आज सुबह जल्दी उठ गए। उठ गए तो सोचा टहलने चला जाए। सोचते तो रोज ही हैं लेकिन जा नहीं पाते। आज चले भी गए।
मेस के बाहर देखा तमाम लोग टहलते दिखे। कोई इधर जा रहा था। कोई उधर। कोई अकेले कोई जोड़े से। कोई तेजी से। कोई खरामा खरामा -सरकती जाये रुख से नकाब आहिस्ता-आहिस्ता वाली स्पीड से।
एक बड़ी होती बच्ची अपनी सहेली की कोहनी से हथेली तक की बांह अपनी बांह में लपेटे उससे बतियाती चली जा रही थी। एक पुरुष एक महिला को स्कूटी चलाना सिखा रहा था।महिला स्कूटी का हैंडल कसकर पकड़े हुए सावधान मुद्रा में स्कूटी चला रही थी। पुरुष पीछे बैठकर उसे निर्देश नुमा देता जा रहा था।
एक घर के बाहर एक सूअर घर के बाहर तार की जाली में मुंह घुसाकर घर में घुसने की फिराक में दिखा। जाली के दूसरी तरफ से एक आदमी ने इंकलाब मुद्रा में अपना हाथ उठाते हुए सूअर को अंदर आने से टोंका।सूअर ने पूँछ हिलाते हुए दूसरी तरफ से घुसने की कोशिश की। लेकिन आदमी ने उधर से भी मना किया। सूअर बेचारा मन मसोस कर दूसरी तरफ चला गया। उसके साथ ही दूसरा सूअर भी था।जब उसने देखा कि उसके साथी को घुसने को नहीं मिला तो उसने उस घर में घुसने की कोशिश ही नहीं की। इस सूअर की पूछ पहले वाले सूअर की तुलना में बड़ी और गोल थी। बड़ी पूंछ वाला सूअर छोटी पूंछ वाले सूअर के मुकाबले आहिस्ते से हिला रहा था पूंछ। सूअर की कमर तक गीले कीचड़ के निशान से लग रहा था कि वह कीचड़ में कमर तक डूब कर आया है कहीं से। दूसरा सूअर कीचड़ पाक था। साफ़ सुथरा। राजनीति में नवप्रवेशी की तरह।
पीछे से एक बच्चा अंकल अंकल बोला तो देखा एक बच्चा अपने बराबर के दूसरे बच्चे को कैरियर पर बिठाए साइकिल चला रहा था। अपने पैरों को साइकिल रोकने के लिए ब्रेक की तरह इस्तेमाल कर रहा था। हमको साइकिल के आगे देखा तो आगे से हटने के लिए अंकल अंकल बोला। हम हट गए। बच्चे की सीधी ऊंचाई साइकिल से कुछ इंच ही अधिक थी।
बायीं तरफ सूरज भाई चहकते हुए दिखे। गोल मटोल लाल टमाटर की तरह खिले हुए। खूबसूरत। खुशनुमा। जीवन्त जिंदादिल। कई जगह से देखा। पेड़ों के बीच। बिल्डिंग के ऊपर। पत्तियों से झांकते। लेकिन जब फोटो लिया तो उनके दो भाग सरीखे हो गए। उनके बीच बादल वैचारिक मतभेद सा घुस गया। कुछ देर पहले चमकता सूरज आप पार्टी की तरह मलीन सा दिखने लगा।
एक आदमी बस स्टॉप पर बैठकर अनुलोम विलोम कर रहा था। अनुलोम विलोम क्रिया साँसों पर सीबीआई कार्यवाही की तरह है। पहले सांस अंदर करती है। कुछ देर कब्जे में रखती है फिर साँस को रिहा कर देती है। क्लीन चिट दे देती है।
स्कूल खुल गया है। बच्चे भागते हुए स्कूल आ रहे हैं। एक बच्ची पीठ पर भारी बस्ते को सेट करने की कोशिश करती है। बस्ता दूसरी तरफ झूल जाता है। बच्ची पीठ उछाल कर दो तीन कोशिश में बस्ता सेट कर पाती है।
