Monday, May 22, 2017

जरा मुस्कराइये तो सही खूबसूरत लगेगा


आज सबेरे ही निकल लिये। साइकिल पहली ही ’किक’ में स्टार्ट हो गयी। खरामा-खरामा चली पहले। फ़िर सरपट। हिन्दी में कहें तो पहले ’राग विलम्बित’ में चली फ़िर ’द्रुत गति’ में आ गयी। अधबने पुले ने सामने से नमस्ते किया। हसन अली की दुकान बन्द थी। गंगाघाट पुलिस चौकी के बाहर एक पुलिस वाले भाई 100 नंबर वाली गाड़ी पर पोंछा मार रहे थे। दूसरे भाई कुर्सी पर गुड़ी-मुड़ी हुये, अधमुंदी आंखों से सुरक्षा व्यवस्था संभाले हुये थे।
सड़क दोनों तरफ़ सोई हुई थी। दो महिलायें टहलती हुय़ी बतियाती जा रही थीं। एक युवती हाथ में डंडा थामे कुछ बड़बड़ाते चली जा रही थी। पुल की शुरुआत का कूड़ा कुछ पतला दिखा। पुल पर दो लोग घुटन्ना पहने मृदु मंद-मंद, मंथर-मंथर चले जा रहे थे। नीचे नदी सबेरे की नींद की मलाई मार रही थी। अलसाई सी हवा की लहरों के साथ आगे बहती हुई।
बगल के पुल पर ट्रेन जा रही थी। उसके निकलने के बाद पटरी पर दो कुत्ते भागते चले जा रहे थे। लगता है शुक्लागंज में उनका कोई फ़ेवरिट खंभा है। वहीं जाकर टांग उठायेंगे।
नीचे नदी में लोग नहा रहे थे। नाव भी चल रही थी। बायीं तरह के मकानों की छतों पर लोग सोये हुये थे। पुल पार करते ही चौराहे की चाय की दुकान पर लोग दिखे। पहली चाय बना रहा था चाय वाला। चाय छानने के बाद केतली की टोंटी टेड़ी करके गैस चूल्हे के गर्म लोहे पर चाय की धार डाली। प्रसाद की तरह। ग्राहकों को पन्नी, ग्लास में चाय बांटने लगा।
दुकान के बाहर तमाम हॉकर साइकिल पर अखबार सजा रहे थे। एक भाईसाहब के दोनों हैंडल में झोलों में अखबार गंजे हुये थे। दायें हैंडल के झोले को देखकर बोले- ’ये गड़बड़ हो गया।’ पता चला हैंडल की रगड़ से झोला एक तरफ़ फ़ट गया था। आज उसका मुंह दूसरी तरफ़ हो गया था। ऐसे ही रहता तो दूसरी तरफ़ भी झोला मुंह बा देता। झोले को उलटकर सीधा किया। इससे एक बार फ़िर लगा कि चाहे आदमी को या झोला जो जिधर फ़टा होता है उसके उसी तरफ़ फ़ाड़ने की साजिश होती है।
एक हॉकर ने उधर से गुजरते हुये एक बुजुर्ग को प्रणाम निवेदित किया। उन्होंने उसे ग्रहण करते हुये किसी बात पर बधाई देते मिठाई का आग्रह किया। उसने कहा-’ आपका आशीर्वाद है। इसीलिये पांव छूते हैं।’ बुजुर्ग ने कहा-’ आशीर्वाद तो रोजै है। बढे चलो।’
बढे चलो को लपकते हुये साइकिल पर अखबार बांधते हुये भाईसाहब बोले-’ कहां से बढिहैं। तीन साल से तौ बैक गियर मां चलि रहे हैं।’
गंगाघाट के पहले मिली युवती तब तक पुल पार करके लपकती, बड़बड़ाती हुयी चाय की दुकान पर पहुंच गयी। चाय वाले ने बिना कुछ पूछे उसको एक प्लास्टिक की ग्लास में चाय थमाई। वह ’गन्दे लोग, शरम नहीं आती गन्दी हरकत करते हुये’ जैसी बातें बुदबुदाती हुयी रेलवे क्रासिंग की तरफ़ चली गयी। दुकान से बाहर निकलते ही आधी चाय उसने सड़क पर गिरा दी और चलते-चलते एकाध चुस्की लेकर ग्लास सड़क पर फ़ेंक दिया।
चौराहे पर दो-तीन गायें और एक गाय जैसा ही दिखता सांड़ खड़े थे। सांड़ को कुछ समझ में नहीं आया तो वह गाय की पूंछ सूंघने जैसा चला गया। गाय ने थोड़ा पूंछ हिलाई और टहलते हुये आगे चली गयी। सांड वहीं खड़ा दूसरी गायों की तरफ़ ताकता रहा।
वापस लौटते हुये पुल पर एक आदमी आटे की गोली बनाकर नदी में फ़ेंकता दिखा। मन नदी से पुल की ऊंचाई पता होती तो वहीं खड़े-खड़े आटे की गोली किस गति से नदी से टकराती हैं इसकी गणना कर डालते। पुल के बगल से जाते पाइप लाइन पर बैठी एक चिड़िया बैठी ही रही। उसके देखते-देखते एक दूसरी चिड़िया उड़ती हुयी आई और कई टुकड़ों में पाइप पर बैठते-उड़ते पुल पार कर गयी। कवि यहां कह सकता है कि रास्ते चलने से पार होते हैं-बैठे-बैठे नहीं। लेकिन कह नहीं रहा क्योंकि कवि को भी पता है कि सुबह-सुबह कवि का मुंह कोई नहीं देखना चाहता भाई।
लौटते हुये देखा पुलिस चौकी पर जवान चुस्तैद हो गये थे। हसनअली का घर दुकान में बदल रहा था। एक बुजुर्ग महिला दुकान के सामने झाड़ू लगा रही थी। पुल के पास कूड़ा बीनने निकली एक युवती एक युवक से कुछ बतिया रही थी। चलते समय मसाला मांग खाया।
रास्ते में कहीं सूरज भाई नहीं दिखे। लेकिन घर पहुंचते ही देखा कि आसमान में विराजे हुये थे। जैसे देर से आने वाले लोग दफ्तारिये साहब के पहुंचते ही कुर्सी पर चुस्त बैठे मिलते हैं उसी तरह सूरज भाई किरणें और प्रकाश बिखराते हुये मिले। गर्मी मुफ़्त में।
हमने सूरज भाई की इस अदा पर मजे लेते कहा- ’सूरज भाई टाइम पर आया करो। यहां भी बायोमेट्रिक लगा हुआ है। देरी से आये तो आधे दिन की कैजुअल कट जायेगी।’
इस पर सूरज भाई मुस्कराने लगे। मुस्कराते ही और खूबसूरत बोले तो हैण्डसम लगने लगे। हमें भी मजबूरन मुस्कराना पड़ा। अब आप भी मुस्कराईये। क्योंकि सुबह हो गयी है। वैसे भी मुस्कराते हुये लोग खूबसूरत लगते हैं। आप भी लगेंगे , जरा मुस्कराकर देखिये तो सही।


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