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एक मुलाकात रवि रतलामी से
By फ़ुरसतिया on June 16, 2012
पिछले दिनों एक मीटिंग के सिलसिले में दिल्ली जाना हुआ। जबलपुर से
दिल्ली सुबह हवाई जहाज उड़ता है। रोज किंगफ़िशर न तो एयर इंडिया। लेकिन
उड़ानें नखरीली हैं। कभी भी कह देती हैं -आज न जायेंगे। मीटिंग जरूरी थी।
जरूरी मतलब ऐसे कि पहुंच गये तो हाजिरी लग गयी। न पहुंचे तो डांट कि आये
काहे नहीं। सो डांट बचाने के लिये मूडी हवाई यात्रा का सहारा छोड़कर पुख्ता
रेल यात्रा का पल्ला थामा गया। गये रेल से दिल्ली वाया भोपाल।
जबलपुर से जब चले तो बगल की चार सीटों पर कुछ जबलपुरिये काम भर की ऊंची आवाज में गपिया रहे थे। रोचक गप्पाष्टक। देश की हर समस्या का समाधान उनके मुंह से फ़ूट-फ़ूटकर रेल के डिब्बे में गिर रहा था। देश की हर समस्या के सैकड़ों समाधान देश के कोनों-अतरों में बिखरे पड़े रहते हैं। कोई उनको सहेजकर रखने वाला नहीं है। दो बातें जो उनकी मुझे याद आ रही हैं वे थीं:
१. भारत की नारी सब कुछ सहन कर लेती है। इसीलिये देश महान है। जिस दिन भारत की स्त्रियां विदेश की महिलाओं की तरह हो जायेंगी उस दिन देश बरबाद हो जायेगा।
२. अगर देश में फ़ालतू की बकवास पर टैक्स लगा दिया जाये तो देश का बहुत भला होगा। बकवास तो कम होगी ही साथ में आमदनी भी होगी।
भोपाल के हबीबगंज स्टेशन पर निकलते ही रविरतलामी जी ने हमें अपने कब्जे में ले लिया। गाड़ी में डालकर अपने घर की ओर चल दिये। गाड़ी के सारथी उनके सुपुत्र अनिमेष थे! वे इसी साल अपनी पढ़ाई पूरी करके TCS में नौकरी पाये हैं। चले जायेंगे कुछ दिन में कम्पनी सेवा में। हमने उनसे कहा -कुछ दिन हास्टल में रहना चाहिये था। इस पर रविरतलामी ने बयान जारी किया- ये हास्टल में तो नहीं रहे लेकिन हमने घर में ही इनको हास्टल का माहौल दिया। घर में पूरी मस्ती और आजादी।
हमने कहा – अरे भाई आप तो सतीश सक्सेना जी की तरह की बातें कर रहे हैं। जैसे वो बताते हैं कि अपनी बहू को बेटी की तरह रखते हैं उसई तरह आप कह रहे हैं कि आपने बेटे के लिये घर को हास्टल बना दिया। हास्टल के मजे अलग हैं। दुनिया अलग। ऐसी आजादी/बर्बादी घर में कहां? इस बीच हमें बाहर से अनिमेष का समर्थन मिल गया था सो रविरतलामी हमारी बात से सहमत से हो गये।
घर पहुंचकर नमस्ते/वमस्ते निपटाकर चाय-पानी हुआ। फ़िर ब्लॉगरी के किस्से शुरु। ब्लॉग से जुड़े व्यक्ति के पास किस्सों का अकाल नहीं होता। हालिया प्रिय ब्लॉगर चुनाव पर हुई ब्लॉगिंग पर हम लोगों के संयुक्त विचार थे कि यही तो ब्लॉगिंग के मजे हैं। हरेक के लिये यहां अपनी बात कहने का पूरा और बराबर मौका है। आप बेवकूफ़ी की बात भी उतने ही धड़ल्ले से कह सकते हैं जितनी शान से ज्ञान की बातें। मजे की बात यह है कि अक्सर दोनों बातें इतनी एक सी लगने लगती हैं कि उनकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है कि कहां ज्ञान छिपा है और कहां बेवकूफ़ी पसरी है।
चकाचक चाय और शानदार खाने के चलते भाभीजी की तारीफ़ करना लाजिमी बनता है। फ़िर बातचीत करते हुये याद आया कि अरे ये तो रेखा कान्तम हैं भाई फ़ाइन आर्ट कालेज वाली जिनसे राजनादगांव में मुलाकात के बाद रवि रतलामी ने अपना दिल पूरा का पूरा दे दिया और खुद पेसमेकर पर आ गये।
हां यह अभी याद आया! यह पोस्ट लिखते हुये याद आया कि रवि रतलामी ने अपने बारे में लिखते हुये बताया था कि पैतींस साल की उम्र में उनको पेसमेकर लगा था। सत्रह साल से अपना दिल सुरक्षित अपनी पत्नी जी के पास सुरक्षित रखकर ये पेसमेकर से काम चला रहे हैं।गजब की जिजीविषा है भाई!
