सूरज भाई पूरी झील पर खिले हुए हैं |
सड़क पर बिन्देश्वरी प्रसाद मिल गये। पुलिया की तरफ़ चले जा रहे थे। हमसे पूछे मिश्र जी मिले क्या उधर? हम बोले -नहीं। शायद आकर चले गये हों। हमने पूछा- आइये चाय पिलायें। वे बोले-’हम चाय नहीं पीते जबसे डायबिटीज हुई है। पीते भी हैं तो घर में पीते हैं, बिना शक्कर की।’
चाय की दुकान पर गाना बज रहा है-
’रामपुर का वासी हूं मैं लक्ष्मण मेरा नाम
सीधी-साधी, बोली मेरी सीधा-साधा काम’
सड़क पर एक मोटर साइकिल वाला हाथ छोड़कर मफ़लर बांध रहा था। हैंडल सीधा बना रहा। आटो पायलट मुद्रा में चलती रही फटफटिया। बीच में कहीं गढ्ढा पड़ जाता तो प्लास्टर आफ़ पेरिस की खपत का इंतजाम हो जाता।
गाना बजने लगा:
’कौन है जो सपनों में आया
कौन है जो दिल में समाया
लो झुक गया आसमां भी
इश्क मेरा रंग लाया।’
अख़बार बांचता हुआ आम आदमी |
चाय की दुकान पर खड़े-खड़े देखा एक मोपेड पर कई बड़े थैलों में एक सवार पान मसाला लादे चला जा रहा था। दुकानों पर सप्लाई करेगा। लोग पुडिया फाड़कर मुंह ऊपर करके डाल लेंगे और चल देंगे। उनमें से न जाने कितनों को कैंसर होगा। पान मसाले वाले अमीर होते जायेंगे। खाने वाले लुटते, मरते रहेंगे। अभी कानपुर में पता चला एक पान मसाले वाले के यहां इनकम टैक्स का छापा पड़ा। पचास करोड़ पेनाल्टी देने को राजी हुये। इनकम टैक्स वाले और मांग निकाल रहे हैं। हो जायेगा समझौता।
इस बीच दोनों में परिचय निकल रहे होंगे:
’तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई
यूं हीं नहीं दिल लुभाता कोई’
एक बच्ची मोपेड पर एक छोटे बच्चे और एक बुजुर्ग को बैठाये चली जा रही थी। आगे एक बड़ा थैला भी रखे थी। जिम्मेदार है बच्ची। कल ’दैनिक भाष्कर’ में पढी एक खबर याद आ गयी। एक बच्ची ने नौ साल की उमर से अखबार बांटने का काम किया। पढाई साथ-साथ। तीन स्कूलों ने देरी से आने के कारण उसको स्कूल से निकाल दिया। चौथे ने उसको देरी से आने की अनुमति दी। अब वह 23 की हो गयी है। पढाई पूरी करके काम कर रही है और अपने जैसी स्थिति वाले लोगों को सहायता और सहयोग करती है।
झील की तरफ़ जाते हुये देखा सूरज भाई आसमान में छाये हुये थे। झील के पानी में सूरज भाई पूरे कबीले के साथ नहा रहे थे। पूरा तालाब उजला-उजला, खिला-खिला सा दिख रहा था। एक बच्चा किनारे उकडू बैठे मोबाइल पर कुछ खुट-खुट कर रहा था।
लौटते में देखा कि एक आदमी गुमटी के पास बैठा अखबार पढ रहा था। अखबार में विजय माल्या बयान पढ़कर सोच रहा होगा कि ये है दबंग आदमी। डंके की चोट पर कह रहा है-'अभी भारत वापस नहीँ आऊंगा, अभी माहौल मेरे खिलाफ है।'
जैसे भी हैं, हम सुंदर हैं |
लौटकर अखबार में सांवली महिलाओं द्वारा शुरु किया गये ’अनफ़ेयर लवली अभियान’ के बारे में खबर पहले पेज पर देखी। खूबसूरती पर गोरे लोगों के एकछत्र कब्जे के खिलाफ़ अभियान है यह अभियान। वीरेन्द्र आस्तिक की कविता याद आ गयी:
हम न हिमालय की ऊंचाई,
नहीं मील के हम पत्थर हैं
अपनी छाया के बाढे. हम,
जैसे भी हैं हम सुंदर हैं
हम तो एक किनारे भर हैं
सागर पास चला आता है.
हम जमीन पर ही रहते हैं
अंबर पास चला आता है.
अम्बर और सागर तो नहीं आये अभी तक लेकिन शायद कविता पढकर सूरज भाई धड़धडाते हुये कमरे में धंस आये। साथ बैठकर चाय पी रहे हैं हमारे साथ। आप भी आइये पीना हो तो। https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10207531556660503?pnref=story
बहुत सुन्दर बतकही ...
ReplyDeleteधन्यवाद !
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