सबेरे टहलने निकले। जंतर-मंतर ठहरने की जगह के पास ही है। सामने वेधशाला। बगल में जंतर-मंतर रोड़ पर धरना-प्रदर्शन की जगह। वेधशाला बगल में होने के चलते शायद यहां हुये धरने की आवाज दूरबीन से दूर तक पहुंचती होगी।
धरना स्थल पर कई धरना वीर दिखे। एक भाई साहब मच्छरदानी को अपने चारो तरफ़ लपेटे हुये बैठे-बैठे सोते हुये धरना दे रहे थे। उनके पीछे जो बोर्ड लगा था उससे लगा शायद सवर्णों के लिये आरक्षण की मांग कर रहे हों।
बगल में उघारे बैठे डॉ रमा इन्द्र समाजवाद के लिये भूख हड़ताल पर बैठे थे। बताये कि जे यन यू में रिसर्च स्कॉलर थे। फ़िर दिल्ली विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. किये। छठी शताब्दी के दोहों की किसी किताब पर। पंजाबी में पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च करने के लिये तैयारी कर रहे हैं। एक मोटी किताब ध्यान से बांच रहे थे। किताब में पंजाबी के बहुउत्तरीय प्रश्न-उत्तर थेे।
एक बांह कुछ टूटी दिखी। बताया कि पुलिस ने तोड़ दी। मंत्री के सामने धरना देने का ’इनाम’ मिला। केस चल रहा है। ’अबकी बार , सबकी सरकार ’ समाजवाद से हमको गोरखपांडेय की कविता याद आ रही थी:
समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई
हाथी से आई, घोड़ा से आई
अँगरेजी बाजा बजाई
अँगरेजी बाजा बजाई
बगल में देश भर में शराबबंदी कराने के लिये द्रो युवा धरने पर बैठे हुये थे। तमिलनाडु के रहने वाले दोनों युवाओं के पिता भयंकर पियक्कड़ थे। डेविड कन्याकुमारी से और प्रकाश त्रिची से आये हैं धरना देने। डेविड सेना में नौकरी करते थे। प्रकाश त्रिची से इंजीनियरिंग किये हैं। हमारी फ़ैक्ट्री है वहां। डेविड से कन्याकुमारी की बातें हुईं।
धरने के दौरान खाना गुरुद्वारे में खाते हैं। सामुदायिक शौचालय, स्नानागार में निपटान होता है। शायद इसीलिये जंतर-मंतर धरने के लिये मुफ़ीद जगह है।
धरना देने से शराब बंद होगी कि नहीं पता नहीं लेकिन शराब से न जाने कितने घर आये दिन बरबाद होते हैं। दो दिन हुये हमारे बंगले में रहने वाला शाम को खूब दारू पीकर सोया तो फ़िर उठा ही नहीं। पता चलने पर फ़ौरन अस्पताल ले जाने पर पता चला कि बहुत पहले ’शान्त’ हो गया। बहुत अच्छे स्वभाव का व्यक्ति अपने होनहार बच्चों को अनाथ करके और पत्नी को दुनिया का सामना करने के लिये छोड़ गया।
एक महिला धरने पर बैठे हुई थी। बताया कि उसकी बच्चे और बहन अगवा करके लोग ले गये हैं। गया, बिहार के एक गांव की रहने वाली है महिला। यहां गुरुद्वारे और बाबा रामपाल के धरनास्थल पर मिलने वाला खाना सूट नहीं करता। परेशान है। अगवा करने वालों के खिलाफ़ शिकायत करने पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। उसका कहना है- "सब लोग ताकतवर लोग अपराधियों के साथ मिले हैं।"
बाबा रामपाल का धरनास्थल सबसे वीआईपी धरनास्थल है। पानी के टैंकर, टैंट और खाने-पीने की सुविधाओं से लैस। टैंकर से टिकी रामलाल की फ़ोटो पर लोग मत्थाटेकते हुये जा रहे थे। एक आदमी जबलपुर से पत्नी सहित आया था। बाबा की पेशी में अदालत गया था। हमने कहा - ’बाबा जी तो अंदर हैं।’ उसका कहना था -’बाबा भले अंदर हों लेकिन उनका दिया ज्ञान तो हमारे साथ है।’ हमने पूछा क्या ज्ञान दिया बाबा ने तो उसने बताया नहीं। लपकते हुये चला गया।