बिटिया अनुश्री के इ्म्तहान हो रहे थे। फ़िर भी उसने चाय-पानी कराया। हमने कहा रहन दो भई वर्ना अगर कहीं एकाध सवाल गड़बड़ा गया तो दोष हम पर जायेगा कि ब्लॉगरों के चलते हुआ ऐसा। इसपर उसका जबाब था- अरे कोई नहीं इतना तो चलता है।
इससे पता चलता है कि रविरतलामी जी को कित्ता खुला माहौल मिला है ब्लॉगिंग के लिये।
खा-पीकर चलते हुये घर के बाहर एक ठो फ़ोटो सेशन हुआ। मकान नम्बर 101 के बाहर। मकान का किस्सा सुनाते हुये रविजी ने बताया:
मध्यप्रदेश की राजधानी में हुई इस मुलाकात में हमारा मध्यप्रदेश भी चर्चा का विषय रहा जिसके विस्तार से रविरतलामी पर्याप्त चिंतित दिखे।
घर से चलकर रवि रतलामी ने अपने आरामदायक कब्जे में रखी पकड़ को तीन घंटे अपने कब्जे में रखने के बाद भोपाल रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया। हम वहां से उचककर शताब्दी ट्रेन में बैठे और दिल्ली आ गये।
चलते-चलते बता दें कि वहां घर में हमने रेखा भाभी की कई पेंटिंग्स देखीं। उनको देखकर हमें भी शौक हुआ है कि कुछ पेंटिंग-सेंटिंग की जाये। अगर कुछ ऐसी अनहोनी हुई तो पेंटिंग की शुरुआत का दोष भूतपूर्व रेखा कान्तम पर जायेगा। कुछ वैसे ही जैसे हमारी ब्लॉगिंग शुरु कराने के दोषी रविरतलामी माने जाते हैं।
रविरतलामी के बारे में मेरी लिखी ये भी पोस्टें देखें :
1. रवि रतलामी- जन्मदिन मुबारक
2. सीखना है तो खुद से सीखो-रवि रतलामी
आंसुऒ से धुला और बादल हुआ!
धूप में छांव बनकर अचानक मिला,
था अकेला मगर बन गया काफिला.
चाहते हैं कि हम भूल जायें मगर,
स्वप्न से है जुडा स्वप्न का सिलसिला.
एक पल दीप की भूमिका में जिया,
आंज लो आंख में नेह काजल हुआ.
