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मुझे पूरी उम्मीद है कि जल्दी ही कंचन अपने भैया को भी इस ब्लागिंग संसार में शामिल कर लेंगी।
अथ कानपुर ब्लागर मिलन कथा
By फ़ुरसतिया on April 15, 2008
परसों शनिवार को समीरलाल जी से बार फ़िर मिलना हुआ। इसके पहले जब हम मिले थे तब हम उनके हुनर और हरकतों से इतना वाकिफ़ न थे। पिछली बार उनके दीदी-जीजा के यहां मिले थे दो किस्तों में। इस बार जमावड़ा हुआ हमारे यहां। इस दौरान ब्लागर समुदाय भी सम्पन्न हो गया था सो मिलने जुलने वालों में दो नामचीन ब्लागर और जुड़ गये थे। साथ में और भी महान लोग थे।
शनीचर का दिन था। सुबह जब हमारे पास समीरलाल जी की फोन आया कि वे शाम को पधारेंगे। हम स्वागत है, वाह-वाह, इंतजार है के अलावा कुछ कह न पाये। क्या कहते?
शाम को इंतजार करने की बात कहकर चुप हो गये। सोचा अब जो होगा देखा जायेगा।
शाम को इंतजार करने की बात कहकर चुप हो गये। सोचा अब जो होगा देखा जायेगा।
शाम तक हम समीरलाल जी से मिलने के सम्भावित साइड-इफ़ेक्ट की सूची बनाते-फ़ाड़ते रहे। हमें अच्छी तरह याद है कि समीरलाल से मुलाकात के बाद से ही ज्ञानजी के हाल होते होते ऐसे हो गये कि वे आजकल माथ-मनोवृत्ति वाले उपाय सोचने लगे हैं।
शाम को एक बार फिर फोन बजा। हमें लगा शायद समीरलाल जी हों और कहें- भाई साहब कुछ जरूरी काम आ गया इसलिये इस बार मिलना हो न पायेगा। लेकिन खुदा को यह खुशी देना गवारा न था। लेकिन इसके बदले में फोन पर बड़ी खुशी की सूचना थी। उधर से कंचन चौहान फोन पर थीं। उनके आने की सूचना सुनकर हमें खुशी हुई। पता चला कि कंचन कानपुर की ही हैं। किदवई नगर में उनका घर है। कंचन के बारे में हमने पहली बार तभी पढ़ा था जब उनकीमुलाकात मनीषजी से लखनऊ में हुयी थी। उनके हौसले से मुझे अपना हौसला बढ़ता लगा। लखनऊ जाने पर उनसे मिलना मेरे संभावित कामों में शामिल हो गया था। यह एक खुशनुमा अहसास था कि उनसे मुलाकात अनायास होने वाली थी।
शाम हुई। रात भी कहां पीछे रहती। समीरलाल जी अपने परिवार समेत (साधना भाभी, समीरजी की दीदी और जीजाजी ) हमारे पधारे। पधारे यहां परिवारों वालों के लिहाज के लिये वर्ना लिखना चाहिये- आ धमके।
घर वाले उनके इतने त्रस्त थे उनसे कि समीरजी को हमारे हवाले करके जाने लगे। हमने कहा भी आप जाइये अब तो हमको झेलना ही है। इनको छोड़ भी देंगे। ये यही कहेंगे- आपको कष्ट दिया। घर तक छोड़ने आना पड़ा। और भी तमाम मौज ली गयी। परस्पर बातचीत में मौज लेने का कोई भी मौका छो़ड़ना एक संज्ञेय सामाजिक अपराध है।
साधना भाभी जी से किसी ने पूछा-आप क्या करती हैं? वे बोली -हम घर में ही रहते हैं। हमने उसमें सुधार किया – नहीं भाई, भाभीजी आइटम मैनेजमेंट का काम करती हैं। समीरलालजी जैसे आइटम को मैनेज करना कम मेहनत का काम है क्या?
