Saturday, April 07, 2007

जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि

http://web.archive.org/web/20140419215632/http://hindini.com/fursatiya/archives/266

जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि

ऐसा हमारे साथ अक्सर होता है!
सालों से नेट सर्फिंग (नेट निरमा काहे नहीं होता) वाले अचानक कभी पूछ लेते हैं हिंदी में कैसे लिखते हैं। हाउ टु राइट इन हिंदी। ऐसे ही कभी-कभी कोई सक्रिय ब्लागर साथी कभी-कभी नितान्त मौलिक सवाल पूछ बैठते हैं। वे तो पूछ के बैठ जाते हैं। हमें ठगे से खड़े रह जाते हैं। जवाब खोजते। समीरलाल जी की पोस्ट पढ़कर भी एक ब्लागर साथी के ऊपर भी ऐसा ही मौलिक दौरा पड़ा। उनने हमको दौड़ा लिया। :) हमसे तमाम सवाल सवाल पूछे जिनके हमारे पास कोई रेडीमेड जवाब नहीं थे। जैसे कटपीस जवाब थे, वैसे हमने दे दिये। आप भी देखिये। अगर हमारे जवाब आपको सही लगते हैं तो ठीक नहीं तो इनमें संशोधन करिये। यहीं या अपने ठिकाने पर।
वैसे तो हम अपने ब्लागर साथी के बारे में आपको बता देते लेकिन गोपनीयता की शर्त से बंधे हैं। कुछ -कुछ ऐसे ही जैसे जीतेंन्द्र ब्लागरों के बारे में तमाम गोपनीयताऒं से बंधे रहते हैं। वैसे वे जिन गोपनीयताऒं से खुले में बंधे होते हैं वे सारे बंधन चैट बाक्स में आते ही खोल देते हैं। ‘अपने तक ही रखना’ का टैग लगाकर वे सारी बातें अपने अपनों को बता देते हैं। लेकिन हम ऐसे नहीं हैं। हम गोपनीयता की शर्त से बंध गये तो बंध गये। हम उस ब्लागर साथी के बारे में कुछ न बतायेंगे।
ये सवाल ब्लागर साथी ने जैसे पूछे वैसे ही हम आपके सामने रख रहे हैं।
सवाल: अभी हमने समीरलालजी का लेख पढ़ा। फिर राकेश खंडेलवाल जी का भी। उसमें कुछ कवि/कविता जैसी बातें लिखीं हैं। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि ये किस बारे में हैं। आप कुछ बतायेंगे इस संबंध में? हम कुछ पूछना चाहते हैं।
जवाब: हां, हां! काहे नहीं आप पूछें हम बताने का प्रयास करेंगे।
सवाल: ये कवि क्या चीज होती है?
जवाब: (हमने मन में सोचा इतना तो गिरिराज भी जानते हैं लेकिन फिर जवाब दिया) कवि वह होता है जो कविता लिखता है। कविता लिखने वाले को और लिखते ही रहने वाले को कवि कहते हैं।
सवाल: कितनी कवितायें लिखकर आदमी कवि बन जाता है?
जवाब: जैसे आदमी एक कतल करे चाहे हजार वो हत्यारा ही कहलाता है वैसे ही कविता चाहे आप एक लिखो चाहे हजार । एक दिन लिखो चाहे रोज डेली। आप कवि बन गये।
सवाल: कवि कविता क्यों लिखता है?
जवाब: पहले तो लोग अपने मन के भाव व्यक्त करने के लिये कविता लिखते थे। जहां कोई भाव मन में आया उसे कागज पर खाली कर दिया। मन हमेशा खाली रहे। उसमें भावों की कोई गन्दगी न रहे। इसीलिये लोग अपने मन के सारे भाव कागज पर उड़ेल कर मन को साफ-सुथरा, चिकना करके रखते थे ताकि कोई उचित मौका मिले तो ‘चिकन-मन’ फिसल सके। लेकिन आजकल पता नहीं क्या चलन चला है कि जब किसी को कुच्छ समझ में नहीं आता तो कविता लिखने लगता है। कुछ लोग तो यही लिखनें में ही तमाम कवितायें लिख मारते हैं कि वो क्यों लिखते हैं। जमाना बड़ा खराब चल रहा है। अच्छा खासा चलता-फिरता खुशमिजाज आदमी कवि बनकर रह जाता है।
सवाल: ये मन का भाव क्या होता है? क्या भाव मिलते हैं? ये किलो के हिसाब से मिलते हैं या छटांक में तुलते हैं?