—शतदल,कानपुर
जबलपुर से जब चले तो बगल की चार सीटों पर कुछ जबलपुरिये काम भर की ऊंची आवाज में गपिया रहे थे। रोचक गप्पाष्टक। देश की हर समस्या का समाधान उनके मुंह से फ़ूट-फ़ूटकर रेल के डिब्बे में गिर रहा था। देश की हर समस्या के सैकड़ों समाधान देश के कोनों-अतरों में बिखरे पड़े रहते हैं। कोई उनको सहेजकर रखने वाला नहीं है। दो बातें जो उनकी मुझे याद आ रही हैं वे थीं:
१. भारत की नारी सब कुछ सहन कर लेती है। इसीलिये देश महान है। जिस दिन भारत की स्त्रियां विदेश की महिलाओं की तरह हो जायेंगी उस दिन देश बरबाद हो जायेगा।
२. अगर देश में फ़ालतू की बकवास पर टैक्स लगा दिया जाये तो देश का बहुत भला होगा। बकवास तो कम होगी ही साथ में आमदनी भी होगी।
भोपाल के हबीबगंज स्टेशन पर निकलते ही रविरतलामी जी ने हमें अपने कब्जे में ले लिया। गाड़ी में डालकर अपने घर की ओर चल दिये। गाड़ी के सारथी उनके सुपुत्र अनिमेष थे! वे इसी साल अपनी पढ़ाई पूरी करके TCS में नौकरी पाये हैं। चले जायेंगे कुछ दिन में कम्पनी सेवा में। हमने उनसे कहा -कुछ दिन हास्टल में रहना चाहिये था। इस पर रविरतलामी ने बयान जारी किया- ये हास्टल में तो नहीं रहे लेकिन हमने घर में ही इनको हास्टल का माहौल दिया। घर में पूरी मस्ती और आजादी।
हमने कहा – अरे भाई आप तो सतीश सक्सेना जी की तरह की बातें कर रहे हैं। जैसे वो बताते हैं कि अपनी बहू को बेटी की तरह रखते हैं उसई तरह आप कह रहे हैं कि आपने बेटे के लिये घर को हास्टल बना दिया। हास्टल के मजे अलग हैं। दुनिया अलग। ऐसी आजादी/बर्बादी घर में कहां? इस बीच हमें बाहर से अनिमेष का समर्थन मिल गया था सो रविरतलामी हमारी बात से सहमत से हो गये।
घर पहुंचकर नमस्ते/वमस्ते निपटाकर चाय-पानी हुआ। फ़िर ब्लॉगरी के किस्से शुरु। ब्लॉग से जुड़े व्यक्ति के पास किस्सों का अकाल नहीं होता। हालिया प्रिय ब्लॉगर चुनाव पर हुई ब्लॉगिंग पर हम लोगों के संयुक्त विचार थे कि यही तो ब्लॉगिंग के मजे हैं। हरेक के लिये यहां अपनी बात कहने का पूरा और बराबर मौका है। आप बेवकूफ़ी की बात भी उतने ही धड़ल्ले से कह सकते हैं जितनी शान से ज्ञान की बातें। मजे की बात यह है कि अक्सर दोनों बातें इतनी एक सी लगने लगती हैं कि उनकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है कि कहां ज्ञान छिपा है और कहां बेवकूफ़ी पसरी है।
चकाचक चाय और शानदार खाने के चलते भाभीजी की तारीफ़ करना लाजिमी बनता है। फ़िर बातचीत करते हुये याद आया कि अरे ये तो रेखा कान्तम हैं भाई फ़ाइन आर्ट कालेज वाली जिनसे राजनादगांव में मुलाकात के बाद रवि रतलामी ने अपना दिल पूरा का पूरा दे दिया और खुद पेसमेकर पर आ गये।
हां यह अभी याद आया! यह पोस्ट लिखते हुये याद आया कि रवि रतलामी ने अपने बारे में लिखते हुये बताया था कि पैतींस साल की उम्र में उनको पेसमेकर लगा था। सत्रह साल से अपना दिल सुरक्षित अपनी पत्नी जी के पास सुरक्षित रखकर ये पेसमेकर से काम चला रहे हैं।गजब की जिजीविषा है भाई!