हमारे इस अंदाज पर चाहे साधना भाभी कुछ ज्यादा ही फिदा हो गयीं और बोलीं बाहर से चले जाते तो आपका यह मजेदार अंदाज ( जो कि हमारा स्वाभाविक अंदाज है) भी देखने से रह जाते।
साधना भाभी जी ने बताया कि यह संयोग है कि वे जब भी समीरलालजी के ब्लागर दोस्तों से मिलीं, वे गुलाबी परिधान में थीं। इस पर तड़ से उनका नाम पिंकी भाभी प्रस्तावित च अनुमोदित हो गया। ध्वनिमत से।
तब तक कंचन अपने बड़े भैया के साथ आ गयीं। वे अपने साथ गुलदस्ते भी लायीं थी। एक समीरलाल को थमाया दूसरा हमें दिया। लेकिन समीरलाल जी ने मारे जलने के फोटो ऐसी खींची हैं कि पता ही नहीं चल रहा है कि कौन किसको फ़ूल दे रहा है।
खैर हम तो खिलखिलाकर और सच कहें तो थोड़ा शरमाकर फ़ूल ले लिये और मन में सोचे भी कि समीरलालजी से फ़ोटो-कलाकारी का बदला लिया जायेगा। बरोब्बर लिया जायेगा।
इसके बाद फ़िर जमावड़ा हुआ तो न जाने-जाने कहां-कहां की बातें होती रहीं। इधर की उधर की । न जाने किधर-किधर की। खेतक-खलिहान, मकान-दुकान और दुनिया-जहान की बातें होते-होते हुये ब्लागिंग पर भी किस्से शुरू हुये।
जब बात ब्लागिंग की शुरु हुयी तो हमें बेशाख्ता राजीव टंडन याद आये। और एक बार याद आये तो आते ही चले गये। जब वो आये तो बहुत आये। फ़िर तो हम उठकर बाहर चले गये। हमने उनको भी बुला लिया। हमने सोचा जब समय की बरबादी हो ही रही है तो कायदे से हो। ब्लागर मीट हो ही रही है तो ये काहे को छूटें।
वैसे राजीव जी को आजकल उस चीज का इलहाम हो गया है जिसका इलहाम लोगों को सालों नहीं हो पाता। वे ब्लागिंग को बेफ़ालतू टाइम-पास चीज मानने लगें हैं। लिखने और पढ़ने वालों दोनों को ही। लेकिन हमें लगता है कि वे फ़िर लऊट के अईहैं ब्लागिंग के जंजाल में फ़ंसने। सौरभ गांगुली के तरह कमबैक करेंगें। बचेंगे भी कैसे? रहना उनको इसी कम्प्यूटर-संसार में ही है। राजीव जी की फोटो सब धांसू आती हैं। कैमरा बहुत सपोर्ट करता है उनको राजीव जी को जो फोटो भी आयी है यहां तो वे निराला जी की किसी फोटो से मिलती-जुलती फोटो लगती है। उनको निरालाजी की कवितायें याद करके सुनाने लगना चाहिये।
बहरहाल वे आये। इसके बाद एक बारगी ब्लागिंग के गुणगान होने लगे। अभिव्यक्ति के अवसर, अभिनव माध्यम आदि-इत्यादि बातें होने लगीं। समीरलाल जी ने तो यह भी बताया कि उन्होंने जबलपुर में तो साहित्यकारों तक को बता दिया है, चेता दिया है (ये सीक्रेट चेतावनी है इसलिये ब्लाग पर नहीं लिखी जा रही है। :)…….।
हमारी श्रीमतीजी की सबसे बड़ी दीदी डा.निरुपमा अशोक जो कि, लखीमपुर के आर्य कन्या डिग्री कालेज में प्रधानाचार्या हैं , ने भी ब्लागिंग माध्यम की बहुत तारीफ़ की। समीरलालजी भी बढ़-चढ़कर कसीदे काढ़ रहे थे। कंचन ने भी अपने ब्लागिंग के किस्से सुनाये। हम चुप थे। हमें आगे आने वाले समय का कुछ-कुछ आभास हो गया था। अनुभव आदमी को बहुत कुछ सिखा देता है।
