Monday, June 20, 2022

स्कूल जाते बच्चे समाज की ख़ुशहाली का पैमाना



सुबह आज भी निकल ही लिए। साइकिल पर। हवा बढ़िया। मौसम सुहाना।
मार्निंग वाकर क्लब के लोग जमे हुए थे। कोई एक्सरसाइज में। कोई बतकही में। जो भी आता उसका स्वागत करते हुए। थोड़ी देर रुक गए तो फोटो भी हो जाती।
लोग टहलते हुए , बतियाते हुए मजे में घूम रहे थे। दोनों मैदान लोगों से गुलजार थे। एक बेंच एक मियां बीबी बैठे थे। उनके बीच की दूरी देखकर लग रहा था कि शायद पास-पास बैठने के संकोच से उबरने में अभी समय है।
आगे चार-पांच लोग बीच सड़क पर सड़क का लगभग 70 फीसदी हिस्सा अपने कब्जे में लेकर तसल्ली से टहल रहे थे।उनमें से एक अपनी मुट्ठी में सेव पकड़े था। अधखाया सेव देखकर लगा एप्पल कम्प्यूटर और घड़ी का विज्ञापन हो रहा हो। लगने को लग तो यह भी रहा था कि सेव को हाथ मे रखने के पीछे मकसद अपनी सुरक्षा का भाव है। कोई बोलेगा तो फेंक के मारेंगें। सेव को हाथ में रखने से कोई टोकेगा भी नहीं। सेव कोई पत्थर थोड़ी है।
एक जगह जूस की गुमटी दिखी। लिखा था -बरेली जूस कार्नर। साइकिल मोड़कर वापस पहुंचे। पूछा -'शाहजहांपुर में बरेली जूस कार्नर का क्या मायने हैं।' बताने के पहले मुस्कराए जूस वाले। बोले-' एक मुल्ला जी से खरीदी थी यह गुमटी। उन्होंने लिखवाया था यह। हमने नाम वही रहने दिया।'
जूस वाले भाई की बात से एक आम आदमी और संस्था/सरकार में अंतर का एहसास हुआ। कोई संस्था/सरकार होती तो सबसे पहले नाम बदलती। बाकी भले कुछ और न होता। नाम जरूर बदल जाता।
गोविंद गंज क्रासिंग के पहले बने मंदिर के सामने खड़ा एक भक्त सड़क पार से प्रणाम निवेदित कर रहा था। वाई-फाई प्रणाम। पहुंच गया होगा देवी-देवताओं तक। वे भी खुश होकर खुशहाली का टोकन जारी कर देते होंगे।
क्रासिंग के पार दो घोड़े आते दिखे। देश के आम आदमी की तरह कमजोर, दुर्बल। खुद के एक्सरे की तरह सड़क पर टहलते हुए। एक घोड़े की पीठ पर घाव के निशान थे। सुबह का समय होने के कारण शायद मक्खियां ड्यूटी पर न आई हों वर्ना पीठ घोड़ों की पीठ पर बिना किराए की सवारी कर रहीं होती, खून अलग से पी रही होंतीं।
कोतवाली के पास बंदरो का झुंड भगाता हुआ आ गया। पूरी सड़क सहम कर थम गई। उनमें से कुछ मादा बन्दर भी थीं जो अपने बच्चों को पेट से भाग रहीं थीं। बन्दर किसी बात और खौरीयाये हुए थे। शायद उनकी आपस में कोई कहासुनी हो गयी हो। अब बंदर कोई माफिया तो हैं नहीं जो उनके बीच गैंगवार हो रहा हो। न ही यह कह सकते हैं कि उनके यहां उनकी भलाई के लिए कोई योजना की घोषणा हुई हो जिससे नाराज होकर वे सड़क पर उतर आए हों। बंदरो की भाषा जानते नहीं थे वरना रोककर पूछते।
