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हमारा समाज ‘एन्टी ह्यूमर’ है
By फ़ुरसतिया on May 26, 2008
पिछ्ले दो दिन लखनऊ में रहे।
वहां तमाम लोगों से मिलना हुआ। श्रीलाल शुक्लजी, अखिलेशजी, प्रभात टंडन जी, कंचन और अपने बचपन के मित्र विकास से।
श्रीलाल शुक्ल जी के पिछले महीने एक-कमरे से दूसरे कमरे जाते हुये गिरने से कमर में फ़्रैक्चर हो गया। सो वे आजकल बिस्तर पर हैं।
शाम के समय उनके घर गया। बिस्तर पर लेटे हुये थे। धीरे-धीरे बात करते रहे।
बता रहे थे पिछले दो वर्ष से जब से एन्जियोप्लास्टी करायी है, लगातार कोई न कोई तकलीफ़ बनी रहती है। लिखना-पढ़ना छूट गया है। याददास्त पर भी असर पड़ा है। बात करते करते किसी बात की कड़ी छूट जाती है।
श्रीलाल जी मैं कई बार मिल चुका हूं। अपने स्वास्थ्य के प्रति बहुत सजग रहने वाले हैं वे। एकाध बार कहा भी कि -मैं बिस्तर पर पड़े-पड़े नहीं जाना चाहता।
हालचाल पूछते हुये मैंने बताया कि आज रागदरबारी की पाडकास्ट हुआ है तो वे मुस्कराये। अपनी नयी किताबों के बारे में बताया। उनके सारे लेखन के कुछ -कुछ अंश लेकर
एक किताब जल्द ही आने वाली है।
बात करते-करते हड्डी के डाक्टर आ गये। अपने कानमोबाइल में किसी से बतियाते हुये कमरे में घुसे। श्रीलाल जी को देखा और बताया कि कल एक्सरे करायेंगे और अगर सब कुछ सही हुआ तो चलने के लिये कहेंगे।
डाक्टर के जाने के बाद श्रीलाल जी ने डाक्टर के बारे में बताया। बताया कि हमारा परिवार कमजोर कमर वालों का परिवार है। परिवार के कई सदस्य इसी कमरे में इन्ही डाक्टर से अपनी कमर का इलाज करवा चुके हैं। डाक्टर अपनी तमाम व्यस्तता के बावजूद समय से उनके घर आते हैं और देखते हैं।
डाक्टर के बारे में बताते हुये उन्होंने बताया कि एक बार उन्होंने डाक्टर को उनकी सेवाओं केब भुगतान करने का प्रयास किया तो डाक्टर ने कहा- अगर मुझे पता होता कि आप इसका भुगतान करने की बात करेंगे तो मैं आपके घर नहीं आता।
श्रीलाल जी से अपनी बीमारी और कमजोर आवाज के बावजूद धीरे-धीरे बात करते रहे। गिरिराज किशोर जी का जिक्र मैंने उनको बताया कि गिरिराज की कोई नयी किताब आयी है। वे तुरन्त बोले -कित्ती मोटी है?
इसके बाद उन्होंने गिरिराजजी और तमाम लेखकों के बारे में कई संस्मरण सुनाये। गिरिराज की किताब पहला गिरमिटिया की तारीफ़ करते हुये कहा- गिरिराज जी ने इस किताब पर बहुत मेहनत से काम किया है।
मोटी किताबों का जिक्र करते हुये उन्होंने बताया कि ये ‘मुग्दर साहित्य’ हैं। आप एक किताब को एक हाथ में और दूसरी को दूसरे हाथ में लेकर कसरत कर सकते हैं। मुगदर की कमी आप किताबों से दूर कर सकते हैं।
युसुफ़ी साहब की किताब खोया पानी का भी जिक्र आया। उन्होंने उसकी बहुत तारीफ़ की। यह भी कहा कि उनकी बाकी किताबें भी पढ़ने का बहुत मन है लेकिन एक तो वे मिलीं नहीं और दूसरे अब पढ़ने-लिखने में तकलीफ़ होती है।
दो साल पहले एक उपन्यास लिखना शुरू किया था। रोज दो पेज लिखते थे। २० दिन काम करके चालीस पेज लिख लिये थे लेकिन इसके बाद बीमारी के कारण लिखना स्थगित हो गया। खुद लिखना हो नहीं पाता, बोल के लिखवाना जमता नहीं।
अमरकान्त जी की बीमारी का जिक्र भी आया। उनका कहना था कि हम लोग जब कोई साहित्यकार बीमार हो जाता है , सरकार से गुहार-पुकार करने लगते हैं। उसी समय हमें सरकार की संवेदन हीनता दिखती है। इसके अलावा तमाम लोग अस्पतालों में बेइलाज मर जाते हैं उनके लिये मूलभूत स्वास्थ्य की जरूरतें मुहैया कराने के लिये न कोई मुहिम चलाते हैं न कोई दबाब बनाते हैं।
बाते करते-करते हल्के-फ़ुल्के साहित्य की बात चली। श्रीलाल जी ने कहा- हिंदी में हल्का साहित्य बहुत कम है। हल्के-फ़ुल्के ,मजाकिया साहित्य, को लोग हल्के में लेते हैं। सब लोग पाण्डित्य झाड़ना चाहते हैं।
हमने पूछा -ऐसा क्यों है कि हल्का साहित्य कम लिखा गया?
