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एक मीट ब्लागर और संभावित ब्लागर की
By फ़ुरसतिया on July 18, 2006
कल हमने फिर एक ब्लागर मीट कर डाली।
अब चूंकि चलन है यह बताने का कि हमने जो भी मीट की वह अपनी तरह की दुनिया की पहली है तो हम भी किसलिये छिपायें! हम भी बता दें कि यह अपने तरह की दुनिया की पहली हिंदी ब्लागर मीट है। पहली इसलिये कि इसके पहले जितनी बुलाकातें हुईं वो जमे-जमाये ब्लागरों की थीं। यहाँ जब हम मिले तो मुलाकातियों में दो लोग पहले से ही लिखते हैं तथा दो लोग बस लिखना शुरू ही करने वाले हैं। है न अपने तरह की दुनिया की पहली मीट!
परसों फोन किया अपने उड़नतस्तरी वाले समीरलाल जी ने कि वो कानपुर आने वाले हैं। हमने खुशी जाहिर की। करें भी क्यों न समीर जी हमारी इत्ती तारीफ करते हैं,इत्ती तारीफ करते हैं कि क्या बतायें जी कैसे-कैसे करता है। अच्छा मजे की बात है कि वे तारीफ करने में डरते भी नहीं । वो तो कहो हमारे दूसरे दोस्त हैं जो खिंचाई करके हमारी हवा निकालते रहते हैं वर्ना हम भी किसी दिन तारीफ की हवा में हल्के होकर उड़ने लग जाते-उड़न तस्तरी की तरह!
कानपुर पहुंच के फिर फोन किया समीरजी ने कि वे आ गये हैं। हमारे घर के पास ही घर है उनकी दीदी का। शाम को मिलने का तय हुआ उनके यहाँ।हमने सोचा कि कुछ और ब्लागर पकड़ के रैली ही कर डाली जाये । मेरा चिट्ठा वाले प्रोफेसर असिस्टेंट आशीष गर्ग को फोन किया लेकिन वो हमेशा की तरह मिले नहीं। सो हम जानिबे मंजिल की तरफ अकेले ही चल दिये।
जगह हमें पता थी लिहाजा खोजने में घर के पास ही बहुत देर टहलते रहे।कोई कहे बस आगे ही है। आगे पहुंचने पर पता चले-आप पीछे छोड़ आये। दायें-बायें करते हुये हम पहुंच ही गये अमित टेंट हाउस जिसके सामने वह घर था जहां ‘समीरलाल जी’ लैंड किये थे। अमित टेंट हाउस बंद देखकर लगा कैसे-कैसे लोग हैं दुकान में ताला डाल के जयपुर चले गये। फिर सोचा शायद ये दूसरे हों। वैसे भी कमी नहीं है दुनिया में लोगों की।एक ढूंढो हजार मिलते हैं।
कानपुर की परंपरा के अनुसार बिजली नदारद थी लिहाजा हमें पता नहीं लगा कि समीरजी हमें देखकर खुश हुये या परेशान । वैसे भी अंधेरे में हमें दिखता नहीं । कुछ भाई लोगों को तो इतना दिखता है कि रात में ही गाड़ी भगाते हुये चल पाते हैं।
घर के अंदर पहुंचते ही समीरजी के सारे परिवार से मुलाकात हुई। उनके दीदी,जीजाजी,बडे़ भाई श्री माहिम लाल,भाभी श्रीमती शिखालाल, पत्नी श्रीमती साधनालाल और खुद भाई समीर लाल।
साधनाजी तो अपनी पूर्णिमाजी के स्कूल में पढ़ी हैं। मिर्जापुर में साधनाजी की दीदी पूर्णिमा जी के साथ ही पढ़ती थीं। ये जूनियर थीं।स्वाभाविक है पूर्णिमाजी के बारे में भी तमाम बाते हुईं। यह भी कि पूर्णिमाजी ने साधनाजी को अभिव्यक्ति के प्रकाशन में सहयोग करने को कहा है। जिसे वे करेंगे तो निश्चित रूप से ब्लागिंग में भी उतरेंगी।
