Saturday, April 19, 2008

अनूप शुक्ल के असली किस्से

http://web.archive.org/web/20101124001506/http://hindini.com/fursatiya/archives/425

अनूप शुक्ल के असली किस्से

ये शीर्षक मुझे मजबूरी में लिखना पड़ रहा है। लिखना दर असल चाहता था -तेरी तो ऐसी तैसी आलोक पुराणिक। लेकिन हुआ क्या आज सबेरे से आलोक पुराणिक का ब्लाग खुल नहीं रहा था। सो सोचा पाठक को क्यों भरमाया जाये। सच ही बताया जाये।
बताते चलें कि यह शीर्षक आलोक पुराणिक जी ने ज्ञानजी को सुझाया था। इससे पहले कि वे इस पर अपने मोबाइल से फोटो लगाकर कुछ सटायें उससे पहले हम ही इसे निपटा दें। कोई और आपके असली किस्से सुनाये इससे अच्छा आप ही सुना दें। है कि नहीं? :)
तो हुआ यह कि आज सुबह जब अनूप शुक्ल चाय पीते हुये नेट पर ब्लाग देख रहे थे तो सबसे पहले अपने ब्लाग पर आई नई टिप्पणियों को निहारने गये। उनका चेहरा उतर गया। केवल एक टिप्पणी आयी थी। उनको कारण समझ में न आ रहा था। बल्कि सच तो यह है कि तुरन्त समझ में आ गया। असल में अपनी पिछ्ली पोस्ट में अनूप शुक्ल ने समीरलाल का जिक्र किया था। जिक्र ही नहीं किया करेले पर नीम चढ़ाया और उनका गाना भी डाल दिया। लोग भड़क गये और शीर्षक देखकर ही वापस चले गये। अनूप शुक्ल को यह अहसास हुआ कि अगर जहां समीरलाल का जिक्र हुआ वहां बंटाधार पक्का है। ऐसा इतिहास भी बताता है। ज्ञानजी की गाड़ी में बैठे उनके लिखने में झटका लगा। जिससे उबरने के लिये वे आजकल राखी सावंत जी की सेवायें ले रहे थे। सेवाओं से फ़ायदा भी रहा है। ऐसा आलोक पुराणिक जी ने बताया। :)
राखी सावंतजी का जिक्र आते ही अनूप शुक्ल को दो दिन पहले ही देखी पिक्चर क्रेजी4 याद आ गयी। पिक्चर नहीं उसमें राखी सावंतजी का नृत्य। इसमें राखीजी ने बहुत कम कपड़ों में मेहनत से सूटिंग की है। लेकिन अब मजा ये देखिये कि अनूप शुक्ल देख राखी सावंत को रहे थे और उसी समय याद ज्ञानजी को और आलोक पुराणिक को कर रहे थे। यह जुगल-जोड़ी अनूप शुक्ल के दिमाग में तब तक घुसी रही जब तक राखीजी नृत्य रत रहीं। इधर गाना खतम हुआ उधर ये निकल लिये। क्या इस तरह का कोई नियम कानून है कि अनावश्यक किसी के दिमाग में घुस कर डिस्टर्ब करने वाले के खिलाफ़ कोई मुकदमा दायर किया जा सके? या कोई ऐसी तरकीब है क्या कि टिप्पणी माडरेशन की तरह दिमाग में घुसने की कोशिश करने वाले का माडरेशन किया जा सके? जिसके कि जब राखी जी को देख रहें हों और दिमाग में आलोक-ज्ञानजी घुसने का प्रयास करें तो हम कहें अभी पांच मिनट प्रतीक्षा करें। :)
इन्हीं किस्सों की कड़ी में एक किस्सा यह भी है कि जीतेन्द्र को बेटियों वाले ब्लाग से निकाल दिया। इस पर अनूप शुक्ल बहुत प्रमुदित च किलकित हुये। एक फ़ुरसतिया पोस्ट लिखने का मसौदा बनाया। मसौदा बनाया क्या लिख ही लिया था। टाइटिल यानी कि शीर्षक था एक खुला खत जीतेंद्र के नाम। लेकिन येन वक्त पर उनके दिमाग में अकल में घुस गयी- कूड़े को बाहर करके। उस अकल ने दिमाग पर कब्जा कर लिया और यह व्यवस्था दी कि बेटियों , नारियों , मोहल्ले वालों पर किसी किसिम की मजाक करने के पहले एक हफ़्ते का समय निकाल के रखों। उस मजाक को सब लोग अपने-अपने हिसाब से लेंगे। और लेने के देने पड़ जायेंगे।
जब अनूप शुक्ल यह लिख रहे थे तब उनके ही दिमाग के किसी कोने से आवाज आयी – बबुआ तुम अपने बारे में भ्रम पालते हो। तुम्हारी बात को पढ़ता कौन है? तुम्हारी बात का बुरा मानने का समय किसके पास है? यह आवास सुनते ही अनूप शुक्ल का मुंह झोले सा लटक गया। लेकिन वे भी कम खुराफ़ाती नहीं हैं। वे झट से अपनी अतीत-खाने में गये और सड़ा सा मुंह बनाकर खड़े से गले से बड़ा सा गाना गाने लगे-

