बिस्तर पर पड़े-पड़े मुंह उचकाकर सूरज भाई को देखते हैं। गायब हैं। शायद देर रात तक चंद्रग्रहण देखते रहे होंगे। वैसे भी सूरज भाई अपने हिसाब से आते हैं। उनको कोई बायोमेट्रिक हाजिरी तो लगानी नहीं होती है। हमेशा ड्यूटी पर तैनात रहने वाले की क्या बायोमेट्रिक और क्या हाजिरी।
वैसे अगर सूरज भाई को हाजिरी लगानी हो तो कैसे लगाएंगे? अंगूठा लगाने के बहुत पहले ही बायोमेट्रिक डिवाइस उबलकर परमाणु-परमाणु हो जाएगी।
कल अखबार में खबर पढ़ी -'अपनी आकाश गंगा में इतने तारे हैं जितने कि दुनिया भर के समुद्र तटों पर पसरे बालू के कण।' खबर के बाद कई शून्य लगाकर बता दिया कि इतने तारे हैं दुनिया में। लब्बो लुआब कि दुनिया बड़ी डम्प्लाट है।
कल्पना की जाए कि सूरज भाई इत्ते विशाल हैं कि उसमें 600000 पृथ्वियां समा जाएं। हमारे खुद के जैसे आठ अरब लोग धरती पर चिल्लपों करते रहते हैं। सूरज में कितने लोग समा जाएं। लेकिन कभी सूरज भाई को अपनी हांकते नहीं सुना। कभी लाउड स्पीकर लगाकर हल्ला नहीं मचाते कि हममें ये किय्या, वो किय्या, कब्भी छुट्टी नहीं ली।
दुनिया के बाद सूरज भाई खुद एक मध्यम तारे। इस तरह के अगणित तारे आकाशगंगा में। फिर अपनी आकाश गंगा भी मझोली साइज की। इस तरह की अगणित आकाशगंगाएं ब्रह्मांड में। मतलब समझा जाए कि अपन की औकात कितनी है इस कायनात में। जब कभी मन में घमंड मुंडी उठाये यह सोचना चाहिए कि हमारा साइज क्या है दुनिया में।
अच्छा सोचिए जैसे अपने यहां बरसात होती है वैसे सूरज भाई के यहां भी होती होगी क्या? आग बरसती होगी वहां भी। आग क्या आग के बाप के भी बाप बरसते होंगे। चारों क्या आठों तरफ आग ही आग दिखती होगी। चाय भी उबलकर प्लाज्मा में बदल जाती होगी। इसीलिए सूरज भाई को जब भी चाय के लिए बुलाते हैं, बड़े मन से भागे चले आते हैं।
जब सूरज भाई हमारे पास आते हैं चाय पीने तो धूप, किरण और गर्मी का तामझाम ऑटो मोड में छोड़ आते हैं जैसे हवाई जहाज में पायलट लोग जहाज को ऑटो मोड में डालकर उड़नबालाओं से गपियाते हैं या फिर चौराहे पर सिपाही ट्रैफिक को सिग्नल सहारे छोड़कर चौराहे की गुमटी पर चाय पीने चले जाते हैं।
चाय की बात से फिर चाय पीने का मन हो गया। सबेरे से तीन बार चाय पीने के बाद अब चौथी बार का इंतजार है।देरी हो रही है। सोंचते हैं धमकी दे दें -'दो मिनट में चाय नहीं मिली तो दफ्तर चले जायेंगे।' लेकिन अकेले इंसान की धमकी देने की क्या औकात। धमकी वही दे सकता है आज के समय में जिसके पीछे बावली भीड़ की ताकत हो।अपन के पीछे खुद भी नहीं खड़े।
अब निकलते दफ्तर को वर्ना न जाने कित्ते लोग पीछे पड़ जाएंगे।
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