बतियाते हुये यह राज भी खुल गया कि समीरजी हमारी इत्ती तारीफ क्यों करते हैं। समीरजी ने बताया कि साधना जी हमारा चिट्ठा बहुत पसंद करती हैं तथा नियमित पढ़ती हैं। अब चाहें अतिथि धर्म निबाहना कहें साधना जी ने भी वहीं लगे हाथ इस बात की पुष्टि भी कर दी यह जोड़ते हुये कि -मैं पूछती रहती हूँ कि फुरसतिया में नयी पोस्ट आई क्या? हमें लगा हो या न हो इसी घरेलू मजबूरी के कारण हम समीरजी की पसंद बन गये। वैसे ऐसा हमारे कुछ और दोस्तों ने भी बताया है उनके घर हमारा लिखा पढ़ा जाता है।
समीरजी से तमाम तरह की बातें होती रहीं। ब्लागिंग,साहित्य,रुचियों,जीवन आदि-इत्यादि वगैरह-वगैरह के बारे में।
इस बीच साधनाजी ने मेज सजा दी थी नास्ते से। हम भी न न करते हुये ग्रहण करने लगे। हमने पूछा -आप नहीं पढ़तीं समीरजी का चिट्ठा? पता चला जब समीरजी बहुत जिद करते हैं तो पढ़ना पड़ता है। किसी एक पोस्ट में समीरजी अपनी श्रीमतीजी की काफी तारीफ की है। हमसे पूछा-हमने गलत तो नहीं लिखा था न!
हमने विनम्रता से जबाब दिया -मैं कैसे मना कर सकता हूँ जब इनके हाथ का नाश्ता खा रहा हूँ,नमकीन ले चुका हूँ।
खाते-पीते घर के समीरजी पेशे से चार्टेड अकाउन्टेंट हैं। १९९८ में शायद ‘वाई २ के’ के हल्ले में कनाडा निकल गये। अब वहां अपने ‘वाणिज्यिक ज्ञान को तकनीकी’ में लपेटकर बैंकों के सलाहकार का काम करते हैं।
लपेटने की बात पर वहां कुछ उठी कि समीरजी के जीजाजी भी ,जो कि स्थानीय दलहन अनुसंधान केन्द्र में वैज्ञानिक हैं,अपना ब्लाग लिखें जिसमें दलहन अनुसंधान के बारे में तकनीकी जानकारी दें। उन्होंने बताया कि लिखना तो इस बात पर निर्भर करता है कि आप कितनी खूबसूरती से अपने मन की बात को कह पाते हैं,कितनी अच्छी तरह लपेट पाते हैं।
इस पर हमने मासूम सुझाव दिया-आप समीरजी को अपना ज्ञान ई-मेल से भेज दिया करें। ये खूबसूरती से लपेटते रहेंगे।
पता नहीं क्यों मेरा प्रस्ताव ठहाके में उड़ा दिया गया।
समीरजी के भाई साहब कुवैत में सिविल इंजीनियर हैं।राउरकेला से इंजीनियरिंग किये हुये हैं। बताया कि जब वे कालेज में पढ़ते थे तब ४०० किमी की साइकिल यात्रा पर गये थे। हमें लगा कि हम ही अकेले सिरफिरे नहीं हैं जो कालेज से साइकिल उठाकर भारत दर्शन पर निकल गये थे।
समीरजी ने यह भी बताया कि वे हमारे जिज्ञासु यायावर वाले संस्मरण का बेताबी से इंतज़ार करते हैं। हमें फिर अपने संस्मरण लगातार न लिखने के अपराध बोध ने घेर लिया। लगता है कि जल्द ही उधर भी मेहनत करनी पड़ेगी।
अब यह बात हमारे रविरतलामी अभी तक छिपाये रहे कि समीरजी के पिताजी भी म.प्र.बिजली विभाग में थे तथा रविरतलामी उनसे परिचित थे।यह भी कि समीर जी की पैदाइश रतलाम की ही है।’समीर रतलामी’ नाम पर उनका जन्मसिद्ध अधिकार बनता है। फिलहाल उनका घर म.प्र. की सांस्कृतिक राजधानी जबलपुर में है।समीरजी के दोनों बच्चे इंजीनियर हैं।
अब यहाँ समीरजी की भाभीजी के बारे में भी बता दें वर्ना पता नहीं कहीं वे नाराज न हों जायें कि उनके देवर ‘पिंटू’ के दोस्त ने उनके बारे में कुछ लिखा नहीं।
‘शिखा भाभी’ ने बताया कि सबेरे से समीरजी हमारी तारीफ कर रहे थे। हमने कहा- अब मुलाकात के बाद तो असलियत पता चल गई। सब बराबर हो गया न!
