आज चाय की नियमित दूकान बन्द मिली। दूसरी दुकान से लाये चाय। वहां जलेबी छन रहीं थी।पोहा भी तैयार था। ’ऊँ भूर्भुव: स्व: ’ का जाप रेडियो पर चल रहा था।
जीसीएफ वाले भाई मिले। बताया कि कल भी उनकी फैक्ट्री खुली थी। 1 मई के बदले। हमने कहा-अच्छा! इस पर बोले-"हमारा जीएम ऐसा ही है।किसी की सुनता नहीं।"
यह सुनकर मुझे लगा कि आजकल निर्णय लेने वाले की मरन है। कोई भी निर्णय ले उसकी आलोचना का कोई न कोई पहलू खोज ही लिया जायेगा। एक मई की छुट्टी के बदले किसी इतवार को ओवरटाइम पर काम कर्मचारियों के हित के लिये ही किया जाता है। अब वह इतवार छुट्टी के पहले वाला हो सकता है छुट्टी के बाद वाला। महाप्रबंधक अगर छुट्टी के बदले ओवरटाइम न चलाये तो आफ़त, छुट्टी के पहले इतवार को चलाये तो शिकायत और छुट्टी के बाद वाले इतवार को काम कराये तब भी कोई न कोई कुछ न कुछ कहेगा ही।
फिर पुराने जीएम की बात चली। बोले यादव जी बढ़िया जीएम थे। न्यायप्रिय थे। फैक्ट्री बढ़िया चलाई। सुधार दिया। सबसे काम करा लिया।पहले लोग मनमर्जी करते थे। गर्मी तक में 10 बजे आते थे। लेकिन यादव जी ने सबको टाइट कर दिया। सब खुर्राट लोगों को दो-दो,तीन-तीन चार्जशीट थमा दी। वो उसी के जबाब देने में लगे रहे। किसी को बदमाशी की फुर्सत नहीं।
यादव जी मतलब एस पी यादव जी हमारे भी जीएम रहे।कानपुर एस ए ऍफ़ में। वह फैक्ट्री बहुत गरम फैक्ट्री है। कर्मचारी अपने उचित और परम्परा से चले अधिकारों के प्रति बहुत जागरूक। छोटी छोटी बात पर आये दिन बवाल। घेराव। यादव जी ने बहुत मेहनत की वहां।
यादव जी प्रतिदिन चार पांच कर्मचारियों को अपने दफ्तर में दोपहर के समय बुलाते थे। ये किसी भी सेक्सन के लोग हो सकते थे। उनसे उनके घर, परिवार और फैक्ट्री की किसी परेशानी के बारे में पूछते थे।यथासम्भव हल करने का प्रयास करते थे। सुझाव देते थे। इससे यह हुआ कि फैक्ट्री के तमाम कर्मचारी उनको अपना हितचिंतक मानने लगे।
उत्तर प्रदेश सरकार में अधिकारी रहे डॉ हरदेव सिंह की किताब -"क्यों बेईमान हो जाती है नौकरशाही" के बड़े प्रशंसक हैं। एक बार जिक्र किया तो मैंने वह किताब फ़ील्डगन फैक्ट्री की लाइब्रेरी से मंगाई। उस किताब के लगभग हर पन्ने पर यादव जी ने कुछ न कुछ अंडरलाइन कर रखा था। इस किताब में हरदेव सिंह जी ने एक अधिकारी के काम के दौरान आने वाली परेशानियों और उनसे वे कैसे निपटे इसका जिक्र किया।
सिविल सेवा के अधिकारियों के काम और मनोबल में गिरावट आने का कारण बताते हुए डॉ हरदेव सिंह ने लिखा है : "अधिकारी समय के साथ सुविधाओं के आदी हो जाते हैं। इसके बाद उनमें सही बात के लिए अड़ने की क्षमता कम होती जाती है। फिर वे कमजोर और बेईमान भी हो जाते हैं।"
एस ए ऍफ़ से यादव जी का तबादला जीसीऍफ़ जबलपुर हुआ। जीसीएफ की हालात उन दिनों बहुत खराब थी। यादव जी की प्रतिक्रिया थी-"आई एम गोइंग फ्रॉम फ्राइंग फैन टु फायर।"
जीसीऍफ़ में बहुत परेशानियां रहीं साहब को। यूनियन के नेताओं ने उन पर गेट मीटिंग में व्यक्तिगत हमले किये। अनर्गल आरोप लगाए। लेकिन यादव जी ने आम कामगार और अपने अधिकारियों के सहयोग से सबको सीधा कर दिया। बड़े बड़े खुर्राट नेता मशीन पर खड़े होकर काम करने लगे।
संयोग से मैं जो काम आज वीएफजे में देखता हूँ वह पहले यादव जी देखते थे। फाइलों पर उनकी टिप्पणियाँ देखते हैं अक्सर। 30 से 45 डिग्री की चढ़ाई में साफ़ राइटिंग में लिखी टिप्पणियॉ देखकर पता चलता है कि कठिन परिस्थितियों में निर्णय लेने में वे हिचकते नहीं थे। वे कहते भी थे-"वी आर बीइंग पेड फॉर टेकिंग डिसीजन्स"। हम निर्णय लेने से बचेंगे तो हमारे होने का फायदा क्या?
