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आन लाइन कविता स्कूल
By फ़ुरसतिया on April 5, 2012
गुरुजी आन लाइन कविता लिखना सिखा रहे हैं।
हर रस की कविता लिखना सिखाते हैं गुरुजी। श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत, शांत रस। सब रसों का पैकेज है गुरुजी का पास। इन मूल रसों के अलावा वे रसों का फ़्यूजन भी सिखाते हैं। रसों का फ़्यूजन मतलब कि एक रस में दूसरे की ब्लेंडिंग करके कविता लिखना। जैसे पालिएस्टर कपड़े में सूती/टेरीकाट का अलग-अलग अनुपात होता है (67:33, 70:30,50:50) वैसे ही वीभत्स श्रृंगार रस, भयानक करुण रस, अद्भुत हास्य रस, भयानक शांत रस, रौद्र श्रृंगार रस, करुण वीर रस और आदि-इत्यादि रस अलग-अलग मात्रा में मिलाकर कविता लिखना सिखाते हैं गुरुजी । आदि-इत्यादि रस वो रस है जो आप इन रसों के तालमेल से बना सकते हैं। आपको पूरी छूटी है कोई भी नया रस सोचने की। आदि-इत्यादि रस को आप विकिपीडिया रस कहना चाहें तो हम एतराज नहीं करेंगे।
आज गुरुजी श्रृंगार रस की कविता लिखना सिखा रहे हैं। गुरुजी का मानना है कि आज की दुनिया में श्रृंगार रस के बिना किसी रस की नैया पास नहीं लगती। श्रृंगार रस गठबंधन सरकार के अनिवार्य घटक की तरह है। किसी भी रस की सरकार श्रृंगार रस के समर्थन के बिना खतरे में पड़ सकती है।
श्रृंगार का मतलब गुरुजी बताते हैं -सजावट/बनावट/दिखावा। जो है उसको खूबसूरत बताकर पेश करना। नाटक श्रृंगार रस की जान है। वीर रस तक बिना दिखावे के नहीं जमता आजकल। वीर रस के कवि को भी अपने चेहरे पर क्रोध का श्रृंगार करना पड़ता है।
हां तो गुरुजी बता रहे हैं कि श्रृंगार रस में आम तौर पर लड़के लोग लड़कियों की खूबसूरती की तारीफ़ करते हुये कविता लिखते हैं। इसमें सिद्ध होने के लिये खूब झूठ बोलना और झांसा देना आना चाहिये। उपमा ऐसी होनी चाहिये कि सीधे सुनने वाला लहालोट हो जाये।
एक छात्र व्यग्र हो रहा था। बोला गुरुजी झांसा देने में हमें कोई एतराज नहीं है। आजकल तो हर विज्ञापन में इसकी विजुअल ट्रेनिंग मिल जाती है। लेकिन आप ये थ्योरी रहन दें। सीधे उदाहरण देकर समझाइये।
गुरुजी बोले- अब मानो आपको किसी लड़की की तारीफ़ करनी है तो यह तो कह नहीं सकते कि सीता तुम राधा की तरह सुन्दर हो। इससे सीता डबल नाराज हो जायेगी। एक तो इसलिये कि राधा उसकी माफ़िक कैसे सुन्दर हो गयी दूसरी इससे यह भी डाउट होता है तुम राधा से भी इस तरह का वार्तालाप करते होगे।
इसलिये फ़्राम द वेरी बिगनिंग कवि लोग श्रृंगार वर्णन में हमेशा सुरक्षित मार्ग अपनाते आये हैं। कभी सुन्दरता की सीधे तारीफ़ नहीं की। घुमा फ़िराकर बात कही। पूरे शरीर को टुकड़ों में बांटकर ऐसा माफ़िक बना दिया जैसे कि चोरी की कार को खोलकर कबाड़ी मार्केट वाले बना देते हैं। फ़िर हर अंग की तुलना इधर-उधर की चीजों से कर दी। आंखे मछली जैसी, कान हिरणी जैसे, चेहरा चांद जैसा, होंठ कमल जैसे, गरदन सुराही दार, ये इस तरह, वो उस तरह। अब सुनने वाला गच्च। लेकिन अगर कोई भला आदमी मछली, हिरणी, चांदनी, कमल, सुराही को जोड़ जाड़कर लाये तो अगला कहेगा -हटाओ यार ये कूड़ा सामने से।
छात्रों की कसमसाहट देखकर गुरुजी ने सीधे बताना शुरु किया। बताया मान लो तुमको किसी कन्या की चेहरे की चमक का बयान करना है तो क्या कहोगे उससे? बताओ , बताओ, शरमाओ मत। कवि होने के लिये शर्म से निजात पाना पहली आवश्यकता होती है।
मैं कहूंगा कि तुम्हारा चेहरा ऐसे चमक रहा है लक्में की क्रीम लगाकर आयी हो! -एक उत्साही छात्र ने कहा।
गुरुजी ने कहा इसमें खतरा है कि वह लक्मे की क्रीम बिल्कुलै पसंद न करती हो। किसी और मेक की लगाती हो तब!