श्रीलाल जी का कहना था- हमारा समाज ‘एन्टी ह्यूमर’ है। हम मजाक की बात पर चिढ़ जाते हैं। व्यंग्य -विनोद और आलोचना सहन नहीं कर पाते। राजेन्द्र यादव ने
हनुमान कह दिया तो उनकी क्या हालत हुयी! यही गमीनत रही कि बस पिटे नहीं। परसाईजी को लोगों ने उनके घर में पीट दिया। खुशवंत सिंह की एक कहानी ‘बैन’ हो गयी क्योंकि उसमें सरदारों का मजाक उड़ाया गया था।
मैंने पूछा- जब हमारे गांवों ने हंसी-मजाक की परम्परा है और वहीं से जुड़े लेखक लेखन करते हैं तो फ़िर हल्के साहित्य का अकाल क्यों है?
श्रीलालजी का कहना था- गांवों में जो हंसी-मजाक है , गाली-गलौज उसका प्रधान तत्व है। वहां बाप अपनी बिटिया के सामने मां-बहन की गालियां देता रहता है। लेखन में यह सब स्वतंत्रतायें नहीं होतीं। इसलिये गांव-समाज हंसी-मजाक प्रधान होते हुये भी हमारे साहित्य में ह्यूमर की कमी है।
इसी सिलसिले में श्रीलाल जी ने एक किताब का जिक्र किया। एनाटामी आफ़ आफ़सीन राइटिंग। इस किताब में विश्व में तमाम (आफ़सीन)अश्लील लेखन के बारे में जिक्र था।
अपनी बीमारी के चलते वे पद्मभूषण सम्मान लेने भी न जा पाये। हिंदी में यशपाल, भगवतीचरण वर्मा के बाद साहित्यकार की हैसियत से पद्म भूषण से सम्मानित होने वाले तीसरे साहित्यकार हैं श्रीलाल जी।
तमाम बातें होती रहीं। चलते समय उनकी एक फोटो लेने के लिये मैंने अनुरोध किया तो वे बोले- ठीक हो जाऊं तो फोटो लेना आकर। इस मुद्रा में फोटो खिंचवाकर मैं अपनी बीमारी का प्रचार नहीं करना चाहता।
दुआ करता हूं कि श्रीलाल शुक्ल जी जल्दी स्वस्थ हों और अपना अधूरा उपन्यास पूरा करें।
वहां तमाम लोगों से मिलना हुआ। श्रीलाल शुक्लजी, अखिलेशजी, प्रभात टंडन जी, कंचन और अपने बचपन के मित्र विकास से।
श्रीलाल शुक्ल जी के पिछले महीने एक-कमरे से दूसरे कमरे जाते हुये गिरने से कमर में फ़्रैक्चर हो गया। सो वे आजकल बिस्तर पर हैं।
शाम के समय उनके घर गया। बिस्तर पर लेटे हुये थे। धीरे-धीरे बात करते रहे।
बता रहे थे पिछले दो वर्ष से जब से एन्जियोप्लास्टी करायी है, लगातार कोई न कोई तकलीफ़ बनी रहती है। लिखना-पढ़ना छूट गया है। याददास्त पर भी असर पड़ा है। बात करते करते किसी बात की कड़ी छूट जाती है।
श्रीलाल जी मैं कई बार मिल चुका हूं। अपने स्वास्थ्य के प्रति बहुत सजग रहने वाले हैं वे। एकाध बार कहा भी कि -मैं बिस्तर पर पड़े-पड़े नहीं जाना चाहता।
हालचाल पूछते हुये मैंने बताया कि आज रागदरबारी की पाडकास्ट हुआ है तो वे मुस्कराये। अपनी नयी किताबों के बारे में बताया। उनके सारे लेखन के कुछ -कुछ अंश लेकर
एक किताब जल्द ही आने वाली है।