भाभीजी का मायका बलिया जिला में है। हम बोले -बलिया जिला घर बा तो कउन बात के डर बा!
सुनते ही भाभीजी कोलगटिया मुस्कराहट का पल्ला झाड़ के ठठाके खिलखिला पड़ीं।
फिर तो तमाम बलियाटिक किस्से सुने-सुनाये गये।
समीरजी ने बताया कि भाभी जी बहुत अच्छा लिखती हैं। उन्होंने बताया कि वे नाटकों में भी रुचि रखती हैं। लिखती,कराती हैं। यह भी कि जाने से पहले उनका तथा जाने के बाद अपनी श्रीमतीजी का ब्लाग बनवाकर लेखन शुरू करवा देंगे। हमने बताया भी कि नये ,खासकर महिला ,ब्लागरों की हम लोग जी खोल के तारीफ करते हैं। कभी-कभी तो इतनी ज्यादा कर देते हैं कि बेचारा ब्लागर घबरा के स्वागत पोस्ट पर ही ब्लाग अपने ब्लाग का खात्मा कर देता है।
तारीफ के बारे में आश्वस्त होने पर दोनों भाभियों ने लिखने का वायदा किया है। हमने भी उनसे कहा है कि आप बस बता देना कि हम फ़ुरसतिया की भाभी लिख रहे हैं फिर देखते हैं कौन तारीफ नहीं करता!
हम जैसे ही पहुंचे थे ,लगता था बिजली को पता चल गया होगा कि हम आने वाले हैं,लिहाजा वह हमारे आने के पहले ही गोल हो गयी थी। अब हमारी बतकही से बेचारे इन्वर्टर की भी सांसे टूटने लगीं। लिहाजा पंखा बंद कर दिया गया तकि रोशनी देर तक रहे।हमें सज्जनता के नाते उठ के आ जाना चाहिये था। लेकिन हम सज्जन की हैसियत से नहीं एक ब्लागर की हैसियत से गये थे सो बैठे रहे। इस बीच दीदी जी बाहर दुकान से मोमबत्ती लेने चलीं गईं। बाहर निकलकर उन्होंने अंखियों ही अंखियों में जीजा जी को भी इशारा कर दिया । वे भी रोशनी के इंतजाम में निकल लिये। इस बीच बिजली झक मारकर आ गयी। कितनी देर दूर रहती ब्लागर्स से!
