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कुछ इधर भी यार देखो
By फ़ुरसतिया on April 22, 2006
जिधर महापुरुष निकलते हैं वही रास्ता बन जाता है। अगर आप किसी
रास्ते पर चल रहे हैं तो निश्चित जानिये कि उस रास्ते पर जरूर किसी
महापुरुष ने चहलकदमी की होगी। रास्ते के लाखों धूलि कणों ने महापुरुष का
चरण-चुंबन किया होगा। खुलकर या चोरी-चोरी,चुपके-चुपके।
महापुरुष के चलने से जब रास्ता बन जाता है तो दुनिया उस रास्ते पर चलकर रास्ते को चौड़ा करती है। महापुरुष के चेले-चापड़ अगर जागरूक होते हैं तो रास्ते की देखभाल करते रहते हैं। टूटफूट ठीक करते रहते हैं। समय बीतने के साथ रास्ता या तो जनपथ होते हुये राजपथ बन जाता है या कीचड़ में बदल जाता है । दोनों ही मामले में रास्ता आम आदमी के लिये बंद हो जाता है। कीचड़ में कमल खिल सकता है आदमी नहीं । वैसे ही राजपथ भी खासलोगों के लिये होता है। जनता को अपना रास्ता बनाने के लिये फिर महापुरुष का इंतजार करना पड़ता है।
ये महीन बात आम जनता की,बिजली पानी के अलावा सड़क बनवाने की मांग से हलकान नेता को नहीं पता लगी है अबतक । जिस दिन पता चल जायेगी तब शायद वह कहने लगे -तुम मुझे महापुरुष दो मैं तुम्हें सड़क दूंगा।
बहरहाल ये तो ऐसे ही कुछ ऊँची हांकने के लालच में लिख दिया। अगर ठीक समझे हों तो मिस़रा उठाइये नहीं तो हियां की बातें हियनै छ्वाडौ़ अबआगे का सुनौ हवाल।
हर साल अपने देश में सैंकडों फिल्में बनती हैं। उनके लिये हजारों गाने लिखे जाते हैं। कुछ गाने जनता की जुबान पर चढ़ जाते हैं बाकी भुला दिये जाते हैं।
चर्चित गानों की तर्ज पर लोग अपनी-अपनी जरूरत के अनुसार गाने बना लेते हैं। एक बढ़िया गाना हजारों जरुरतों को पूरा कर देता है।
चर्चित गानों की तर्ज पर सबसे ज्यादा गाने भक्तिगीत या विज्ञापन के क्षेत्र में होता है। दोनों का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना होता है।
नवरात्र,जागरण के दिनों में आप किसी भी रात सोने का अतिरिक्त प्रयास मत कीजिये ,करवट बदलते हुये,गानों की तर्ज पर फैलते भजनों से आपको पता चल जायेगा कि कौन सा गाना हिट चल रहा है।
ले के पहला-पहला प्यार ,भर के आंखों में खुमार का उपयोग लगभग सभी देवी-देवताओं की आगमन सूचना देने के लिये होता है -ले के हाथों में तलवार, हो के शेर पर सवार…
यही कहानी विज्ञापन में गीतों के मुखड़ों या टेक का इस्तेमाल करने के बारे में है।
कविताओं की तर्ज पर कवितायें लिखने का फैशन आदिकाल से चला आ रहा है।अक्सर होता है कि तर्ज पर लिखी कवितायें मूल कविता से ज्यादा चलन में आ जातीं हैं। सच्चाई मुलम्में से मार खाती हैं।बंबू पर खड़ा हुआ तंबू हमेशा बंबू से ज्यादा आकर्षक होता है।यह अलग बात है कि बंबू तो बिना तंबू के लग सकता है लेकिन कोई भी तंबू बिना बंबू के खड़ा नहीं हो सकता ।