फ़िर आपै बताइये गुरुजी। बच्चे बेताब हो रहे थे।
गुरुजी बोले -पुराने जमाने से चेहरे की हमेशा चांद से तुलना की जाती थी। जैसे वीरता के लिये हम लोग पाकिस्तान को खाक में मिटाने की बात करते हैं वैसे ही चेहरे की सुन्दरता के लिये चांद बेस्ट आइटम है। मुझे लगता है कि अगर चांद न होता तो संसार भर की तमाम सुन्दरियां बिना खूबसूरती की तारीफ़ सुने दुनिया से निकल लेतीं। चांद दुनिया भर की सुन्दरियों के लिये परमानेंट सब्सिडी आइटम है।
वैसे आजकल चेहरे पर चांदनी बिखेरने का चलन है। दैट आलसो यू कैन ट्राई।- गुरुजी ने अंग्रेजी में अपना आत्मविश्वास प्रकट किया।
ये चांदनी किधर मिलेगी गुरुजी ? एक जिज्ञासु छात्र च्युंगम चबाते हुये बोला।
चांदनी तो सारी दुनिया में इफ़रात में मिलती है। वैसे तो हर जगह मिलती है चांदनी लेकिन कवि लोग सबसे ज्यादा छत की चांदनी का इस्तेमाल करते हैं कविता में। अभी जाकर देखो छत पर टहल रही होगी। चांदनी को छत पर टहलने की आदत है।
गुरुजी इधर छत कहां? पांचवे तल्ले के फ़्लैट में रहते हैं अपन। छत पन्द्रहवें माले पर है। वो भी रात को बंद कर देता है चौकीदार ताला जीने में कि कोई वहां जाकर कोई कुछ कर न बैठे।
फ़िर टैरेस की चांदनी से काम चलाओ- गुरुजी ने विकल्प सुझाया!
इधर चांद दिखता किधर है जी। बगल की बिल्डिंग तो इत्ती सटी है कि सिवा चोर के और कुछ उधर से आ नहीं सकता।
फ़िर सड़क की चांदनी पर आओ। गुरुजी ने अंतिम विकल्प बताया।
गुरुजी सड़क की चांदनी को न जाने कित्ती तो भारी गाड़ियां कुचलती रहती हैं। कुचली हुई चांदनी से लड़की के चहरे की चमक की तुलना करेंगे तो भड़क न जायेगी- एक ने मासूमियत से पूछा!
