सुबह टहलने निकले तो सामने ही मोर दिखा । बीच सड़क टहलते हुए । लगता है वह भी मार्निंग वाक पर निकला है । पंजे सड़क पर एक के बाद दूसरा रखता हुआ । मानो सड़क पर ‘कैट वाक’ कर रहा हो । मोर के सुन्दर लंबे पंख बहुत खूबसूरत । सड़क पार करते हुए मोर को देखकर अनायास केदारनाथ जी की कविता याद आ गयी:
“मुझे आदमी का सड़क पार करना
क्योंकि इस तरह
एक उम्मीद सी होती है
कि दुनिया जो इस तरफ़ है
शायद उससे कुछ बेहतर हो
सड़क के उस तरफ़ । “
पता नहीं आदमी के लिए लिखी कविता मोर पर लागू होती है कि नहीं । मोरों के यहाँ कवि होते हैं कि नहीं । वे इंसानों की तरह कवितायें लिखते हैं कि नहीं । कहने को तो कोई कह सकता है कि मोर जो सुबह-सुबह पेड़ों पर, छतों पर और ऊँची जगहों पर बैठकर आवाज देते हैं वे उनके कविता पाठ ही हैं । उनकी आवाज ऊँची होती है , दूर तक पहुँचती है इसलिए शायद उनको लाउडस्पीकर की जरूरत नहीं होती ।
इस कविता को अभी पढ़ते हुए लगा कि यह लैंगिक भेदभाव वाली कविता है । इसमें केवल आदमी को ही सड़क पार करते दिखाया गया है । कवि को शायद पसंद नहीं कि औरतें भी सड़क पर आयें और सड़क पार करें । अभी तक किसी ने इस कविता लैंगिग भेदभाव का आरोप क्यों नहीं लगाया?
बीच सड़क से जाते मोर की फोटो लेने की कोशिश की । जब तक कैमरा सेट करें मोर सड़क किनारे पहुँच गया और उचक कर नाली के पार हो गया । आगे मैदान में टहलने लगा । दूर से उसका फोटो साफ़ नहीं आयेगा यह सोचकर हमने फोन वापस जेब में धर लिया ।
पिछले दिनों ऐसा कई बार हुआ । मोर सड़क पर दिखा और हमारे देखते-देखते सड़क पार करके उचकते हुए नाली पार जाकर मैदान में टहलने लगा । हमारी फोटो लेने की तमन्ना अधूरी ही रह गयी । अब हम कोई प्रधानमंत्री थोड़ी हैं जो मोर हमारी इच्छा के अनुसार हमारे पास आ जाए । दाना चुग जाए । वहां मोर को भी डर रहता होगा कि अगर उसने नखरे किये तो कहीं उसके खिलाफ ईडी का सम्मन न आ जाए । आम आदमी और ख़ास लोगों के प्रति व्यवहार में इतना अंतर तो रहेगा ही ।
आगे सडक पर दो बच्चे , एक लड़का और एक लड़की स्केटिंग करते दिखे । जूते के नीचे ब्लेड वाले स्केट बंधे थे । लड़का एक्सपर्ट लग रहा था । तसल्ली से सड़क पर स्केटिंग कर रहा था । तरह-तरह की अदाओं में , पोज़ में। लड़की बीच-बीच में डगमगा रही थी । लड़का उसको समझा रहा था, संभाल भी रहा था । एक बार लड़की थोड़ी ज्यादा लडखडाई । गिरने को हुई । लेकिन उसको याद आया होगा और वह चलते-चलते बैठ गयी । संभल गयी । कुछ ही देर बाद फिर स्केटिंग करने लगी ।
बच्चों को स्केटिंग करते देख मुझे अपने कालेज के दोस्त सुरेन्द्र सिंह सावंत की याद आयी । स्केटिंग करते हुए माउथ आर्गन बजाते रहते । तीसरे मंजिल से स्केट्स पहने-पहने नीचे आते और देर तक और दूर तक माउथ आर्गन बजाते हुए स्केटिंग करते । हाल ही में आई ओ सी से रिटायर हुए । उनके रिटायर होने पहले उनके दोनों ही शौक रिटायर हो गए ।