कल जब कवि सम्मेलन की बात कहते हुये अनूप भार्गव जी की कविता (परिधि के उस पार देखो/इक नया विस्तार देखो) मेरी पसंद में लिख रहा था तो दिमाग में इसकी टेक पर तमाम पंक्तियां कुलबुला रहीं थीं। बाद में मजबूरन हमें उनको की-बोर्ड पर बैठाना पड़ा अब वो सिर चढ़ गईं की हमें स्क्रीन पर भी बिठाओ। अब वे इठला रहीं हैं कि हम तो पोस्ट में जायेंगे।
अनूप भार्गव की यह कविता जब ब्लाग में पोस्ट हुई तो गायब हो गई। फिर जब दुबारा पोस्ट की गयी तो बिना टिप्पणी के रही। ई-कविता तथा ब्लाग में प्रतिक्रियायों में अंतर होता है। ई-कविता में तारीफ या बुराई मेल के रूप में आती है जिसे आपको किसी को दिखाने के लिये बार-बार बहाने खोजने पढ़ते हैं। जबकि ब्लाग की प्रतिक्रियायें मेल के अलावा नोटिस बोर्ड की तरह हर पोस्ट के साथ जुड़ी रहती हैं। इसलिये जो लोग ब्लाग के मैदान में हैं वे प्रतिक्रिया के लिये ब्लाग का भी उपयोग करें ताकि वो स्थायी सा रहे।
वैसे यह भी सच है कि कोई इस तरह की बातें मानता नहीं है।सो भइया जिसके जो मन में आये सो करे।
बहरहाल मजा लें इस तुकबंदी का। अनूप भार्गव की कविता टेक पर लिखी इस तुकबंदी में अगर किसी को अपने बारे में लिखा नजर आता है या कविता के तत्व नजर आते हैं तो यह मात्र संयोग होगा । ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है। हो सके तो अनूप भार्गव जी भी यही मान के पढ़ें कि उनकी कविता का उपयोग केवल टेक के लिये किया गया है। तुकबंदी का कविता की अच्छाई बुराई से कुछ लेना -देना नहीं है। यह मैं इसलिये लिख रहा हूं कि वे खामखां कहीं अपनी कविता के बारे में धारणा में संसोधन करने में न जुट जायें।
मेरी पसंद
इस पागलपन में
जो नहीं शामिल होंगे
-मारे जायेंगे।
बरदाश्त नहीं किया जायेगा
किसी की कमीज हो
उनकी कमीज से ज्यादा सफेद।
जिसकी कमीज पर
दाग नहीं होंगे
-मारे जायेंगे।
फेंक दिये जायेंगे
कला की दुनिया से बाहर
जो धर्म की ध्वजा नहीं उठायेंगे।
जो
गुन नहीं गायेंगे
-मारे जायेंगे।
इस समय
सबसे बड़ा अपराध है
निहत्था और निरपराध होना।
जो
अपराधी नहीं होंगे
मारे जायेंगे।
-राजेश जोशी
महापुरुष के चलने से जब रास्ता बन जाता है तो दुनिया उस रास्ते पर चलकर रास्ते को चौड़ा करती है। महापुरुष के चेले-चापड़ अगर जागरूक होते हैं तो रास्ते की देखभाल करते रहते हैं। टूटफूट ठीक करते रहते हैं। समय बीतने के साथ रास्ता या तो जनपथ होते हुये राजपथ बन जाता है या कीचड़ में बदल जाता है । दोनों ही मामले में रास्ता आम आदमी के लिये बंद हो जाता है। कीचड़ में कमल खिल सकता है आदमी नहीं । वैसे ही राजपथ भी खासलोगों के लिये होता है। जनता को अपना रास्ता बनाने के लिये फिर महापुरुष का इंतजार करना पड़ता है।
ये महीन बात आम जनता की,बिजली पानी के अलावा सड़क बनवाने की मांग से हलकान नेता को नहीं पता लगी है अबतक । जिस दिन पता चल जायेगी तब शायद वह कहने लगे -तुम मुझे महापुरुष दो मैं तुम्हें सड़क दूंगा।
