Friday, September 12, 2025

नेपाल एक ईमानदार समाज के भ्रष्ट राजनेता


काठमांडू के बुद्ध स्तूप पर अपने बच्चे के साथ चाय बेचती रेशमा 


 पिछले दिनों युवाओं के आंदोलन के चलते वहाँ की सरकार के सभी मंत्रियों ने इस्तीफे दे दिया। आंदोलनकारियों ने कई मंत्रियों को मारा-पीटा। संसद जला दी। युवाओं के इस आंदोलन के पीछे वहाँ बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और सरकार में शामिल लोगों और उनके परिवारी जन की विलासिता पूर्ण जिंदगी के चलते जनता में फैला आक्रोश मुख्य कारण माना जा रहा है। कई सोशल प्लेटफार्म पर सरकार द्वारा बैन लगाया जाना इस आंदोलन का ट्रिगर पॉइंट बना।

नेपाल के आम आदमी की छवि एक मेहनती, ईमानदार और कर्मठ इंसान की होती है। अनेक कहानियाँ नेपालियों के इन गुणों को दर्शाते हुए लिखी गई हैं। ऐसे समाज के सत्ता पदों पर बैठे लोग भ्रष्टाचार में इस कदर डूब जायें कि उनकी जनता उनको दौड़ा-दौड़ा कर पीटे इससे पता चलता है कि सत्ता का चरित्र कैसा होता है।
नेपाल के होटल में तैनात दरबान 


नेपाल की घटनाओं से मुझे नवंबर , 2022 में एक हफ़्ते की नेपाल यात्रा के अनुभव याद आए। नेपाल में ख़ुद का कोई उत्पादन सिस्टम नहीं है। अधिकतम सामान विदेशों से आयात किया जाता है। एक दरबान से हुई बातचीत के अनुसार :
"होटल के बाहर दरबान मुस्तैद था। बातचीत से पता चला कि काफी दिन सऊदी अरब रह कर आये हैं। तबियत खराब हो गयी तो अब वापस आ गए। अब नहीं जाएंगे। वहाँ पैसा बहुत है लेकिन रहने की तकलीफ भी काफी।
नेपाल में मंहगाई की बात चली तो उन्होंने बताया कि यहां सब सामान तो बाहर से आता है। इसीलिए मंहगाई है। भारत मे मोटरसाइकिल के दाम पूछे हमसे तो हमने अंदाज से बता दिया -एक लाख रुपये। इस पर वो बोले -'यहाँ आते आते मोटरसाइकिल तीन से चार लाख रुपये मिलती है। पेट्रोल 200 रुपये लीटर है। हर सामान बाहर से आता है इसी लिए बहुत मंहगाई है।"
सरकार में कितना है यह कहना मुश्किल लेकिन हम लोग जब अपना सामान नेपाल सरकार को सप्लाई करने के लिए वहाँ के सेना के अधिकारी से मिले तो उन्होंने सबसे पहला सवाल यह किया -"आपका नेपाल में एजेंट कौन है।"
नेपाल में हमारे जो एजेंट मतलब चैनल पार्टनर जो कि हमारी तरफ़ से नेपाल सरकार के टेंडर में भाग लेने वाले थे उन्होंने अगले दिन हमारी मुलाक़ात एक बड़े अधिकारी से यह कहते करायी कि अगले महीने ये विभाग प्रमुख बनने वाले हैं। ये ही सब तय करेंगे।

काम के दुबई जाती नेपाल की बच्चियाँ 


नेपाल में कई लोग मिले जिनके घर वाले विदेशों में कमाने गए थे। बुद्ध मंदिर में चाय बेचने वाली रेशमा ने बताया था कि उसका पति कमाने के लिए अरब देश गया है। वह अपने पति को बिना बताये अपने खर्चे के लिए चाय बेचती है। लौटते समय कई लड़कियां एयरपोर्ट पर मिलीं जो काम के सिलसिले में विदेश (दुबई) जा रहीं थीं। बाद में उनसे कुछ दिन बातचीत हुए जिससे पता चला कि वे वहाँ सामान्य 'सेवादार' का ही काम करती हैं।

सरकार का बनाने का सिस्टम कुछ ऐसा है कि पिछले 18 वर्षों में 14 बार प्रधानमंत्री बदले गए। इसमें भी आंदोलन के पहले तक प्रधानमंत्री रहे के पी शर्मा ओली सबसे अधिक चार बार प्रधान मंत्री रहे। एक प्रधानमंत्री का अधिकतम कार्यकाल 3 साल 88 दिन रहा (केपी शर्मा ओली)। सबसे कम समय (60 दिन) तक प्रधानमंत्री रहने का भी रिकार्ड भी केपीशर्मा ओली का ही है। पुष्प कमल दहल तीन बार प्रधानमंत्री रहे। शेर बहादुर देउबा दो बार रहे प्रधानमंत्री। इस तरह देखा जाये नेपाल में घूम-फिर कर सात लोग प्रधानमंत्री बनते रहे।
नेपाल में प्रधानमंत्री के पद पर एक ही आदमी कई-कई बार बनता रहा। ऐसे जैसे कोई कहे -"यार, मैं खड़े-खड़े थक गया हूँ। थोड़ी देर को मुझे बन जाने दो प्रधानमंत्री। तुम कुछ दिन बाद फिर बन जाना।"
नेपाल की अस्थिर सरकारों के पीछे एक बड़ा कारण शायद वहाँ स्वतंत्र जनप्रतिनिधियों की संख्या है। स्वतंत्र जनप्रतिनिधियों को अपने पक्ष में करके सक्षम लोग प्रधानमंत्री बन जाते हैं। केपीशर्मा ओली को कुर्सी से प्रेम था। उसको पाने के लिए वे जुगाड़ लगाते रहे, प्रधानमंत्री बनते रहे।
नेपाल से आने वाली खबरों के अनुसार वहाँ हिंसा की घटनाएँ कम हुई हैं। अंतरिम सरकार के गठन की बात चल रही है। आने साले समय में शायद वहाँ स्थिति बेहतर हो।