बात करते-करते हड्डी के डाक्टर आ गये। अपने कानमोबाइल में किसी से बतियाते हुये कमरे में घुसे। श्रीलाल जी को देखा और बताया कि कल एक्सरे करायेंगे और अगर सब कुछ सही हुआ तो चलने के लिये कहेंगे।
डाक्टर के जाने के बाद श्रीलाल जी ने डाक्टर के बारे में बताया। बताया कि हमारा परिवार कमजोर कमर वालों का परिवार है। परिवार के कई सदस्य इसी कमरे में इन्ही डाक्टर से अपनी कमर का इलाज करवा चुके हैं। डाक्टर अपनी तमाम व्यस्तता के बावजूद समय से उनके घर आते हैं और देखते हैं।
डाक्टर के बारे में बताते हुये उन्होंने बताया कि एक बार उन्होंने डाक्टर को उनकी सेवाओं केब भुगतान करने का प्रयास किया तो डाक्टर ने कहा- अगर मुझे पता होता कि आप इसका भुगतान करने की बात करेंगे तो मैं आपके घर नहीं आता।
श्रीलाल जी से अपनी बीमारी और कमजोर आवाज के बावजूद धीरे-धीरे बात करते रहे। गिरिराज किशोर जी का जिक्र मैंने उनको बताया कि गिरिराज की कोई नयी किताब आयी है। वे तुरन्त बोले -कित्ती मोटी है?
इसके बाद उन्होंने गिरिराजजी और तमाम लेखकों के बारे में कई संस्मरण सुनाये। गिरिराज की किताब पहला गिरमिटिया की तारीफ़ करते हुये कहा- गिरिराज जी ने इस किताब पर बहुत मेहनत से काम किया है।
मोटी किताबों का जिक्र करते हुये उन्होंने बताया कि ये ‘मुग्दर साहित्य’ हैं। आप एक किताब को एक हाथ में और दूसरी को दूसरे हाथ में लेकर कसरत कर सकते हैं। मुगदर की कमी आप किताबों से दूर कर सकते हैं।
युसुफ़ी साहब की किताब खोया पानी का भी जिक्र आया। उन्होंने उसकी बहुत तारीफ़ की। यह भी कहा कि उनकी बाकी किताबें भी पढ़ने का बहुत मन है लेकिन एक तो वे मिलीं नहीं और दूसरे अब पढ़ने-लिखने में तकलीफ़ होती है।
दो साल पहले एक उपन्यास लिखना शुरू किया था। रोज दो पेज लिखते थे। २० दिन काम करके चालीस पेज लिख लिये थे लेकिन इसके बाद बीमारी के कारण लिखना स्थगित हो गया। खुद लिखना हो नहीं पाता, बोल के लिखवाना जमता नहीं।
अमरकान्त जी की बीमारी का जिक्र भी आया। उनका कहना था कि हम लोग जब कोई साहित्यकार बीमार हो जाता है , सरकार से गुहार-पुकार करने लगते हैं। उसी समय हमें सरकार की संवेदन हीनता दिखती है। इसके अलावा तमाम लोग अस्पतालों में बेइलाज मर जाते हैं उनके लिये मूलभूत स्वास्थ्य की जरूरतें मुहैया कराने के लिये न कोई मुहिम चलाते हैं न कोई दबाब बनाते हैं।
बाते करते-करते हल्के-फ़ुल्के साहित्य की बात चली। श्रीलाल जी ने कहा- हिंदी में हल्का साहित्य बहुत कम है। हल्के-फ़ुल्के ,मजाकिया साहित्य, को लोग हल्के में लेते हैं। सब लोग पाण्डित्य झाड़ना चाहते हैं।
हमने पूछा -ऐसा क्यों है कि हल्का साहित्य कम लिखा गया?
