पांच दिन पहले रेलवे लाइन के किनारे स्कूल जाने को तैयार बच्चों ने बताया था कि शाम को उनको पढ़ाने एक सर आते हैं। अपन ने सोचा था कि शनिवार को बच्चों को पढ़ते देखेंगे और उनके सर जी से भी मिलेंगे।
पोस्ट पढ़कर और फोटो देखकर बच्चों के सर जी का फोन आया। ओपीएफ़ के Deepak Yadav बच्चों को रोज शाम को पढ़ाते हैं। ओपीएफ़ में रहने के दौरान हमारी मुलाकात रही होगी लेकिन दीपक के इस समाज सेवा वाले पहलू का पता नहीं था हमको।
दीपक से बातचीत के बात फिर तय हुआ कि शनिवार को उनका शाम का स्कूल देखने जाएंगे।
बातचीत के अनुसार कल शनिवार को रेलवे लाइन के किनारे बनी बस्ती में बच्चों का स्कूल देखने गए। दो झोपड़ियों के बीच की जगह की सीमेंटेड फुटपाथ पर शाम का स्कूल लगा हुआ था। छोटे-बड़े करीब बीस-पचीस बच्चे पढ़ रहे थे। छोटे बच्चे जमीन पर बिछी दरी पर बैठे साधारण इमला लिखने का अभ्यास कर रहे थे। उन बच्चों को वहीं की एक बच्ची अभ्यास करा रही थी। बच्ची मुस्कान खुद कक्षा छह में पढ़ती है। उसको दीपक पढ़ाते हैं। छोटे बच्चों को , नियमित टीचर्स न आने की स्थिति में, मुस्कान बच्चों को सिखाती है।
दीपक बड़े बच्चों को पढ़ाते हैं। कक्षा चार में पढ़ने वाले अरविंद गिनती लिखने में गलती कर रहे थे। उनको गलती बताकर दुबारा लिखवाना। सही करवाना। कविता सुनना और मुझसे बातचीत सब साथ-साथ चल रहे थे।
बीच-बीच में बच्चे बाहर जाने की अनुमति मांगकर जा रहे थे। कहते हुए -'सर, मे आई गो तो वाशरूम?' वापस आने पर टट्टर के गेट के उस पार खड़े होकर पूछ रहे थे-'मे आई कम इन सर।'
अनुमति मिलने पर बच्चे बाहर जा रहे थे। बाहर से अन्दर आ रहे थे।
दीपक ने बताया कि बच्चों को पूछकर आने जाने की आदत इस लिहाज से डाली गई है ताकि स्कूल में इनको परेशान न होना पड़े।
वाशरूम का मतलब सड़क किनारे बनी नाली, आड़ या ऐसा ही कुछ जहां जाकर बच्चे हल्के होकर वापस आ रहे थे। वॉशरूम से याद आया कि आते समय सड़क किनारे आड़ में एक कपड़े का पर्दा पड़ा था जिसके ऊपर 'शौचालय' लिखा था। यह देखकर मुझे अनायास यशपाल की कहानी 'परदा' याद आ गयी।
बच्चों से बातचीत करते हुए कक्षा 4 में पढ़ने वाली बच्ची रोशनी से कविता सुनाने को कहा। उसने कविता सुनाई:
मैं छोटा सा पथिक
पथ पर चलना सीख रहा हूँ
मैं छोटा सा पक्षी
नभ में चलना सीख रहा हूँ।
कविता सुनाते हुए अटक गई रोशनी। उससे किताब मंगवाई गयी। भागकर बगल के घर से किताब ले आई। फिर पूरी कविता सुनाई। विस्तार से कविता का अर्थ बताया गया।
इस बीच बगल की रेल की पटरी से रेलगाड़ियां, इंजन गुजरते रहे।
दीपक ने बताया कि पिछले करीब चार साल से वो यहां बच्चों को निःशुल्क पढा रहे हैं। 'सम्मान फाउंडेशन' उनके प्रयास का नाम है जिसको उन्होंने एन जी ओ के रूप में रजिस्टर भी कराया है। खुद के पैसे भी ख़र्च कर चुके हैं। छोटे बच्चों को पढ़ाने ने सहयोग के लिए दो अध्यापिकाओं को भी रखा है। उनको मानदेय भी दीपक अपने पास से देते हैं।