साधनाजी का व्यवहार जितना मधुर तथा आत्मीय है वे निश्चित तौर पर खाना भी उतना ही लाजबाब बनाती ,खिलाती होंगी। खिलाने का नमूना हमने देखा ही तथा बनाने और खिलाने का संयुक्त प्रमाण समीरजी हमारे सामने ही थे।
हमने पूछा कि घर में ब्लागिंग करने में कोई पाबंदी नहीं है। चूंकि पाबंदी लगाने वाला सामने ही बैठा था लिहाजा समीरजी ने कहा नहीं,नहीं ऐसी कोई बात नहीं । हमें पूरी आजादी है । हमने एयरटेलिया अंदाज में सोचा- ऐसी आजादी और कहाँ।
जैसा कि समीरजी की रचनाओं से सब परिचित हैं। वे रावर्ट फ्रास्ट के प्रशंसक हैं ।उनको महाकवि मानते हैं तथा उनकी कई कविताओं के भावानुवाद कर चुके हैं । कुंडलिया गुरूभी हैं। निरंतर लिखते रहने के कारण जब कुछ दिन दिखे नहीं तो लोगों ने पूछना शुरू कर दिया- उड़न तस्तरी कहाँ गई? बिना नाराजगी के लिखी एक पोस्ट पर सर्वाधिक टिप्पणी का रिकार्ड भी शायद समीरजी के ही नाम है। और तो और उनका हस्तलेख भी खूबसूरत है,खासकर वो जो उन्होंने हमें शुभकामनाओं सहित किताब भेंट करते हुये लिखा है वह कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रहा है।
समीरजी ने हमें प्रसिद्ध व्यंग्य लेखक ज्ञान चतुर्वेदी की किताब ‘दंगे में मुर्गा’ भेंट की तथा हमने बिना झिझके ले भी ली। मैंने धन्यवाद याद नहीं ,दिया कि नहीं।
आज ही, कुछ घंटों में, समीरजी सपरिवार,भैया-भाभी समेत वापस जबलपुर चले जायेंगे। वे पास ही रहते हैं।मैं सोचता हूँ उनसे फिर मुलाकात कर लूँ।यात्रा की शुभकानमायें दे दूँ।
इसलिये फिलहाल इतना ही। शेष फिर।
अब चूंकि चलन है यह बताने का कि हमने जो भी मीट की वह अपनी तरह की दुनिया की पहली है तो हम भी किसलिये छिपायें! हम भी बता दें कि यह अपने तरह की दुनिया की पहली हिंदी ब्लागर मीट है। पहली इसलिये कि इसके पहले जितनी बुलाकातें हुईं वो जमे-जमाये ब्लागरों की थीं। यहाँ जब हम मिले तो मुलाकातियों में दो लोग पहले से ही लिखते हैं तथा दो लोग बस लिखना शुरू ही करने वाले हैं। है न अपने तरह की दुनिया की पहली मीट!
परसों फोन किया अपने उड़नतस्तरी वाले समीरलाल जी ने कि वो कानपुर आने वाले हैं। हमने खुशी जाहिर की। करें भी क्यों न समीर जी हमारी इत्ती तारीफ करते हैं,इत्ती तारीफ करते हैं कि क्या बतायें जी कैसे-कैसे करता है। अच्छा मजे की बात है कि वे तारीफ करने में डरते भी नहीं । वो तो कहो हमारे दूसरे दोस्त हैं जो खिंचाई करके हमारी हवा निकालते रहते हैं वर्ना हम भी किसी दिन तारीफ की हवा में हल्के होकर उड़ने लग जाते-उड़न तस्तरी की तरह!
कानपुर पहुंच के फिर फोन किया समीरजी ने कि वे आ गये हैं। हमारे घर के पास ही घर है उनकी दीदी का। शाम को मिलने का तय हुआ उनके यहाँ।हमने सोचा कि कुछ और ब्लागर पकड़ के रैली ही कर डाली जाये । मेरा चिट्ठा वाले प्रोफेसर असिस्टेंट आशीष गर्ग को फोन किया लेकिन वो हमेशा की तरह मिले नहीं। सो हम जानिबे मंजिल की तरफ अकेले ही चल दिये।
