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पोस्ट लिखने के झमेले
By फ़ुरसतिया on March 20, 2009
सुबह उठे तो सोचा कि एक ठो पोस्ट लिखी जाये। यह सोचने में बहुत समय निकल
गया कि लिखा क्या जाये? एक बारगी सोचा जाये कि गजल/उजल पर हाथ साफ़ किया
जाये। लेकिन फ़िर मन नहीं किया। सोचे कि कहीं छोटी बहर/बड़ी बहर का मामला फ़ंस
गया तो देने के देने पड़ जायेंगे। लेने का तो स्वाल ही नहीं उठता जी।
वैसे भी ब्लाग जगत की ज्यादातर गजलें पंकज सुबीर जी के संसोधन के बाद ही छपती हैं। उनके आशीर्वाद के बिना कोई गजल छापना तो अच्छी बात नहीं समझी जाती। अब गुरुजी के स्कूल में हमारा तो रजिस्ट्रेशन भी नहीं है तो फ़िर गजल कैसे सुधरवाने के लिये भेजें? वह गजल जो अभी लिखी ही नहीं!
फ़िर सोचा कविता लिखी जाये क्या? आजकल मौसम बदल रहा है। एक छींकता है तो दूसरे को जुखाम हो जाता है। ब्लाग जगत में भी कविता का संक्रमण चल रहा है। पूजा मैडम ने वो कविता लिख मारी जो अभी जन्मी ही नहीं। मैडम ने डांट के लिख दिया:
हां तो बात संक्रमण की हो रही थी! पूजाजी की बंगलौर में लिखी संक्रामक कविता का असर जयपुर तक हुआ और कुश उसके चपेटे में आ गये और वहां नमी हो गयी। लेकिन डा.अनुराग कुश के मुकाबले थोड़ा ज्यादा संवेदन हैं लिहाजा मेरठ में बारिश होने लगी।
लेकिन हमने अपने को कविता लिखने के लालच से बचा लिया। साहित्य की इससे बड़ी सेवा और क्या हो सकती है।
लेकिन बात लिखने की हो रही थी। विषय सोचते हुये मैंने सोचा कि तमाम साथी ब्लागरों के फ़रमाइशी सवाल बकाया हैं! उनके ही जबाब दे दिये जायें! हमारे पास इस तरह के तमाम सवाल बकाया हैं:
फ़ुरसतिया की सतत मौज का स्रोत क्या है- ज्ञानजी
फ़ुरसतिया इस बात की जानकारी दें कि वे इत्ती मौज कैसे ले लेते हैं- ताऊ जी
आप इस बारे में एक क्लास लें कि एक लाईना कैसे लिखते हैं- शिवकुमार मिश्र
फ़ुरसतिया इत्ती लम्बी पोस्टें कैसे लिख (झेला) लेते हैं
इसी घराने के और तमाम सवाल हैं जिनके जबाब में एक-एक ठो पोस्ट लिखी जा
सकती है। हम लिखना शुरु भी कर दिये थे लेकिन हमें गुस्सा तो नहीं लेकिन
गुस्सा जैसा ही कुछ आ गया। हमें लगा कि देखिये लोग हमसे कैसे रूखे-सूखे
ब्लागरीय सवाल पूछते हैं जबकि शास्त्रीजी से लोग मन की उलझन/दुखवा मैं कासे कहूं सजनी टाइप के सवाल पूछते हैं! हम इसी ईर्ष्या में जल-भुन गये! कहा भी है- मैं पापन ऐसी जली कोयला भई न राख!