बच्चों की शिक्षा, खेलकूद और अच्छा नागरिक बनाने का प्रयास 'सम्मान फाउंडेशन' का उद्देश्य है।
'यह काम करने के बारे में कैसे सोचा?' यह पूछने पर दीपक ने बताया कि उनके मन में समाज सेवा की भावना बचपन से थी। माताजी अस्पताल में थी। उनके सहयोग से फर्स्ट एड का सामान बस्ते में लेकर चलते थे ताकि किसी को चोट लगे तो प्राथमिक चिकित्सा कर सकें।
समाज सेवा की भावना के पीछे मूल भाव यह भावना थी कि समाज ने मुझे जो दिया है कम से कम उतना हम उसको वापस कर सकें।
स्कूल का सामान, कुर्सियां, बच्चों को बैग , बोर्ड और अन्य तमाम चीजें दीपक अपने पास से खर्च करके लाये हैं। बिजली का स्थाई कनेक्शन लेने के लिए केसा से बात चल रही है। वे लोग भी यहां स्कूल देखकर सहयोगी मुद्रा में हैं। जयपुरिया स्कूल की ओर से भी सहयोग का आश्वासन है। अगले सत्र में कुछ बच्चों के एडमिशन भी लेने को कहा है।
यहां पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे आसपास के घरों में रहते हैं।बच्चों के मातापिता मेहनत-मजदूरी करते हैं। कोई रिक्शा चलाता है, कोई ऑटो, कोई कुछ और काम करता है। महिलाएं भी काम करती हैं। कोई स्कूल में, कोई ईंट भट्टे पर। एक बच्चे के पिता नहीं रहे तो उसकी मां मजदूरी करके बच्चों को पालती पढ़ाती है। जिंदगी के संघर्ष विकट हैं।
छोटे बच्चों से बात करते हुए सबसे बोर्ड पर नाम लिखवाए। बच्चों ने नाम लिखे।
बच्चों से बात करते हुए लगा कि कुछ बच्चे पढ़ने में अच्छे हैं। उनको लगातार प्रोत्साहन और सहयोग मिले तो आगे चलकर उनकी जिंदगी बेहतर हो सकती है। बच्चों को पढ़ने में मजा भी आता है। जाने की अनुमति लेते समय पूछ भी रहे थे -"कल पढ़ाने आएंगे सर जी?"
चलते समय बच्चों से बात हुई। मुस्कान से उसकी हावी पूछने पर उसने बताया -'गाना गाना।' इसके बाद उसने एक के बाद एक करके तीन गाने भी सुनाए, वहीं खड़े-खड़े। क्लास सात बजे तक चलती है। इसके बाद वह पास में उर्दू भी सीखने जाती है। उसका दोनों बहने और भाई भी पढ़ता है। भाई बोल नहीं पाता है। लेकिन सबको भरोसा है कि उसके पापा की तरह वह भी देर से ही सही, बोलना सीख जाएगा।
दीपक ने बताया कि क्लास खत्म करने से पहले राष्ट्रगान होता है। बच्चे जय हिंद करके अभिवादन करते हैं।
बच्चे जब जयहिंद करके चले गए तो मुस्कान और दूसरे बड़े बच्चों ने ब्लैक बोर्ड और कुर्सी आदि समेटी और घर ले गए। हम भी दीपक से विदा लेकर चले आये, इस वायदे के साथ कि समय-समय पर आते रहेंगे। यथासम्भव सहयोग भी करने का विचार मन ने है।
दीपक का गरीब बच्चों को शिक्षित करने का प्रयास देखकर बहुत अच्छा लगा। दीपक जैसे तमाम लोग अपने आसपास समाज की बेहतरी के लिए अपने स्तर पर निस्वार्थ भाव से प्रयास कर रहे हैं। हमको उनके प्रयास में सहयोग करना चाहिए।
दीपक का मोबाइल नम्बर जो सम्मान फाऊंडेशन के बैनर में लिखा है- 7905048513
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