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गर्मी का सौन्दर्य वर्णन
By फ़ुरसतिया on July 3, 2009
गर्मी की अब चला-चली की बेला है। कुछ दिन में गर्मी अपना चार्ज बारिश को
देकर चली जायेगी । बारिश शपथ ग्रहण के लिये कसमसा रही है। गर्मी से मौसम
की सत्ता बारिश को हस्तांतरित होने के बाद फ़िर बारिश का जलवा होगा।
नाले-नालियां उफ़नायेंगे। सूखा राहत कोष में बंटने वाली बची धनराशि बाढ़ राहत
कोश में हिल्ले लगा दी जायेगी। जनता के लिये रोने के लिये लगे-लगे दो मौसम
मिल जायेगें। एक के साथ एक फ़्री वाले पैकेज में। बहरहाल!
हमने एक बात लक्ष्य की है कि हिन्दी साहित्य में गर्मी का सौन्दर्य वर्णन काफ़ी कम किया गया है। किया भी गया है तो हमारी निगाह से अभी तक नहीं गुजरा। अब जब हमारी निगाह से नहीं गुजरा तो उसका क्या नोटिस लिया जाना? हो सकता है कि सारा गर्मी सौंदर्य वर्णन हमारी निगाह बचा के निकल गया होगा। पहले का पुरानी सोच का होगा न! पहले का सौंदर्य शर्मीला होता होगा। निगाह नीची करके रहता होगा। अदब से निकल गया होगा। आजकल की तरह बिंदास सौंदर्य होता तो ऐसा भड़भड़ा के हल्ला मचाते हुये निकलता कि कान में ईअर प्लग लगा कर देखना पड़ता।
हिन्दी प्रेमी होने के नाते हमारी भी आत्मा कभी-कभी छटपटाती है कि जो नहीं है हमारे साहित्य में वह रचा जाये। जो कमी है उसे पूरी किया जाये। हम इस मुगालते में नहीं है कि हम अकेले हैं इस तरह हुड़कने वाले। तमाम साथी हैं जो इस तरह की तमन्ना लिये हैं। हुड़कते हैं और फ़ड़कते हुए रचनारत हैं। साहित्य की तमाम कमियों को पूरा करने के प्रयास में दण्ड पेल रहे हैं। अब यह अलग बात है कि दण्ड पेलने के बाद जो पसीना वे निकालते हैं उसको कोई साहित्य मानने को ही नहीं तैयार है।
हिन्दी साहित्य में छीछालेदर की मात्रा कुछ कम है, अनाम लेखन की परम्परा में थोड़ा हाथ तंग है। लोग अपने लिखे की जिम्मेदारी तो लेते ही हैं बखत जरूरत दूसरे के लेखन को भी अपना बताने की जिम्मेदारी निभा देते हैं। आपसी वाह-वाही में भी थोड़ा सूनापन है। ये सारी कमियां हमारे साथी ब्लागर ,बजरिये ब्लागिंग, पूरा करने में उछल-कूद कर रहे हैं। पसीने-पसीने हो रहे हैं।
इस संक्षिप्त लफ़्फ़ाजी भरी भूमिका बांध लेने के बाद आइये गर्मी साहित्य सृजन रत हो जाया जाये । रत हो जाना मतलब जुट जाना या फ़िर अगर बिंदास ब्लागर की भाषा में कहें तो पिल पड़ा जाये। कुछ बिम्ब पेश किये जा रहे हैं। आप देखें कि गर्मी के बारे में क्या कुछ कहा जा सका?
