के बाहर ही एक आदमी बांस की बनी हैटनुमा टोपी बेंच रहा था। धूप तेज थी। टोपी पचास रुपए की एक। धूप, क़ीमत और टोपियों के रंगबिरंगे पन के संयुक्त प्रभाव के चलते कुछ टोपियाँ ख़रीदीं गयीं। टोपियों के बाद अंदर घुसने के पहले मेमोरियल को पीछे रखते हुए फोटोबाज़ी हुई। ताकि सनद रहे। मोबाइलों में कैमरों की मौजूदगी के चलते इमारतों को तसल्ली से देखने से अधिक उनके साथ फ़ोटो खिंचाना ज़्यादा ज़रूरी हो गया है।
मेमोरियल के गेट पर संगमरमर के दो शेर बने हैं। जिन शेरों को ज़िंदा हालात में देखकर इंसान की घिग्घी बंध जाए उनकी मूर्ति को लोग बिना कोई तवज्जो दिए अंदर घुसते जा रहे थे। सामने महारानी विक्टोरिया की मूर्ति लगी थी। जिन महारानी की याद में स्मारक बनाया गया और जिनके जीवित होने पर बड़े-बड़े राजे-महाराजे उनके सामने फ़र्सी सलाम बजाते होंगे उनको भी लोग बिना नमस्ते, सलाम होंगे उन महारानी की मूर्ति को लोग उचटती निगाह से देखते हुए अंदर की तरफ़ बढ़ रहे थे।
इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के जनवरी, 1901 में शांत हो जाने पर भारत के तत्कालीन वाइसराय लार्ड कर्ज़न ने महारानी की याद में स्मारक बनाने का सुझाव रखा। किसकी हिम्मत जो मना करे उस समय। उस समय के राजा महाराजाओं ने चंदा दिया। उस समय एक करोड़ पाँच लाख रुपए आए थे चंदे में।
विक्टोरिया मेमोरियल का शिलान्यास जार्ज पंचम द्वारा 4 जनवरी 1906 को किया गया। मेमोरियल के का काम मेसर्स मार्टिन एंड कंपनी, कोलकाता को सौंपा गया। 1910 में अधिरचना पर काम शुरू हुआ। निर्माण कार्य पूरा होने के बाद इसे औपचारिक रूप से 28 दिसम्बर, 1921 में जनता के लिए खोल दिया गया। इस बीच 1912 में ब्रिटिश भारत की राजधानी कोलकता से दिल्ली हो गयी।
विक्टोरिया मेमोरियल के वास्तुकार विलियम इमर्सन (1843-1924) थे जो रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स के अध्यक्ष थे।
मेमोरियल हाल का निर्माण के लिए संगमरमर उन्हीं खदानों से लाया गया जहां से ताजमहल के निर्माण के लिए लाया गया था। हाल का गुम्बद ताजमहल की ही तरह बनाया गया। ताजमहल की नक़ल करते हुए बनाए गए विक्टोरिया मेमोरियल गुम्बद का आकार (61 फ़ीट) ताजमहल के गुम्बद के आकार (60 फ़ीट) से थोड़ा बढ़ा दिया गया। इससे ताजमहल के गुम्बद से बड़ा गुम्बद बनाने का गर्व हासिल हुआ। यह भी एक तरह का सुख है।
पुरानी प्रख्यात इमारतों से बड़ी इमारतें, बड़ी मूर्तियां बनाने की होड़ हमेशा से चली आई है। आज भी जारी है।
विक्टोरिया मेमोरियल हाल में रानी विक्टोरिया की संगमरमर की मूर्ति लगी है। बीच हाल में दीवारों पर विक्टोरिया की उद्घोषणाएँ लगी हैं जिनके माध्यम से यह बताने की कोशिश की गयी थी कि वे जनता के हित के लिए न्यायप्रिय, कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध हैं।
हाल में ब्रिटिश काल की तमाम पेंटिंग्स, हथियार और दुर्लभ धरोहर मौजूद हैं। इनमें टीपू सुल्तान की तलवार और दीगर ऐतिहासिक चीजें शामिल हैं। पेंटिंग्स में उस समय के तमाम यादगार चित्र भी हैं जो ब्रिटिश लोगों के भारत में प्रवेश की कहानी बताते हैं।