मन यह भी किया कि मौका है तमाम लोगों से ईर्ष्या ही कर लें लेकिन फ़िर सोचा कि ज्ञानजी के अधिकार क्षेत्र में दखल देना ठीक नहीं। वे ईर्ष्या के होल सेल डीलर हैं। सारी ईर्ष्या का स्टाक उनके कब्जे में हैं। जैसे राही मासूम की नायिकायें थी न (रजिया ने मुन्नन को देखा और तड़ से उस पर फ़िदा हो गयी!) वैसे ही ज्ञान जी की ईर्ष्या क्षमता अद्भुत है। वे कोई भी बहुत अच्छी चीज/गुण देखते हैं तड़ से उसके प्रति ईर्ष्यालु हो जाते हैं।
ज्ञानजी के ईर्ष्या का दायरा बहुत बड़ा है। इस दायरे में ब्लागर भी हैं, बगुला भी है, ऊंट भी है। क्या-क्या है यह लिखना बहुत मुश्किल है। अंतत: ज्ञान जी की ईर्ष्या क्षमता के प्रति नमन करते हुये( ईर्ष्या भाव से नहीं श्रद्धा भाव से) हमने ईर्ष्या करने का इरादा भी त्याग दिया। वैसे हम ज्ञानजी की इस ईर्ष्या करने की अद्भुत क्षमता से मौज लेना चाहते थे लेकिन ज्ञानजी की आशा का आदर करने हुये मन मार के मौज लेने का इरादा भी त्याग दिये।
सोचा कि एक लाईना लिखने के बारे में बताया जाये। लेकिन उसमें तकनीकी लोचा है। सोच नहीं पाये कि बताया जाये कि सिखाया जाये। बताया जाये तो ठीक है लेकिन सिखाया जाय तो कोई चेला होना चाहिये। चेला हमको एक लाइना लिख के भेजे-ड्राफ़्ट फ़ार अप्रूवल टाइप बना के फ़िर हम उसको सही/गलत करके वापस भेजें तब वो छापे! अपने ब्लाग पर- फ़ुरसतिया गुरू के आशीर्वाद से! लेकिन अभी तक कोई चेला ही नहीं बना तो सिखायें किसको?
अब अगर मौज लेने के बारे में क्लास लेने लगे तो दफ़्तर में हमारी क्लास हो जायेगी। इसलिये फ़िलहाल चलते हैं! फ़िर कभी मुलाकात होगी!
पढ़ना तो फ़िर होयगा, चलो सनीमा संग।
गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है, गढ़-गढ़ काढै खोट,
नोट लाऒ ट्यूशन पढ़ो, मिट जायें सब खोट।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांव,
नये जमाने का चलन, अब हेलो, टेक केयर, बाय।
सब धरती कागद करूं,लेखन सब बनराय,
सब जग के लफ़ड़े जोड़ लूं, गुरु गुन लिखा न जाये।
क्लास खत्म, घंटा बजा, गुरु प्रकट भे धरे मोबाइल कान,
सचिन संचुरी पीटि ले , तब शुरू किया जाये व्याख्यान।
चेले बहुत पढ़ा लिये अब चेली भी लाओ साथ,
मटुकनाथ सुनि चहक गये, थामा शिष्या(जूली) का हाथ।
डांटत-डांटत सुन री सखी, गुरुवर बहुत गये गरमाय,
चेहरा भट्टी सा लाल है, क्या चाय चढ़ायी जाये।
गुरुवर ऐसा चाहिये, जो हरदम होय सहाय,
बिनु आये हाजिर करे, और फिरि नकलौ देय कराय।
पढ़त-पढ़ावत दिन गया, गया न मनका फ़ेर,
अब तो परचा आउट करो, गुरुजी काहे करत हो देर।
राम-राम कर सब दिन गया, हम रटा राम का नाम,
गुरुजी ने झांसा दे दिया, पूछा- कौन गली गये श्याम!
गुरुवर ऐंठ-ऐंठे फ़िरत , मारत चेले को कंटाप,
चेला शिक्षामंत्री भवा, गुरुजी बोले-क्या लेंगे साहब आप!
पानी बरसत देखकर, गुरु का मन बहुत गया हरषाय,
‘रेनी डे’ कर क्लास में, गरम पकौड़ी रहे छ्नवाय।
गुरुवर आवत देखि के, लड़िकन करी पुकार,
लगता है अब पिट जायेंगे, है गई इंडिया हार।
काल्ह करे सो आजकर, आज करे सो अब
सरजी, परचा आउट करो, बहुरि करोगे कब?
चेले ऐसे चाहिये, जिससे गुरुवर को हो आराम,
राशन, सब्जी लाता रहे, करे सबरे घर के काम।
सतगुरु की महिमा अनत, अनत किया उपकार,
हमें बचाइन प्रेम से, खुद पैर में लिहिन(वही)कुल्हाड़ी मार।
गुरुवर पहुंचे बोर्ड पर, लगे सिखावन ज्ञान,
अटक गये अधबीच में, मुस्काकर बोले-चलो खिलायें पान!