१.सूरज किसी गर्म मिजाज अफ़सर की तरह दुनिया भर में दौरा कर रहा है। दुनिया भर के लोग उसको देखते ही कमजोर दिल /कामचोर अधीनस्थों की तरह छिपकर अपनी जान बचा रहे हैं।
२.गर्मी के मौसम में सड़क पर तारकोल पिघल रहा है। लग रहा है सड़क के आंसू निकल रहे हैं। बादलों के वियोग में वह काले आंसू रो रही है।
३.चांद सूरज की चमक से ही चमकता है। लेकिन लोग उसकी तारीफ़ सूरज से ज्यादा करते हैं। इससे साबित होता है कि लोग शान्त स्वभाव वाले व्यक्ति को ज्यादा पसंद करते हैं भले ही वह कमजोर हो और उधार की खाता हो। सूरज शायद इसी बात से भन्नाया रहता है।
४.सूरज की निगाह बचाकर दो पेड़ों की छायायें एक-दूसरे से सटकर आनन्दानुभूति में डूब गयीं हैं। इनको कोई रोकने टोकने वाला वाला नहीं है। सबको पता है कि टोकते ही ये भड़क जायेंगी- हमारी जिन्दगी में दखल देने वाले तुम कौन हो?
५.बादलों को इंद्र ने बरसने का आदेश बीते माह ही दे दिया है लेकिन वे हड़ताल पर हैं और कह रहे हैं कि पहले हमें छ्ठे वेतन आयोग के अनुसार वेतन और भत्ते दिये तब हम पानी की खेप आगे ले जायेंगे।
६.एक बुजुर्ग बदली ने एक बिंदास बादल के साथ बरसने से इंकार कर दिया है। उसने इन्द्र के यहां अर्जी लगायी है कि यह मुआ बादल गरजता कम हंसता ज्यादा है। इससे हमारा मन बरसने का मूड खराब करता है। जरा सा भी सीरियस नहीं रहता। आप तो जानते हैं हंसने से मुझे एलर्जी है। मुझे कोई दूसरा जोड़ीदार बादल दिया जाये। बादल ने अपनी सफ़ाई में कहा है- साहब मैं तो फ़ेफ़ड़े साफ़ करने की एक्सरसाइज कर रहा हूं। अगर हसूंगा नहीं तो सांस फ़ंस जायेगी। टें बोल जाऊंगा। इन्द्र भगवान ने वैकल्पिक व्यवस्था होने तक यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया है।
७.बादल बदली का पीछा छोड़कर एक कमसिन बादल के पीछे लग लिया है। लग रहा है इनके यहां भी समलैंगिकता को अनुमति मिल गयी है।
८.अंधेरे जीने में कई मिनटों की मसक्कत के बाद नायक ने नायिका से कहानी आगे बढ़ाने की मौन स्वीकृति सी पाई है। वह प्रेमालाप का फ़ीता काटने ही वाला था कि नल में पानी आने की आवाज सुनकर नायिका उसको झटककर पानी भरने चली गयी।
९.पनघट पर हमारा पति कैसा हो विषय पर चर्चा चल रही थी। एक सुमुखि का कहना था – पानी की समस्या देख-सुनकर तो मन करता है कि ऐसा पति मिले जो जरा-जरा सी बात पर रोने लगता हो। थोड़े-बहुत पानी का तो आसरा रहेगा। आखों का पानी देखकर ही जी जुड़ा लेंगे।
१०.एक ही तराजू पर तुलकर अलग-अलग झोले में डाले जाते हुये खरबूजे और तराजू ने विदा होते हुये कहा कौन जाने पानी का ऐसा अकाल पड़े कि हमारा अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाये और हम-तुम किताबों में ही दिखें केवल।
