कल सुबह शहर टहलने निकले। कार से। उसमें नई वाली नम्बर प्लेट लगवानी थी।
हफ्ते भर पहले तक हमको पता ही नहीं था कि बिना नई नम्बर प्लेट के चलना 'परिवहन अपराध' है। जुर्माना हो सकता है। वो तो भला हो चौराहे पर मुस्तैद ट्रैफिक सिपाही का जिसने एक दिन गाड़ी किनारे लगाने को कहा। हमने फौरन झल्लाहट बगल में बैठी जीवनसंगिनी पर उतारी -'सीट बेल्ट क्यों नहीं लगाई।'
सिपाही ने दौड़ा कर गाड़ी रोकी नहीं। बस पीछे से कहा -'नम्बर प्लेट तो बदलवा लो।'
नम्बर प्लेट वाली बात पर ध्यान आया कि नई वाली नम्बर प्लेट लगाने की कोई सूचना आई थी। नेट पर देखा तो उसकी आखिरी तारीख निकल चुकी थी। फौरन नम्बर प्लेट लगवाने की खोज-खबर हुई। आर्डर किया और तय हुआ कि तीन दिन बाद नम्बर प्लेट मिल जाएगी। लग जायेगी। हमने गाड़ी की खड़ा कर दिया। अब नई नम्बर प्लेट के बाद ही चलोगी -' मेरी सेंट्रो सुंदरी।'
यह बताने की बात नहीं कि सीट बेल्ट लगाने के लिए जीवनसंगिनी पर उतरी झल्लाहट काफी देर तक लौट-लौट मुझ तक आती रही।
कल नबंर प्लेट लगवाने के लिए निकले। हर चौराहे पर धड़कन बढ़ जाती। वो शेर भी याद आ गया :
"यूं दिल के धड़कने का कुछ तो है शबब आखिर,
या दर्द ने करवट ली, या तुमने इधर देखा। "
यहां दर्द तो नहीं था बस तुमने इधर देखा वाला मामला ही था। हर पुलिस वाला मुझे अपनी गाड़ी की तरफ देखता लगता। हर चौराहे पर धड़कन बढ़ जाती। लगता किसी भी जगह कोई भी सिपाही कहेगा -'गाड़ी किनारे लगाओ।' सड़क पर गाड़ी किनारे लगाना मतलब कोई न कोई कमी निकल ही जाना। गाड़ी की बुजुर्गियत का भी कोई ख्याल नहीं करते भाई लोग।
सड़क पर चलती हर गाड़ी हमारी सैंट्रो सुंदरी से जूनियर थी लेकिन किसी को अपनी सीनियर की कोई चिंता ही नहीं। यह गाड़ियों में एसीआर लिखने का चलन न होने का साइड इफेक्ट हैं। गाड़ियों के एसीआर लिखे जाते तो सड़क से गुजरती हर गाड़ी हमारी सैंट्रो सुंदरी की मिजाजपुर्सी करती। नमस्ते करती और कहती -'आप बहुत क्यूट लग रही हैं मैडम।'
घर से निकलते समय हल्का पानी बरस रहा था। डर कुछ कम हुआ कि सिपाही सड़क पर नहीं होंगे। लेकिन थोड़ी दूर बाद पानी बन्द हो गया। डर ने वापस ड्यूटी ज्वाइन कर ली।
एक चौराहे से आगे निकले। हमारे आगे एक मोटर साइकिल की पिछली सीट पर बैठी सवारी का कुर्ता पीछे की लाइट को ढंकता हुआ लटक रहा था। हमको लगा कहीं कुर्ता गरम होकर सुलग न जाये। यह भी कि अगले चौराहे पर कोई पुलिस वाला गाड़ी किनारे लगवाकर पूछताछ न करने लगे -'ये लाइट ढंककर क्यों चला रहे गाड़ी?'
आगे एक पैदल सवारी सड़क पार करने के इरादे से किनारे खड़ी थी। वह इधर-उधर देखते हुए सड़क के खाली होने का इंतजार कर रही थी। हमने गाड़ी बीच सड़क धीमी करते हुए रोक दी। उसको सड़क पार करने का इशारा किया। वह थोड़ा झिझकी लेकिन हम गाड़ी खड़े ही किये रहे। गाड़ी भी गर्म हो रही थी। उसको अच्छा नहीं लग रहा था पैदल सवारी को इतना तवज्जो देना । लेकिन हमने सवारी को सड़क पार करवा के ही गाड़ी आगे बढ़ाई। उसके चेहरे पर आभार से अधिक -'अजीब आदमी है जैसे भाव ज्यादा लगे मुझे।
अमेरिका यात्रा के असर के चलते सड़क पर गुजरते हर पैदल सवार को सड़क पार करा कर ही गाड़ी आगे बढाते हैं हम। इस चक्कर में अक्सर सड़क पर पीछे की गाड़ियां हॉर्न बजा-बजा कर सड़क सर पर उठा लेती हैं।
सर्विस सेंटर पहुंचने पर उसने नम्बर प्लेट निकाली। पांच मिनट में नई नम्बर प्लेट लगा दी। हमारा सड़क पर चलने का डर खत्म हों गया। हमारी सैंट्रो सुन्दरी भी खुश हो गयी।
दुकान पर तमाम नम्बर प्लेट इकट्ठा थे। अभी शहर के और भी तमाम लोगों की गाड़ियों में प्लेट बदलने थे। हम ही अकेले थोड़ी थे।
देर से लगी लेकिन नम्बर प्लेट बदल गयी। देर होना कोई नई बात नहीं अपन के साथ। बहुत पहले एक दिन देर से घर आने पर कार के पिछले शीशे पर जमी धूल से लिखा मिला था -' Anup, you are always late. अनूप तुम हमेशा देर कर देते हो।
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