इसी ब्लागिंग स्तुति के बीच ही मंच पर हमारी श्रीमतीजी का प्रवेश हुआ। जाहिर है उनकी राय भी पूछी गयी। उनके बयान वैसे ही थे जैसे ब्लागिंग के नशे में चूर ब्लागरों की जीवनसाथियों के हो सकते हैं। उन्होंने ब्लागिंग की अच्छाईयों से बिना असहमत हुये ब्लागिंग के चंद साइड-इफ़ेक्ट गिनाने शुरू कर दिये। ब्लागिंग के चलते घर को उपेक्षित हो जाता है, और किसी चीज की चिंता नहीं, नींद पूरी नहीं लेना, बच्चों की चिंता करना आदि-इत्यादि। वगैरह-वगैरह।
अब बारी समीरलालजी के हाथ में थी। उनकी श्रीमतीजी जा चुकी थीं हमारे घर में मेहमान थे सो कोई चिंता की बात नहीं थी। वे चाहते तो आसानी से इन सब बातों का खंडन कर सकते थे। कनाड़ा रिटर्न होने की भड़ी में उनकी बात का असर भी कुछ ज्यादा ही होता। लेकिन वे घटनास्थल के माहौल को देखकर पलटी मार गये। ले देकर उन्होंने एक-एककर ब्लागिंग के वाहियात साइड इफ़ेक्ट अपनी जिन्दगी के अनुभव से गिनाने शुरू कर दिये। यह भी बताया कि पहले वे घर से आफ़िस जाते हुये बड़े मन से महिलाओं को निहारा करते थे। न जाने कित्ती मधुर-मनोहर-अतीव सुन्दर कल्पनाये करते थे। अब हाल यह है कि किसी को देखते हैं तो तुरन्त सोचते हैं कि इस पर कित्ती लम्बी पोस्ट बनेगी? कमेंट पचास आयेंगे कि साठ।
उन्होंने ब्लागिंग से अपने स्वास्थ्य पर और अपनी जिन्दगी पर आये प्रभाव भी ऐसे भयावह अंदाज में गिनाये कि मन किया टोंके कि इतना झूठ किस अर्थ अहो। लेकिन मैने टोका नहीं। सोचा क्या फ़ायदा? अभिव्यक्ति की आजादी है। है कि नहीं। हम रोकेंगे तो ये अपने ब्लाग पर लिखेंगे। मानेंगे तो है नहीं।
इस ब्लागिंग निन्दा यज्ञ में राजीव टंडनजी ने भी अपनी आहुति डाली और इसीलिये ब्लागिंग छोड़ दी कहकर अपने पाक-साफ़ होने का परिचय देने का प्रयास किया। कंचन ने भी बताया कि इसीलिये उन्होंने घर में कम्प्यूटर नहीं लिया है अभी तक।
अब आप समझ सकते हैं कि ऐसे में हमारे क्या हाल हुये होंगे। मन कर रहा था कि यह धरती फ़ट जाये और मैं अपने लैपटाप सहित उसमें समा जाउं और ब्लाग पोस्ट ठेलता रहूं। कोई डिस्टर्ब करने वाला तो न होगा वहां।
कंचनजी ने अपने गजल संसार में प्रवेश करने के कई मजेदार खिलखिलाते किस्से सुनाये। साथ में उनके भैया भी थे। भैयाजी राजू श्रीवास्तव के मुरीद हैं और काफ़ी कुछ उनके अन्दाज में मिमिकरी करते हैं। उनका विट और हाजिर जवाबी और मौज-मजा लेने के अन्दाज से लगा कि वे ब्लागिंग करें तो बहुत जल्द लोकप्रिय ब्लागर बन जायेंगे। लिखने की उनकी समस्या का निदान वे शुरुआत से ही पाडकास्टिंग करके कर सकते हैं।
हम लोगों की बतकही के बीच तमाम शेरों ने भी शिरकत की और वे वाह-वाह सुनते हुये शेरगति को प्राप्त हुये। समीरलालजी न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम के सम्मान में बिस्तर पर झुकते चले गये। अंत में वे एक तकिये का सहारा लेकर स्थिरवस्था को प्राप्त हुये। लेटे-अधलेटे के बीच की किसी स्थिति में।