११.पति ने पत्नी को ई-मेल करते हुये अपना विरह दुख बताया- गर्मी की छुट्टियों में जब से तुम गयी हो ऐसा लगता है कि नल से पानी चला गया है। रातें ऐसे सांय-सांय करती हैं जैसे नल आने का झांसा देते हुये सांय-सांय करता है। बादल नेताओं की तरह मौका मुआयना करके चले गयें, पलट के नहीं देखा। अब तो वे बदलियों के संग भी नहीं दिखाये देते। लगता है उनमें भी आपस में पटती नहीं या फ़िर लगता है उनके यहां भी खर्चे को लेकर खटपट होने लगी है। यह भी हो सकता है कि खर्चे कम करने के लिये बादल ने उसको मैके भेज दिया है जैसे तुम छुट्टियों में अपने मम्मी-पापा के पास चली गयी हो। तुम्हारे वियोग में दिल खून के आंसू रोने की सोच रहा था लेकिन फ़िर अपनी पिछली ब्लड रिपोर्ट को ध्यान में रखकर मैंने दिल को इस ऐय्यासी के बारे में सोचने के लिये डांट दिया। बहुत देर तक गुमसुम बना रहा बेचारा। इस पर हमने उसे फ़िर कामचोरी के लिये डांट दिया। इस पर वो बदमास राजधानी एक्सप्रेस की तरह दौड़ने लगा। हमने फ़िर उसे प्यार से समझाया कि पेट्रोल का दाम बड़ गया है भैया जरा कायदे से चलो। तबसे ठीक है। बदमाशों से भी प्यार से बात करने से बात बन जाती है। तुम आटा गूंथकर गयी वो अभी तक गीला बना हुआ है। समझ में नहीं आता कि उसमें आटा मिलाकर ठीक करूं कि धूप में सुखाकर बराबर करूं। जल्दी से अपनी मम्मी से पूछकर बताओ!
हमने एक बात लक्ष्य की है कि हिन्दी साहित्य में गर्मी का सौन्दर्य वर्णन काफ़ी कम किया गया है। किया भी गया है तो हमारी निगाह से अभी तक नहीं गुजरा। अब जब हमारी निगाह से नहीं गुजरा तो उसका क्या नोटिस लिया जाना? हो सकता है कि सारा गर्मी सौंदर्य वर्णन हमारी निगाह बचा के निकल गया होगा। पहले का पुरानी सोच का होगा न! पहले का सौंदर्य शर्मीला होता होगा। निगाह नीची करके रहता होगा। अदब से निकल गया होगा। आजकल की तरह बिंदास सौंदर्य होता तो ऐसा भड़भड़ा के हल्ला मचाते हुये निकलता कि कान में ईअर प्लग लगा कर देखना पड़ता।
हिन्दी प्रेमी होने के नाते हमारी भी आत्मा कभी-कभी छटपटाती है कि जो नहीं है हमारे साहित्य में वह रचा जाये। जो कमी है उसे पूरी किया जाये। हम इस मुगालते में नहीं है कि हम अकेले हैं इस तरह हुड़कने वाले। तमाम साथी हैं जो इस तरह की तमन्ना लिये हैं। हुड़कते हैं और फ़ड़कते हुए रचनारत हैं। साहित्य की तमाम कमियों को पूरा करने के प्रयास में दण्ड पेल रहे हैं। अब यह अलग बात है कि दण्ड पेलने के बाद जो पसीना वे निकालते हैं उसको कोई साहित्य मानने को ही नहीं तैयार है।
हिन्दी साहित्य में छीछालेदर की मात्रा कुछ कम है, अनाम लेखन की परम्परा में थोड़ा हाथ तंग है। लोग अपने लिखे की जिम्मेदारी तो लेते ही हैं बखत जरूरत दूसरे के लेखन को भी अपना बताने की जिम्मेदारी निभा देते हैं। आपसी वाह-वाही में भी थोड़ा सूनापन है। ये सारी कमियां हमारे साथी ब्लागर ,बजरिये ब्लागिंग, पूरा करने में उछल-कूद कर रहे हैं। पसीने-पसीने हो रहे हैं।
इस संक्षिप्त लफ़्फ़ाजी भरी भूमिका बांध लेने के बाद आइये गर्मी साहित्य सृजन रत हो जाया जाये । रत हो जाना मतलब जुट जाना या फ़िर अगर बिंदास ब्लागर की भाषा में कहें तो पिल पड़ा जाये। कुछ बिम्ब पेश किये जा रहे हैं। आप देखें कि गर्मी के बारे में क्या कुछ कहा जा सका?