पुलिया पर कुछ महिलाएं बैठी बतिया रहीं हैं। आसपास के घरों में रहने वाली इन महिलाओं का ट्विटर खाता नहीं है सो ये यहीं पुलिया पर बैठकर अपने उदगार व्यक्त कर लेती हैं। मैं उनसे फ़ोटो लेने की अनुमति लेता हूँ। वे अनुमति दे देती हैं। इस बीच सब अपने को झट से तैयार करती हैं।फटाफट सर पर पल्लू ठीक करती हैं। कुछ चेहरे पर फोटो खींचते समय वाली गम्भीरता धारण करती हैं। सामने खड़ी होकर बतियाती हुई महिला भी सबके साथ पुलिया के बगल में सीमेंट के खम्भे पर बैठ जाती हैं।
फ़ोटो खींचकर दिखाते हैं तो सब खुश होकर देखती हैं।मैं फ़ोटो के लिए 'अच्छी आई है' कहता हूँ तो एक कहती हैं -"सबके साथ तो फोटो अच्छी आती ही है।" मुझे अपनी एक अनलिखी पोस्ट का शीर्षक याद आता है-'सामूहिकता का सौंदर्य।'
इन बुजुर्ग महिलाओं के घर परिवार वाले आसपास की फैक्ट्रियों में काम करते हैं। वीएफजे,जीआईएफ या जीसीएफ में।सब भोजपुरी में बतिया रही हैं।हमसे भी पूछती हैं तो हम बताते हैं -हम भी वी ऍफ़ जे में नौकर हैं।
उनसे बतियाकर लौटते हुए अचानक मुझे अपनी अम्मा की याद आ जाती है। जब वे थीं तब उनकी याद आने पर फौरन उनको फोन करके बात करते थे। उनके उलाहने सुनते थे। अब उनके न होने की बात सोचकर रोना आ गया।अभी भी आ रहा है। पता नहीं किस दुनिया में होंगी।जहां होंगी वहां से अगर हमको देख पा रहीं होंगी तो हमको रोते देख सर पर हाथ फेरते हुए चुप करवाने की कोशिश कर रही होंगी।हमारे आंसू उनको परेशान न करें यह सोचते हुए चुप होने की कोशिश करते हैं लेकिन हो नहीं पा रहे।
अक्सर हम जिनको बहुत प्यार करते हैं उनसे बहुत सारी बातें कह नहीं पाते। सोचते हैं आराम से कहेंगे। अम्मा के साथ भी मेरा ऐसा ही हुआ। खूब खूब कहना सुनना होने के बावजूद जितना कहा उससे कई गुना रह गया। अब लगता है कि जिससे लगाव है,प्यार है,अपनापा है उससे कहना-सुनना स्थगित नहीं करना चाहिए। कह-सुन लेना चाहिए क्योंकि जैसा रमानाथ जी कहते हैं:
आज आप हैं हम हैं लेकिन
कल कहाँ होंगे कह नहीं सकते
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।
- डॉ. राजीव रावत काश आप रोज टहलने जाएं...और ऐसा अच्छा सा पढ़ने को मिले....आपकी भी सेहत सुधरे और हमारी भी...
- संतोष त्रिवेदी टहलते आप हैं और भुगतना हमें पड़ता है
- Dhirendra Pandey एक आदमी बस स्टॉप पर बैठकर अनुलोम विलोम कर रहा था। अनुलोम विलोम क्रिया साँसों पर सीबीआई कार्यवाही की तरह है। पहले सांस अंदर करती है। कुछ देर कब्जे में रखती है फिर साँस को रिहा कर देती है। क्लीन चिट दे देती है।
- Siddheshwar Singh * अक्सर हम जिनको बहुत प्यार करते हैं उनसे बहुत सारी बातें कह नहीं पाते। "
- ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान' इन बुजुर्ग महिलाओं में अपनी माँ के वात्सल्य की तलाश और माँ की याद ताजा हो जाना मन को भावुकता में भिगो गया।
.... सुन्दर आलेख। - Madhu Arora बहुत सुंदर आलेख अनूपजी, सुप्रभात...
- Neeraj Mishra Aap daily Jaya kariye morning walk par. Mein bhi start karne wala hoon.