विक्टोरिया मेमोरियल में 25 चित्र दीर्घाएँ हैं। इनमें शाही गैलरी, राष्ट्रीय नेताओं की गैलरी, पोर्ट्रेट गैलरी, सेंट्रल हॉल, मूर्तिकला गैलरी, हथियार और शस्त्रागार गैलरी और नई कलकत्ता गैलरी शामिल हैं।
विक्टोरिया मेमोरियल में थॉमस डेनियल (1749-1840) और उनके भतीजे विलियम डेनियल (1769-1837) के कार्यों का सबसे बड़ा एकल संग्रह है।इसमें दुर्लभ और पुरातन पुस्तकों का संग्रह भी है जैसे कि विलियम शेक्सपियर के कार्यों का सचित्र निरूपण, आलिफ़ लैला और उमर खय्याम की रुबाइयत के साथ-साथ नवाब वाजिद अली शाह के कथक नृत्य और ठुमरी संगीत के बारे में किताबें आदि।
डेनियल चाचा -भतीजे के चित्र और संग्रह आज से सौ साल से भी पहले के बने हैं। जिन जगहों के वे चित्र हैं वे अब अपने स्वरूप में इतनी बदल गयी हैं कि उनको देखकर पहचानने में मुश्किल होती है। लेकिन जिस तल्लीनता से ये चित्र बनाए गए हैं उनको देखकर ताज्जुब होता है कि डेनियल परिवार के लोगों ने भारत के विविध भागों के इतने खूबसूरत चित्र कैसे बनाए होंगे।
ऊपर के हिस्से में विप्लवी भारत हाल में भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े दुर्लभ दस्तावेज और छायाचित्र मौजूद हैं। क्रांतिकारियो के हस्तलेख में लिखे लेख। क्रांतिकारी हिंदुस्तान रिपब्लिकन पार्टी का संविधान, क्रांतिकारियों की सूचना देने पर पर घोषित इनाम की खबर प्रकाशित करने वाला समाचार पत्र और तमाम सामग्री वहाँ मौजूद है।
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संविधान में स्थापना का उद्धेश्य निम्नलिखित है:
"The object of the association shall be establish a Federated Republic of the United States of India by an organised and armed revolution."
एसोसिएशन का उद्देश्य संगठित और सशस्त्र क्रांति द्वारा संयुक्त भारतीय संघ गणराज्य की स्थापना करना होगा।
एसोसिएशन ने देश का संविधान बनाने का काम आज़ादी मिलने के बाद तय करने के लिए छोड़ दिया था।
विप्लवी अनुभाग में विभिन्न क्रांतिकारियों से जुड़े कार्यों के विवरण मौजूद थे। एक हिस्से में दिल्ली बम कांड, रास बिहारी बोस, सचीन्द्र नाथ सान्याल और काकोरी केस से सम्बंधित विवरण मौजूद थे। क्रांतिकारी दामोदर हरि चापेकर को फाँसी पर लटकाने के समाचार वाला अख़बार भी वहाँ मौजूद था। क्रांतिकारी सचीन्द्र नाथ सान्याल के हस्तलेख में अंग्रेज़ी के शब्दों के अर्थ लिखा एक पेज भी वहाँ दिखा। इसके अलावा और भी तमाम दुर्लभ दस्तावेज वहाँ मौजूद थे जिनको देखकर अंदाज़ा लगता है कि देश की आज़ादी के लिए हमारे पुरखों ने कितनी कुरबानियाँ दीं होंगी। कितने कष्ट सहे होंगे।
यह सब देखते हुए तक़रीबन तीन घंटे हो गए। बाहर निकले तो बारिश और धूप की जुगलबंदी हो रही थी। खूबसूरत बाग़ीचा देखते हुए हम बाहर निकले।
जो इमारत बनने में तक़रीबन ग्यारह साल लगे उसको पूरा तसल्ली से देखने के लिए कई दिन चाहिए। लेकिन अपन तो हड़बड़ी में देखते तीन घंटे में ही निकल आए। नायाब ऐतिहासिक इमारतें शायद इसी तरह देखी जाने के लिए अभिशप्त होती हैं।
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