हमारा एक लेख "हमें पेंशन लेनी है" फैक्ट्री पत्रिका में पढ़ा तो उन्होंने रात 10 बजे मुझे फोन किया और बोले-"अनूप तुम्हारा लेख पढ़कर मुझे रहा नहीं गया तुमको फोन किये बिना। तुमने तो मेरे मन की बात लिखी है।"
कुछ सरकारी अड़चनों के चलते यादव जी को महाप्रबंधक के बाद मेंबर का प्रमोशन नहीं मिल पाया। इससे वो स्वाभाविक तौर पर दुखी थे। उन्होंने एक पत्र में इसका जिक्र भी किया। मैंने उनसे कहा-आपको प्रमोशन नहीं मिला यह अफसोस की बात है।लेकिन इसी बहाने आप जीसीएफ में बने रहे और आपको यहां महाप्रबन्धक बने रहने का मौका मिला। आप मेंबर बन गए होते तो शायद इतने काम यहां न कर पाते जितने आप यहां महाप्रबंधक रहते हुए कर सके। मेंबर को कौन याद रखता है। जीसीएफ के लोग आपको लम्बे समय तक याद रखेंगे।
आज जीसीएफ के एक कर्मचारी से यादव साहब की तारीफ़ सुनकर यह सब लिखते हुए यही लगता है कि अगर आप अच्छा काम करते हैं तो लोग आपको लम्बे समय तक याद रखते हैं।
जीसीएफ वाले भाई मिले। बताया कि कल भी उनकी फैक्ट्री खुली थी। 1 मई के बदले। हमने कहा-अच्छा! इस पर बोले-"हमारा जीएम ऐसा ही है।किसी की सुनता नहीं।"
यह सुनकर मुझे लगा कि आजकल निर्णय लेने वाले की मरन है। कोई भी निर्णय ले उसकी आलोचना का कोई न कोई पहलू खोज ही लिया जायेगा। एक मई की छुट्टी के बदले किसी इतवार को ओवरटाइम पर काम कर्मचारियों के हित के लिये ही किया जाता है। अब वह इतवार छुट्टी के पहले वाला हो सकता है छुट्टी के बाद वाला। महाप्रबंधक अगर छुट्टी के बदले ओवरटाइम न चलाये तो आफ़त, छुट्टी के पहले इतवार को चलाये तो शिकायत और छुट्टी के बाद वाले इतवार को काम कराये तब भी कोई न कोई कुछ न कुछ कहेगा ही।
फिर पुराने जीएम की बात चली। बोले यादव जी बढ़िया जीएम थे। न्यायप्रिय थे। फैक्ट्री बढ़िया चलाई। सुधार दिया। सबसे काम करा लिया।पहले लोग मनमर्जी करते थे। गर्मी तक में 10 बजे आते थे। लेकिन यादव जी ने सबको टाइट कर दिया। सब खुर्राट लोगों को दो-दो,तीन-तीन चार्जशीट थमा दी। वो उसी के जबाब देने में लगे रहे। किसी को बदमाशी की फुर्सत नहीं।
यादव जी मतलब एस पी यादव जी हमारे भी जीएम रहे।कानपुर एस ए ऍफ़ में। वह फैक्ट्री बहुत गरम फैक्ट्री है। कर्मचारी अपने उचित और परम्परा से चले अधिकारों के प्रति बहुत जागरूक। छोटी छोटी बात पर आये दिन बवाल। घेराव। यादव जी ने बहुत मेहनत की वहां।
यादव जी प्रतिदिन चार पांच कर्मचारियों को अपने दफ्तर में दोपहर के समय बुलाते थे। ये किसी भी सेक्सन के लोग हो सकते थे। उनसे उनके घर, परिवार और फैक्ट्री की किसी परेशानी के बारे में पूछते थे।यथासम्भव हल करने का प्रयास करते थे। सुझाव देते थे। इससे यह हुआ कि फैक्ट्री के तमाम कर्मचारी उनको अपना हितचिंतक मानने लगे।