- Amit Kumar Srivastava जैसे सब कुछ ब्रेल लिपि में लिखा हो । हम पढ़ते जा रहे और मन सारे लिखे शब्दों को छूता हुआ आगे बढ़ रहा । बात जब अम्मा की आई तो अटक गया वही , आँखों को आचमन करा गया आंसुओं से । आप लिखते नहीं, जीते है ,खुद में हम सबको ।
- Ram Kumar Chaturvedi यह हिन्दुस्तान है जिसके रंग सुबह से ही दिखाई पडने लगते हैं।
- Gautam Kumar आज तो emotionally blackmail करके पूरा पढ़वा ही लिए ।
- Krishna Bihari shaabaashi dene ka mah ho raha hai . bahut achchha likha hai .
- Chandra Prakash Pandey सामाजिक ताने~बाने को बुनती एक अविरल गाथा। पुलिया न जाने कितनी अनकही~अनबूझी पहेलियों को सुलझाती है। सादर।
- Nivedita Srivastava अम्मा की याद आते ही उनके गीत एकदम से याद आ अन्तस को नम कर गए
- Anju Nigam bahut si kahi suni aur ankahi yaad aa gayi aapki is post se..phone me deri hone se ulahne sunati thee ab un ulahno ke liye jindgi bhar tarasna hai..maa ke liye sab ki bhawnaye alag alag nahi hoti
- Kajal Kumar हंयं. बुर्जुआ पुलिया पर कब्जा !!!
- Alok Ranjan bahut sundar ji
- सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी इस बार आपने मुस्कान के साथ आँसू भी रसीद कर दिया।
गजब करते हैं आप भी। - Pooja Singh जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते - Gaurav Srivastava sir , last me aap ne rula diya
- Gaurav Srivastava " अब लगता है कि जिससे लगाव है,प्यार है,अपनापा है उससे कहना-सुनना स्थगित नहीं करना चाहिए। कह-सुन लेना चाहिए "
- Vidhu Lata औरतें औरते-
- Rahtu Lal Sir aap achche lekhak se kahi jyada achhe insaan hai. Regards.
- Anamika Vajpai ये तो सरासर इमोशनल ब्लैकमेलिंग ही थी, सोचा था कि ठहाके लगायेंगे, रुला दिया। "अनुलोम-विलोम" हो गया दिल-दिमाग़ का
- Parveen Chopra (y)आप के मन के भावों पर कोई टिप्पणी करना सूर्य को दिया दिखाने वाली बात है..मैं भी आज टहलने गया था...मैंने भी आकर एक पोस्ट लिखनी थी अपने टहलने के अनुभव पर...पर आलस कर गया. शाम को कोशिश करूंगा।
- Raj Narayan Shukla अन्योक्ति अलंकार युक्त , मार्मिक , भाव प्रधान अतिसुंदर वर्णन।
- Vijay Vyas I like ur minute morning activity & thought but ofcourcce morning walk in park give good tonice to body as well energy
- Ramchandra Verma 'senior women walker association'
- Gopal Sinha अनुलोम विलोम क्रिया साँसों पर सीबीआई कार्यवाही की तरह है। पहले सांस अंदर करती है। कुछ देर कब्जे में रखती है फिर साँस को रिहा कर देती है। क्लीन चिट दे देती है। --- अति सुंदर सर ।
- Sk Maltare सामुहिकता का सोंदर्य, फोटो अच्छी आई
Rakesh Pandey Bahut sundar ....
सुबह की सैर में जब निकलो तो सच में बहुत नज़ारे देखने को मिलते हैं उस समय हम जरूर थोड़ा बहुत मनन कर लेते हैं वर्ना दिन में तो कहाँ खो जाते हैं पता ही नहीं चलता ..गर्मियों में दिन में तो कुछ भी नहीं सूझता लेकिन सुबह मुझे भी बहुत भाती है ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्रण
सही है। सुबह के नजारे अद्भुत होते हैं।
Deleteधन्यवाद! :)
ह्रदय स्पर्शी चित्र के साथ जिवंत प्रस्तुति...!
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