१.सूरज किसी गर्म मिजाज अफ़सर की तरह दुनिया भर में दौरा कर रहा है। दुनिया भर के लोग उसको देखते ही कमजोर दिल /कामचोर अधीनस्थों की तरह छिपकर अपनी जान बचा रहे हैं।
२.गर्मी के मौसम में सड़क पर तारकोल पिघल रहा है। लग रहा है सड़क के आंसू निकल रहे हैं। बादलों के वियोग में वह काले आंसू रो रही है।
३.चांद सूरज की चमक से ही चमकता है। लेकिन लोग उसकी तारीफ़ सूरज से ज्यादा करते हैं। इससे साबित होता है कि लोग शान्त स्वभाव वाले व्यक्ति को ज्यादा पसंद करते हैं भले ही वह कमजोर हो और उधार की खाता हो। सूरज शायद इसी बात से भन्नाया रहता है।
४.सूरज की निगाह बचाकर दो पेड़ों की छायायें एक-दूसरे से सटकर आनन्दानुभूति में डूब गयीं हैं। इनको कोई रोकने टोकने वाला वाला नहीं है। सबको पता है कि टोकते ही ये भड़क जायेंगी- हमारी जिन्दगी में दखल देने वाले तुम कौन हो?
५.बादलों को इंद्र ने बरसने का आदेश बीते माह ही दे दिया है लेकिन वे हड़ताल पर हैं और कह रहे हैं कि पहले हमें छ्ठे वेतन आयोग के अनुसार वेतन और भत्ते दिये तब हम पानी की खेप आगे ले जायेंगे।
६.एक बुजुर्ग बदली ने एक बिंदास बादल के साथ बरसने से इंकार कर दिया है। उसने इन्द्र के यहां अर्जी लगायी है कि यह मुआ बादल गरजता कम हंसता ज्यादा है। इससे हमारा मन बरसने का मूड खराब करता है। जरा सा भी सीरियस नहीं रहता। आप तो जानते हैं हंसने से मुझे एलर्जी है। मुझे कोई दूसरा जोड़ीदार बादल दिया जाये। बादल ने अपनी सफ़ाई में कहा है- साहब मैं तो फ़ेफ़ड़े साफ़ करने की एक्सरसाइज कर रहा हूं। अगर हसूंगा नहीं तो सांस फ़ंस जायेगी। टें बोल जाऊंगा। इन्द्र भगवान ने वैकल्पिक व्यवस्था होने तक यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया है।
७.बादल बदली का पीछा छोड़कर एक कमसिन बादल के पीछे लग लिया है। लग रहा है इनके यहां भी समलैंगिकता को अनुमति मिल गयी है।
८.अंधेरे जीने में कई मिनटों की मसक्कत के बाद नायक ने नायिका से कहानी आगे बढ़ाने की मौन स्वीकृति सी पाई है। वह प्रेमालाप का फ़ीता काटने ही वाला था कि नल में पानी आने की आवाज सुनकर नायिका उसको झटककर पानी भरने चली गयी।
९.पनघट पर हमारा पति कैसा हो विषय पर चर्चा चल रही थी। एक सुमुखि का कहना था – पानी की समस्या देख-सुनकर तो मन करता है कि ऐसा पति मिले जो जरा-जरा सी बात पर रोने लगता हो। थोड़े-बहुत पानी का तो आसरा रहेगा। आखों का पानी देखकर ही जी जुड़ा लेंगे।
१०.एक ही तराजू पर तुलकर अलग-अलग झोले में डाले जाते हुये खरबूजे और तराजू ने विदा होते हुये कहा कौन जाने पानी का ऐसा अकाल पड़े कि हमारा अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाये और हम-तुम किताबों में ही दिखें केवल।