जवाब: ये तो जैसी कवि की औकात होती है उसपर निर्भर होता है। अगर कवि प्रसिद्ध और पहुंच वाला है तो उसकी कविता के भाव ऊंचे लगेंगे। अगर वह समर्थ है, अधिकारी है, मंत्री है तब तो उसके भाव आसमान पर ही होते हैं। अगर कवि टुटपुंजिया हुआ तो उसके भाव जमीन से जुड़े रहते हैं। यह शाश्वत नियम है। जो इस नियम की अवहेलना करता है उसे ‘एक्सेप्शन प्रूव्स द रूल’ के तहज दायें-बायें करके नियम का पालन सुनिश्चित किया जाता है।
सवाल: अच्छा अगर आप बुरा न मानें तो कृपया बतायें कि कविता किसे कहते हैं?
जवाब: अरे नहीं! इसमें बुरा मानने की क्या बात है। हम ब्लागर बनते ही अपने बुरा मानने के सारे अधिकार खो देते हैं। अब तो नारद पर रजिस्ट्रेशन होने से पहले एक सर्टिफिकेट जमा करना होता है जिसमें यह प्रमाणित किया जाता है कि ब्लागर बनने के इच्छुक व्यक्ति में बुरा मानने के कोई कीटाणु नहीं पाये गये। इसके बाद ही पहली पोस्ट आ पाती है नारद पर और स्वागत-फ्वागत होता है।
कविता/शब्दों की अदालत में/अपराधियों के कटघरे में खड़े
एक निर्दोष आदमी का/हलफनामा है।
सवाल: अरे आप तो बुरा मान गये? :)कविता के बारे में बतायें!
जवाब: कविता दो हैं। एक तो कविता चौधरी जिनका अभी मेरठ में तमाम मंत्रियों से चक्कर का खुलासा हुआ। बाद में वो शायद मर्डरावस्था को भी प्राप्त हुयीं। उनके बारे में अगर जानना हो तो हम न बता पायेंगे। हमें शरम आती है और उससे ज्यादा डर लगता है। कोई उनका नाम हमसे जोड़ देगा तो न जाने क्या लफड़ा हो!
सवाल: अरे हमें उनके बारे में नहीं जानना। वो तो सब मीडिया बताता रहता है। वे और निठारी और अब चुनाव न होते तो मीडिया बेचारा बुढ़ापे के हाथ-पांव की तरह सुन्न-सन्न हो जाता। आप हमें कवि वाली कविता के बारे में बताओ। जिनके बारे में शायद गाना भी है – मैं कहीं कवि न बन जाऊं तेरे प्यार में ये कविता। एम आई राइट?
जवाब: कविता के बारे में असल में तमाम अफवाहे हैं। कोई कहता है -कविता ताकतवर भावनाओं का अनवरत प्रवाह हैं(पोयट्री इज द स्पांटेनियस फ्लो आफ पावरफुल फ़ीलिंग्स) इससे तो ऐसा लगता है कि कविता का सुनामी घराने से कुछ संबंध है। कुछ लोग कहते हैं कि कविता हृदय के उच्छ्वास से निकलती है। इससे लगता है कि कविता का जन्म किसी हृदयरोग संस्थान में हुआ होगा। लेकिन हृदय रोग संस्थान पुराने जमाने में थे नहीं इसलिये यह बात सही नहीं लगती।
कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला। से लगता है कि कविता कुछ लेसदार चीज होती है जिसमें कुछ कलाकारी भी मिली होती है। ये लेसदार चीज एक बार चिपक जाये तो छुटाये नहीं छूटती। तुलसी का जिक्र आने से यह भी लगता है कि तुलसी की पत्ती से भी कविता का कुछ अंतरंग संबंध होता है। आजकल तुलसी की पत्ती की जगह चाय की पत्ती ने ले ली है। कोई कहता है- कविता उत्तमोत्तम शब्दों का उत्तमोत्तम क्रम विधान है। इससे ऐसा लगता है कि कविता कोई शब्दों की चमचमाती दुकान है जहां शब्द तरतीब से उत्तम तरीके से सजे-संवरे लाइन से लगे, बने-ठने खड़े रहते होंगे। धूमिल थोड़ा अदालती चक्करों से परेशान रहते होंगे इसीलिये कहते हैं-
कविता
शब्दों की अदालत में
अपराधियों के कटघरे में खड़े
एक निर्दोष आदमी का
हलफनामा है।

जो व्यक्ति जितना अधिक भ्रमित अपने को साबित कर ले जाये उसे उतना ही बड़ा विद्वान मान लिया जाता है।
सवाल: कविता के बारे में और कुछ लोकप्रचलित धारणाओं के बारे में बतायें,कोई अंतिम सत्य टाइप की चीज!