जगह हमें पता थी लिहाजा खोजने में घर के पास ही बहुत देर टहलते रहे।कोई कहे बस आगे ही है। आगे पहुंचने पर पता चले-आप पीछे छोड़ आये। दायें-बायें करते हुये हम पहुंच ही गये अमित टेंट हाउस जिसके सामने वह घर था जहां ‘समीरलाल जी’ लैंड किये थे। अमित टेंट हाउस बंद देखकर लगा कैसे-कैसे लोग हैं दुकान में ताला डाल के जयपुर चले गये। फिर सोचा शायद ये दूसरे हों। वैसे भी कमी नहीं है दुनिया में लोगों की।एक ढूंढो हजार मिलते हैं।
कानपुर की परंपरा के अनुसार बिजली नदारद थी लिहाजा हमें पता नहीं लगा कि समीरजी हमें देखकर खुश हुये या परेशान । वैसे भी अंधेरे में हमें दिखता नहीं । कुछ भाई लोगों को तो इतना दिखता है कि रात में ही गाड़ी भगाते हुये चल पाते हैं।
घर के अंदर पहुंचते ही समीरजी के सारे परिवार से मुलाकात हुई। उनके दीदी,जीजाजी,बडे़ भाई श्री माहिम लाल,भाभी श्रीमती शिखालाल, पत्नी श्रीमती साधनालाल और खुद भाई समीर लाल।
साधनाजी तो अपनी पूर्णिमाजी के स्कूल में पढ़ी हैं। मिर्जापुर में साधनाजी की दीदी पूर्णिमा जी के साथ ही पढ़ती थीं। ये जूनियर थीं।स्वाभाविक है पूर्णिमाजी के बारे में भी तमाम बाते हुईं। यह भी कि पूर्णिमाजी ने साधनाजी को अभिव्यक्ति के प्रकाशन में सहयोग करने को कहा है। जिसे वे करेंगे तो निश्चित रूप से ब्लागिंग में भी उतरेंगी।
बतियाते हुये यह राज भी खुल गया कि समीरजी हमारी इत्ती तारीफ क्यों करते हैं। समीरजी ने बताया कि साधना जी हमारा चिट्ठा बहुत पसंद करती हैं तथा नियमित पढ़ती हैं। अब चाहें अतिथि धर्म निबाहना कहें साधना जी ने भी वहीं लगे हाथ इस बात की पुष्टि भी कर दी यह जोड़ते हुये कि -मैं पूछती रहती हूँ कि फुरसतिया में नयी पोस्ट आई क्या? हमें लगा हो या न हो इसी घरेलू मजबूरी के कारण हम समीरजी की पसंद बन गये। वैसे ऐसा हमारे कुछ और दोस्तों ने भी बताया है उनके घर हमारा लिखा पढ़ा जाता है।
समीरजी से तमाम तरह की बातें होती रहीं। ब्लागिंग,साहित्य,रुचियों,जीवन आदि-इत्यादि वगैरह-वगैरह के बारे में।
इस बीच साधनाजी ने मेज सजा दी थी नास्ते से। हम भी न न करते हुये ग्रहण करने लगे। हमने पूछा -आप नहीं पढ़तीं समीरजी का चिट्ठा? पता चला जब समीरजी बहुत जिद करते हैं तो पढ़ना पड़ता है। किसी एक पोस्ट में समीरजी अपनी श्रीमतीजी की काफी तारीफ की है। हमसे पूछा-हमने गलत तो नहीं लिखा था न!
हमने विनम्रता से जबाब दिया -मैं कैसे मना कर सकता हूँ जब इनके हाथ का नाश्ता खा रहा हूँ,नमकीन ले चुका हूँ।
खाते-पीते घर के समीरजी पेशे से चार्टेड अकाउन्टेंट हैं। १९९८ में शायद ‘वाई २ के’ के हल्ले में कनाडा निकल गये। अब वहां अपने ‘वाणिज्यिक ज्ञान को तकनीकी’ में लपेटकर बैंकों के सलाहकार का काम करते हैं।
लपेटने की बात पर वहां कुछ उठी कि समीरजी के जीजाजी भी ,जो कि स्थानीय दलहन अनुसंधान केन्द्र में वैज्ञानिक हैं,अपना ब्लाग लिखें जिसमें दलहन अनुसंधान के बारे में तकनीकी जानकारी दें। उन्होंने बताया कि लिखना तो इस बात पर निर्भर करता है कि आप कितनी खूबसूरती से अपने मन की बात को कह पाते हैं,कितनी अच्छी तरह लपेट पाते हैं।
