Tuesday, October 05, 2021

सड़क पर टहलते हुए

 


इतवार को टहलने निकले। साइकिल से नहीं पैदल। सड़क घर के बाहर सूनसान लेकिन साफ- सुथरी पसरी थी। वीकेंड मूड में सुस्ताते हुए। आर्मी गेट पर दरबान ने रोका नहीं। आते-जाते बातें करते रहते हैं इसलिए पहचान गया है। हमारे मन से भी डर निकल गया है कि रोक लेगा।
रात दो बजे तक ड्यूटी की है संतरी ने। अब सुबह फिर कर रहा है। किस्तों में होती है ड्यूटी। दो घण्टा ड्यूटी, चार घण्टा आराम।
आर्मी गेट के बाहर सड़क के दोनों तरफ बेंचों पर कुछ लोग बैठे थे। ज्यादातर खाली। बेंच नम्बर सात भी अपने साथियों का इंतजार कर रही थी। मैदान में कई टीमें क्रिकेट खेल रहीं थीं। एक जोरदार हिट की हुई गेंद सड़क पर आकर गिरी। दो टप्पे खाकर नाली के पास सुस्ताने लगी। लेकिन गेंद को आराम नसीब नहीं। एक फील्डर भागता हुआ आया और गेंद को वापस फील्ड में फेंक दिया। गेंद फिर फेंकी जाने और बल्ले से पिटने के लिए तैयार हो गयी।
पिटना जिसकी नियति है, वह कब तक बचेगा पिटने से।
आगे एक बेंच पर सिकुड़े से बैठे अमृत मिले। नगरपालिका में दिहाड़ी पर काम करते हैं। 9000 रुपये महीने मिलते हैं। आज छुट्टी कर ली। मन नहीं था काम पर जाने का। माता जी फैक्ट्री से जून में रिटायर हुईं। फंड और ग्रेच्युटी का पैसा मिल गया है लेकिन पेंशन अभी शुरू नहीं हुई है।
रिटायरमेन्ट के 3 महीने बाद पेंशन नहीं शुरू हुई यह सुनकर हमको ताज्जुब हुआ। दरयाफ्त किया तो पता चला 2007 की भर्ती थी उनकी माता जी की। अनुकम्पा के आधार पर लगी थी नौकरी। नई पेंशन स्कीम में पेंशन आएगी। कब, कितनी पता करने के लिए फोन किया तो लेखा अधिकारी ने कल बताने को कहा।
पेंशन के बारे में और जानकारी देकर हमने तसल्ली दी तो बोले -'आपने बता दिया तो सही बात पता चल गई। तीन महीने से हर आदमी अलग तरह की बात बता रहा था।'
अमृत से और बात हुई तो पता चला दो बच्चे हैं। खुद आठ तक पढ़े हैं। बच्चों को भी पढ़ाने में दिक्कत है। फीस बहुत है। महिला कल्याण समिति के स्कूल में अर्जी दी है, फीस माफी की। अभी बड़े बेटे का एडमिशन करवाया है। बेटी का करवाना है।
बात करते-करते अमृत खड़े हो गए। नौकरी लगवाने की बात करने लगे। हमने कहा -'नौकरी कैसे लगवाएं? आजकल तो ठेके पर मजदूरी ही हो रही है।'
अमृत ने कहा-'दिहाड़ी पर ही लगवा दीजिए यहीं। नगर पालिका में बहुत दूर पड़ता है।'
बातचीत से पता चला अमृत हमको पहचान गए हैं। पूछा तो बताया -'हमने सुना है जीएम साहब कभी पैदल , कभी साइकिल पर घूमते हैं। सबसे हाल-चाल पूछते हैं। प्रेम से बात करते हैं। लेकिन बहुत सख्त भी हैं। '
अपने बारे में बातें सुनकर हंसी आई। अमृत बोले -'घर चलिए आपको चाय पिलाएं।'
चाय के लिए मना करके हम आगे बढ़ लिए। अमृत जैसे अनगिनत नौजवान दिहाड़ी मजदूरी करते हुए जिंदगी गुजार रहे हैं। अगली पीढ़ी के लिए दिहाड़ी मजदूर पैदा करते हुए।
आगे सड़क किनारे अशोक के पेड़ अनुशासन में खड़े दिखे। वहीं फुटपाथ पर एक बन्दरिया तसल्ली से लेटी हुई थी। उसका बच्चा उसके पेट के बालों से जुएं बिन रहा था। हमको पास खड़ा देखकर उसने एक बार हमारी तरफ देखा फिर अनदेखा करके जुएं बीनने में तल्लीन हो गया।