बिटिया अनुश्री के इ्म्तहान हो रहे थे। फ़िर भी उसने चाय-पानी कराया। हमने कहा रहन दो भई वर्ना अगर कहीं एकाध सवाल गड़बड़ा गया तो दोष हम पर जायेगा कि ब्लॉगरों के चलते हुआ ऐसा। इसपर उसका जबाब था- अरे कोई नहीं इतना तो चलता है।
इससे पता चलता है कि रविरतलामी जी को कित्ता खुला माहौल मिला है ब्लॉगिंग के लिये।
खा-पीकर चलते हुये घर के बाहर एक ठो फ़ोटो सेशन हुआ। मकान नम्बर 101 के बाहर। मकान का किस्सा सुनाते हुये रविजी ने बताया:
सबसे पहले मकान का नम्बर 99 था उसमें एक बेडरूम था। इसके बाद 100 नम्बर वाले में दो बेडरूम थे। अब 101 वाले में तीन बेडरूम हैं। मतलब मकान के नम्बर बढ़ने के साथ घर में बेडरूम बेडरूम बढ़ते गये।घर से बाहर निकले इंसान के लिये एक खुशहाल घर में कुछ घंटे बिताना बड़ा खुशनुमा अनुभव रहा।
मध्यप्रदेश की राजधानी में हुई इस मुलाकात में हमारा मध्यप्रदेश भी चर्चा का विषय रहा जिसके विस्तार से रविरतलामी पर्याप्त चिंतित दिखे।
घर से चलकर रवि रतलामी ने अपने आरामदायक कब्जे में रखी पकड़ को तीन घंटे अपने कब्जे में रखने के बाद भोपाल रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया। हम वहां से उचककर शताब्दी ट्रेन में बैठे और दिल्ली आ गये।
चलते-चलते बता दें कि वहां घर में हमने रेखा भाभी की कई पेंटिंग्स देखीं। उनको देखकर हमें भी शौक हुआ है कि कुछ पेंटिंग-सेंटिंग की जाये। अगर कुछ ऐसी अनहोनी हुई तो पेंटिंग की शुरुआत का दोष भूतपूर्व रेखा कान्तम पर जायेगा। कुछ वैसे ही जैसे हमारी ब्लॉगिंग शुरु कराने के दोषी रविरतलामी माने जाते हैं।
रविरतलामी के बारे में मेरी लिखी ये भी पोस्टें देखें :
1. रवि रतलामी- जन्मदिन मुबारक
2. सीखना है तो खुद से सीखो-रवि रतलामी
मेरी पसंद
एक सपना उगा जो नयन में कभी,आंसुऒ से धुला और बादल हुआ!
धूप में छांव बनकर अचानक मिला,
था अकेला मगर बन गया काफिला.
चाहते हैं कि हम भूल जायें मगर,
स्वप्न से है जुडा स्वप्न का सिलसिला.
एक पल दीप की भूमिका में जिया,
आंज लो आंख में नेह काजल हुआ.
—शतदल,कानपुर
Posted in संस्मरण | 33 Responses
ऐसी पकड़ा-धकड़ी केवल पुरनिया धाकड़ों के साथ ही करते रहोगे या कभी उदीयमानों का भी नंबर आएगा !!
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..ये धुआँ सा कहाँ से उठता है-अलविदा मेंहदी हसन साब
रवि की हालिया प्रविष्टी..विंडोज़ 8 पर पहली हिंदीमयी नज़र
प्रणाम.
ब्लॉग जगत में बेहतरीन लोगों में से एक रवि सम्मानित और कार्यों में गुरु ( आपकी तरह नहीं ) तो हैं ही !
मगर फ़ोन पर बात कर अच्छा लगा ,
हार्दिक शुभकामनायें रवि को और आभार आपका !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..ब्लोगर साथियों का स्नेह आवाहन -सतीश सक्सेना
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..स्वतन्त्र देवता
आशीष श्रीवास्तव की हालिया प्रविष्टी..समय : समय क्या नही है ?
बढ़िया रोचक परिचय .
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..कई बार यूँ भी होता है…
राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..खुसरा चिरई
आपके मध्य प्रदेश पर रवि जी चिंतित हुए और आप स्माईली लगा रहे हैं? अवमानना का नोटिस दे दिया जाता आपको अगर सामने रवि जी की जगह ……….. या ……….. होते
संजय अनेजा की हालिया प्रविष्टी..आकाश में पत्थर
उनकी कही दोनों बातें एक दम सही है!
………….
Mrs . Ratlaami जी की पेंटिंग्स की एक झलक हम भी देख पाते.
….
और आप की कितनी पेंटिंग्स पूरी हुईं?
..
Alpana की हालिया प्रविष्टी..काश !एक दिन ऐसा भी हो….
जे बात है तो हम आशा करते हैं कि जल्द ही रवि जी अब 103 नंबर में जाएँ
शुभस्य शीघ्रम। कैनवस और रंगो की कूची ले आईये और तुरंत शुरु हो जाईये!
amit की हालिया प्रविष्टी..समीक्षा: ज़ोमैटो रेस्तरां गाइड २०१२
वैसे सच में तीरंदाज लोग हैं वैसे तो रवि रतलामी नाम ही काफी है लेकिन… केवल १०१ नंबर से ही घर ढूंढ़ लेना… अरे भाई लोग एक ईमेल ही कर लीजियेगा पूरा पता दे देंगे रवि जी
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..सदालाल सिंह (पटना १३)
मुकुल मिश्रा की हालिया प्रविष्टी..नितीश कुमार का समाजवादी रंग- भाग एक