हो सकता है ऐसा हो लेकिन आमतौर पर कोई इतना ध्यान नहीं देता। जहां तुमने कहा चेहरे से चांदनी छिटकने की बात कही वहां सूरज दमकने लगेगा।
सड़क की चांदनी का जिक्र करते हुये गुरुजी उपमाओं को आधुनिक जमाने में खैंच ले गये। बोले- आजकल के लोग जीवन से जुड़ी उपमायें पेश करने में ज्यादा भरोसा करते हैं। सड़क के चिकनेपन की तुलना एक हीरोइन के गाल से चिकनेपन की बात तो आप लोग जानते ही हैं। इसी तरह कुछ आधुनिक लोग हंसने पर गाल पर पड़ जाने वाले गड्ड़े की तुलना सड़क पर भारी वाहनों के चलने से हो जाने वाले गड्ड़े से करते हैं।
इससे तो मोहब्बत का मसला ऊबड़-खाबड़ हो सकता है गुरुजी- एक छात्र ने भविष्य की सोचते हुये कहा।
हां हो सकता है। लेकिन अलग हटकर लिखने वाले कवि इस सब की चिंता नहीं करते। वे लोग मानते हैं कि उपमा नई होनी चाहिये। भले ही ऊट-पटांग हो लेकिन अलग दिखे। इस घराने के लोग सीधी-साधी और प्रचलित उमपाओं से उसी तरह बिदकते हैं जैसे केजरीवालजी से जनप्रतिनिधि।
ये तो आप रोचक बात बताये गुरुजी। कुछ उदाहरण बताइये इन ऊटपटांग उपमाओं के।
अब उदाहरण तो याद नहीं लेकिन कुछ याद आ रहा है सो सुनो:
1. तुम्हारी झील सरीखी आंखों में मैं यादों की नाव खे रहा हूं। नाव में अचानक छेद हो गया है। मैं तैरना भी नहीं जानता। लगता है डूब ही जाऊंगा।
2. मैं तुमको हमेशा याद रखूंगा। विश्व बैंक के कर्जे की किस्त की बेचैनी बढती जायेगी।
3. मुझे पता है कि तुम्हारे पापा मुझको तुमसे उसी तरह छुटकारा दिलाना चाहते
हैं जिस तरह वित्त मंत्री रसोई गैस को सब्सिडी से लेकिन मैं भी तुमसे समाज
में व्याप्त भ्रष्टाचार की तरह जुड़ा रहूंगा।
4. यहां जाड़ा बहुत पड़ रहा है। रजाई बहुत पतली है। काश यह कम से कम तुम्हारे चेहरे पर पाउडर की परत जितनी मोटी होती।
5. तुम्हारे दांत देखकर लग रहा है कि एयरफ़ोर्स के जवान अपना अनुशासन भूलकर टेढ़ी लाइन में खड़े हो गये हों।
इन उपमाओं सुनकर छात्र गण ने तमाम सवाल किये। किसी ने कहा कि यह तो गद्य है कविता कहां? किसी ने कहा कि आप केवल कवियों की कोचिंग कर रहे हैं कवियत्रियों के साथ भेदभाव क्यों। वीर रस/वीभत्स/रौद्र रस वाले छात्र इस बात से नाराज से उनकी क्लास क्यों नहीं ली गयी। हास्य रस वाले छात्रों का कहना था कि जो आपने यह सब पढ़ाया वह सब तो हास्य रस में आता है। यही आपने हास्य रस की क्लास में पढ़ाया था। ऐसा माफ़िक नहीं चलेगा।
गुरुजी ने आनलाइन स्कूल के चपरासी इशारा किया। चपरासी ने घंटा बजाकर क्लास खतम होने की सूचना दी।
गुरुजी भी ने -आज के लिये इतना ही शेष अगली क्लास में कहते हुये अपने छात्रों से विदा ली।
मैं श्रृंगार लिखता था,
रोती थी, तो मेरी
कविता भी रोती थी
मेरे शब्द उसके साथ
नाचते थे, खेलते थे
और बातें करते थे।
वो कितना रोयी थी, जब
मैंने उसे अपनी पहली कविता
सुनाई थी, बोलती थी “तुम मुझसे
कितना प्यार करते हो, बेवकूफ!!”
और मैं सिर्फ़ उसके
आँसू गिनता रहा था।
वो लाल सूट और दूधिया
दुपट्टा, और वो अच्छे से बंधे हुए बाल,
वो आँखें जिनमें मेरा ह्रदय दीखता था,
वो भरे हुए गाल जो ठण्ड में
लाल हो जाते थे, और में उसे
‘टमाटर’ बुलाता था।
वो उसकी उँगलियाँ जो
हर वक्त मेरे बालों को
ही ठीक करती रहती थीं,
उसकी बिंदी के तो हिलने का
मैं इंतज़ार करता था, की कब वो
हल्का सा हिले और मैं बोलूँ
की “रुको! बिंदी ठीक करने दो”।
उसको याद भर करने से,
मुस्कराहट लबों पे अपने आप
आ जाती है,
इस सूखे फूल में वो मुझे दिखती है……….