राष्ट्रनिर्माता बन-बैठि के, गुरुवर बमचक दिहिन मचाय,
राजनीति में पैठि के, नारन ते आसमानौ दिहिनि गुंजाय।
गुरु-चेलन की चक्की देखकर, दिये ‘फुरसतिया’ रोय,
दो पाटन के बीच में, अब ज्ञान बचा न कोय।
अनूप शुक्ल
वैसे भी ब्लाग जगत की ज्यादातर गजलें पंकज सुबीर जी के संसोधन के बाद ही छपती हैं। उनके आशीर्वाद के बिना कोई गजल छापना तो अच्छी बात नहीं समझी जाती। अब गुरुजी के स्कूल में हमारा तो रजिस्ट्रेशन भी नहीं है तो फ़िर गजल कैसे सुधरवाने के लिये भेजें? वह गजल जो अभी लिखी ही नहीं!
फ़िर सोचा कविता लिखी जाये क्या? आजकल मौसम बदल रहा है। एक छींकता है तो दूसरे को जुखाम हो जाता है। ब्लाग जगत में भी कविता का संक्रमण चल रहा है। पूजा मैडम ने वो कविता लिख मारी जो अभी जन्मी ही नहीं। मैडम ने डांट के लिख दिया:
कविता को शब्दों की बैसाखियों की जरूरत नहींमतलब स्त्री होना मतलब कविता होना। क्या इसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि जिसने एक अच्छी सी कविता लिख दी वह स्त्री हो गया। कम से एक कविता के बराबर स्त्री हो गया। थोड़ा सा अर्धनारीश्वर हो लिया!
हर स्त्री अपने आप में होती है एक कविता
सिर्फ़ अपने होने से…
हां तो बात संक्रमण की हो रही थी! पूजाजी की बंगलौर में लिखी संक्रामक कविता का असर जयपुर तक हुआ और कुश उसके चपेटे में आ गये और वहां नमी हो गयी। लेकिन डा.अनुराग कुश के मुकाबले थोड़ा ज्यादा संवेदन हैं लिहाजा मेरठ में बारिश होने लगी।
लेकिन हमने अपने को कविता लिखने के लालच से बचा लिया। साहित्य की इससे बड़ी सेवा और क्या हो सकती है।
लेकिन बात लिखने की हो रही थी। विषय सोचते हुये मैंने सोचा कि तमाम साथी ब्लागरों के फ़रमाइशी सवाल बकाया हैं! उनके ही जबाब दे दिये जायें! हमारे पास इस तरह के तमाम सवाल बकाया हैं:
मन यह भी किया कि मौका है तमाम लोगों से ईर्ष्या ही कर लें लेकिन फ़िर सोचा कि ज्ञानजी के अधिकार क्षेत्र में दखल देना ठीक नहीं। वे ईर्ष्या के होल सेल डीलर हैं। सारी ईर्ष्या का स्टाक उनके कब्जे में हैं। जैसे राही मासूम की नायिकायें थी न (रजिया ने मुन्नन को देखा और तड़ से उस पर फ़िदा हो गयी!) वैसे ही ज्ञान जी की ईर्ष्या क्षमता अद्भुत है। वे कोई भी बहुत अच्छी चीज/गुण देखते हैं तड़ से उसके प्रति ईर्ष्यालु हो जाते हैं।
ज्ञानजी के ईर्ष्या का दायरा बहुत बड़ा है। इस दायरे में ब्लागर भी हैं, बगुला भी है, ऊंट भी है। क्या-क्या है यह लिखना बहुत मुश्किल है। अंतत: ज्ञान जी की ईर्ष्या क्षमता के प्रति नमन करते हुये( ईर्ष्या भाव से नहीं श्रद्धा भाव से) हमने ईर्ष्या करने का इरादा भी त्याग दिया। वैसे हम ज्ञानजी की इस ईर्ष्या करने की अद्भुत क्षमता से मौज लेना चाहते थे लेकिन ज्ञानजी की आशा का आदर करने हुये मन मार के मौज लेने का इरादा भी त्याग दिये।
सोचा कि एक लाईना लिखने के बारे में बताया जाये। लेकिन उसमें तकनीकी लोचा है। सोच नहीं पाये कि बताया जाये कि सिखाया जाये। बताया जाये तो ठीक है लेकिन सिखाया जाय तो कोई चेला होना चाहिये। चेला हमको एक लाइना लिख के भेजे-ड्राफ़्ट फ़ार अप्रूवल टाइप बना के फ़िर हम उसको सही/गलत करके वापस भेजें तब वो छापे! अपने ब्लाग पर- फ़ुरसतिया गुरू के आशीर्वाद से! लेकिन अभी तक कोई चेला ही नहीं बना तो सिखायें किसको?