११.पति ने पत्नी को ई-मेल करते हुये अपना विरह दुख बताया- गर्मी की छुट्टियों में जब से तुम गयी हो ऐसा लगता है कि नल से पानी चला गया है। रातें ऐसे सांय-सांय करती हैं जैसे नल आने का झांसा देते हुये सांय-सांय करता है। बादल नेताओं की तरह मौका मुआयना करके चले गयें, पलट के नहीं देखा। अब तो वे बदलियों के संग भी नहीं दिखाये देते। लगता है उनमें भी आपस में पटती नहीं या फ़िर लगता है उनके यहां भी खर्चे को लेकर खटपट होने लगी है। यह भी हो सकता है कि खर्चे कम करने के लिये बादल ने उसको मैके भेज दिया है जैसे तुम छुट्टियों में अपने मम्मी-पापा के पास चली गयी हो। तुम्हारे वियोग में दिल खून के आंसू रोने की सोच रहा था लेकिन फ़िर अपनी पिछली ब्लड रिपोर्ट को ध्यान में रखकर मैंने दिल को इस ऐय्यासी के बारे में सोचने के लिये डांट दिया। बहुत देर तक गुमसुम बना रहा बेचारा। इस पर हमने उसे फ़िर कामचोरी के लिये डांट दिया। इस पर वो बदमास राजधानी एक्सप्रेस की तरह दौड़ने लगा। हमने फ़िर उसे प्यार से समझाया कि पेट्रोल का दाम बड़ गया है भैया जरा कायदे से चलो। तबसे ठीक है। बदमाशों से भी प्यार से बात करने से बात बन जाती है। तुम आटा गूंथकर गयी वो अभी तक गीला बना हुआ है। समझ में नहीं आता कि उसमें आटा मिलाकर ठीक करूं कि धूप में सुखाकर बराबर करूं। जल्दी से अपनी मम्मी से पूछकर बताओ!
- लावण्या
लावण्याजी: शुक्रिया।
समीरजी: जी भरकर , टकाटक शुक्रिया।
महाराज, हमने तो बड़ी मेहनत करके “जून का आगमन” आपकी नज़रे इनायत किया था मगर आप हमारी गली आये ही नहीं, राजमार्ग से ही गुज़र गए. खैर आपकी चर्चा सामयिक रही, बधाई!
अनुराग शर्मा: अभी आपकी गली में आ रहे हैं। बताने और टिपियाने के शुक्रिया।
अमित: शुक्रिया! हमको भी मजा आ रहा है।
टाटा गर्मी…अगले साल मिलते हैं…
अजितजी: मानसून की बधाई! पानी जरा संभालकर खर्चा करियेगा इस साल।
विचार सुलग रहे हैं
कुछ लिखने का मन
डा.साहब: विचारों को प्रकट किया जाये। लिखा जाये। जो होगा देखा जायेगा।
हम तो जुड़ा गये ऐसी लिखाई पर । अब गाना पड़ेगा – “ये आँसू मेरे पानी के काम दें …..’। टोन वही रहेगी – ’ये आँसू मेरे दिल की जबान हैं ..। प्रविष्टि का आभार ।
इतना खूबसूरत मौसम कि कोई मेहमान आ जाए तो खजूर की बीजणी से हवा कर दें। सादा भात और दाल से स्वागत कर दें। सोने के लिए चटाई या सादी खाट ही पर्याप्त है। गरीब की यार हैं ये गर्मियाँ।
“तुम आटा गूंथकर गयी वो अभी तक गीला बना हुआ है। समझ में नहीं आता कि उसमें आटा मिलाकर ठीक करूं कि धूप में सुखाकर बराबर करूं।”
मुझे सबसे मजेदार यह वाकया लगा। पूरा दृश्य उपस्थित हो गया आँखों के सामने।:)
“अंधेरे जीने में कई मिनटों की मसक्कत के बाद नायक ने नायिका से कहानी आगे बढ़ाने की मौन स्वीकृति सी पाई है। वह प्रेमालाप का फ़ीता काटने ही वाला था कि नल में पानी आने की आवाज सुनकर नायिका उसको झटककर पानी भरने चली गयी।”
रामराम.