इस पर हमने मासूम सुझाव दिया-आप समीरजी को अपना ज्ञान ई-मेल से भेज दिया करें। ये खूबसूरती से लपेटते रहेंगे।
पता नहीं क्यों मेरा प्रस्ताव ठहाके में उड़ा दिया गया।
समीरजी के भाई साहब कुवैत में सिविल इंजीनियर हैं।राउरकेला से इंजीनियरिंग किये हुये हैं। बताया कि जब वे कालेज में पढ़ते थे तब ४०० किमी की साइकिल यात्रा पर गये थे। हमें लगा कि हम ही अकेले सिरफिरे नहीं हैं जो कालेज से साइकिल उठाकर भारत दर्शन पर निकल गये थे।
समीरजी ने यह भी बताया कि वे हमारे जिज्ञासु यायावर वाले संस्मरण का बेताबी से इंतज़ार करते हैं। हमें फिर अपने संस्मरण लगातार न लिखने के अपराध बोध ने घेर लिया। लगता है कि जल्द ही उधर भी मेहनत करनी पड़ेगी।
अब यह बात हमारे रविरतलामी अभी तक छिपाये रहे कि समीरजी के पिताजी भी म.प्र.बिजली विभाग में थे तथा रविरतलामी उनसे परिचित थे।यह भी कि समीर जी की पैदाइश रतलाम की ही है।’समीर रतलामी’ नाम पर उनका जन्मसिद्ध अधिकार बनता है। फिलहाल उनका घर म.प्र. की सांस्कृतिक राजधानी जबलपुर में है।समीरजी के दोनों बच्चे इंजीनियर हैं।
अब यहाँ समीरजी की भाभीजी के बारे में भी बता दें वर्ना पता नहीं कहीं वे नाराज न हों जायें कि उनके देवर ‘पिंटू’ के दोस्त ने उनके बारे में कुछ लिखा नहीं।
‘शिखा भाभी’ ने बताया कि सबेरे से समीरजी हमारी तारीफ कर रहे थे। हमने कहा- अब मुलाकात के बाद तो असलियत पता चल गई। सब बराबर हो गया न!
भाभीजी का मायका बलिया जिला में है। हम बोले -बलिया जिला घर बा तो कउन बात के डर बा!
सुनते ही भाभीजी कोलगटिया मुस्कराहट का पल्ला झाड़ के ठठाके खिलखिला पड़ीं।
फिर तो तमाम बलियाटिक किस्से सुने-सुनाये गये।
समीरजी ने बताया कि भाभी जी बहुत अच्छा लिखती हैं। उन्होंने बताया कि वे नाटकों में भी रुचि रखती हैं। लिखती,कराती हैं। यह भी कि जाने से पहले उनका तथा जाने के बाद अपनी श्रीमतीजी का ब्लाग बनवाकर लेखन शुरू करवा देंगे। हमने बताया भी कि नये ,खासकर महिला ,ब्लागरों की हम लोग जी खोल के तारीफ करते हैं। कभी-कभी तो इतनी ज्यादा कर देते हैं कि बेचारा ब्लागर घबरा के स्वागत पोस्ट पर ही ब्लाग अपने ब्लाग का खात्मा कर देता है।
तारीफ के बारे में आश्वस्त होने पर दोनों भाभियों ने लिखने का वायदा किया है। हमने भी उनसे कहा है कि आप बस बता देना कि हम फ़ुरसतिया की भाभी लिख रहे हैं फिर देखते हैं कौन तारीफ नहीं करता!
हम जैसे ही पहुंचे थे ,लगता था बिजली को पता चल गया होगा कि हम आने वाले हैं,लिहाजा वह हमारे आने के पहले ही गोल हो गयी थी। अब हमारी बतकही से बेचारे इन्वर्टर की भी सांसे टूटने लगीं। लिहाजा पंखा बंद कर दिया गया तकि रोशनी देर तक रहे।हमें सज्जनता के नाते उठ के आ जाना चाहिये था। लेकिन हम सज्जन की हैसियत से नहीं एक ब्लागर की हैसियत से गये थे सो बैठे रहे। इस बीच दीदी जी बाहर दुकान से मोमबत्ती लेने चलीं गईं। बाहर निकलकर उन्होंने अंखियों ही अंखियों में जीजा जी को भी इशारा कर दिया । वे भी रोशनी के इंतजाम में निकल लिये। इस बीच बिजली झक मारकर आ गयी। कितनी देर दूर रहती ब्लागर्स से!