अब अगर मौज लेने के बारे में क्लास लेने लगे तो दफ़्तर में हमारी क्लास हो जायेगी। इसलिये फ़िलहाल चलते हैं! फ़िर कभी मुलाकात होगी!
मेरी पसंद
सतगुरु हमसे रीझिकर, एक कह्या प्रसंग,पढ़ना तो फ़िर होयगा, चलो सनीमा संग।
गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है, गढ़-गढ़ काढै खोट,
नोट लाऒ ट्यूशन पढ़ो, मिट जायें सब खोट।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांव,
नये जमाने का चलन, अब हेलो, टेक केयर, बाय।
सब धरती कागद करूं,लेखन सब बनराय,
सब जग के लफ़ड़े जोड़ लूं, गुरु गुन लिखा न जाये।
क्लास खत्म, घंटा बजा, गुरु प्रकट भे धरे मोबाइल कान,
सचिन संचुरी पीटि ले , तब शुरू किया जाये व्याख्यान।
चेले बहुत पढ़ा लिये अब चेली भी लाओ साथ,
मटुकनाथ सुनि चहक गये, थामा शिष्या(जूली) का हाथ।
डांटत-डांटत सुन री सखी, गुरुवर बहुत गये गरमाय,
चेहरा भट्टी सा लाल है, क्या चाय चढ़ायी जाये।
गुरुवर ऐसा चाहिये, जो हरदम होय सहाय,
बिनु आये हाजिर करे, और फिरि नकलौ देय कराय।
पढ़त-पढ़ावत दिन गया, गया न मनका फ़ेर,
अब तो परचा आउट करो, गुरुजी काहे करत हो देर।
राम-राम कर सब दिन गया, हम रटा राम का नाम,
गुरुजी ने झांसा दे दिया, पूछा- कौन गली गये श्याम!
गुरुवर ऐंठ-ऐंठे फ़िरत , मारत चेले को कंटाप,
चेला शिक्षामंत्री भवा, गुरुजी बोले-क्या लेंगे साहब आप!
पानी बरसत देखकर, गुरु का मन बहुत गया हरषाय,
‘रेनी डे’ कर क्लास में, गरम पकौड़ी रहे छ्नवाय।
गुरुवर आवत देखि के, लड़िकन करी पुकार,
लगता है अब पिट जायेंगे, है गई इंडिया हार।
काल्ह करे सो आजकर, आज करे सो अब
सरजी, परचा आउट करो, बहुरि करोगे कब?
चेले ऐसे चाहिये, जिससे गुरुवर को हो आराम,
राशन, सब्जी लाता रहे, करे सबरे घर के काम।
सतगुरु की महिमा अनत, अनत किया उपकार,
हमें बचाइन प्रेम से, खुद पैर में लिहिन(वही)कुल्हाड़ी मार।
गुरुवर पहुंचे बोर्ड पर, लगे सिखावन ज्ञान,
अटक गये अधबीच में, मुस्काकर बोले-चलो खिलायें पान!
राष्ट्रनिर्माता बन-बैठि के, गुरुवर बमचक दिहिन मचाय,
राजनीति में पैठि के, नारन ते आसमानौ दिहिनि गुंजाय।
गुरु-चेलन की चक्की देखकर, दिये ‘फुरसतिया’ रोय,
दो पाटन के बीच में, अब ज्ञान बचा न कोय।
अनूप शुक्ल
ऐसा करते हैं: आप एकलाईना लिखने का गुरुमंत्र हम को दे दें, लोगों को आकर्षित करने का मंत्र हम आपको दे देंगे. साथ में एक चीज फ्री — कि भडकाऊ शीर्षक कैसे लिखा जाये! (यह मुफ्त स्कीम सिर्फ आज आने वाले ग्राहक के लिये है!!)
