Friday, August 04, 2017

जुगाड़ देखते-देखते सरकारों तक पहुंच रहे हैं लोग



घर से निकलते ही बाबा जी गेट पर मिल गए। साथ में गौबच्चा। गाय की गर्दन पर उभरी 'गूमड़ खाल' उठाकर हमको दिखाने लगे। गाय की आशीष मुद्रा। गाय गूंगी। चुप। क्या पता कहना चाह रही हो -'उसके झांसे में मत आना।' लेकिन कह नहीं पा रही थी।
गाय के हाल उस महापुरुष सरीखे लगे जिस पर उसके स्वयंसेवक जबरियन कब्जा कर लेते हैं। उसको अपने हिसाब से चलाते हैं और उसके आधिकारिक प्रवक्ता बन जाते हैं।
बाबा जी उसका आशीष हमको दे रहे थे। गाय पर बाबा का मालिकाना हक इसलिये बाबा उनके अकेले भाष्यकार।
गाय के चलते बाबा ताकतवर से लगे। लेकिन हालचाल पूछते ही मुलायम हो गए। पता चला फैजाबाद के हैं। शुक्लागंज में डेरा है। गंगाघाट पर। गंगा किनारे बनाते -खाते हैं। इसके पहले नवरात्र में बारादेवी पर रहे। खानेपीने का चौकस जुगाड़ बनता रहा।
मुझे लगा कि बाबा लोग सबसे बढ़िया जानकार होते हैं इस बात के कि खाने पीने का जुगाड़ कहां है। जुगाड़ देखते-देखते सरकारों तक पहुंच रहे हैं लोग कहीं-कहीं।
परिवार में बताया पत्नी हैं। दो बेटियों की शादी कर दी। जिम्मेदारी पूरी। अब टहल रहे हैं आराम से। घरैतिन घर में। बाबा जी शहर में।
हमने पूछा कि घरैतिन को घर में छोड़कर यहां कहाँ घूम रहे कानपुर में।
बोले- 'हम गोसाईं लोग हैं। ऐसे ही रहते हैं।'
गऊ की उम्र करीब तीन साल बताई। दान में मिली है। गर्दन पर मांस खाल वाली गाय को लोग दान कर देते हैं। रखते नहीं। जो घरवालों के लिए जिस कारण बेकार उसी को दिखाकर बाबा जी कमाई कर रहे।
अपने खाने के साथ गाय के खाने का भी इंतजाम करना होता है। भूसी चूनी आदि।
काफी बात हो गयी तो मन किया कुछ दिया ही जाए बाबा जी को। बटुए में एक्को पैसा नहीं। घर से मंगाकर 10 रुपये दिए बाबा जी को। डर भी था कहीं शिकायत न कर दें -'सबेरे-सबेरे बोहनी खोटी की गाय की।'
चलते चलते नाम बताया बाबू लाल। पास से देखा आगे के अब दाँत मसाले के हमले में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। चेहरे पर निरीह भाव। गाय के चेहरे के भावों से जुगलबन्दी करते हुए।
हम चले आये। बाबा किसी ओर घर के बाहर गाय की गर्दन का मांस उठाकर दिखाते हुए सावन का आशीर्वाद दे रहे होंगे। खाने का जुगाड़ कर रहे होंगे।

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