साधनाजी का व्यवहार जितना मधुर तथा आत्मीय है वे निश्चित तौर पर खाना भी उतना ही लाजबाब बनाती ,खिलाती होंगी। खिलाने का नमूना हमने देखा ही तथा बनाने और खिलाने का संयुक्त प्रमाण समीरजी हमारे सामने ही थे।
हमने पूछा कि घर में ब्लागिंग करने में कोई पाबंदी नहीं है। चूंकि पाबंदी लगाने वाला सामने ही बैठा था लिहाजा समीरजी ने कहा नहीं,नहीं ऐसी कोई बात नहीं । हमें पूरी आजादी है । हमने एयरटेलिया अंदाज में सोचा- ऐसी आजादी और कहाँ।
जैसा कि समीरजी की रचनाओं से सब परिचित हैं। वे रावर्ट फ्रास्ट के प्रशंसक हैं ।उनको महाकवि मानते हैं तथा उनकी कई कविताओं के भावानुवाद कर चुके हैं । कुंडलिया गुरूभी हैं। निरंतर लिखते रहने के कारण जब कुछ दिन दिखे नहीं तो लोगों ने पूछना शुरू कर दिया- उड़न तस्तरी कहाँ गई? बिना नाराजगी के लिखी एक पोस्ट पर सर्वाधिक टिप्पणी का रिकार्ड भी शायद समीरजी के ही नाम है। और तो और उनका हस्तलेख भी खूबसूरत है,खासकर वो जो उन्होंने हमें शुभकामनाओं सहित किताब भेंट करते हुये लिखा है वह कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रहा है।
समीरजी ने हमें प्रसिद्ध व्यंग्य लेखक ज्ञान चतुर्वेदी की किताब ‘दंगे में मुर्गा’ भेंट की तथा हमने बिना झिझके ले भी ली। मैंने धन्यवाद याद नहीं ,दिया कि नहीं।
आज ही, कुछ घंटों में, समीरजी सपरिवार,भैया-भाभी समेत वापस जबलपुर चले जायेंगे। वे पास ही रहते हैं।मैं सोचता हूँ उनसे फिर मुलाकात कर लूँ।यात्रा की शुभकानमायें दे दूँ।
इसलिये फिलहाल इतना ही। शेष फिर।
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के पिताजी भी म.प्र.बिजली विभाग में थे तथा रविरतलामी उनसे परिचित थे।यह भी कि समीर जी की पैदाइश रतलाम की ही है।…
समीर जी के पिताश्री, ‘लाल साहब’ के नाम से प्रसिद्ध थे और विद्युत मंडल में ईमानदार, कर्मठ, ज्ञानी अधिकारी के रूप में जाने जाते थे. जिनको भी इनके साथ काम करने का मौका मिला था, सभी इनकी तारीफ़ें करते थे.
ब्लागर मीट पढकर अच्छा लगा। मजा आया। आजकल ब्लॉगर मीट का ही सीजन चल रहा है।लगे रहो फुरसतिया जी।
यह टिप्पणी फुरसतिया जी की पिछली पोस्ट से संबंधित है।
फुरसतिया जी, आपकी मोपेड चलाते हुए तश्वीर की कल्पना कर रहा था, तो लगा चूहे पर बैठे गणपति कुछ कुछ वैसे ही लगेंगे (गुस्ताखी माफ)।
अगर इस पर कोई ईनाम-सिनाम रखा होता तो वो आपके नाम जाता.
आपका आभार समिर लालजी को नजदीक से जान पाए. वैसे उन्होने कनाडा से हमें बताया था की सम्भव हैं वे अहमदाबाद पधारे, हम भी मेजाबानी करने के लिए उतावले हो रहें हैं. आशा हैं उडन तश्तरी अहमदाबाद लेंड करेगी.
अरे कब से ढुंढ रहा था इनको. क्लास से बंक मारते हैं. लौटने दो कक्षा मे ऐसी खबर लेंगे की बस…
फुरसतीयाजी, फुरसत मे यह सन्देश पहुँचा देवें. एडवांस मे धन्यवाद
काश इस पर कोई ईनाम-सिनाम रखा गया होता तो वो आपका होता.
यहाँ समीर लालजी का अच्छा परिचय मिला, साधुवाद.