
हर शहर में घुसते ही जो सबसे पहला विज्ञापन दीखता है वह शीघ्रपतन और नामर्दी का शर्तिया इलाज का होता है। लगता है कि शहर में कोई आ रहा है या शहर से कोई जा रहा है तो बस नामर्दी के इलाज के लिए। देश की सबसे बड़ी समस्या यही है।मजे की बात इस समस्या के बावजूद हमारी आबादी इतनी बढ़ गयी। मर्दाना कमजोरी न होती तो आबादी का क्या हाल होता।
कानपुर से सही समय पर चली गाड़ी 40 मिनट लेट हो गयी। इसका आधा भी कानपुर में लेट हो जाती तो उन भाई जी के किसी रिस्तेदार की गाडी न छूटती जो दस मिनट की दूरी पर थे और भाई जी टी टी ई से गाडी रुकवाने का अनुरोध कर रहे थे यह बताते हुए कि पहले पता होता तो स्टेशन मास्टर या गार्ड से कहकर रुकवा लेते।
कटनी चाय पीने उतरे तो देखा तमाम महिलाएं, बच्चियां प्लेटफ़ार्म पर किसी गाड़ी के इंतजार में बैठी थीं। पूछा तो पता चला कि इटारसी की गाड़ी के इंटजार में हैं। कटनी से इटारसी धान की रोपाई के लिए जा रहीं हैं सब। इटारसी में सिग्नल जल जाने के चलते कई गाड़ियां बहुत दिन से निरस्त हैं।
चाय वाले से पूछा तो उसने बताया कि अभी कुछ देर पहले तो एक गाड़ी इटारसी की निकल गयी। हमने कहा- बता देते इनको। वो बोला-कोई पूछे तब तो बताएं।
हमें लगा जिस देश का आदमी प्लेटफार्म पर बैठा हुआ प्लेटफार्म से गुजरती, सामने दिखती ट्रेन तक पहचानकर उसमें बैठ नहीं पाता उस देश के लोग जटिल विकास योजनाओं के तामझाम को पहचानकर कैसे उनसे लाभ उठा पाएंगे। 12 रूपये साल जमा करने पर कोई बीमा होता है यह विज्ञापन टीवी पर रोज देखता हूँ लेकिन जिस किसी से भी पूछता हूँ उसको इसबारे में कुछ पता नहीं होता।
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प्रभात खबर |
बहरहाल चायेवले ने बताया कि इटारसी की अगली ट्रेन साढ़े आठ बजे है। उन महिलाओं को यह बताकर कि चाय वाले से गाड़ी के बारे में पूछती रहना हम बैठ लिए गाड़ी में।
फोटो दुबारा देखता हूँ महिलाओं और बच्चियों की। शायद किसी के पास मोबाइल नहीं है। पता नहीं बच्चियों के पिताओं ने में बच्चियों के साथ अपनी फोटो खींचकर 'सेल्फ़ी विद डॉटर' हैशटैग के साथ अपनी फोटो अपलोड की या नहीं।
पक्का नहीं की होगी। ये बच्चियां कटनी से इटारसी किसी के खेत में धान रोपने जा रही हैं। इनकी पिताओं के साथ सेल्फ़ी नहीं बनती। सेल्फ़ी उन बच्चों की बनती है जो अपने घरों से बंगलौर, गुड़गांव, हैदराबाद किसी साफ्टवेयर, मैनेजमेंट कम्पनी में 'डाटा रोपने' जाते हैं। जिसकी फसल मल्टीनेशनल कम्पनियां काटती हैं।
सूरज भाई दिख नहीं रहे। लगता है जबलपुर में हमारे इन्तजार में किरणों का गुलदस्ता लिए खड़े होंगे- किरण पाँवड़े बिछाये। हर पेड़ पत्ती पर उजाले की झालर लटका दिए होंगे। कितना कहते हैं कि यह सब तामझाम, औपचारिकता मत किया करो। अच्छा नहीं लगता। लेकिन वो मानते ही नहीं। अब ज्यादा कुछ कहा भी नहीं जा सकता न सूरज भाई को। उनसे ज्यादा तो किरणों का बवाल है। कुछ कहो तो खिलखिलाते हुए डपट देती हैं-'अंकल, आप चुप रहें। हमको जो करना है करेंगे। करने दीजिये।' सच ही तो कहा गया है- इंसान अपनों से ही हारता है।
ओह मजाक मजाक में जबलपुर पहुंच गए। चलें रेलवे प्लेटफार्म पर संस्कार धानी में स्वागत वाला बोर्ड इन्तजार कर रहा होगा हमारा। देर करेंगे तो बुरा मान कर गरियाने लगेगा।
आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो।
ये बच्चियां कटनी से इटारसी किसी के खेत में धान रोपने जा रही हैं। इनकी पिताओं के साथ सेल्फ़ी नहीं बनती। सेल्फ़ी उन बच्चों की बनती है जो अपने घरों से बंगलौर, गुड़गांव, हैदराबाद किसी साफ्टवेयर, मैनेजमेंट कम्पनी में 'डाटा रोपने' जाते हैं। जिसकी फसल मल्टीनेशनल कम्पनियां काटती हैं।
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