पटरी भी सलामत है और ट्रेन भी पधार रही है। कानपुर है कौनौ मजाक थोड़ी कि कोई ट्रेन को रोक दे।
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हमारा ट्रेन का डब्बा प्लेटफार्म से 10 -15 मीटर उतरकर आता है। पटरी पर खड़े हुए ट्रेन का इंतजार करते हुए प्लेटफार्म पर बैठे लोगों की बतकही सुनते रहे। एक भाई किसी का जलवा बड़ी ऊँची आवाज में बता रहे थे कि वहां बाहर ही बीड़ी का बण्डल और माचिस धरी रहती थी जिसको मन आये पिए। :)
हमें लगा कि धरना पर बैठे जाट भाइयों की आंदोलन के शुरुआत में ही ठीक से बीड़ी-माचिस से आवभगत हो गयी होती तो बवाल इतना नहीं बढ़ता। बीड़ी से सौहार्द बढ़ता है।
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