आज सुबह टहलने निकले। जबलपुर में आठ साल बाद। साइकिल नहीं थी आज। पैदल निकले।
पुलिया पर कोई बैठा नहीं दिखा। सड़क पर लोग टहलते दिखे। बच्चे साइकिल चलाते। एक आदमी साइकिल सड़क किनारे खड़ी करके कुछ कसरत कर रहा था। एक महिला पुलिया पर बैठी अनुलोम-विलोम करती दिखी।
रॉबर्टसनलेक की तरफ गए। रास्ते में तीन महिलाएं खड़ी बतिया रही थीं। कुछ घर गृहस्थी की बातें। सास-बहू वाली सलाहें।
रास्ते ने एक मरे हुए मेढक को चीटियाँ टुकड़ों में घसीटती ले जाती दिखीं। मेढक का सर गायब था। बाकी हिस्से पर चींटियों की टीम लगी हुई थी। कुछ देर में मेढक का सफाया हो जाएगा।
झील में पानी किनारे पर कम था। पानी में हरियाली थी। घास-फूस जमी थी। दूर नावें चलती दिखी पानी में। सूरज की किरणों ने पानी को पालिश करके चमका सा दिया था। उजाले के फेशियल से झील का चेहरा चमक रहा था।
लौटते में देखा एक आदमी बनियाइन पहने बिना हेलमेट के स्कूटर दौड़ाए लिए जा रहा था। स्कूटर के पीछे 'पुलिस' लिखा देखकर हमने उसकी फोटो लेने का इरादा बदल दिया।कौन बवाल मोल ले।
सड़क पर खड़े कुछ आदमी कहीं घूमने जाने की योजना बना रहे थे। एक आदमी को कहते सुना -'अरे अमरनाथ और बद्रीनाथ अलग-अलग जगह हैं। उनके टिकट अलग लेने पड़ेंगे।'
मैदान जहां कभी लोग क्रिकेट खेलते और लड़ते-झगड़ते दीखते थे वहां बढ़िया आफ लाईन टेस्ट ट्रैक बना हुआ था। AVNL कंम्पनी के टेस्ट ट्रैक में गाड़ियों की चलने की टेस्टिंग होती होगी।
शोभापुर रेलवे क्रासिंग ओवरब्रिज बन गया है। ओवरब्रिज के बगल की सड़क से क्रासिंग तक गए। क्रासिंग एकदम बंद हो गयी है। बगल की सड़क से रेलवे लाइन के नीचे से रास्ता गया है। लेकिन पैदल चलने वाले लोग रेलवे की पटरी क्रॉस करके ही आते-जाते दिखे। सवारी वाले अलबत्ता नीचे से जा रहे थे।
ओवरब्रिज के नीचे उस जगह गए जहां दीपा अपने पापा के साथ रहती थी। पापा उसके रिक्शा चलाते थे। कुत्ता भी साथ में था। दीपा स्कूल जाती थी। हम उससे मिलने जाते थे। उसके बारे में लिखते थे।
दीपा के रहने की जगह खाली थी। बगल में सीमेंटेड पाइप लाइन के ऊपर गद्दा बिछाए आराम करते आदमी से दीपा के बारे में पता किया तो वहीं खड़े एक आदमी ने बताया कि दीपा के पिता की गैंग्रीन से मौत हो गयी। दीपा पास ही के एक घर में रहती है।
हम दीपा से मिलने की सोचते हुए लौटे। रास्ते में पहाड़ पर खाना बनाते, पानी लाते-ले जाते लोग दिखे। सब आसपास के गांवों-कस्बों से आये थे। मेहनत-मजदूरी करने। यहीं पहाड़ पर अस्थाई निवास बना लिया है। बरसात में घर चले जाते हैं।
एक आदमी जल्दी-जल्दी दाल-भात बनाकर थाली में डालकर खा रहा था। उसके पास तसल्ली से बीड़ी पीते आदमी ने बताया कि उसको दूर जाना है , रद्दी चौकी की तरफ मजदूरी के लिए। इसीलिए जल्दी पका-खाकर जा रहा है।
दूर बैठी एक महिला शीशे में मुंह देखकर अपनी चोटी करती हुई पास जलते चूल्हे में लकड़ी खिसकाती जा रही थी। बटलोई में कुछ बन रहा था। एक के चूल्हे में कुकर चढ़ा था।
गुंडम से आये आदमी ने बताया कि उनके यहां सिचाई का साधन नहीं। इसीलिए फसल ठीक नहीं होती। इसीलिए शहर आना पड़ता है कमाने।
सरकारों के प्रति कोई गुस्सा नहीं इस बात के लिए कि उनके यहां सिंचाई के लिये कोई इंतजाम नहीं। दुष्यंत कुमार का शेर याद आया :
न हो कमीज तो पांवों से पेट भर लेंगे,
बहुत मुनासिब हैं ये लोग इस सफर के लिए।
रास्ते में एक बच्चा अपनी साइकिल पर प्लास्टिक की बाल्टियों में पानी लादे ले जाते दिखा। उसकी छुटकी साइकिल के हैंडल पर टंगी पानी की बाल्टियां हिल रहीं थीं लेकिन बच्चा बहादुरी के साथ उनको थामे था। बच्चे की मां जिसने बाल्टियां हैंडल पर लादी थीं , वह संतोष के भाव से बच्चे को पानी ले जाते देख रही थी।
दीपा का पता पूछते हुए जिस घर पर पहुंचे वह एक स्थानीय कांग्रेसी पदाधिकारी का है। नाले के किनारे बना घर। खुला नाला जिसमें वर्षों की गंदगी जमा थी।
घर के बाहर कुत्ते से सावधान का बोर्ड लगा था। हमने सावधान होकर गेट खड़खड़ाया। कुत्ते ने भौंकते हुए हमारी सावधानी का इम्तहान लिया और कुछ देर तक भौंककर चुप हो गया।
सीहोरे जी से दीपा के बारे में पूछा तो विवरण जानकर उन्होने बताया कि दीपा उनके यहां अपने पति के साथ रहती है। दीपा की शादी की बात सुनकर हमको थोड़ा ताज्जुब हुआ। मेरी नजर में वह अभी बच्ची ही थी। आठ साल पहले स्कूल जाती थी। उसकी शादी हो गयी।
दीपा के पति से मुलाकात हुई। पता चला कि दीपा शहर गयी है अपनी सहेलियों से मिलने। कल आएगी। दीपा के नम्बर पर बात करने की कोशिश की लेकिन हर बार कट गया। शायद ऐसी जगह होगी जहां नेटवर्क न मिलता हो।
दीपा से कल मुलाकात की बात तय करके अपन लौट लिए।
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