Monday, June 17, 2024

सड़क के रैंप पर मोर का ‘कैट वाक’


सुबह टहलने निकले तो सामने ही मोर दिखा । बीच सड़क टहलते हुए । लगता है वह भी मार्निंग वाक पर निकला है । पंजे सड़क पर एक के बाद दूसरा रखता हुआ । मानो सड़क पर ‘कैट वाक’ कर रहा हो । मोर के सुन्दर लंबे पंख बहुत खूबसूरत । सड़क पार करते हुए मोर को देखकर अनायास केदारनाथ जी की कविता याद आ गयी:
“मुझे आदमी का सड़क पार करना
हमेशा अच्छा लगता है
क्योंकि इस तरह
एक उम्मीद सी होती है
कि दुनिया जो इस तरफ़ है
शायद उससे कुछ बेहतर हो
सड़क के उस तरफ़ । “
पता नहीं आदमी के लिए लिखी कविता मोर पर लागू होती है कि नहीं । मोरों के यहाँ कवि होते हैं कि नहीं । वे इंसानों की तरह कवितायें लिखते हैं कि नहीं । कहने को तो कोई कह सकता है कि मोर जो सुबह-सुबह पेड़ों पर, छतों पर और ऊँची जगहों पर बैठकर आवाज देते हैं वे उनके कविता पाठ ही हैं । उनकी आवाज ऊँची होती है , दूर तक पहुँचती है इसलिए शायद उनको लाउडस्पीकर की जरूरत नहीं होती ।
इस कविता को अभी पढ़ते हुए लगा कि यह लैंगिक भेदभाव वाली कविता है । इसमें केवल आदमी को ही सड़क पार करते दिखाया गया है । कवि को शायद पसंद नहीं कि औरतें भी सड़क पर आयें और सड़क पार करें । अभी तक किसी ने इस कविता लैंगिग भेदभाव का आरोप क्यों नहीं लगाया?
बीच सड़क से जाते मोर की फोटो लेने की कोशिश की । जब तक कैमरा सेट करें मोर सड़क किनारे पहुँच गया और उचक कर नाली के पार हो गया । आगे मैदान में टहलने लगा । दूर से उसका फोटो साफ़ नहीं आयेगा यह सोचकर हमने फोन वापस जेब में धर लिया ।
पिछले दिनों ऐसा कई बार हुआ । मोर सड़क पर दिखा और हमारे देखते-देखते सड़क पार करके उचकते हुए नाली पार जाकर मैदान में टहलने लगा । हमारी फोटो लेने की तमन्ना अधूरी ही रह गयी । अब हम कोई प्रधानमंत्री थोड़ी हैं जो मोर हमारी इच्छा के अनुसार हमारे पास आ जाए । दाना चुग जाए । वहां मोर को भी डर रहता होगा कि अगर उसने नखरे किये तो कहीं उसके खिलाफ ईडी का सम्मन न आ जाए । आम आदमी और ख़ास लोगों के प्रति व्यवहार में इतना अंतर तो रहेगा ही ।
आगे सडक पर दो बच्चे , एक लड़का और एक लड़की स्केटिंग करते दिखे । जूते के नीचे ब्लेड वाले स्केट बंधे थे । लड़का एक्सपर्ट लग रहा था । तसल्ली से सड़क पर स्केटिंग कर रहा था । तरह-तरह की अदाओं में , पोज़ में। लड़की बीच-बीच में डगमगा रही थी । लड़का उसको समझा रहा था, संभाल भी रहा था । एक बार लड़की थोड़ी ज्यादा लडखडाई । गिरने को हुई । लेकिन उसको याद आया होगा और वह चलते-चलते बैठ गयी । संभल गयी । कुछ ही देर बाद फिर स्केटिंग करने लगी ।
बच्चों को स्केटिंग करते देख मुझे अपने कालेज के दोस्त सुरेन्द्र सिंह सावंत की याद आयी । स्केटिंग करते हुए माउथ आर्गन बजाते रहते । तीसरे मंजिल से स्केट्स पहने-पहने नीचे आते और देर तक और दूर तक माउथ आर्गन बजाते हुए स्केटिंग करते । हाल ही में आई ओ सी से रिटायर हुए । उनके रिटायर होने पहले उनके दोनों ही शौक रिटायर हो गए ।