जवाब: तमाम धारणायें उपलब्ध हैं कविता के बारे में लेकिन अंतिम सत्य उसी तरह अबूझ है जैसे भारत के पिछड़ेपन के कारणों पर जनता तो जनता विद्वानों तक में मतभेद हैं। भ्रम हैं। बल्कि कोई तो कह रहा था कि इस भ्रम वाली बात को लोग विद्वता की जांच में इस्तेमाल करने लगे हैं। देश के बारे में कुछ पांच-दस सवाल करने पर जो व्यक्ति जितना अधिक भ्रमित अपने को साबित कर ले जाये उसे उतना ही बड़ा विद्वान मान लिया जाता है। अरे अब तो लोग भ्रम से भी आगे बेवकूफी को विद्वता के पैमाने के रूप में लेने लगे हैं। जो जितनी बड़ी बेवकूफी की बात आत्मविश्वास से कह सके वह उतना बड़ा विद्वान।
सवाल: किसी कविता को समझने के क्या तरीके होते हैं। तमाम लोग कहते हैं कि उनको कविता समझ में नहीं आती?
जवाब: असल में कविता की बहुत कुछ खूबसूरती इसी बात होती है कि किसी को वह पूरी तरह समझ में न आये। जो कविता जितनी झाम वाली होगी उसके उतने ही चर्चे होंगे। बल्कि अक्सर कविता की तारीफ़ ही लोग तब करते हैं जब वह बिल्कुल पल्ले न पड़े। वाह
जो कविता जितनीझाम वाली होगी उसके उतने ही चर्चे होंगे।
आपकी कविता की तारीफ़ के लिये शब्द नहीं मिल रहे टाइप की टिप्पणियों का यही मतलब है। रमानाथ जी ने इसी लिये एकदम ओपेन सोर्स टाइप फार्मूला दिया अपनी कविताऒं के बारे में- मेरी रचना(कविता) के अर्थ अनेकों हैं, तुमसे जो लग जाये लगा लेना! मतलब जो तुम्हें समझ में आ जाये वही कविता है। इससे तमाम लोगों को सहूलियत मिली। अब वे कविता का मनमाफिक अर्थ निकाल लेते हैं। इसी का विस्तार करके लोग अब जिस चीज को मन आये उसे कविता कह डालते हैं।
सवाल: ये कैसे होता है कि कोई अच्छा खासा आदमी अचानक कवि बन जाता है?
जवाब: इसके बारे में भी कुछ अंतिम सत्य नहीं पता। कोई कहता है कि सबसे पहले जब किसी वियोगी आदमी ने प्यार करते हुये क्रौंच पक्षी को बहेलिये द्वारा मारे जाते देखा तो उसे लगा होगा कि उसे भी क्या कोई ऐसे ही खलास कर देगा! यह सोचते ही उसके आंसू आ गये। लोगों ने हवा फैला दी कि ये आदमी कविता कर रहा है। ऐसा अक्सर होता है। जब कोई रोता है तो मोहल्ले वाले हवा उड़ा देते हैं ये खुशी के आंसू हैं। जब आदमी विक्षिप्त होकर हंसता है तो जनता मानती है ये खुशी में पगला गया है।
इसके अलावा संगत का असर भी होता है। मैथिली शरण जी लिखे ही हैं- राम तुम्हारा चरित स्वंय ही काव्य है/कोई कवि बन जाये सहज संभाव्य है। आप देखिये किसी भी बड़े बाजारी क्षमता वाले आइटम के आसपास के लोगों को। आधे लोग आपको कवि मिलेंगे। कोई किसी की चालीसा लिख रहा है, कोई किसी की आरती।
सवाल: लेकिन भगवान के यहां से भी तो कुछ तय होता होगा कि कौन कवि बनेगा कौन शायर?