सस्नेह — शास्त्री
पुनश्च: प्रभु आपकी कलम को इसी तरह जीवंत बनाये रखें !!
” ओह यहाँ का काम अधुरा छोड़ कर जाने की सजा का डर नहीं आपको हाँ …….हा हा हा हा हा बहुत मजेदार लगी….आज की ये पोस्ट”
काल्ह करे सो आजकर, आज करे सो अब
सरजी, परचा आउट करो, बहुरि करोगे कब?
” अरे वाह ये तो हमरे मन की लाइन लिख दी आपने अभी रामप्यारी से यही दरखास्त कर के आ रहे हैं ताऊ जी कल की पहेली के बारे मे…….चाकलेट से कम में वो भी बात तक नहीं करती….हा हा हा ”
Regards
ऐसा काहे सोचते है जो मन में आवे सो लिखे आखिर ब्लॉग अपने विचारो को अभिव्यक्त करने के लिए बनाये गए है .
दोहे तो गजब रहे.
दोहो की मार, फागुनी बयार
गुरू-चेले की महिमा पर बड़े ही चुटीले व्यंग्य. मजा आ गया. मुझे तो विशेषतः यह बहुत ही पसंद आया :-
गुरुवर आवत देखि के, लड़िकन करी पुकार,
लगता है अब पिट जायेंगे, है गई इंडिया हार।
बधाईयाँ.
मुकेश कुमार तिवारी
अब के गुरु ऐसा भया, सबरे गुरुवर रोए
मीन मलीन जो आ गई,गंदा तरुवर होए.
वैसे कसम से दूरबीन उठाकर जरा खिड़की से देखिये सूरज हमारे शहर में निकला नहीं है …अरे ….देखिये मौज लीक कर गयी लगता है …..कम्पूटर से बाहर निकल कर बह रही है …
जे हो फुरसतिया महाराज की.!
सोचते हैं किसी दिन आपके कम्पूटर में सेंध लगाएं और देखें कहीं कुछ आईडिया वायिडिया स्टोर करके रखें हों तो उड़ा लें आयें
अब किसी दिन हमारी पिटाई हो जायेगी और पीडी के सामान हम भी टूटी टांग का रोना रोयेंगे…अब बताइए हम किसको डांट सकते हैं भला…कवि तो वैसे भी नर्म दिल होता है उसपर स्त्री. बस संक्रमण भर फैला सकते हैं
स्त्री है वो कविता है…पर हर अच्छी कविता स्त्री हो जरूरी नहीं है न. ये वो केस है कि A=B, but B is not equal to A
अगर कविता के बारे में इतना लिख के ये कविता टाइप जो आप आखिर में लिखे हैं, उ क्या है…हम तो कहेंगे आपको भी संक्रमण हो गया है.
” फ़ुरसतिया जी , धागा गुरु -शिष्यन का मत तोडो चटकाय!
टूटे से फ़िर ना जुडे,जुड़े गाँठ पड़ॅ जाय! “
ये ज्ञान जी आपको फिर किसी पंथी का महन्त बताय रहे हैं . अभी पिरमोद भाय सुन लेंगे तो फिर जोइ-सोइ कछु गाना शुरु करेंगे .
जय हो ! जय हो !
आपकी महन्ताई बनी रहे . मन-भर चढावा आता रहे . चेले मतियाएं नहीं . चेलियां शरमाएं नहीं . रोज बूटी घुटे . और रोज यूं ही मौज लुटे .
जय हो ! जय हो !
शास्त्री जी बिचारे हथियार डाल दिये हैं अब काहे उन्हें टोहनिया रहे हैं . उन पर नज़र रखने के लिए तो महिला-मण्डल काफ़ी है . अब तो ऊ आपको आसिरबाद भी दे रहे हैं कलम को जीवंत बनाए रखने का . गुस्सा थूकिए और उनको भी पास में प्लॉट दिला दीजिए . मठ के वास्ते .