बातचीत के दौरान कंचन से हमने यह भी पूछा कि वे अपने से छोटों को बहुत हड़काती हैं। ऐसा किसलिये। उन्होंने बताया कि वे सबसे छोटी रही हैं भाइयों में। सो वे डांट खाती रहीं। इसलिये अपनी अगली पीढी के लोगों को मय सूद उनका हक देने में कंजूसी नहीं करती हैं।
कंचन और उनके भैया को जाना था। एक बेहतरीन मुलाकात की यादें समेटे हम सब विदा हुये। चलते-चलते कंचन ने हमारी श्रीमतीजी और उनकी दीदी के साथ फोटो खिंचाया। हमारी माताजी से मिलीं। लखनऊ में मिलने के वायदे के साथ वे अपने भैया के साथ चली गयीं। हम उनके बारे में बात करते हुये उनके ही एक प्रशंसक की पंक्तियां याद कर रहे थे-
जब तप-तप कर स्वर्ण खरा हो जाता है
तब वो इतना सुन्दर दिख पाता है
ये अनुभूति की बात मेरे अनुभव में आयी है
इनके तप से ही इनने इतनी करुणा पाई है।
मुझे पूरी उम्मीद है कि जल्दी ही कंचन अपने भैया को भी इस ब्लागिंग संसार में शामिल कर लेंगी।
कंचन के जाने के बाद चाय के दौर के साथ किस्सों के नये दौर चले। समीरलाल जी से केवल एक बार कविता सुनाने को कहा गया और वे शुरू हो गये। बिना नखरे किये। उनको लगता है कि हम लोगों पर भरोसा नहीं था कि अगर वे एक बार बना करेंगे तो हम उनसे दुबारा भी अनुरोध करेंगे। जब वे कविता पढ़ रहे थे, तरन्नुम में गाते हुये तब हम उसको अपने मोबाइल कैमरे में रिकार्ड कर रहे थे। वे बड़े मन से सुना रहे थे। हम मन से सुन रहे थे और उतने ही मन से रिकार्ड कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने कविता समाप्त की हमने वाह-वाह उच्चारते हुये मोबाइल बन्द किया। खोजते रहे लेकिन वहां कविता क्या कविता के निशान तक न मिले। हमारा मोबाइल पहले की तरह पाक-साफ़ पवित्र बना रहा। दुबारा रिकार्ड किया गया तब भी वही हाल।
मोबाइल ने समीरलालजी की कविता अपने अन्दर रखने से इन्कार कर दिया। मोबाइल कोई ब्लागर तो है नहीं जो उनकी टिप्पणी के लिहाज में उनकी समेट ले। यहीं हमें लगा कि हमारा बदला हमारे मोबाइल ने ले लिया है। आपको शुरू में बताया था न कि समीरलाल जी ने हमारी फोटो ऐसे खींची थी कि पता नहीं चल रहा था कि कंचन हमें फ़ूल दे रही हैं या हम कंचन को गुलदस्ता थमा रहे हैं। शायद कैमरा भी यह सब देख रहा था और उसने स्वामीभक्त कैमरा होने का सुबूत देते हुये समीरलालजी की कविता से अपना दामन बचा लिया।
चलते-चलते समीरलालजी के अनुरोध पर हमारी श्रीमतीजी ने भी एक गीत सुनाया। इसका जिक्र हम कई बार कर चुके हैं। यह गीत सम्भवत: श्री रमेश यादव जी का है और जो शायद भोपाल के हैं। ये पीला वासन्तिया चांद गीत में चांद के विभिन्न रूपों का चित्रण है। समीरलाल जी ने इसे अपने कैमरे में रिकार्ड किया और यू ट्यूबबनाकर उसका लिंक हमें भेजा है।
आप इसे देखें।सुनें। पसन्द आये तो वाह-वाह करें। न पसन्द आये तो समीरलालजी को कोसें। उनके ही कैमरे की करतूत है यह।
इसमें कुछ शुरू की और कुछ आखिरी की पंक्तियां नहीं आ पाई हैं। आखिरी पंक्तियां इस गीत की इस तरह हैं-
राजा का जन्म हुआ था तो
उसकी माता ने चांद कहा
इक भिखमंगे की मां ने भी
अपने बेटे को चांद कहा।
दुनिया भर की माताओं से