जवाब: हां काहे नहीं होता होगा। हम गये तो नहीं भगवान के कारखाने में। लेकिन जो उत्पादन संस्थान हमने देखे हैं उनको देखकर हमें कुछ-कुछ अंदाज लगता है कि वहां कवि कैसे बनते होंगे।
सवाल: तो बताइये न प्लीईईईईईईईईईईईईज! आपको आपके ब्लाग की कसम! :)
जवाब: अब आपने ऐसी बात कह दी तो बताना ही पड़ेगा। मुझे लगता है कि भगवान के कारखाने में हजारों-लाखों लोग हर दिन बनते हैं। जब बन जाते होंगे तो उनको धरती पर डिस्पैच कर देते होंगे। जो लोग सामान्य होते हैं उनको तो सामान्य तरीक से भेज देते होंगे। लेकिन गुणता निरीक्षण में कुछ आइटम ऐसे होते होंगे जिनमें कुछ विचलन( डेवियेशन) होते होंगे। उनको अलग करके दुबारा प्रासेस करके भेजते हैं। उन्हीं में से कुछ लोगों को कवि भी बना देते होंगे!
सवाल: क्या मतलब? समझ में नहीं आया। जरा विस्तार से खोल के बताइये जैसे जीतूजी बताते हैं!
जवाब: अब मान लो चेकिंग में किसी आइटम में समझदारी में कुछ कमी पायी गयी तो अब उसे फेंक तो देंगे नहीं। उसी आईटम में थोड़ी से संवेदनशीलता ज्यादा मिलाकर वजन बराबर करके भेज देते हैं। वही आगे चलकर कवि बन जाता है। किसी में कुछ दुनियादारी कम हो गयी तो उसमें कल्पनाशीलता मिलाकर कवि बना दिया। भावुकता, ईमानदारी, अन्याय के प्रति, स्पष्टवादिता ऐसे गुण मिलाकर आइटमों को कवि बना दिया जाता है।
वीररस के कवि के लिये मुझे लगता है भगवान को कुछ और जुगाड़ करने पड़ते होंगे। पहले कवि के दिल में एक छोटा लेकिन पावरफुल हीटर टाइप की चीज लगाई जाती होगी। फिर ऐसा कोई प्रोसेसर लगाना पड़ता होगा जो देश, विदेश, अन्याय, दुश्मन आदि शब्दों के संपर्क में आते ही हीटर को चालू कर दे। इसी से कवि का खून खौलने लगता है।
सवाल: कवि तो ठीक है लेकिन वीर रस का कवि, श्रंगार का कवि आदि कैसे बनते होंगे?
जवाब: वीररस के कवि के लिये मुझे लगता है भगवान को कुछ और जुगाड़ करने पड़ते होंगे। पहले कवि के दिल में एक छोटा लेकिन पावरफुल हीटर टाइप की चीज लगाई जाती होगी। फिर ऐसा कोई प्रोसेसर लगाना पड़ता होगा जो देश, विदेश, अन्याय, दुश्मन आदि शब्दों के संपर्क में आते ही हीटर को चालू कर दे। इसी से कवि का खून खौलने लगता है। उसकी वाणी से अंगारे बरसने लगते है। आंखों से शोले निकलने लगते हैं। वातावरण थर्राने लगता है। मंच कपकपाने लगता है। ऐसे कवियों के खून में खुदाबन्द जरूर कुछ ऐसी चीजें मिलाते होंगे जिससे वह खौलने के बाद भी पतले न हों। विघटित (डिकम्पोज) न हो। मंच से उतरते ही कवि का प्रोसेसर अपन आप बन्द हो जाता होगा, हीटर आफ और वह मुस्कराते हुये पूछता होगा- कहिये भाई साहब कैसा रहा मेरा काव्य पाठ?
इसी तरह के कुछ इंतजाम श्रंगार रस के कवि के लिये भी भगवान के यहां होता होगा। उनकी आंखों में कोई खास लेंस लगाया जाता होगा जिससे उनको समूची सृष्टि प्रेम मय दिखती हो। जर्रा-जर्रा माशूक मय। बूटा-बूटा सौंदर्य से लबालब भरा हुआ। इसी तरह और कवि भी बनते होंगे।

सवाल:
 लोग कविता कैसे लिखते हैं? इसकी रचना प्रक्रिया क्या है?