लोग मुझसे पूछते हैं, की मैं क्यूँ
नहीं लिखता?,
मैं सिर्फ़ इतना कहता हूँ की
मेरी कविता ही नहीं है।।
पंकज उपाध्याय संयोग से आज उनका जन्मदिन भी है
हर रस की कविता लिखना सिखाते हैं गुरुजी। श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत, शांत रस। सब रसों का पैकेज है गुरुजी का पास। इन मूल रसों के अलावा वे रसों का फ़्यूजन भी सिखाते हैं। रसों का फ़्यूजन मतलब कि एक रस में दूसरे की ब्लेंडिंग करके कविता लिखना। जैसे पालिएस्टर कपड़े में सूती/टेरीकाट का अलग-अलग अनुपात होता है (67:33, 70:30,50:50) वैसे ही वीभत्स श्रृंगार रस, भयानक करुण रस, अद्भुत हास्य रस, भयानक शांत रस, रौद्र श्रृंगार रस, करुण वीर रस और आदि-इत्यादि रस अलग-अलग मात्रा में मिलाकर कविता लिखना सिखाते हैं गुरुजी । आदि-इत्यादि रस वो रस है जो आप इन रसों के तालमेल से बना सकते हैं। आपको पूरी छूटी है कोई भी नया रस सोचने की। आदि-इत्यादि रस को आप विकिपीडिया रस कहना चाहें तो हम एतराज नहीं करेंगे।
आज गुरुजी श्रृंगार रस की कविता लिखना सिखा रहे हैं। गुरुजी का मानना है कि आज की दुनिया में श्रृंगार रस के बिना किसी रस की नैया पास नहीं लगती। श्रृंगार रस गठबंधन सरकार के अनिवार्य घटक की तरह है। किसी भी रस की सरकार श्रृंगार रस के समर्थन के बिना खतरे में पड़ सकती है।
श्रृंगार का मतलब गुरुजी बताते हैं -सजावट/बनावट/दिखावा। जो है उसको खूबसूरत बताकर पेश करना। नाटक श्रृंगार रस की जान है। वीर रस तक बिना दिखावे के नहीं जमता आजकल। वीर रस के कवि को भी अपने चेहरे पर क्रोध का श्रृंगार करना पड़ता है।
हां तो गुरुजी बता रहे हैं कि श्रृंगार रस में आम तौर पर लड़के लोग लड़कियों की खूबसूरती की तारीफ़ करते हुये कविता लिखते हैं। इसमें सिद्ध होने के लिये खूब झूठ बोलना और झांसा देना आना चाहिये। उपमा ऐसी होनी चाहिये कि सीधे सुनने वाला लहालोट हो जाये।
एक छात्र व्यग्र हो रहा था। बोला गुरुजी झांसा देने में हमें कोई एतराज नहीं है। आजकल तो हर विज्ञापन में इसकी विजुअल ट्रेनिंग मिल जाती है। लेकिन आप ये थ्योरी रहन दें। सीधे उदाहरण देकर समझाइये।
गुरुजी बोले- अब मानो आपको किसी लड़की की तारीफ़ करनी है तो यह तो कह नहीं सकते कि सीता तुम राधा की तरह सुन्दर हो। इससे सीता डबल नाराज हो जायेगी। एक तो इसलिये कि राधा उसकी माफ़िक कैसे सुन्दर हो गयी दूसरी इससे यह भी डाउट होता है तुम राधा से भी इस तरह का वार्तालाप करते होगे।
इसलिये फ़्राम द वेरी बिगनिंग कवि लोग श्रृंगार वर्णन में हमेशा सुरक्षित मार्ग अपनाते आये हैं। कभी सुन्दरता की सीधे तारीफ़ नहीं की। घुमा फ़िराकर बात कही। पूरे शरीर को टुकड़ों में बांटकर ऐसा माफ़िक बना दिया जैसे कि चोरी की कार को खोलकर कबाड़ी मार्केट वाले बना देते हैं। फ़िर हर अंग की तुलना इधर-उधर की चीजों से कर दी। आंखे मछली जैसी, कान हिरणी जैसे, चेहरा चांद जैसा, होंठ कमल जैसे, गरदन सुराही दार, ये इस तरह, वो उस तरह। अब सुनने वाला गच्च। लेकिन अगर कोई भला आदमी मछली, हिरणी, चांदनी, कमल, सुराही को जोड़ जाड़कर लाये तो अगला कहेगा -हटाओ यार ये कूड़ा सामने से।
छात्रों की कसमसाहट देखकर गुरुजी ने सीधे बताना शुरु किया। बताया मान लो तुमको किसी कन्या की चेहरे की चमक का बयान करना है तो क्या कहोगे उससे? बताओ , बताओ, शरमाओ मत। कवि होने के लिये शर्म से निजात पाना पहली आवश्यकता होती है।
मैं कहूंगा कि तुम्हारा चेहरा ऐसे चमक रहा है लक्में की क्रीम लगाकर आयी हो! -एक उत्साही छात्र ने कहा।
गुरुजी ने कहा इसमें खतरा है कि वह लक्मे की क्रीम बिल्कुलै पसंद न करती हो। किसी और मेक की लगाती हो तब!