आशीषें लेकर जिया चांद।ये पीला वासन्तिया चांद
संघर्षों में है जिया चांद॥
नीचे की फोटो उसी समय की हैं। इनको भी मैने समीरलालजी के ही कैमरे से तुरन्त बरामद करके अपने लैपटाप पर तुरन्त डाल लिया था। आज रामचन्द्र मिसिर के ब्लाग पर देखकर हमने इसी स्लाइड शो के रूप में लगाने का प्रयास किया और इंशाअल्लाह सफ़ल हुये। इस कोशिश में अंकुर वर्मा का सहयोग रहा। हम उनसे मिलने आज आई.आई.टी. मिलने गये थे। वहीं इलाहाबाद ब्लागर मिलन की फोटो देखी और स्लाइड शो के बारे में सीखा। समीरलाल जी ने इन फोटुऒं को देखकर हमारे ऊपर आरोप लगाया है कि हम हुशियार टाइप के हो गये हैं। लेकिन आप जानते हैं यह आरोप सरासर गलत है। हम इसका खंडन करते हैं कि हम तकनीकी रूप से हुशियार हैं। यह इसलिये भी जरूरी है कि सॄजन सम्मान जैसे सम्मान जब भी मिलते हैं तो उसके लिये तकनीकी रूप से कम जानकार होना ज्यादा फ़ायदामंद माना जाता है। इस बार पाण्डेयजी इसी लिये रह गये थे। हमारे नाम की घोषणा हो गयी। मिला अभी नहीं काहे से जा नहीं पाये।
यह बात भी नोट की जाये कि इस ब्लागर मिलन कथा में समीरलाल जी का जो एक स्मार्ट सा स्लिम-ट्रिम टाइप का फोटू है वो उन्होंने जबलपुर से भेजा। वो फ़ोटू उनका दुबला इसलिये आया कि वे सोच-सोचकर दुबला गये कि कैमरे ने उनका फोटो लेने से इन्कार क्योंकर दिया।
ई है ब्लागर कथा के कुछ चुनिंदा अंश। बाकी का झूठ समीरलाल जी के हवाले। कंचनजी भी कुछ जरूर लिखना चाहेंगी। राजीव टंडन के बारे में हम कुछ न कहेंगे।
Posted in बस यूं ही | 27 Responses
आपने झेल लिया !मतलब आप भी भारत रत्न की कतार में हैं.
वैसे हम होते तो शायद हमारे मुख से भी यही फूटता रहता ।
चान्द की आवाज़ बहुत खूबसूरत है ।
ब्लॉगर मिलन की इतनी बढ़िया प्रस्तुति के लिए आपको धन्यवाद ।
मस्त विवरण!!
गाना भी सुंदर!!
फोटो भी अच्छे!
शुक्रिया
वहां जो मजाक मस्ती हुई होगी यह पढ़ सुन कर इर्ष्या हो रही है।
Bahut Sunder, Bahut Sunder. Bhabya Sham ka Bhabya Vivaran aur usse bhi bhabya prastuti. Prashansa hetu shabdon ka jugarh nahin kar pa raha hun, kya kahun aur kitna kahun.
Ab lagata hai vakt ka takaja yah kah raha hai ki ab aap top-banduk ke chakkar se nikalen aur manoranjan ke kshetra mein hath aajmayen.
” वासँतिया चाँद ”
गीत की प्रस्तुति के साथ
ये मिलन – वर्णन
बहुत अच्छा लगा
— लावण्या
बहुत ही बढ़िया रिपोर्ट लिखी है आप ने और जिस अंदाज़ में लिखी है वो बेमिसाल है. इतने सारे ब्लोगेर्स के एक साथ इकठ्ठा होने पर ऐसी ही पोस्ट लिखी जा सकती है. समीर जी से मिलना एक अनुभव है लेकिन इसका लाभ मैं उनके मुम्बई प्रवास के दौरान अधिक नहीं उठा पाया. कंचन जी ने जिन शेर का वर्णन किया है उन्हे पढ़ कर तबियत हरी हो गयी. लगता है आप से मिलने कभी कानपूर आना ही पड़ेगा.
नीरज
अत: हम तो कड़ी का सन्दर्भ दे कर ही कर्तव्य मुक्त हुए। कभी अन्य रचनाओं का सन्दर्भ आपको सूचित किया जायेगा।