जवाब: रचना प्रक्रिया तो हर कवि की अलग-अलग होती है। जैसे पुराने जमाने में जो समर्थ कवि होते थे वे शब्दों को पहले एक लाइन में खड़ा कर देते थे। जैसे स्कूलों में पीटी के लिये लाइन लगती है। छोटे बच्चे आगे बड़े पीछे। इसी तरह आठ दस लाइन बना लीं। ये हो गयी कच्ची कविता। फिर एक शब्द को उठा कर यहां-वहां, जहां-तहां करते रहते हैं। ऐसे ही जो सबसे अच्छा लगने वाला शब्द समुच्चय बन जाता है। उसे लोग कविता मान लेते हैं। कुछ समर्थ कवि होते हैं वे प्रयास करते हैं कि उनकी बनायी लाइनों का कुछ मतलब भी निकले तो अच्छा। वे थोड़ी ज्यादा मेहनत करते हैं। ऐसे लोग तुकान्त कवि होते हैं और ऐसी कविता तुकान्त कहलाती है। कुछ लोग इसी नाम की आड़ में कहते हैं कि तुकान्त कवि वह होता जो बेतुकी बात से शुरू करके तुक की बात अंत में कहता है। जबकि श्रोता कविता की शुरुआत में ही तुक की अपेक्षा करता है।
जब कोई रोता है तो मोहल्ले वाले हवा उड़ा देते हैं ये खुशी के आंसू हैं। जब आदमी विक्षिप्त होकर हंसता है तो जनता मानती है ये खुशी में पगला गया है।
सवाल: अच्छा तो ये अतुकान्त कवि कैसे कैसे लिखते हैं?
जवाब: इनका लिखने का ऐसे है कि पहले इनको जो लिखना होता है उसे एक कागज में लाइनों में लिख लेते हैं। जब सारा कुछ लिख लेते हैं तो ये अपनी आंख में पट्टी बांधकर पेंसिल से अपने लिखे पर निशान लगाते जाते हैं। जैसे राम शलाका प्रश्नावली में करते हैं। हर लाइन में तीन-चार-पांच जितने मन में आये उतने। फिर जब सारे निशान लगा लेते हैं तो आंख की पट्टी खोलकर जहां-जहां निशान लगाये हैं उनको अलग-अलग लाइन में लिखकर उसे कविता की शक्ल दे देता है। यही अतुकान्त कविता है।
सवाल: इसे जरा उदाहरण के रूप में बताइये न!
जवाब: ये मुश्किल काम है। फिर भी प्रयास करता हूं। अब मान लो किसी कवि को अतुकान्त कविता लिखना है। तो पहले वह जो लिखना है उसे लिखेगा। जैसे यह ले लो-
आज चांद मेरे सपने में आया आज मैंने तुमको याद किया क्या तुम्हारी चांद से कोई बात हुयी थी मैं जब भी चांद को देखता हूं मुझे तुम याद आती हो
अब इसी में आंख मीच कर कोई निशान लगाये तो ऐसे लग सकते हैं-
आज *चांद *मेरे सपने में आया* आज मैंने तुमको* याद किया क्या* तुम्हारी *चांद से* कोई बात हुयी थी* मैं जब भी* चांद को* देखता हूं *मुझे तुम याद आती हो*
ये जो * निशान लगाये उनको एक-एक लाइन में लगाकर इस तरह अतुकान्त कविता लिखी जा सकती है-

आज
चांद
मेरे सपने में आया
आज
मैंने तुमको
याद किया क्या
तुम्हारी
चांद से
कोई बात हुयी थी
मैं जब भी
चांद को
देखता हूं
मुझे तुम याद आती हो
ये तो फुरसतिया टाइप का अतुकान्त कवि लिखेगा। लेकिन अगर कोई ऐसा अतुकान्त कवि है जिसके पास समय की कमी होगी तो वो इसी बात को ऐसे भी कह सकता है-
आज चांद मेरे सपने में आया
आज मैंने तुमको याद किया
क्या तुम्हारी चांद से कोई बात हुयी थी
मैं जब भी चांद को देखता हूं
मुझे तुम याद आती हो।


सवाल: कुछ लोग कहते हैं कि अब कविता लिखने के भी कोई मशीन आती है। क्या यह सच है?
