Wednesday, August 02, 2017

आओ बाबू, चाय पी लेव


'आओ बाबू, चाय पी लेव' - घर के बाहर बैठी महिलाओं ने कहा।
कल ही मिली थीं। दो मिनट की बातचीत के बाद चाय का न्योता। हालांकि पिलानी नहीं थी क्योंकि सबके पास एक ही प्लास्टिक के ग्लास में थी चाय। लेकिन जज्बा था। वही बहुत।
बैठे हुए चाय पीते महिलाएं कल खड़ी हुई बतियाती महिलाओं से अलग लगीं। आज वे बातचीत ने बेतकल्लुफ थीं। मुखर। हमने पूछा -'एक और कहां गयीं? आज नहीं आई क्या?'
'वो चाय की दुकान पर चाय पी रहीं हैं। आती होंगी।' -बताया उनलोगों ने।
कुछ के पास टिफिन हैं। कुछ बेटिफिन। हम पूछते हैं -'बिटिया
बहुरिया बनाती होंगी टिफ़िन तो ?
'कहाँ हैं बहुरिया। खुदै बनवाएं का परत है।' - एक ने कहा।
'अरे तुम्हरे नहीं हैं तो का केहुके नहीं हैं। हमार तौ बहुरिया बना के देति है सबेरे टिफ़िन। ' - दूसरी ने प्रतिवाद किया।
बिटिया बहुरिया से बात मायके तक पहुंची। हमने एक से पूछा -'मायका कहां है तुम्हार ?
'बहुत दूर है। सफीपुर। उन्नाव।'
'बहुत दूर कहां? आजाद नगर से आती हो। दो बार आने जाने के बराबर दूरी पर है मायका।' -हम अपना ज्ञान झाड़ते हैं।
इस बीच बात दिहाड़ी की हुई। बोली, 'हमरी नौकरी लगवा देव साहब, तो हमहू का पैसा ठीक मिलन लगिहैं।'
हम बोले -'नौकरी लगना मुश्किल है आजकल। नौकरी लग कहां रहीं हैं। छूट रही हैं आजकल।'
इन लोगों को चाय दुकान पर किसी ने दिला दी। ये पीते हुए बतियाते हुए दिन की शुरुआत कर रही हैं। सब उम्रदराज हो रही हैं। अधिकतर के दांत हारी हुई पार्टी के विधायकों की तरह मुंह का साथ छोड़ चुके हैं। लेकिन काम करते हुए चुस्ती बरकरार रखे हुए हैं सब।
महिलाओं से गुफ्तगू के पहले वहीं खड़े रिक्शेवाले से बतियाये। मुंह पूरा पान से भरा हुआ। हमने मुंह खुलवाकर फोटो खींचकर दिखाया उनका फोटो उनको ही। समझाया भी कि दांत खराब हो गए पान के चक्कर में। काहे खाते हो?
उसने सुन लिया और मुस्कराते हुए बोला -'दांत तो बहुत पहले बचपन से ही खराब हो गए।'
जबाब का अंदाज , 'अब क्या खाक मुसलमां होंगे वाला था। '
आगे चलते हुये देखते हैं इनके साथ कि महिला भी चाय की दुकान से लपकती हई चली जा रही है। अब तक वो काम मे जुट गयीं होंगी।
हम भी जुटते हैं। आपका दिन चकाचक बीते।

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