कल Arvind Tiwari जी से बात हुई। हाल ही में बाल-बाल बचे ज्ञान चतुर्वेदी सम्मान से सम्मानित होते-होते। किसी ने उनका नाम सम्मान के लिए प्रस्तावित कर दिया था। आयोजकों में से किसी ने पूछा होगा तो उन्होंने मना कर दिया। हमने उनके इस त्याग के लिए उनको बधाई दी तो उन्होंने शिकायत की कि आजकल तुम्हारी पोस्ट्स नहीं आ रहीं।
हम क्या जवाब देते ? लिखना-पढ़ना कम हुआ है। व्यस्तता जैसी बात भी नहीं। लेकिन मन नहीं किया बहुत दिन से। कुछ मित्र बात होने पर पूछते हैं -‘आजकल लिख नहीं रहे?’ इनमें से अधिकतर मित्र हमारे लिखे पर कभी प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करते। लेकिन कई बताते हैं कि उनका पूरा परिवार हमारी पोस्ट्स पढ़ता है। ख़ुशफ़हमी का भाव।
बात सम्मान से शुरू हुई थी। आज जगदीश्वर चतुर्वेदी जी का स्टेटस देखा। लिखा था :
“हिंदी महान भाषा है इसमें पुरस्कृत -सम्मानित लेखक-लेखिकाओं की बाढ़ आई हुई है और उसमें साहित्य का अंत हो गया है।”
हमको ख़ुद को मिले उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के दो सम्मान याद आए। साहित्य के अंत में हमारा योगदान।संस्थान से इनाम भले मिल गया लेकिन कहीं किसी अख़बार में उनकी चर्चा नहीं हुई।
बात सम्मान से शुरू हुई बात ख़त्म करने से पहले इस बार के ज्ञान चतुर्वेदी सम्मान से सम्मानित होने वाले मित्रों मलय जैन Maloy Jain जी और इंदरजीत कौरIndrajeet Kaur जी को बधाई। शुभकामनाएँ। दोनों ही मित्र अच्छे लेखक हैं। मिलने पर मिठाई खाई जाएगी।
पढ़ने लिखने की बात करें तो पहले पढ़ने से। आजकल पढ़ने की गति और निरंतरता बहुत कम हुई है। बमुश्किल दो-चार-दस पन्ने रोज़ पढ़ना हो पाता है। तमाम किताबें सरकारों द्वारा शुरू की अधूरी परियोजना सरीखी अधपढ़ी हैं। उनमें से काफ़ी किताबें ऐसी भी हैं जो लेखक मित्रों ने सप्रेम भेंट की हैं। मित्र आशा भले न करें लेकिन लगता है कि उनको पढ़कर उनपर कुछ न कुछ प्रतिक्रिया करनी चाहिए। तमाम उधारी बाक़ी है।
यही हाल लिखने का भी है। पहले नियमित लिखते थे। अब स्थगित हो गया है। पहले घूमते हुए जो दिखा वह लिख देते थे। आजकल घूमना कम हो गया है। घरघुसुवा हो गये हैं। सुबह शाम जब भी निकलने की सोचते हैं , फ़ौरन तय कर लेते हैं -कल से निकलेंगे। कल का इंतज़ार करते हुए न। जाने कितने कल निकल गये।
इस बीच साइकिल भी हाथ से निकल गई। हमारी साइकिल पर हमारे ही घर में रहने वाले लोगों ने क़ब्ज़ा कर लिया। कोई काम पर जाता है कोई बाज़ार। अब नई साइकिल मिली है तो लगता है चलेगी और नज़ारे दिखेंगे और लिखाई भी होगी।
हमारे लिखने में लफड़ा यह भी है कि आज जो दिखा वो अगर आज नहीं लिखा गया तो रह जाता है। इसी के चलते हाल की कश्मीर यात्रा की तमाम पोस्टें रह गयीं।
पोस्ट की बात से याद आया कि हमारे जन्मदिन पर मित्रों ने शुभकामनाएँ दी थीं। कुछ मित्रों ने बहुत प्यारी पोस्ट्स भी लिखीं थीं। मित्रों को धन्यवाद भी देना बकाया है। सभी मित्रों को उनकी पोस्ट्स पर अलग से धन्यवाद लिखेंगे। अभी सभी मित्रों के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ।
हमारा लेखन हमारी घुमाई से जुड़ा है। आज निकले घूमने। घर के बाहर सड़क पर जानवरों के गोबर एक लाइन में पड़ा दिखा। देखकर लगा कि जानवर कितने अनुशासित होते हैं। निपटते भी एक सीध ने हैं। कुछ देर में गोबर सड़क से उठ जाएगा। जानवरों के अनुशासन के निशान मिट जाएँगे।
आगे एक आदमी सड़क किनारे रखे ईंटों पर हाथ रखे कसरत कर रहा था। मन किया कि उसका वीडियो बनाएँ लेकिन मन की बात पर अमल करने के पहले न्यूटन के जड़त्व के नियम के अधीन काफ़ी आगे बढ़ गये थे।
रास्ते में तमाम लोग दूसरे के घरों के बाहर लगे कनेर, चाँदनी के पेड़ों से उचक-उचक कर फूल तोड़ते दिखे। लोगों के घरों से चुराये हुए फूल देवी-देवताओं पर चढ़ते हैं। वो लोग भी कुछ बोलते नहीं। चुपचाप ग्रहण कर लेते हैं। उनको पता नहीं है -‘जैसा खाओ अन्न, वैसा बने तन।’ क्या पता इसीलिए उनकी ताक़त कम होती जा रही हो। भक्तों की कातर पुकार पर भी कुछ कर नहीं पाते।
तमाम और नज़ारे देखते हुए लौटे। वापसी में एक दरबान स्कूटर पर जाता दिखा। स्कूटर के आगे पेडेस्ट्रिल पंखा खड़ा लिए जा रहा था जैसे स्कूटर में लोग आगे अपने बच्चों को खड़ा कर लेते हैं। पीछे वाले दरबान ने बताया कि रात में पंखा ख़राब हो गया था तो उठाकर लाये थे इस पंखे को। सुबह ठीक होगा।
आज की कहानी इतनी ही। बाक़ी फिर कभी।
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