फ़िर आपै बताइये गुरुजी। बच्चे बेताब हो रहे थे।
गुरुजी बोले -पुराने जमाने से चेहरे की हमेशा चांद से तुलना की जाती थी। जैसे वीरता के लिये हम लोग पाकिस्तान को खाक में मिटाने की बात करते हैं वैसे ही चेहरे की सुन्दरता के लिये चांद बेस्ट आइटम है। मुझे लगता है कि अगर चांद न होता तो संसार भर की तमाम सुन्दरियां बिना खूबसूरती की तारीफ़ सुने दुनिया से निकल लेतीं। चांद दुनिया भर की सुन्दरियों के लिये परमानेंट सब्सिडी आइटम है।
वैसे आजकल चेहरे पर चांदनी बिखेरने का चलन है। दैट आलसो यू कैन ट्राई।- गुरुजी ने अंग्रेजी में अपना आत्मविश्वास प्रकट किया।
ये चांदनी किधर मिलेगी गुरुजी ? एक जिज्ञासु छात्र च्युंगम चबाते हुये बोला।
चांदनी तो सारी दुनिया में इफ़रात में मिलती है। वैसे तो हर जगह मिलती है चांदनी लेकिन कवि लोग सबसे ज्यादा छत की चांदनी का इस्तेमाल करते हैं कविता में। अभी जाकर देखो छत पर टहल रही होगी। चांदनी को छत पर टहलने की आदत है।
गुरुजी इधर छत कहां? पांचवे तल्ले के फ़्लैट में रहते हैं अपन। छत पन्द्रहवें माले पर है। वो भी रात को बंद कर देता है चौकीदार ताला जीने में कि कोई वहां जाकर कोई कुछ कर न बैठे।
फ़िर टैरेस की चांदनी से काम चलाओ- गुरुजी ने विकल्प सुझाया!
इधर चांद दिखता किधर है जी। बगल की बिल्डिंग तो इत्ती सटी है कि सिवा चोर के और कुछ उधर से आ नहीं सकता।
फ़िर सड़क की चांदनी पर आओ। गुरुजी ने अंतिम विकल्प बताया।
गुरुजी सड़क की चांदनी को न जाने कित्ती तो भारी गाड़ियां कुचलती रहती हैं। कुचली हुई चांदनी से लड़की के चहरे की चमक की तुलना करेंगे तो भड़क न जायेगी- एक ने मासूमियत से पूछा!
