सुबह जब घर से निकलते हैं तो तमाम नजारे दिखते हैं। उनको देखते हुये लगता है कि अब्बी इसी पल इसे लिख दिया जाना चाहिये। लेकिन आगे निकल जाते हैं। निकलना पड़ता है !
सबसे पहली मुलाकात सूरज भाई से होती है। अपनी किरणों, उजाले और पूरे भौकाल के साथ मानो सर्जिकल स्ट्राइक सी करते हैं सूरज भाई। घर से बाहर निकलते ही लगता है कि अरे, ये तो हर तरफ़ उजाला है। रोशनी के लिये बाहर निकलता पड़ता है भाई !
कल दफ़्तर जाते समय देखा एक आदमी साइकिल पर सब्जी लादे आ रहा था। हैंडल पर सब्जी के झोले, कैंची पर सब्जी का बोरा और फ़िर साइकिल के कैरियर पर ऊंचाई तक सब्जी की गठरियां। साइकिल इस वजन से इधर-उधर हो रही थी। शायद कह भी रही हो-’हमसे न होई! हम न चलब!’ साइकिल के टेढे-मेढे होने को सीधा करने की कोशिश करता हुआ सब्जी वाला आगे चलता हुआ अपनी मुंडी कैरियर पर लदे बोरे में घुसाये हुये संतुलन बनाता कौनिउ तरन से संभालता चला जा रहा था।
मन किया साइकिल वाले को रोककर सर्जिकल स्ट्राइक और पेट्रोल के हालिया बढे हुये दामों के बारे में कुछ पूछ डालें। लेकिन पटरी के उस पार होने के चलते इरादा त्याग देते हैं। आगे बढ जाते हैं।
ओ.एफ़.सी. के पास सड़क पर महिला रोज हाथ फ़ैलाये बैठी दिखती है। कल सड़क पर साइकिल पथ बनाने के लिये लगे पिलर से पीठ सटाये बैठी दिखी। तसल्ली से आराममुद्रा में उसे बैठे देख एक बारगी लगा कि कोई बादशाह अपने तख्तेताऊस पर बैठा है। एक दिन उसकी बच्ची उस खम्भे पर चढने की कोशिश करते हुये उसे गले सा लगा रही थी।
आज देखा तो महिला वैसे ही हाथ फ़ैलाये अपने मांगने की तपस्या में रत थी। उसकी दोनों बच्चियां अपनी मां के काम से बेखबर दो पिलर के बीच की जमीन पर आपस में खेल रही थीं।
साइकिल सवारों के लिये बने साइकिल पथ पर साइकिल सवारों के अलावा बाकी लोगों ने कब्जा सा कर लिया है। सब्जी वाले, फ़ल वाले , जूस वाले अपने ठेलिया लगाये खड़े दिखे। साइकिल का रास्ता कुछ इस तरह कि अगल साइकिल वाला निकले तो जगह-जगह उसे उठाकर ले जाना पड़ेगा साइकिल। एक जगह साइकिल वाला सडक के लम्बवत साइकिल खड़ी किये किसी भी दूसरी साइकिल के निकलने का रास्ता बंद किये हुये था। कुल मिलाकर साइकिल पथ साइकिल सवारों के अलावा अन्य सवारियों का कब्जा दिखा। कुछ ऐसे ही जैसे गरीबी रेखा से नीचे वाली बढिया सुविधाऒं पर समर्थ लोग अपना कब्जा कर लेते हैं।
तमाम साइकिल वाले साइकिल पथ के वाहर बीच सड़क पर चल रहे थे। उनको वहीं जगह मिली चलने की।
कल देखा सड़क किनारे एक गाय मरी पड़ी थी। पेट फ़ूला हुआ था। शायद यह अपनी मौत मरी हो या पालीथीन के कारण। लेकिन चुपचाप बिना किसी को व्यवधान दिये वह मरी पड़ी थी किनारे। पास में ही गाय की मौत से बेखबर सुअर वीकेन्ड के बाद वाले उत्साह से कूड़े से अपने मतलब का सामान खोजने में व्यस्त थे।
जरीब चौकी क्रासिंग जब भी बन्द मिलती है वहां मौजूद बच्चे उछलकर गाड़ी की खिड़की के पास खड़े होकर मांगने लगते हैं। दो-तीन बच्चे देखते-देखते पांच छह हो जाते हैं। हाथ की खाल सूखी देखकर लगता है कि साफ़-सफ़ाई की औपचारिकता के झांसे में नहीं आते बच्चे। पैसे देने के बजाय कुछ बात करते हैं तो जबाब अनमने मन से देते हैं। जैसे ही फ़ोटो खींचने के लिये मोबाइल उनकी तरफ़ घुमाओ बच्चे भाग खड़े होते हैं।
क्रासिंग पर सवारी देखते ही मांगने वाले बच्चे देखकर लगता है कि जब अविकसित, विकासशील देश विकसित देशों से सहायता मांगते होंगे तो जैसे विचार विकसित देशों के मन में आते होंगे वैसे ही कुछ सवारियों के मन में आते होंगे। कभी कुछ चिल्लर दे दिया कभी टरका दिया।
पंकज बाजपेयी जी से बहुत दिन बाद मिलना हुआ। देखते ही बोले-" प्रेम चोपड़ा गिरफ़्तार हो गया। फ़र्जी पेरोल पर रिहा होकर बाहर घूम रहा था। बच्चों को पकड़कर ले जाता था।" प्रेम चोपड़ा के बाद कोहली पर ध्यान दिया उन्होंने-" कोहली बहुत बड़ा रैकेट चला रहा है। उसके खिलाफ़ रिपोर्ट है। अखबार में सब निकला है। पुलिस उसको पकड़ने गयी है।"
सामने एक ई-रिक्शा वाला जा रहा है। उसके पीछे लिखा है- "मोबाइल रिपेयर करना सीखें। टीवी बनाना सीखें।" हमको लगता है कभी कोई विज्ञापन इस तरह भी दिखेगा-" बातें बनाना सीखें। हवाई किले बनाना
सीखें।"
लेकिन वह जब होगा तब होगा। अभी तो फ़िलहाल इसे पोस्ट करने के अलावा और कोई काम समझ नहीं करना अपन को !
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