जवाब: हां सुना तो हमने भी है कि हमारे रविरतलामी के पास के कोई मशीन है। इसमें वे हजार दो हजार शब्द डाल देते हैं। जैसे लोग आटोमैटिक वाशिंग मशीन में कपड़े डाल देते हैं और वे धुल-पुछ के निकल आते हैं वैसे ही जब रवि भाई कोई पोस्ट लिखते हैं तो अपनी मशीन चला देते हैं। जब तक इनकी पोस्ट पूरी होती है तब तक उससे कविता निकल आती है। साफ, धुली-पुछी, चमकदार। उसे ही वो व्यंजल का टैग लगाकर अपनी पोस्ट के नीचे फैला देते हैं। जैसे -जैसे कविता लिखने वाले मित्र बढ़ रहे हैं उससे लगता है कि यह मशीन और भी तमाम लोगों के हत्थे चढ़ गयी है। या यह भी हो सकता है कि व्यव्सायिकता के पैरोकार रवि भाई अपनी मशीन को कुछ किराये पर चलाने लगे हों। तुम मुझे शब्द दो, मैं तुम्हें कविता दूंगा। लोग उधर से अपने से शब्द भेजते होंगे इधर से रवि भाई कविता निकाल के उनको दे देते होगें। फीस के रूप में वे शायद अभी ब्लागर कवियों से यह वायदा करा रहे होंगे कि आशीष की शादी में आना लेकिन बरात के साथ नहीं, आशीष के यहां रिसेप्शन में आना! :)
सवाल: अच्छा चलते-चलते एक आखिरी सवाल। लोग कहते हैं कि जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि। तो क्या कवि रवि रतलामी से भी दुबला-पतला आइटम होता है?
जवाब: अरे न भाई! ये मतलब इस बात से है कि जहां सूरज नहीं जा पाता वहां भी कवि पहुंच जाता है। यह स्वाभाविक बात है। सूरज कित्ता बड़ा है। साठ हजार धरती उसमें समा जायें। और बड़े से बड़े कवि भी छ्ह-फुटा सात फुटा होगा हद्द से हद्द। तो यह तो हैइऐ है भाई। अब बताओ किसी मोहल्ले की गली में जहां साइकिल घुस जाती है सरपट दौड़ती है वहां भला जम्बो जेट घुस पायेगा। अरे वो मेन रोड पर तक नहीं आ पायेगा। क्या बात करते हैं गली की। तो जिसने भी कहा उसने सही ही कहा है। किसी कवि ने ही इसे कहा है उसके लगता है कि कवि होने के बावजूद समझ बनी रही होगी।
हमने सोचा कि शायद ब्लागर साथी और कोई आखिरी सवाल पूछे लेकिन उसकी हिम्मत जवाब दे चुकी थी और वह उठकर चल दिया। हमने कहा -कहां चले?
वो बोला जो ज्ञान मिला उसे पोस्ट करने। अब मैं भी कविता लिखूंगा।
मेरा ब्लागर मित्र आपको इस मुलाकात के बारे में कुछ गलत-सलत बताये इसके पहले ही मैंने सोचा आपको मुलाकात का सच बता दें।
जब मैं यह वार्ता पोस्ट कर रहा था उसी समय मेरे ब्लागर मित्र का मेल आया। उसने पूछा था- आपके पास रवि रतलामीजी की मेल आई डी है क्या? मुझे उनसे कविता के बारे में कुछ बात करनी है! :)
अब आपै बताओ उनको रवि भाई का मेल पता भेंजे के मटिया दें! :)

24 responses to “जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि”

  1. अफ़लातून
    ‘चार सेर चना हडप !’ हमारे यहाँ की कबड्डी में जब एक पक्ष में एक ही खिलाड़ी बचा होता था तब उसे ऐसा कोई सूत्र उच्चारित कर सामने वाले पाले में मौन जाने की छूट होती थी । वह आउट तब होता था जब वह कुछ बोल दे ।
  2. संजय बेंगाणी
    अच्छा किया आपने मेरा नाम नहीं बताया. वही बातें यहाँ पढ़, रिविजन हो गया. :)
  3. रवि
    “…आपके पास रवि रतलामीजी की मेल आई डी है क्या…”
    शुक्र है, उन्होंने मेरे फ़ीमेल आई डी के बारे में नहीं पूछा! वैसे, यह भी एक संयोग है कि आज ही ई-स्वामी जी ने भी – जो कवि और कविता के नाम से ही भयंकर खौफ़ खाते हैं, स्वयं कवि बनकर खौफ़-नुमा कविता लिख डाली है! :)
  4. अतुल शर्मा
    आज मैंने कवि और कविता के बारे में बहुत कुछ जान लिया है। साथ ही अतुकांत कविता रचने की तकनीक भी मालूम पड़ गई है। रविजी (अंतरिक्ष वाले नहीं, रतलाम वाले) की व्यंजलों का ट्रेड सीक्रेट भी जान लिया। इन्दौर से रतलाम पास ही है, इसलिए पड़ौस में रहने के कारण डिस्काउंट पर कविताएँ मिल जाया करेंगी तो मैं भी अपने ब्लाग पर लगा दिया करूँगा। हो सका तो एक मशीन ही उनसे मँगा लूँगा।
  5. सचिन
    बेहतरीन लिखा है सर…साधुवाद..