पहले मुट्ठी में पैसे लेकर
थैला भर शक्कर लाते थे।
अब थैले में में पैसे लेकर
मुट्ठी में शक्कर लाते हैं।
इस गाने के बाद उनकी सुई अटक गयी। उन्होंने सोचा कि लगे हाथ मंहगाई-मंहगाई टाइप कुछ गा दिया जाये। लेकिन एक बार फ़िर अकल ने टोक दिया यह कहते हुये कि मंहगाई का जिक्र मजाक में नहीं करना चाहिये। मंहगाई बुरा मान जायेगी।
इतने के आगे उनकी पतंग और न उड़ सकी। घड़ी की तरफ़ देखा तो लगा घड़ी उनको घूर रही है। कह रही है चल उठ। मुंह धो। हाथ भी। पानी बचे तो नहा भी ले। दफ़्तर जा। फ़ाइलें इंतजार कर रही हैं। इंतजार तो और भी कोई कर रहा है लेकिन वह निराकार ईश्वर की तरह छुपा है।
वह और कौन है यह जानने के लिये पढ़ते रहे अनूप शुक्ल के असली किस्से। :)

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

18 responses to “अनूप शुक्ल के असली किस्से”

  1. अफ़लातून
    और असली अनूप शुक्ला के किस्से ?
  2. Gyan Dutt Pandey
    यह तो सरासर फर्जीवाड़ा है। जैसे किस्से की अपेक्षा ले कर एक सांस में पोस्ट पढ़ गये, वह तो कहीं दिखा नहीं।
    और मिलना भी कहां है जी। असली किस्से के लिये भी बूता चाहिये। सरकारी दो टकियों की नौकरी कर के इस युग में न रोमियो बना जा सकता है न गब्बर! सो किस्से बनने से रहे। :-)
  3. kakesh
    “अनूप शुक्ल के असली किस्से” के बाद पब्लिक की डिमांड पर “काकेश का असली चेहरा” भी लिखें ताकि हम आपका पहले वाला शीर्षक उठा के पोस्ट बना सकें.
  4. bhuvnesh
    अरे राखी सावंतजी आप यहां कहां इन लोगों के बीच फंस गयीं
    भगवान आपकी रक्षा करें :)
  5. अरूण
    तो ये अनूप शुकला कौन थे जिनके नकली किस्से हम आज तक झेलते रहे ? कृपया साफ़ करे कि आप असली है या वो असली थे ..? और जो भी असली थे या है वो कितने असली थे/है
  6. दिनेशराय द्विवेदी
    ये दिमाग में जबरन घुसने वालों के खिलाफ मुकदमा तो आप कर सकते हैं, वह भी फौजदारी, उन को आना पड़ेगा हर पेशी पर। आवभगत के लिए तैयार रहिएगा। मैं चलता हूँ अपने मुवक्किल पटाने….
  7. राखी सावंत
    मेको न बड़ी खुशी हुई. आज राखी सावंत का नाम केवल फिल्मों तक लिमिटेड नहीं रहा. आज मेरा नाम ब्लॉग पर भी चलता है. मेरे नाम से कितने ब्लॉग हित हैं. फिल्मों में जैसे मेरा आइटम नम्बर रहता हैं, वैसे ही ब्लॉग पर मेरी आइटम पोस्ट रहती है. राखी सावंत के अन्दर अदा है. जलवा है…………………………..अब मेरी वजह से केवल फिल्में हिट नहीं होती. ब्लॉग भी हिट होते हैं.