हमारा मन किया कि काश हमको भी स्केटिंग आती होती तो अपन भी सडक पर रोलर वाले स्केट्स बांधकर टहलते । अब सीखने में डर लगता है कि कहीं सड़क पर गिर न जाएँ और कोई हड्डी न टूट जाए । महीने भर की छुट्टी हो जाए ।
सडक की पुलिया पर बैठा एक आदमी कुछ योग और कसरत कर रहा था । मोबाइल पैर के पास रखा था । उठक-बैठक वाली कसरत करते हुए बैठ गया । उसके बाद हाथ रगड़ते हुए कोई नयी कसरत करने लगा । उसको हाथ रगड़ते देख मुझे लगा बस पुण्य प्रसून बाजपेयी जी की तरह बस बोलने ही वाला है –‘दोस्तों नमस्कार ।‘
एक जोड़ा अपने बच्चे को गोद में लिए आहिस्ता-आहिस्ता टहल रहा था । बच्चा पिता की गोद में था । बीच-बीच में किलकता हुआ बच्चा मुस्करा रहा था । पूरे समय पिता ही लिए रहा बच्चे को । शेर याद आया जिसमें बच्चे को माँ द्वारा ही खिलाये जाने की बाद कही गयी है :
“.. जैसे कोई मां बच्चा खिलाये उछाल के”
शेर के माने के उलट यहाँ पूरे समय पिता ही बच्चे खिलाता रहा । जबकि शेर में पूरा क्रेडिट माँ को ही दिया गया है । पिता लोग कम क्रेडिट पाने के बावजूद बच्चों के प्रति अपना कर्तव्य निभाते रहते हैं । दुनिया में ऐसा न जाने कब से हो रहा है । किसी का क्रेडिट किसी और को दिया जाता रहा ।
माताओं के मुकाबले जो क्रेडिट पिता लोगों को कम मिलता है उसकी भरपाई के लिए ही शायद ‘फादर्स डे’ मनाया जाता है । कई तमाम लोगों ने अपने पिता को बड़े आदर और प्रेम से याद किया । पिता लोगों को आदर और प्रेम का सारा क्रेडिट एरियर के रूप में ‘पिता दिवस’ के दिन मिल जाता है ।
मुझे पिता दिवस पर रागदरबारी के छोटे पहलवान याद आये । आज अगर वे होते तो ‘फादर्स डे’ पर अपने पिता कुशहर प्रसाद को कैसे याद करते?
पुलिया पर बैठी दो बच्चियां बतियाते दिखी । देखते-देखते एक ने मोबाइल निकाला और दोनों की ‘सेल्फी’ लेने लगी । ढेर सारी सेल्फी ले डाली और आपस में देखते हुए मुस्कराने-बतियाने लगीं ।
पार्क में आज बहुत कम बच्चे खेल रहे थे । शायद खेल कर चले गए होंगे या फिर आज तमाम बच्चे ईद के कारण घर से न निकले हों खेलने ।
घर लौटकर देखा सूरज भाई गरम होते हुए हमको हड़का जैसा रहे हों । हमने उनको मुस्कराते हुए देखा और गुडमार्निंग किया । वे मुस्कराने लगे । यही फर्क है सूरज भाई और किसी खडूस इंसान में । कोई और होता तो ‘कारण बताओ नोटिस’ थमा देता –“ आप मुझे देखकर मुस्कराए क्यों ? क्यों न आपके खिलाफ विभागीय नियमों के अनुसार कार्यवाही की जाए? तीन दिन के भीतर अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करें ।“
शुक्र है दुनिया में मुस्कराने वाले लोग अभी बचे हुए हैं । इनके चलते ही दुनिया अभी तक खूबसूरत बनी हुई है ।
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