  6. राजीव
    अनूप जी,
    पहले कभी तो वाल्मीकि जी के बारे में उतना ही पढ़ा था, क्रौंच पक्षी वाली घटना जैसा आपने लिखा है – और यह भी कि वियोगी होगा पहला कवि, आह से निकला होगा गान, उमड़ कर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान मगर अब यह लगता है कि उतनी सी जानकारी बिलकुल नग्ण्य थी। असली ज्ञान तो अब मिला है, कवि के बारे में इस विस्तृत शोध-पत्र द्वारा।
    इसमें तो आपने बड़ी-बड़ी बातें उजागर कर दीं – हर प्रकार के कवि की उत्पादन प्रक्रिया का खुलासा भी। चलो अब तो खतरे की बात नहीं है जो इस पेटेंट प्रक्रिया को आपने प्रकाशित कर दिया, इतना पुराना हो चला था यह पेटेंट सो कानून के उल्लंघन की संभावना कम ही दिखती है। अधिक जानकारी तो उन्मुक्त जी ही देंगे।
    हाँ, एक मज़ेदार संयोग यह कि आपका यह चिट्ठा देखने से कुछ एक घंटा पहले ही मैंने “जहाँ न पहुँचे रवि…” वाली उक्ति का प्रयोग अपने वार्तालाप में किया था।
    एक और संग्रहणीय लेख!
  7. समीर लाल
    जैसे आदमी एक कतल करे चाहे हजार वो हत्यारा ही कहलाता है वैसे ही कविता चाहे आप एक लिखो चाहे हजार । एक दिन लिखो चाहे रोज डेली। आप कवि बन गये।
    –क्या बात है, ऐसा कम्पेरिजन तो इस जीवन में सोच सकते थे. अतुकान्त कविता कर सकने की अपनी अक्षमता पर आज से विराम लगा रहा हूँ, पहली आपके पाठ के अनुसार:

    नारद ने बताया
    आपने कुछ लिखा
    यहाँ हम
    अपना जिक्र देखते हैं,

    क्या आपने हमें याद किया था?
    –बहुत ज्ञानवर्द्धन हुआ. मजा आया और हम विद्वान हो गये. :)
    बधाई!!!
  8. सीटीवादक
    सच कह रहा हूँ भइया बहुत मस्त सीटी बजाई है. उम्मीद है आगे भी ऐसे ही सुर लगाते रहोगे.
  9. masijeevi
    आप ने कहा था कि आप सार्वजनिक नहीं करेंगे और देखिए आपने क्‍या किया। अच्‍छा है कि आलोचक क्‍या होता है ? वाला सवाल भूल गए, जिसके जबाव में आप कहे थे कि भैय्ये बहुतै बुरी चीज होती है। आदमी निर्माणिनी में जब डिफेक्टिव पीस के सुधार प्रक्रिया में ई पता लगै कि ओ ससुरे इस आईटम में तो दिमागै नहीं है उस पर घमंड कुछ बेसी हो गया तो उसे आलोचक का टैग लगा के खपा देते हैं मार्किट में।
  10. तरूण
    पढने के बाद पता चल गया आपने ये बात अपने तक ही सीमित रखी किसी को नही बतायी, लगता है आजकल आपके आर समीर जी के बीच “तू शेर तो मैं सवा शेर” टाईप कुछ चल रहा है। इस बहाने हम लोगों की चांदी हो गयी है, एक से एक पढने को मिल रहा है। बहुत बढिया।
  11. हिंदी ब्लॉगर
    बहुत बढ़िया. मज़ा आ गया!