Thursday, September 11, 2025

लोहे का घर - देवेद्र पांडेय की डेली पैसिंजरी के किस्से


देवेंद्र पांडेय की किताब लोहे का घर का मुख पृष्ठ 


देवेंद्र कुमार पांडेय से ब्लॉगिंग के चलते काफ़ी पहले से परिचय था लेकिन पहली मुलाकात चेन्नई के रेलवे स्टेशन पर हुई थी। सन 2014 में। अपने-अपने बच्चों के एडमिशन चेन्नई के इंजीनियरिंग कालेजों में कराने के सिलसिले में चेन्नई में थे।
उस समय तक देवेंद्र पांडेय जी अपने ब्लॉग बेचैन आत्मा पर कविताएँ, लेख और चित्रों का आनंद सीरीज के अंतर्गत बनारस के और आसपास के चित्र लगाते थे। आनंद की यादें सीरीज के अनर्गत 39 किस्तों में जो लिखा उसका उनके ब्लॉगर दोस्त इंतजार करते थे। आज उनकी पुरानी ब्लॉग पोस्ट देखकर लगा कि कितना कुछ लिखा गया है ब्लॉगिग के दिनों में।
बाद में देवेंद्र जी का तबादला जौनपुर हुआ। बनारस से जौनपुर जाना-आना नियमित होने लगा। साधन बनी रेल। रोज़ आते -जाते अपनी रेल यात्रा के बारे में लिखने लगे। रेलयात्रियों, प्लेटफार्म पर ट्रेन इंतजार करते लोगों, ट्रेन में सामान बेचते, ट्रेन में बतकही करते, ताश खेलते, आपस में कहा-सुनी करते हुए लोगों के बारे में पांडेय जी लिखते रहे।
देवेंद्र पांडेय जी का परिचय 


बनारस से जौनपुर रोज़ रेल यात्रा करते हुए देवेंद्र पांडेय जी के लिए रेल का डब्बा उनका 'लोहे का घर' हो गया। उनके मित्र उनको 'लोहे के घर का मालिक' कहने लगे। बिना पैसे के पाठक मित्रों की कचहरी में 'लोहे के घर' की रजिस्ट्री पांडेय जी के नाम हो गई।
रेल यात्रा के संस्मरण पढ़कर देवेन्द्र पांडेय जी के मित्रों ने, जिनमें से मैं भी शामिल हूँ, उनको अपने संस्मरण प्रकाशित करवाने को कहा। जुलाई, 2023 में रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपने रेल यात्रा के संस्मरण छपवाये और किताब 'लोहे का घर' के नाम से आई।
अपनी किताब को अपने सहयात्रियों को समर्पित करते हुए 'लोहे के घर के मालिक' ने लिखा :
"मेरे साथ यात्रा करने वाले और इस वृत्तान्त का पात्र बनने वाले जाने-अनजाने सभी सहयात्रियों को सादर समर्पित।"
अपनी इस लिखाई के बारे में ख़ुद देवेंद्र पांडेय लिखते हैं :
"इन यात्राओं ने नई कहानियाँ, नए अनुभव और जीवन जीने के नए दर्शन दिए।कभी लगता यह शरीर ही ट्रेन है और अतमा यात्री। कभी लगता,बचपन, युवावस्था, बुढ़ौती सब स्टेशन हैं, मंजिल तो मोक्ष है। कभी एहसास होता जिंदगी की ट्रेन, किसी प्लेटफार्म पर, कभी रुकती नहीं। बस, दुःख के प्लेटफार्म पर अधिक देर रुकने और सुख के प्लेटफार्म से जल्दी चल देने का उलाहना सुनती रहती है।"
किताब के आते ही मैंने उसको आनलाइन ख़रीदा। लेकिन फिर पता नहीं क्या तकलीकी लफड़ा हुआ, किताब का आर्डर कैंसल हो गया। फिर बाद में आज-कल करते हुए दिन बीतते रहे।
इस बीच कनक तिवारी जी की किताब 'जिंदगी रिवर्स गियर' आई। मैंने उसको पढ़कर उसके बारे में लिखा। उस दिन देवेंद पांडेय जी याद दिलाया कि उनकी किताब के बारे में अभी तक लिखा नहीं गया। मैंने फौरन किताब ख़रीदी। आते ही पलटकर देखी। किताब में देवेंद्र पांडेय जी के दो शब्द और उड़नतश्तरी वाले ब्लॉगर समीर लाल जी की भूमिका के अलावा लगभग सब पोस्ट्स पढ़ी हुईं थी। लेकिन उनको एक साथ देखना अच्छा लगा। किताब की छपाई के लिए इस्तेमाल थोड़ा और आकर्षक होते तो और अच्छा लगता।
देवेद्र पांडेय जी को उनके रेल यात्रा के संस्मरण 'लोहे का घर' किताब रूप में आने की बधाई। आशा है उनकी और किताबें, जिनमें उनकी कविताएँ और उनकी आनंद कथा शामिल है, भी जल्द ही किताब के रूप में आयेंगे।
पुस्तक का नाम : लोहे का घर
लेखक : देवेंद्र पांडेय 'बेचैन आत्मा'
पेज : 368
किताब का मूल्य : 550 रुपये MRP
प्रकाशक : स्याही प्रकाशन

किताब अमेजन पर उपलब्ध है। किताब और लेखक का नाम खोजने पर अमेजन का लिंक मिल जाता है।