हमारा मन किया कि काश हमको भी स्केटिंग आती होती तो अपन भी सडक पर रोलर वाले स्केट्स बांधकर टहलते । अब सीखने में डर लगता है कि कहीं सड़क पर गिर न जाएँ और कोई हड्डी न टूट जाए । महीने भर की छुट्टी हो जाए ।
सडक की पुलिया पर बैठा एक आदमी कुछ योग और कसरत कर रहा था । मोबाइल पैर के पास रखा था । उठक-बैठक वाली कसरत करते हुए बैठ गया । उसके बाद हाथ रगड़ते हुए कोई नयी कसरत करने लगा । उसको हाथ रगड़ते देख मुझे लगा बस पुण्य प्रसून बाजपेयी जी की तरह बस बोलने ही वाला है –‘दोस्तों नमस्कार ।‘
एक जोड़ा अपने बच्चे को गोद में लिए आहिस्ता-आहिस्ता टहल रहा था । बच्चा पिता की गोद में था । बीच-बीच में किलकता हुआ बच्चा मुस्करा रहा था । पूरे समय पिता ही लिए रहा बच्चे को । शेर याद आया जिसमें बच्चे को माँ द्वारा ही खिलाये जाने की बाद कही गयी है :
“.. जैसे कोई मां बच्चा खिलाये उछाल के”
शेर के माने के उलट यहाँ पूरे समय पिता ही बच्चे खिलाता रहा । जबकि शेर में पूरा क्रेडिट माँ को ही दिया गया है । पिता लोग कम क्रेडिट पाने के बावजूद बच्चों के प्रति अपना कर्तव्य निभाते रहते हैं । दुनिया में ऐसा न जाने कब से हो रहा है । किसी का क्रेडिट किसी और को दिया जाता रहा ।
माताओं के मुकाबले जो क्रेडिट पिता लोगों को कम मिलता है उसकी भरपाई के लिए ही शायद ‘फादर्स डे’ मनाया जाता है । कई तमाम लोगों ने अपने पिता को बड़े आदर और प्रेम से याद किया । पिता लोगों को आदर और प्रेम का सारा क्रेडिट एरियर के रूप में ‘पिता दिवस’ के दिन मिल जाता है ।
मुझे पिता दिवस पर रागदरबारी के छोटे पहलवान याद आये । आज अगर वे होते तो ‘फादर्स डे’ पर अपने पिता कुशहर प्रसाद को कैसे याद करते?
पुलिया पर बैठी दो बच्चियां बतियाते दिखी । देखते-देखते एक ने मोबाइल निकाला और दोनों की ‘सेल्फी’ लेने लगी । ढेर सारी सेल्फी ले डाली और आपस में देखते हुए मुस्कराने-बतियाने लगीं ।
पार्क में आज बहुत कम बच्चे खेल रहे थे । शायद खेल कर चले गए होंगे या फिर आज तमाम बच्चे ईद के कारण घर से न निकले हों खेलने ।
घर लौटकर देखा सूरज भाई गरम होते हुए हमको हड़का जैसा रहे हों । हमने उनको मुस्कराते हुए देखा और गुडमार्निंग किया । वे मुस्कराने लगे । यही फर्क है सूरज भाई और किसी खडूस इंसान में । कोई और होता तो ‘कारण बताओ नोटिस’ थमा देता –“ आप मुझे देखकर मुस्कराए क्यों ? क्यों न आपके खिलाफ विभागीय नियमों के अनुसार कार्यवाही की जाए? तीन दिन के भीतर अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करें ।“
शुक्र है दुनिया में मुस्कराने वाले लोग अभी बचे हुए हैं । इनके चलते ही दुनिया अभी तक खूबसूरत बनी हुई है ।

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