  12. पंकज
    वाह जी वाह। अच्छा हुआ मुझे ये सब नहीं पूछना पड़ा। मैं भी नया ब्लॉगर हूँ और बुरा भी नहीं मान सकता। सच कहा आपने कविता शब्दों की अदालत में अपराधियों के कटघरे में खड़े
    एक निर्दोष आदमी का हलफनामा है।
     शब्दों की ऐसी मरम्मत तो कोई कवि ही कर सकता और कवि नया हो तो क्या बात है। अब मैं भी बिना सोचे-समझे कविता लिखूँगा हो सकता है ऐसे में ज़्यादा हिट हो जाए।
    कविता की कुण्डली बाँचने के लिए अति धन्यवाद!
  13. Laxmi N. Gupta
    सुकुल जी,
    मज़ा आगया। मुझे अतुकान्त कविता लिखनी नहीं आती। पुरानी आदत है, अपने आप ही तुक लग जाता है। अब आपने तरीका दिया है, आजमाऊँगा। धन्यवाद। बुरा न मानने की बात से भवानी प्रसाद मिश्र की पंक्तियाँ याद आगईं:
    जी बुरा मानने की इसमें क्या बात
    मैं लिखता ही तो रहता हूँ दिन-रात
    तो तरह तरह के बन जाते हैं गीत
    जी रूठ रूठ कर मन जाते हैं मीत
    जी हाँ हुज़ूर मैं गीत बेचता हूँ
    मैं तरह के गीत बेचता हूँ
  14. जगदीश भाटिया
    हा हा बहुत अच्छे:)
    रवि जी की टिप्पणी और भी शानदार :D
  15. सृजन शिल्पी
    तेजी से लोकप्रिय होती जा रही अतुकांत कविताओं के उपयोगी जुगाड़ बताकर आपने आने वाले दिनों में ऐसी कविताओं की लहलहाती पैदावार के लिए खेत तैयार कर दिया है। मजेदार रहा!
  16. ratna
    भई वाह।
    हमारे भीतर का कवि कुलबुलाने लगा है
    जोश में आकर कुछ बड़बड़ाने लगा है।
  17. अनुराग मिश्र
    अभी एक दो तीन दिन पहले ही “अतुकान्त कविता लिखी थी, पता नहीं थी एसी फजीहत होगी।
  18. सागर चन्द नाहर
    रवि भाइ सा. से वह एक मशीन हमें भी दिलवा दीजियेगा क्या? हमारा भी मन मचल रहा है कविता करने के लिये। :)
    हमने मेल (फीमेल नहीं) किया तो हमें तो मना कर दिया पर आपको मना नहीं कर सकेंगे।
  19. गीतकार
    अब हमें अपनी अस्मिता का पता चल ही गया. अभी तक तो भ्रम में थे कि ये भाव ताव कहां से आते हैं. वैसे हम यहां ग्रोसरी स्टोर से थोक के भाव खरीद कर लाते रहे हैं. अब आपसे सीख लिया है कि अतुकांत कविता कैसे लिखी जाती है: पहली बानगी आपको ही समर्पित:-
    वह
    छत पर
    नीचे
    ठोकता है
    बनारसी
    चौखटे में कीलें
    और हाँ
    प्रतीक्षा में है
    एक अधमरा कुत्ता
    चाँद की:-
    हा हा हा. देखिये अब हमने एक तीर से दो शिकार कर लिये. अतुकांत भी और प्रयोगवादी भी :-)
  20. श्रीश शर्मा 'ई-पंडित'
    वाह वाह बहुत ज्ञानवर्धक लेख कवियों की ब्लॉगजगत और परिचर्चा में बढ़ती आबादी से हम खुद को अल्पसंख्यक महसूस कर रहे थे, लेकिन आपकी इस पोस्ट से प्रेरणा पा कर हम भी अपने सिद्धांत वाक्य – If you can not beat them, join them के आधार पर उनमें शामिल होने की सोच रहे हैं।
    रविजी की मशीन का किराया क्या है, साल का ठेका करवा सकते हैं क्या? कीमत तो बहुत ज्यादा होगी। :)
  21. अनूप भार्गव
    एक और संग्रहणीय लेख …
    बहुत अच्छा लगा । व्यंग्य पर बहुत अच्छी पकड़ है आप की ।
    अपनी और रजनी दोनों की तरफ़ से लिख रहा हूँ
  22. अरुंधती
    वाह अनूप जी, आपने कविता और कवियों की अच्‍छी हजामत बनाई है, इस पोस्‍ट को पढ़ने के बाद कविता लिखने वालो को लिखने और लिख ली है तो ब्‍लॉग पर डालने वालों को सौ बार सोचना होगा.
  23. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि [...]
  24. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] [...]

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