    अनूप जी, मैं आपको थैंक यू टू यू बोलती है.
  8. Isht Deo Sankrityaayan
    लागत है अनूप शुक्ला अब फुरसतिया नहीं रह गए क्या?
  9. yunus
    धत्‍तेरे की । हुआ ये कि हम टायटल देखकर वैसे ही आए जैसे फिल्‍म देखने जाते हैं ।
    पर भूल गये कि टाइटल तो अकसर झांसे में डालने वाले होते हैं । एक पंगेबाज़ थे और अब फुरसतिया बन गये झांसेबाज़ । बू हू हू हू । हम दुखी हैं । बहुत दुखी हैं ।
  10. संजय बेंगाणी
    हमे लगा कोई हतिमताईनूमा किस्सा होगा :) कई और तरह के साहित्यिक किस्से भी छपते है, वह भी यहाँ नहीं मिला :)
    कोई चटपटा सा किस्सा हो तो रसास्वादन करने फिर से आ जायें :)
    जारी रक्खो जी.
  11. समीर लाल
    फर्जी पोस्ट है जी!! टाईटिल से बुलवा लिये और फिर निकली वैसी है जैसी हमारे गाने वाली थी. :)
    अच्छा, अब से फिर सुनाईये एक सचमुच किस्सा तो हम एक गाना और सुनायेंगे. ठीक है?? :)
  12. समीर लाल
    अब तो आपके जलवे हो लिये. राखी सावंत भी आकर थैंक यू टू यू बोल गई. :) मल्लिका भी आती ही होंगी. शुभकामनायें.
  13. kanchan
    bas rakkhi Sawanta ka comment aa gaya…. vo bhi hindi me.n, ab kya chahiye fursatiya ji….. agali blogger meet unhi ke sath…kyon..?
  14. PD
    बढ़िया है जी.. मगर टाइटल का मजा नहीं मिला.. :(
  15. awadhesh
    मेको न इसीलिये ब्लॉग पर लिखने का मन होता है, कि जीवन में एक बार भी यदि राखी सावंत का कमेंट आ गया तो मेरे सड़क पर निकलते ही कम से कम कानपुर के लोग तो कहेंगे ही ” ए भाई..! ये तो वई आदमी जा रहा है जिसके ब्लॉग पर उस राखी सावंत ने कमेंट किया है जिसपे सभी कमेंट करते हैं।”
  16. abha
    उपमा बढिया दिया किमुहँ झोले सा लटक गया , किस्सा भी मनोरंजक है।
  17. नीरज रोहिल्ला
    समीरजी के बारे में अंट शंट लिखकर गडबड न हो जाये । ऐसा न हो कि लोग समीरजी को बुलवाने से पहले अपनी कुंडली बाँचना शुरू कर दें कि कहीं कोई मुसीबत तो नहीं आ रही है :-)
    क्रेजी ४, देख डाले । कैसी लगी राखी सावंत? हम तो सोचते ही रह गये कि जायें न जायें :-)
  18. nitishraj
    हमने तो सारी पोस्ट धड़ाधड़ पढ़ डाली और सबसे पहली लाइन में आलोक जी की ऐसी तैसी पढ़कर लगा कि जरूर आज तो अनूप जो को घेरने का मौका मिलने ही वाला है पर ये क्या ये तो पूरा ग्लास ही खाली है।

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