उत्तर प्रदेश सरकार में अधिकारी रहे डॉ हरदेव सिंह की किताब -"क्यों बेईमान हो जाती है नौकरशाही" के बड़े प्रशंसक हैं। एक बार जिक्र किया तो मैंने वह किताब फ़ील्डगन फैक्ट्री की लाइब्रेरी से मंगाई। उस किताब के लगभग हर पन्ने पर यादव जी ने कुछ न कुछ अंडरलाइन कर रखा था। इस किताब में हरदेव सिंह जी ने एक अधिकारी के काम के दौरान आने वाली परेशानियों और उनसे वे कैसे निपटे इसका जिक्र किया।
सिविल सेवा के अधिकारियों के काम और मनोबल में गिरावट आने का कारण बताते हुए डॉ हरदेव सिंह ने लिखा है : "अधिकारी समय के साथ सुविधाओं के आदी हो जाते हैं। इसके बाद उनमें सही बात के लिए अड़ने की क्षमता कम होती जाती है। फिर वे कमजोर और बेईमान भी हो जाते हैं।"
एस ए ऍफ़ से यादव जी का तबादला जीसीऍफ़ जबलपुर हुआ। जीसीएफ की हालात उन दिनों बहुत खराब थी। यादव जी की प्रतिक्रिया थी-"आई एम गोइंग फ्रॉम फ्राइंग फैन टु फायर।"
जीसीऍफ़ में बहुत परेशानियां रहीं साहब को। यूनियन के नेताओं ने उन पर गेट मीटिंग में व्यक्तिगत हमले किये। अनर्गल आरोप लगाए। लेकिन यादव जी ने आम कामगार और अपने अधिकारियों के सहयोग से सबको सीधा कर दिया। बड़े बड़े खुर्राट नेता मशीन पर खड़े होकर काम करने लगे।
संयोग से मैं जो काम आज वीएफजे में देखता हूँ वह पहले यादव जी देखते थे। फाइलों पर उनकी टिप्पणियाँ देखते हैं अक्सर। 30 से 45 डिग्री की चढ़ाई में साफ़ राइटिंग में लिखी टिप्पणियॉ देखकर पता चलता है कि कठिन परिस्थितियों में निर्णय लेने में वे हिचकते नहीं थे। वे कहते भी थे-"वी आर बीइंग पेड फॉर टेकिंग डिसीजन्स"। हम निर्णय लेने से बचेंगे तो हमारे होने का फायदा क्या?
हमारा एक लेख "हमें पेंशन लेनी है" फैक्ट्री पत्रिका में पढ़ा तो उन्होंने रात 10 बजे मुझे फोन किया और बोले-"अनूप तुम्हारा लेख पढ़कर मुझे रहा नहीं गया तुमको फोन किये बिना। तुमने तो मेरे मन की बात लिखी है।"
कुछ सरकारी अड़चनों के चलते यादव जी को महाप्रबंधक के बाद मेंबर का प्रमोशन नहीं मिल पाया। इससे वो स्वाभाविक तौर पर दुखी थे। उन्होंने एक पत्र में इसका जिक्र भी किया। मैंने उनसे कहा-आपको प्रमोशन नहीं मिला यह अफसोस की बात है।लेकिन इसी बहाने आप जीसीएफ में बने रहे और आपको यहां महाप्रबन्धक बने रहने का मौका मिला। आप मेंबर बन गए होते तो शायद इतने काम यहां न कर पाते जितने आप यहां महाप्रबंधक रहते हुए कर सके। मेंबर को कौन याद रखता है। जीसीएफ के लोग आपको लम्बे समय तक याद रखेंगे।
आज जीसीएफ के एक कर्मचारी से यादव साहब की तारीफ़ सुनकर यह सब लिखते हुए यही लगता है कि अगर आप अच्छा काम करते हैं तो लोग आपको लम्बे समय तक याद रखते हैं।
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