हो सकता है ऐसा हो लेकिन आमतौर पर कोई इतना ध्यान नहीं देता। जहां तुमने कहा चेहरे से चांदनी छिटकने की बात कही वहां सूरज दमकने लगेगा।
सड़क की चांदनी का जिक्र करते हुये गुरुजी उपमाओं को आधुनिक जमाने में खैंच ले गये। बोले- आजकल के लोग जीवन से जुड़ी उपमायें पेश करने में ज्यादा भरोसा करते हैं। सड़क के चिकनेपन की तुलना एक हीरोइन के गाल से चिकनेपन की बात तो आप लोग जानते ही हैं। इसी तरह कुछ आधुनिक लोग हंसने पर गाल पर पड़ जाने वाले गड्ड़े की तुलना सड़क पर भारी वाहनों के चलने से हो जाने वाले गड्ड़े से करते हैं।
इससे तो मोहब्बत का मसला ऊबड़-खाबड़ हो सकता है गुरुजी- एक छात्र ने भविष्य की सोचते हुये कहा।
हां हो सकता है। लेकिन अलग हटकर लिखने वाले कवि इस सब की चिंता नहीं करते। वे लोग मानते हैं कि उपमा नई होनी चाहिये। भले ही ऊट-पटांग हो लेकिन अलग दिखे। इस घराने के लोग सीधी-साधी और प्रचलित उमपाओं से उसी तरह बिदकते हैं जैसे केजरीवालजी से जनप्रतिनिधि।
ये तो आप रोचक बात बताये गुरुजी। कुछ उदाहरण बताइये इन ऊटपटांग उपमाओं के।
अब उदाहरण तो याद नहीं लेकिन कुछ याद आ रहा है सो सुनो:
1. तुम्हारी झील सरीखी आंखों में मैं यादों की नाव खे रहा हूं। नाव में अचानक छेद हो गया है। मैं तैरना भी नहीं जानता। लगता है डूब ही जाऊंगा।
2. मैं तुमको हमेशा याद रखूंगा। विश्व बैंक के कर्जे की किस्त की बेचैनी बढती जायेगी।
4. यहां जाड़ा बहुत पड़ रहा है। रजाई बहुत पतली है। काश यह कम से कम तुम्हारे चेहरे पर पाउडर की परत जितनी मोटी होती।
5. तुम्हारे दांत देखकर लग रहा है कि एयरफ़ोर्स के जवान अपना अनुशासन भूलकर टेढ़ी लाइन में खड़े हो गये हों।
इन उपमाओं सुनकर छात्र गण ने तमाम सवाल किये। किसी ने कहा कि यह तो गद्य है कविता कहां? किसी ने कहा कि आप केवल कवियों की कोचिंग कर रहे हैं कवियत्रियों के साथ भेदभाव क्यों। वीर रस/वीभत्स/रौद्र रस वाले छात्र इस बात से नाराज से उनकी क्लास क्यों नहीं ली गयी। हास्य रस वाले छात्रों का कहना था कि जो आपने यह सब पढ़ाया वह सब तो हास्य रस में आता है। यही आपने हास्य रस की क्लास में पढ़ाया था। ऐसा माफ़िक नहीं चलेगा।
गुरुजी ने आनलाइन स्कूल के चपरासी इशारा किया। चपरासी ने घंटा बजाकर क्लास खतम होने की सूचना दी।
गुरुजी भी ने -आज के लिये इतना ही शेष अगली क्लास में कहते हुये अपने छात्रों से विदा ली।
सूचना
चित्र फ़्लिकर से साभार। पोस्ट लिखने के लिये मसाले की प्रेरणा देवांशु की कालजयी पोस्ट से आलू कोई मसाला नहीं होता…. सेमेरी पसंद
जब वो हंसती थी, तोमैं श्रृंगार लिखता था,
रोती थी, तो मेरी
कविता भी रोती थी
मेरे शब्द उसके साथ
नाचते थे, खेलते थे
और बातें करते थे।
वो कितना रोयी थी, जब
मैंने उसे अपनी पहली कविता
सुनाई थी, बोलती थी “तुम मुझसे
कितना प्यार करते हो, बेवकूफ!!”
और मैं सिर्फ़ उसके
आँसू गिनता रहा था।
वो लाल सूट और दूधिया
दुपट्टा, और वो अच्छे से बंधे हुए बाल,
वो आँखें जिनमें मेरा ह्रदय दीखता था,
वो भरे हुए गाल जो ठण्ड में
लाल हो जाते थे, और में उसे
‘टमाटर’ बुलाता था।
वो उसकी उँगलियाँ जो
हर वक्त मेरे बालों को
ही ठीक करती रहती थीं,
उसकी बिंदी के तो हिलने का
मैं इंतज़ार करता था, की कब वो
हल्का सा हिले और मैं बोलूँ
की “रुको! बिंदी ठीक करने दो”।
उसको याद भर करने से,
मुस्कराहट लबों पे अपने आप
आ जाती है,
इस सूखे फूल में वो मुझे दिखती है……….