अद्भुत सौन्दर्य वर्णन.ऐसे-ऐसे बिम्ब कि वाह ही वाह है जी.
जमाये रहिये.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
प्रकृति से लेकर राजनीति को भी समेट लिया!
नमस्कार।
http://www.artnewsweekly.com
कभी मेरे ब्लॉग कैनवसन्यूज़.ब्लॉगस्पॉट.कॉम पर आपने दर्शन दिया था, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मधुबनी कलाकर यशोदा देवी के एक साक्षात्कार पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी। अब ब्लॉग लिखना छोड़ रहा हूं क्योंकि पूरी तरह कला पर समर्पित वेबसाइट मैंने शुरू की है http://www.artnewsweekly.com नाम से। आप हमारी वेबसाइट पर आमंत्रित हैं।
http://www.artnewsweekly.com कला पर हिंदी में समाचार और विचार का पहला वेब मंच है। आर्ट न्यूज़ वीकली टीम की कोशिश रहेगी कला जगत की तमाम गतिविधियों, विचारों और वैचारिक द्वंदों से लेकर ताज़ातरीन समाचारों को आप तक पहुंचाने की।
फॉर्म चाहे लेख का हो या फोटो का, अलग-अलग कला माध्यमों, टूल्स, रंग, ब्रश, कैनवस, स्टोन, एचिंग, लिथो कैमरा, लेंस आदि पर लेख और अद्यतन जानकारियां उपलब्ध कराने की भी कोशिश रहेगी। कुल मिलाकर कला पर एक ऐसी वेबसाइट जो आपको हर सप्ताह, हर दिन अपडेट रखेगी।
आम लोगों तक हमारी बात आसानी से पहुंचे, इसके लिए हमने हिंदी और अंग्रेजी, दोनों ही भाषाओं का मिलाजुला इस्तेमाल किया है, अंग्रेजी के खासकर वो शब्द जो जीवन का हिस्सा बन चुके हैं।
हमारा यह छोटा सा प्रयास, आपकी निरंतरता कैसे बनाये रखेगा, इसके लिए आपके सुझाव, आलोचनाएं , सहयोग और समाचार आमंत्रित हैं। हमें विश्वास है, आपका भरपूर स्नेह और सहयोग हमें अवश्य मिलेगा। धन्यवाद।
सुनील कुमार
http://www.artnewsweekly.com
आपके स्नेह का आकांक्षी
सुनील कुमार
shayad sach yahi hai
सोचता हूँ, एक-दो खयाल उठा लूँ और तीन-चार शेर ठेल दूं अपनी नयी ग़ज़ल के लिये।
इजाजत है क्या?
vaah
venus kesari
लगत बा सभै नव ज्ञान हेतु ” स्वाइन – फ्लू और समलैंगिकता [पुरूष] के बहाने से ” की गोष्ठी में चला गए हैन|
Anup G sirh ek yahi line hi nahi pura lekh hi madhwa kar rakhane layak hai. Badhai ho. Jai ho.
वाह! क्या कविता है। अगर मैं अवकाशप्राप्त नहीं होता तो इस स्त्मंभ से चुरा कर कई कवितायें लिख देता लेकिन अब काम करने के लिए मन नहीं करता।
dekh kar achcha laga ki ab tak aapne kuch naya nahee likha jo ham padh na paye ho
venus kesari
आपके ये आलेख संभाल कर रख लेती हूँ…जब कभी मन बोझिल हुआ करेगा,इनके सहारे झट तरोताजा हो जाया करूंगी…
Puja Upadhyay की हालिया प्रविष्टी..सो माय लव- यू गेम
Basanta Acharya English Nepali translator