बहरहाल ये तो ऐसे ही कुछ ऊँची हांकने के लालच में लिख दिया। अगर ठीक समझे हों तो मिस़रा उठाइये नहीं तो हियां की बातें हियनै छ्वाडौ़ अबआगे का सुनौ हवाल।
हर साल अपने देश में सैंकडों फिल्में बनती हैं। उनके लिये हजारों गाने लिखे जाते हैं। कुछ गाने जनता की जुबान पर चढ़ जाते हैं बाकी भुला दिये जाते हैं।
चर्चित गानों की तर्ज पर लोग अपनी-अपनी जरूरत के अनुसार गाने बना लेते हैं। एक बढ़िया गाना हजारों जरुरतों को पूरा कर देता है।
चर्चित गानों की तर्ज पर सबसे ज्यादा गाने भक्तिगीत या विज्ञापन के क्षेत्र में होता है। दोनों का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना होता है।
नवरात्र,जागरण के दिनों में आप किसी भी रात सोने का अतिरिक्त प्रयास मत कीजिये ,करवट बदलते हुये,गानों की तर्ज पर फैलते भजनों से आपको पता चल जायेगा कि कौन सा गाना हिट चल रहा है।
ले के पहला-पहला प्यार ,भर के आंखों में खुमार का उपयोग लगभग सभी देवी-देवताओं की आगमन सूचना देने के लिये होता है -ले के हाथों में तलवार, हो के शेर पर सवार…
यही कहानी विज्ञापन में गीतों के मुखड़ों या टेक का इस्तेमाल करने के बारे में है।
कविताओं की तर्ज पर कवितायें लिखने का फैशन आदिकाल से चला आ रहा है।अक्सर होता है कि तर्ज पर लिखी कवितायें मूल कविता से ज्यादा चलन में आ जातीं हैं। सच्चाई मुलम्में से मार खाती हैं।बंबू पर खड़ा हुआ तंबू हमेशा बंबू से ज्यादा आकर्षक होता है।यह अलग बात है कि बंबू तो बिना तंबू के लग सकता है लेकिन कोई भी तंबू बिना बंबू के खड़ा नहीं हो सकता ।
कल जब कवि सम्मेलन की बात कहते हुये अनूप भार्गव जी की कविता (परिधि के उस पार देखो/इक नया विस्तार देखो) मेरी पसंद में लिख रहा था तो दिमाग में इसकी टेक पर तमाम पंक्तियां कुलबुला रहीं थीं। बाद में मजबूरन हमें उनको की-बोर्ड पर बैठाना पड़ा अब वो सिर चढ़ गईं की हमें स्क्रीन पर भी बिठाओ। अब वे इठला रहीं हैं कि हम तो पोस्ट में जायेंगे।
अनूप भार्गव की यह कविता जब ब्लाग में पोस्ट हुई तो गायब हो गई। फिर जब दुबारा पोस्ट की गयी तो बिना टिप्पणी के रही। ई-कविता तथा ब्लाग में प्रतिक्रियायों में अंतर होता है। ई-कविता में तारीफ या बुराई मेल के रूप में आती है जिसे आपको किसी को दिखाने के लिये बार-बार बहाने खोजने पढ़ते हैं। जबकि ब्लाग की प्रतिक्रियायें मेल के अलावा नोटिस बोर्ड की तरह हर पोस्ट के साथ जुड़ी रहती हैं। इसलिये जो लोग ब्लाग के मैदान में हैं वे प्रतिक्रिया के लिये ब्लाग का भी उपयोग करें ताकि वो स्थायी सा रहे।
वैसे यह भी सच है कि कोई इस तरह की बातें मानता नहीं है।सो भइया जिसके जो मन में आये सो करे।
