Sunday, April 26, 2015

नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है

 
 
आज इतवार को साइकिल से डुमना एयरपोर्ट की तरफ गए। फैक्ट्री इस्टेट से बाहर निकलते ही एक मकान दिखा जिसकी छत सड़क की उंचाई के बराबर है। छत पर सोते हुए लोग साइकिल से दिखे। रांझी होते हुए निकले तो देखा एक आदमी साईकिल पर दो बल्ली लादे लिए जा रहे था।आगे सीओडी में घुसते ही भक्क लाल गुलमोहर का पेड़ दिखा।आसमान में परचम की तरह लाल फूल का झंडा फहराते।

सड़क पर लोग कम ही थे।'हम दो हमारे दो' योजना का पालन करने वाला एक परिवार टहलता दिखा। एक बच्चे के साथ पति आगे आगे। दूसरे बच्चे के साथ पत्नी अनुगामिनी मुद्रा में। बच्चों के टहलते हुए मियां बीबी बराबर नहीं रह पाते।

सुनसान सड़क पर बनी सफ़ेद पेंट की लाइनें बता रहीं थी कि समान्तर रेखाएं अनंत में मिलती हैं। साइकिल
चलाते हुए पता नहीं क्यों यह गाना दोहराते जा रहे रहे थे बार बार:
आग लगे हमरी झोपड़िया में
 हम गायें मल्हार।


आगे आईआईआईटी डुमना तक गए। सोचा इंजीनियरिंग कालेज के बाहर किसी चाय की दूकान पर बैठकर चाय पिएंगे। लेकिन पता चला कि वहां कोई चाय की दूकान ही नहीं बाहर। बच्चों को सब मेस में ही मिलता है। बाहर आने की मनाही है। हमें ताज्जुब हुआ कि ये इंजिनियरिंग कालेज के छात्र हुए या किंडर गार्डन के बाल गोपाल।

अपना हॉस्टल याद आया जहां गेट खुला होने पर भी लड़के दीवार फांदकर चाय की दूकान पर पहुंचते थे। यहां बच्चों को बाहर खाने पीने की मनाही। सिक्योरिटी वाले दरबान ईगल सिक्योरिटी सर्विस के थे। बताया पैसा पूरा मिलता है मतलब 328 रुपया प्रतिदिन।इसके पहले दूसरी सिक्योरिटी सर्विस थी।वह पूरा पैसा नहीं देती थी। उसको हटा दिया मैनेजमेंट ने।

दरबान पास के ही गाँव का था। बता रहा था कि यहां शाम को शहर से तमाम लोग कार में आते हैं।कार में बैठकर दारू पीते हैं। मस्ती करते हैं।हल्ला गुल्ला करते हैं। बदनाम हमारे गाँव का नाम होता है। इसीलिये जब ज्यादा हल्ला काटते हैं लोग तो हम भगा देते हैं उनको। कालेज के लड़कों को रात आठ के बाद बाहर निकलने की मनाही है।


लौटते में डुमना अभ्यारण्य होते हुए आये।घुसते ही दरबान मिला।बताया सन 72 के फ़ौज से रिटायर हैं। बांग्लादेश की लड़ाई लड़ी है। अब पेंशन मिलती है।सिक्योरिटी सर्विस वाला उसके ही गाँव का है।कामर्शियल सिक्योरिटी सर्विस का बिल्ला था कन्धे पर उसके।

अन्दर झील के पास कुछ देर बैठे हम। सीमेंट की साफ़ बेंच देखकर लगा कि लोग आते हैं यहां वरना धूल जमी होती। झील के पानी की लहरें तट से टकरा रहीं थीं। एक नाव पानी से दूर थोडा ऊपर रखी थी। पानी में होती तो दुष्यंत कुमार शेर पढ़ देते:
नाव जर्जर ही सही
लहरों से टकराती तो है।



हम लोगों के अलावा कुल जमा चार युवा और दिखे वहां। वे फोटोग्राफी करने आये थे।एक बच्ची एक सूखे पत्ते को आसमान की तरफ करके फोटो खींच रही थी। एक बच्चे ने हमारा साइकिल चलाते हुए फोटो खींचा। हमने भी बदले में उसका कैमरा सहित फ़ोटो खींच लिया। 90000 हजार का कैनन का कैमरा एकदम छोटी तोप सरीखा लगता है। इसीलिये फोटोग्राफी को शूटिंग कहते हैं शायद।

इंजिनियरिंग कालेज से इसी साल आईटी की पढ़ाई पूरी करके निकले Shubham को फोटोग्राफी के साथ थियेटर का भी शौक है। विवेचना रँगमण्डल से जुड़े हैं।एक्टिंग और निर्देशन करते हैं।

बालक के बड़े बड़े बाल देखकर हमने उनकी तारीफ की तो बताया कि "आषाढ़ का एक दिन" नाटक में विलोम का रोल करना है। उसी के हिसाब से बाल बढ़ा रहे हैं।

कैफेटेरिया के कैफे में चाय पी। ब्रेड खायी। 15 रूपये की चाय और 30 रूपये की दो ब्रेड। इतने में सात चाय पी लेते व्हीकल मोड़ पर।


जंगल में कुछ पेड़ो के परिचय भी लिखे थे।एक पेड़ टुइँया सा था लेकिन हरा भरा ऐंठता ऐसा दिखा मानो बहुमत की सरकार का मुखिया हो। पता चला कि इसकी जड़े गहरी होती हैं। इसी से वह जमीन से रस खींचकर हरा भरा बना रहता है। मतलब साफ़ कि हरे भरे बने रहने के लिए जमीन से गहरे जुड़ाव बने रहने चाहिए।

बाहर निकल कर सड़क पर देखा कि एक बच्चा साइकिल पर दो डब्बों में पानी लादे लिए चला जा रहा था। साइकिल की गद्दी लगता है उचक उचककर देख रही थी कि घर अभी कितना दूर है।

आगे सड़क के किनारे की बंजर जमीन पर बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे।लकड़ी के स्टंप। रबर की गेंद।बैटिंग करता बच्चा पैन्ट घुटनों तक चढ़ाये था।यह उसका बैटिंग पैड था। दूसरी छोर पर बॉलर पूरा फास्ट बॉलर की तरफ बड़ा रनअप लेकर गेंद फेंक रहा था। कुछ बच्चे पेड़ पर चढे मैच का लुत्फ़ उठा रहे थे।बाकी के दर्शक जिनमें हम भी शामिल थे सड़क स्टेडियम से मैच के मजे ले रहे थे। लग रहा था लगान फ़िल्म दोहराई जा रही थी।

लौटते समय रास्ता आसान लगा क्योंकि उतार था। स्थितिज ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में बदलते देखते हुए साईकिल चलाना खुशनुमा अनुभव होता है।

आगे सड़क पर फल बिक रहे थे। एक पपीता और चार केले 40 रूपये के लिए। अभी वही खाते हुए पोस्ट लिख रहे हैं। बताइये कैसी लगी?
 
 

No comments:

Post a Comment