वहीं दो महिलायें आपस में झगड़ रहीं थीं। झगड़े का कारण पता नहीं चला लेकिन एक पुलिस वाला उनको समझाता हुआ झल्ला रहा था-’ अरे माई चुप हो जा। जब आयेगा तब पूछताछ करेंगे। पुलिस कहीं भागी थोड़ी जा रही है।’ इसके बाद भुनभुनाते हुये कहने लगा-’ खाना-पीना मुफ़्त में मिल जाता है। कोई काम-धाम है नहीं। बस बैठे हैं धरने पर। उस पर भी चैन नहीं तो झगड़ते हैं आपस में। पुलिस की नाक में तो दम है।’
अधेड़ पुलिसवाले के चेहरे पर झुर्रियां पड़ना शुरु हो गयी थीं। सामने के दो दांत गोल हो गये थे। धैर्य से समझाते हुये वह पुलिस वाला कम एक समझदार इंसान ज्यादा लग रहा था।
चाय की दुकान पर चाय पीते हुये लोग उत्तर प्रदेश में हुई हालिया लूटपूट और बलात्कार पर बातें कर रहे थे। अखबार में खबर छपी थी। एक का कहना था-
’आदमी कहीं सुरक्षित नहीं है।’
’आदमी कहीं सुरक्षित नहीं है।’
चाय की दुकान के पास ही बताया गया वह पेड़ था जिसमें एक व्यक्ति ने ’आम आदमी पार्टी’ की सभा के दौरान फ़ांसी लगा ली थी। एक ने बताया- ’उसको आत्महत्या थोड़ी करनी थी। वह दिखावा कर रहा था। उधर मंच पर नेता दिखावा कर रहे थे। पेड़ से पैर फ़िसलगया। फ़ांसी लग गई। मर गया।’
चाय की दुकान वाले जीवानंद जोशी अल्मोड़ा के रानीखेत के रहने वाले हैं। 34 साल पहले दिल्ली आये थे। लड़का बीए करके अपना कुछ काम करता है। तीन लड़कियां हैं। उनमें से दो जुड़वां। तीनों की शादी करनी है। जब ऊपरवाला चाहेगा , होगी। पहाड़ छोड़कर आने की बात पर बोले- ’भगवान ने पेट दिया है। उसको भरने के लिये घर छोड़ना पड़ा। मजबूरी है।’
छुटकी सी चाय की दुकान जोशी जी सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक चलाते हैं। दुकान बंद करने के बाद चाय का सामान वहीं खड़ी एक मित्र की कार में रख देते हैं। दिन भर जोशी जी कार की रखवाली करते हैं। रात को कार उनकी दुकान को आसरा देती है।
लौटते हुये एक बाबा जी फ़ुटपाथ पर लेटे हुये दिखे। पास में वजन नापने की मशीन और एक हाथ गाड़ी में बक्से में रखा कुछ सामान। वजन वाली मशीन 800 रूपये में खरीदी थी। बनारस के रहने वाले हैं। लालचन्द नाम है। दस साल पहले दिल्ली आये थे। इसके पहले पल्लेदारी करते थे।अब मेहनत नहीं होती तो बाबा बन गये।
बाबागिरी सबसे सुरक्षित और सहज जीविकोपार्जन का जरिया है अपने देश में। कुछ साल पहले जमीन पर दंड पेलने कुछ समझदार बाबा लोग तो अरबों-खरबों के ऊपर दंड़पेलते हुये कपालभाती करते हैं आजकल।
होटल वापस लौटते हुये संतोष त्रिवेदी को फ़ोन किया कि आये नहीं जंतर-मंतर चाय पीने, धरने में सहयोग देने। इस पर उनका कहना था - ’हम समझे मजाक कर रहे हो।’ मतलब हमको कोई सीरियसली लेता ही नहीं। हम खुद भी कहां लेते हैं।लोकतंत्र में बहुमत के साथ रहने में भलाई है।
है कि नहीं?
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