बहरहाल मजा लें इस तुकबंदी का। अनूप भार्गव की कविता टेक पर लिखी इस तुकबंदी में अगर किसी को अपने बारे में लिखा नजर आता है या कविता के तत्व नजर आते हैं तो यह मात्र संयोग होगा । ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है। हो सके तो अनूप भार्गव जी भी यही मान के पढ़ें कि उनकी कविता का उपयोग केवल टेक के लिये किया गया है। तुकबंदी का कविता की अच्छाई बुराई से कुछ लेना -देना नहीं है। यह मैं इसलिये लिख रहा हूं कि वे खामखां कहीं अपनी कविता के बारे में धारणा में संसोधन करने में न जुट जायें।
मंच के इस पार देखो
कुछ इधर भी यार देखो
झूमकर पढ़ रहा है कवि इधर
श्रोताओं पर नींद की ये मार देखो।
चांदनी से कर रहा ,कवि प्यार देखो
दो नयन थे ,हो गये हैं चार देखो
सो गया है करवट बदलकर बावरा वह
फूंकने की बात जो करता रहा संसार देखो।
वीर रस का कवि इधर पढ़ने लगा
जुबां में फिट हुई तलवार देखो
जो सिटपिटाकर बोलता रहता हमेशा
किस कदर चिंघाड़ता,ललकार देखो।
हंस रहा खुद हास्य रस का कवि इधर
घिस चुके चुटकुलों की बौझार देखो
हंसी तो डूब चुकी कब की,‘हरसूद’ सी
चेहरों पर बोरियत की भरमार देखो।
गीत की बहती नदी में तैरता फ़नकार देखो
मधु,यामिनी,गजगामिनी,गलहार देखो
प्रेम,प्रेमी,प्रेमिका के बिम्ब सब ठहरे हुये हैं
फैशनेबल नागरिक का बावड़ी से प्यार देखो।
नयी कविता है इसका भी अजब व्यापार देखो
तुक,छंद, लय,अर्थ का डल गया अचार देखो
पा गया है कागज,कलम और कायनात,
अब सुनायेगा रात भर ,छोड़ेगा न ये यार, देखो।
कवि सब मंच पर हैं हो गये तैयार देखो
सुनाने को लग रहे हैं गज़ब बेकरार देखो
अब और आगे बोलना अच्छा नहीं भइये
कवि ने पकड़ लिया माइक चलो ये यार देखो।
मेरी पसंद
इस पागलपन में
जो नहीं शामिल होंगे
-मारे जायेंगे।
बरदाश्त नहीं किया जायेगा
किसी की कमीज हो
उनकी कमीज से ज्यादा सफेद।
जिसकी कमीज पर
दाग नहीं होंगे
-मारे जायेंगे।
फेंक दिये जायेंगे
कला की दुनिया से बाहर
जो धर्म की ध्वजा नहीं उठायेंगे।
जो
गुन नहीं गायेंगे
-मारे जायेंगे।
इस समय
सबसे बड़ा अपराध है
निहत्था और निरपराध होना।
जो
अपराधी नहीं होंगे
मारे जायेंगे।
-राजेश जोशी
Posted in कविता, बस यूं ही | 4 Responses
4 responses to “कुछ इधर भी यार देखो”
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ratna April 22, 2006 at 4:48 pm | Permalink |good but not mind blowing.well, masterpieces are rare.
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समीर लाल April 23, 2006 at 7:34 pm | Permalink |अनूप भार्गव जी के टेक को ले कर बहुत बढिया माला गूंथी है, बधाई…
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Tarun April 24, 2006 at 8:30 am | Permalink |ऊंची हांकने के चक्कर में गड़बड़िया गये अनुप जी….खैर एक साथ दो लेखों का मजा मिल गया।
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: फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176 June 19, 2011 at 4:37 pm | Permalink[...] रस में प्रेम पचीसी 5.मिस़रा उठाओ यार… 6.कुछ इधर भी यार देखो 7.भैंस बियानी गढ़ महुबे में 8.अरे ! हम [...]