सड़क पर एक साइकिल सवार आहिस्ते-आहिस्ते जाता दिखा । उसका मडगार्ड पहिये से टकरा रहा था। मडगार्ड को रोकने वाला नट गायब था। मडगार्ड हल्ला मचा रहा था। शायद इस्तीफे की धमकी दे रहा हो। उस मडगार्ड को देखकर लगा कि साइकिल हो या पार्टी कहीं भी सन्तुलन बिगड़ता है तो हल्ला मचता है।
साइकिल सवार हवा भरवाने लगा। हवा भरने वाला बुजुर्ग था। आहिस्ते से उठकर हवा भरने लगा। बगल में ही कई घर बने थे। बिना अनुमति के बने घर आसपास से जोड़-बटोरकर इकट्ठा किये सामान से बने थे। भानुमति के कुनबे की तरह। समय के साथ ये घर किसी के वोट बैंक में तब्दील हो गए होंगे, इसीलिए बने हुए हैं।
सड़क किनारे हलवाई की दुकान खुल गयी थी। कड़ाही में गोल, लाल रसगुल्ले पूरी कड़ाही को में तैर रहे थे। अभी बिक्री शुरू नही हुई थी। हलवाई अपने साथ बैठे आदमी से राजनीति की बातें करता हुआ ग्राहक का इंतजार कर रहा था।
क्रासिंग के पहले उत्तर रेलवे का टिकट घर दिखा। बन्द। पहले कभी यहां भी टिकट बिकते होंगे। टिकटघर एक पान की गुमटी से कुछ ही बड़ा था। अब बन्द है। टिकटघर भले बन्द हो गया हो लेकिन उसके पास ही बना मंदिर गुलजार दिखा। कई देवियों की मूर्तियां दिखीं। कुछ लोग पूजा करते भी दिखे।
क्रासिंग पार करते हुए रेलवे की पटरी दिखी। आराम से स्टेशन की तरफ मुंह करके लेटी हुई गाड़ियों का इंतजार करते हुए।
एक जगह सड़क किनारे दो लोग अखबार पढ़ते दिखे। हमने बात की तो कहने लगे -'ऐसे अखबार पढ़ना अच्छा लगता है। पहले जगह-जगह लाइब्रेरी होती थी। अब कहीं लाइब्रेरी नहीं हैं जहां बैठकर अखबार पढ़ सकें। सब लोग पैसा कमाने में लगे हैं। कोई समाज के लिए पैसा खर्च नहीं करना चाहता।'
एक जगह एक मकान टूटता दिखा। एक आदमी ने बिना पूछे बताया -'चांदना स्वीट हाउस वालों ने यह खरीद लिया है। अब पूरे को तुड़वा के नया बनवाएंगे।'
सदर बाजार के कोने पर पान की दुकान पर बैठा एक बच्चा पूरा मुंह खोलकर जम्हूआई लेते दिखा। बोर हो गया होगा दुकान पर बैठे-बैठे।
सदर बाजार में एक दुकान के बाहर एक आदमी मैले-कुचैले कपड़े पहने बैठा सूनी निगाहों से सामने घूर रहा था। आंखों में कीचड़, बालों की लटें सूखी। हमने उसके पास खड़े होकर कुछ बतियाने की कोशिश की तो उसने घूरती आंखे हमारी तरफ कर दीं। हमारी हिम्मत नहीं हुई बतियाने की। आगे बढ़ गए।
आगे तमाम दूध वाले पीपों में दूध लिए ग्राहकों का इंतजार कर रहे थे। एक दूध वाला पीपे में हथेली घुसाकर दूध में डूबा रहा था। पूरा पंजा दूध में घुसाकर देखता। हथेली बाहर करते ही हथेली में लगा दूध फिर पीपे में गिर जाता। हथेली को आगे-पीछे करते हुए दूध की क्वालिटी से खुद को और अगल-बगल खड़े लोगों को तसल्ली सी दिलाता लगा।
थोड़ी देर में वह दूध वाला अपने दूध का सौदा करते दिखा। बातचीत से अंदाज लगा कि वह अपना दूध 30 रुपये लीटर बेंचने को तैयार है। दूध का बाजार भाव 50 रुपये लीटर है। शायद दूध वाला अपना दूध जल्दी बेंचकर घर जाना चाहता होगा। कारण जो रहा है, उसको तुरन्त कोई ग्राहक मिला नहीं। वह पीपे के दूध में हाथ डालते-निकालते हुए ग्राहक का इंतजार करता रहा।
अक्सर जनप्रतिनिधियों के बिकने की अफवाहें उड़ती हैं। अपन को लगा कि क्या उनके भाव भी इसी तरह लगते होंगे?
इस फालतू के सवाल को झटककर हम आगे बढ़ गए। आगे के मोर्चे हमको आवाज दे रहे थे।

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