मंदिर के सामने मांगने वाले अपना ठीहा सजा रहे थे। एक भिखारी अपनी ट्राई साइकल से सामान समेटते हुए पहले से जमे भिखारियों से बतिया रहा था। सामने मोटरसाइकिल पर झुके पुलिस के सिपाही आपस में बतियाते हुई सुरक्षा व्यवस्था पर कड़ी नजर रखे हुए थे।
तिराहे पर शाहजहांपुर के तीन वीर रस के कवियों की मूर्ति पर के गले पर पड़ी सूखी गेंदे की माला उनके हाल बयान कर रही थी। कभी अपनी आवाज से पूरे मंच को हिला देने वाले कवियों की मूर्तियां चुपचाप सहमी सी , सावधान मुद्रा में खड़ी थीं।
पुल से उतरकर डॉमिनोज की दुकान दिखी। बन्द थी। दुकान के सामने ही कई मोटरसाइकिलें डॉमिनोज का बक्सा लादे चुपचाप खड़ीं थीं। बिन आर्डर सब सून। दुकान खुलने पर ये गुलजार होंगी। बकिया दुनिया में आज जो अर्श पर है कल वो फर्श पर होते हुए हड़प्पा काल में पहुंचेगा। इसमें कोई शक नहीं है।
फल की दुकानें अभी खुलीं नहीं थीं। एक केले के ठेले पर अलबत्ता केले बिक रहे थे। एक लड़के ने केले खाकर छिलका दूर फेंक दिया। छिलका केले से बिछुड़कर जमीन पर छिपकली की तरह औंधे मुंह पड़ा चुपचाप केले को लड़के के मुंह में जाते देख रहा होगा। उसको लग रहा होगा कि किसी नई जगह, नए देश चला गया उसका साथी केला। उसको क्या पता केला अब लुगदी बनकर पचने की मुद्रा में आ गया होगा।
एक बच्चा उचकते हुए साईकिल चलाते जा रहा था। हम बगल में लग लिए। पता चला कि केवी-1 में पढ़ता है फोर्थ-सी में। बच्चे क्लास पूछने पर सेक्सन जरूर बताते हैं। कनैजिया अस्पताल के पास से आता है। 630 से 930 तक स्कूल। स्कूल में मजा आता है।
खेल कौन से खेलते हो पूछने पर बताया -'छुपन-छुपाई, पकड़म-पकड़ाई।'
जिन लोगों ने बचपन में यह खेल खेले हैं उनको यह मालूम हो कि आज भी ये खेल बदस्तूर खेले जा रहे हैं।
पिता के बारे में पूछने पर बताया -'फार्मर हैं।'
किसान कोई नहीं बताता अपने पिता के पेशे को। सारे किसान फार्मर हो गए हैं।
इस बीच एक लड़का शायद अपने पिता के साथ मोपेड पर गुजरा बगल से। बच्चे ने उसका नाम पुकारा। बच्चा शायद सुन नहीं पाया।
लड़के ने मोपेड पर जाते बच्चे के बारे में बताया-'इसकी हाइट नहीं बढ़ रही।'
अनायास बिना पूछे लड़के ने अपने दोस्त के बारे में बताते हुए जो बताया वह उसकी कद के कम होने के बारे में बताया। यह शायद आजकल का चलन हो रहा है। पीठ पीछे किसी के बारे में बताते हुए हम यह ख्याल रखते हैं कि अगले की कमियां बिन बताई न रह जाएं।
लड़के ने मुझसे पूछा -'आप किधर जाओगे, केवी-1 या केवी-2 ? हमने कहा -हम न केवी-1 जाएंगे न केवी-2 हम अब घर जाएंगे।
घर जाते हुए रास्ते में कुछ बच्चे स्कूल जाते दिखे। स्कूल जाते बच्चे देखकर लगता है दुनिया में कुछ अच्छा हो रहा है। स्कूल जाते बच्चे किसी भी समाज की खुशहाली का पैमाना है।किसी समाज में जितने अधिक बच्चे नियमित स्कूल जा रहे हैं, वह समाज उतना ही खुशहाल है।

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