लोग मुझसे पूछते हैं, की मैं क्यूँ
नहीं लिखता?,
मैं सिर्फ़ इतना कहता हूँ की
मेरी कविता ही नहीं है।।
पंकज उपाध्याय संयोग से आज उनका जन्मदिन भी है
Posted in बस यूं ही | 45 Responses
” वीर रस के कवि को भी अपने चेहरे पर क्रोध का श्रृंगार करना पड़ता है।”इस लाइन की मारक क्षमता पृथ्वी मिसाइल से ज्यादा है|
एक श्रृंगार रस की लाइन हमारी तरफ से :
“तुम्हारी चाल में लचक देख के लगता है कि पहाड़ों पे चलने वाली कोई बस हो”
पंकज बाबू का जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाया गया है फेसबुक पे, उनकी कविता भी आ गयी | बहुत बहुत बधाई पंकज भाई को !!!
वैसे हम तो इसी में खुश हुए पड़े हैं कि हमारी पोस्ट भी सटी हुई है इस पोस्ट में !!!! हुर्राह!!!!
पोस्ट “रसेदार” है , एक दम “लज़ीज़” !!!! टेस्टी !!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..पोस्ट के बदले पोस्ट!!!
पोस्ट से प्रेरणा लिये तो सटा दिये। ई कौनौ अपराध त नहीं है न!
गुड व्यंग!!
गुरुजी, एक प्रश्न है, चान्द पर तो गड्डे है, उसका क्या?
आशीष श्रीवास्तव की हालिया प्रविष्टी..सरल क्वांटम भौतिकी: रेडियो सक्रियता क्यों होती है?
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..प्यार और प्यार !
हास्य-रस विथ श्रृंगार……………..
प्रणाम.
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..नकल क्षेत्रे
पोस्ट तो बहुत उम्दा लिक्खी है शुक्ल सर. पता नहीं कहाँ से होकर गूगल की कृपा से आपका ब्लॉग मिला है. मिला तो गलती से था, लेकिन कुछ गलतियाँ कितनी खूबसूरत होती हैं!! पढने का शौक रख्दां हूँ सर . लिखना ठीक से आता नहीं, सो कोई गलती दिक्खे, तो माफ़ करते जइयो.
कमाल हो गया….
ऐसा स्कूल शायद ही कभी कोई हिंदी विद्वान खोल पाया होगा या कोई भविष्यवाणी करने की सोंच भी पाया होगा आपने तो इतने सारे नए रस इजाद कर डाले जिनके नज़दीक जाने पर ही चक्कर आ रहे हैं !
जय हो गुरुदेव !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..स्वप्न रहस्य -सतीश सक्सेना
इसका जवाब भी कल रात मिल गया [.कि बहुत सी कवियत्रियों को अब कविता लेखन सिखाने की आवश्यकता नहीं रही ..]..
जब एक ब्लोगर कवयित्री जिनके ४०० से अधिक अनुसरणकर्ता हैं की कथित’ बोल्ड कविता ‘पढ़ी.कविता के नाम पर फूहड़ कथ्य जिस पर हर कोई साहित्य की दुहाई देते नहीं थक रहा.
हैरानी हुई कि जिस ब्लॉग जगत में अलबेला खत्री जो सीधा न लिख कर द्विअर्थी कविता लिखते थे की धज्जियां उड़ा दी गयीं थीं वहाँ इन कवयित्री की इतनी तारीफें हो रही हैं वो आज सातवें आसमां पर हैं सब को धन्यवाद देते नहीं थक रहीं .
इनकी कथित कविता सीधे शब्दों में कही जाए तो ‘पोर्न ‘ है या सभ्य तरीके से कहें तो ‘नए विवाहित जोड़े को पहले मिलन की चरणबद्ध शिक्षा का सीधे शब्दों में पूर्ण पाठ है’.
एक मात्र महिला टिप्पणी वहाँ दिखी जी से सहमत हुई..
Indu Puri Goswami -का कहना था –कैसे लिख लेती हो इस तरह??? छिः अकेले में पढते हुए भी मैं सिहर गई हूँ.बिंदास,तेज तर्रार हूँ पर खुद से भी अकेले में ये शब्द नही कह सकती.यदि यह आधुनिक कविता है तो मैं इस तरह की कविता के कत्तई पक्ष में नही.
ndu Puri Goswami का कहना है मनुष्य और पशुओं में यही अंतर है उनके लिए स्थान,समय कुछ नही. यह एक खूबसूरत चीज है.जीवन के लिए जरूरी भी पर….. उसे चौराहे पर तो नही किया जा सकता न.सृष्टि के निमार्ण की क्रिया को यूँ कविता के रूप में बारीकी से वर्णन किये बगैर भी आप भावात्मक ,मानसिक स्तर पर स्त्री पुरुष के एक होने पर जीवन और रिश्तों की मध्र्ता की अनिवार्यता बता सकती थी.