श्रीलाल जी का कहना था- हमारा समाज ‘एन्टी ह्यूमर’ है। हम मजाक की बात पर चिढ़ जाते हैं। व्यंग्य -विनोद और आलोचना सहन नहीं कर पाते। राजेन्द्र यादव ने
हनुमान कह दिया तो उनकी क्या हालत हुयी! यही गमीनत रही कि बस पिटे नहीं। परसाईजी को लोगों ने उनके घर में पीट दिया। खुशवंत सिंह की एक कहानी ‘बैन’ हो गयी क्योंकि उसमें सरदारों का मजाक उड़ाया गया था।
मैंने पूछा- जब हमारे गांवों ने हंसी-मजाक की परम्परा है और वहीं से जुड़े लेखक लेखन करते हैं तो फ़िर हल्के साहित्य का अकाल क्यों है?
श्रीलालजी का कहना था- गांवों में जो हंसी-मजाक है , गाली-गलौज उसका प्रधान तत्व है। वहां बाप अपनी बिटिया के सामने मां-बहन की गालियां देता रहता है। लेखन में यह सब स्वतंत्रतायें नहीं होतीं। इसलिये गांव-समाज हंसी-मजाक प्रधान होते हुये भी हमारे साहित्य में ह्यूमर की कमी है।
इसी सिलसिले में श्रीलाल जी ने एक किताब का जिक्र किया। एनाटामी आफ़ आफ़सीन राइटिंग। इस किताब में विश्व में तमाम (आफ़सीन)अश्लील लेखन के बारे में जिक्र था।
अपनी बीमारी के चलते वे पद्मभूषण सम्मान लेने भी न जा पाये। हिंदी में यशपाल, भगवतीचरण वर्मा के बाद साहित्यकार की हैसियत से पद्म भूषण से सम्मानित होने वाले तीसरे साहित्यकार हैं श्रीलाल जी।
तमाम बातें होती रहीं। चलते समय उनकी एक फोटो लेने के लिये मैंने अनुरोध किया तो वे बोले- ठीक हो जाऊं तो फोटो लेना आकर। इस मुद्रा में फोटो खिंचवाकर मैं अपनी बीमारी का प्रचार नहीं करना चाहता।
दुआ करता हूं कि श्रीलाल शुक्ल जी जल्दी स्वस्थ हों और अपना अधूरा उपन्यास पूरा करें।
Posted in संस्मरण | 19 Responses
अखिलेश जी का केवल जिक्र आया ।
क्या पिच्चर अभी बाकी है दोस्त ।
और हां एंटी-ह्यूमर वाली बात बेहद पसंद आई ।
वैसे ईश्वर श्रीलाल जी को जल्द कमर व दूसरे हिस्सों से दुरुस्त करें.
युसूफी साहब की हिन्दी में एक ही किताब छ्पी है “खोया पानी”. दूसरी किताब “धन-यात्रा” की तैयारी चल रही हैं. कुछ दिनों पहले तुफैल जी से बात हो रही थी तो उन्होने बताया था कि वह मई में पाकिस्तान जाने की योजना बना रहे हैं और जल्द ही युसूफी साहब की नयी रचनाओं से हिन्दी पाठकों को परिचित करवायेंगे.
एकदम सही कहा.
और हमारा समाज भले ही एंटी हुय्मर हो पर आप मे तों प्लेंटी हुय्मेर है. क्यों?
वैसे बहुत सही फरमाया उन्होंने….मेरे ख्याल में हमारा ह्यूमर भी ह्यूमर कम किसी का मजाक उड़ाने के लिए आशयित होता है….
ईश्वर से उनके अच्छे स्वास्थ्य की मंगलकामना.
आभार आपका कि आपने अपनी मुलाकात का विवरण हमें पढ़वाया.
आप चिन्ता न करें, ह्यूमर भी आयेगा और अपना रंग लेकर आयेगा ।
श्रीलाल शुक्ला जी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूँ ।
विद्यार्थी जीवन में तो ह्यूमर भरकर होता है उसके बाद कुछ कम सा हो जाता है, अन्य लोगों से बात करके ऐसा महसूस किया है ।