जय हो मौजवादी सम्प्रदाय — मौजपंथी अखाड़े — के गद्दीपति महंत संत श्री अनूपानन्द जी महाराज की .
डा. अनुराग की टिप्पणी कि अब समझ में आया .बरसो से इसका टेंडर आपके नाम ही काहे खुलता है का भी उत्तर मिल सकेगा शायद!
पूजा जी की टिप्पणी और प्रस्तुत समीकरण की व्याख्या स्त्री है वो कविता है…पर हर अच्छी कविता स्त्री हो जरूरी नहीं है न. ये वो केस है कि A=B, but B is not equal to A पढ़कर अनायास ध्यान स्व. श्री श्याम नारायण पाण्डेय के काव्य “हल्दीघाटी” की और चला गया – “रण बीच चौकड़ी… ” तब उनकी बात का उत्तरार्ध तो सही जान पड़ा कि शायद हर अच्छी कविता स्त्री न होती हो!
राशन, सब्जी लाता रहे, करे सबरे घर के काम।
काश ऐसे दो चार चेले चपाटी मिल जायें तो बडा आराम हो जाये.:)
जय हो महंत फ़ुरसतिया जी की.
चलो जी, इसे कहते हैं तारणहार !
गुरु हो तो कैसा हो.. फ़ुरसटिया जैसा हो.. भले बरस दो बरस बाद हो ।
गुरुवर ( जी हाँ, आप मुगालते में न रहें.. वह गुरुवर पद से परमानेन्टली चिपक चुके हैं.. घंटाल आप तलाशें )..
तो गुरुवर के ईर्ष्यत्व / ईर्ष्यातीयता पर मेरे गोदाम में भी तैयार माल है..
पर सप्लाई कैसे करें… अभी टैम नहीं है ….भाई !
भाईचारा डिस्टर्ब होता है.. बूझे के नहीं..
वह भाई हैं और मैं चारा !
हे हे हे..
भाई तो भाई आप भी भाई हो..
सो, माडरेट करते समय एक्ठो स्माइली का डिस्क्लेमर ठोंक दीजियेगा
शत शत प्रणाम……॥फ़ुरसतिया की सतत मौज का स्रोत क्या है- ज्ञानजी
इस लाइन में ज्ञान जी ने सवाल पूछा है या सवाल का जवाब है ज्ञान जी
अगर ज्ञान जी की पोस्ट न होतीं तो आप का मौज लेने का आधा स्त्रोत तो सूख गया होता॥नहीं क्या?
गुरुवर ऐसा चाहिये, जो हरदम होय सहाय,
बिनु आये हाजिर करे, और फिरि नकलौ देय कराय।
॥:)
कोई भी अच्छी चीज सिखानी शुरू करिए चेले खुद मिल जायेगें आपको
वैसे आपको बताने के लिए बता दूं की श्री पंकज सुबीर जी पिछले १.५ साल से बिना ये सोंचे की उनके कितने चेले हैं गजल की जानकारी दे रहे है पेड़ लगते ही आम नहीं मिलने लगता
गुरु जी की क्लास में कोई रजिस्ट्रेशन नहीं होता कोई फीस भी नहीं लगती है आप जब चाहें गजल इस्लाह के लिए भेज सकते है उनकी मेल है subeerin.gmail.com
और हाँ गजल ही भेजियेगा उजल मत भेज दीजियेगा नहीं तो बहुत डांट भी पड़ती है और संटी भी खानी पड़ती है
होली तो चली गई है मगर आप बुरा मत मानियेगा
वीनस केसरी
http://kavisparsh.blogspot.com/2009/03/blog-post_18.html
दोहों ने मन प्रसन्न कर दिया है देव….और तमाम प्रश्नों का व्याख्या समेत जो प्रकाश डाले हैं तो चित्त आहहाहाहाहा…..
दोहों पर उत्तरआधुनिकता ‘पसर’ गई है. खूब नई मिट्टी कूटने की कवायद है।
हुण मौजाँ-ई-मौजाँ
और वो भी मौज सम्राट को .
अरे भाई एक बार नेट पे रजिस्ट्रेशन खोल कर देखिये , जी मेल कम पड जायेगी.
कविता बहुत अच्छी लिखी है ..बधाई