….. ईमानदारी से बताइए क्या इन पंक्तियों को आप अपने बच्चो ,परिजनों को पढकर सुना सकती हैं?
कविता के नाम पर रति क्रीडा का वर्णन पसंद नही आया.लिख दिया आपको.
——-
———————
मेरा अंतिम सवाल -
श्रृंगार रस की कविता की परिभाषा क्या बदल रही है??कोचिंग क्लास में यह भी बताया जाएगा?या फिर काव्य सृजन खतम हो गया है सिर्फ फूहड़पना ही बचा है अब…अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ?
या फिर छपास और सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए इस हद्द तक भी कोई नीचे गिर सकता है ?
वह कविता एक मित्र ने पढ़ाई थी मुझे। पढ़ते ही मेरी प्रतिक्रिया थी- यह तो रति क्रिया का क्वालिटी प्लान/फ़्लोचार्ट है।
नेट पर बहुत कुछ मौजूद है। मुझे अगर कोई चीज पसंद नहीं आती तो न पढ़ना अपन के अधिकार क्षेत्र में है।
कोचिंग क्लास जब आगे चलेगी तब आपके सारे सवाल क्लास में शामिल किये जायेंगे।
वैसे कविता या अन्य कोई भी लेखन के अच्छे कसौटी में से एक यह भी लगती है कि मुझे कि आप उसे दोबारा पढ़ना चाहें/ आपको याद रहे/ किसी मौके पर आप उसको उद्धरत कर सकें।
मेरा कविता सबंधित साहित्य ज्ञान बहुत ही अधिक कमज़ोर है ,हो सकता है मैं गलत हूँ इसलिए मुझे अपने लिखे पर किसी से विवाद नहीं करना .
vijay gaur की हालिया प्रविष्टी..स्या-स्या
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..सम्बोधि के क्षण
“ई
सब नुस्खा तो ठीक है
मगर
इसको
और अगिला किस्त
पढ़ने के बाद
हमहूँ कबिता लिखकर कवि बन सकते हैं! ”
अब देखिये एक लाइन में कही बात को सात लाइन में लिखने से सुन्दर कचिता बन गयी न!
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..सम्बोधि के क्षण
आपकी बेचैनी बड़ती है हमारी बढ़ती है इसीलिए आप बेचैन होकर भी मस्त रहते हैं।:)
बेचैनी बड़ रही थी। आपने उसे और बढ़ा दिया। लेकिन सही करके फ़िर और मस्त हो गये।
आनंद की वर्षा हो रही है …. कक्षा में देर से पहुचना हमारी पुरानी आदत है ….पर यही तो ऑनलाइन क्लास का फायदा है एक बार लगी हुई क्लास का रिविजन होता रहता है :):):d
अगली बार कौन से रस की क्लास है
आशीष श्रीवास्तव
जन्मदिन मुबारक हो उनको ,,,,
चाहत का अम्बार मिले ,,,,,
खुशियाँ समृधि रहे सुखमय ,,,
स्वह्र्दय में अति अनुराग लसे ,,,
मनोकामना पूर्ण हो उनकी ,,,,
चाहत का संसार मिले ,,,
अह्लाद सदा अनुकंपित हो ,,,
नेह स्व प्रेम निछावर को ,
रवि अनुराग भरे ऐसा ,,,
विज्ञान का भाव जगे जैसा ,,,
शशि शीतल भाव भरे निसदिन ,,
मलयागिरि मंद सुगंध बहे ,,
नवजीवन का अहसास रहे ,,
चाहत का अम्बार मिले ,,,,
खुशियाँ समृधि रहे सुखमय ,,,
सतत ही आता रहे,
मधुर डे ,,,
जीवन में नव उत्साह भरे ,,
सद्भाव सदा जागृत होवे ,
नभ मंडल भी गुणगान
करे ,,,
जन्मदिन मुबारक हो उनको ,,,,
चाहत का अम्बार मिले ,,,,
राजकिशोर मिश्र [प्रतापगढ़ ]