दीपा से मुलाक़ात के लिए उसके घर की तरफ बढे हम । दो दिन पहले उसके घर का पता चला था । उससे मिलने गए तो पता चला सहेलियों से मिलाने गयी है । अगले दिन लौटेगी । उसके पति नीलू चौहान से मिले थे । अगले दिन आने की बात कहकर अपन लौट आये ।
अगले दिन शाम को जाने का प्लान था । लेकिन मित्रों के साथ घूमने चले गए । लौटना देर में होना था । फोन कर दिया दीपा को कि अगले दिन आयेंगे मिलने ।
हम रुके कि वापस जायें सोच रहे थे कि नीलू ने मुझे ऊपर चलने का निमंत्रण दिया । हम गए । जमीन पर बिछे पतले गद्दे पर बैठकर बतियाने लगे । हाल-चाल पूछना हुआ । दो छुटके कमरे और एक बच्चा रसोई वाले घर में सामान बहुत कम । जरुरी से भी कम जरुरी टाइप । 2600 रुपये किराए के पड़ते हैं ।
दीपा को फोन किया तो उसने ग्यारह बजे आने को कहा । लेकिन फिर बोली अभी आते हैं । दस मिनट में ।
दस मिनट में मिनट में कुछ और मिनट लगाकर दीपा आई । अपने भाई के साथ । भाई को मैंने पहले कभी देखा नहीं था । उग्र, आक्रामक , चेहरे पर गुस्सा ,लहजे में नाराजगी का भाव । बताया कि बाप से पटती नहीं थी । उसकी दारु पीने की आदत से नाराजगी थी । पिता के मरने का कोई अफसोस नहीं था –‘मर गया अच्छा हुआ’ जैसी कुछ बात भी कही उसने ।
दीपा ने आने पर हाथ मिलाया । मुस्कराई । पास ही दीवार से टिककर बैठ गई । हमने कहा –‘तुम तो बहुत बड़ी हो गयी । शक्ल एकदम बदल गयी ।‘
उसने भी कुछ कहा । बात दीपा के मोबाइल ज्यादा उपयोग की भी होने लगी । पता चला रील्स बनाती है । सहेलियों से बात करती है । पति का मोबाइल अपने पास रखती है ।
हमने पूछा –‘रील कैसे बनाती हो? हमको तो आता नहीं बनाना ।‘
दीपा ने फ़ौरन मोबाइल का लाक खोलकर एक ठो रील बनाई । भौंहे इधर-उधर करते हुए । हमको दिखाई ।
हमने पूछा –‘ये रील्स किसलिए बनाती हो? ‘
उसने बताया कि रील्स से कमाई भी होती है । हमने बताया कि रील्स से कमाई के लिए लाखों फालोवर होने चाहिए । तुम्हारे कितने हैं? उसने दिखाया अपना खाता । उसके लगभग 1400 फालोवर थे ।
देश के लाखों युवा इसी भ्रम में रीलबाजी में जुटे हुए हैं कि इससे उनको कमाई होगी । अपना समय इसी में बरबाद करते हैं । कुछ बच्चों को तो मैं देखता हूँ कि वे देर रात तक रील्स बनाते हैं । न कोई कंटेंट , न कोई देखने लायक मसाला । सिर्फ इधर-उधर की अदाएं दिखाकर रील्स बनाते हुए काल्पनिक कमाई के ख्वाब में डूबकर रीलबाजी करते रहते हैं ।
कमाई से ज्यादा शायद उनको अपनी पहचान बनने, फालोवर होने का खुशनुमा एहसास प्रेरित करता होगा यह काम करने में।
दीपा को रील बनाते देख उसका भाई नाराज सा हो गया । बोला –‘ज्यादा रील-फील न बनाया करो। फोड़ देंगे मोबाइल-सोबाइल किसी दिन।‘
भाई की बात से बेपरवाह थी दीपा। चार साल बड़ा है दीपा से। भाई ऑटो चलाता है । महीने में बारह-पंद्रह हजार कमा लेता है । शादी नहीं हुई है अभी । कुछ देर में भाई चला गया ।
दीपा के पति को काम पर जाना था। दीपा के साथ कुछ फोटो लिए। दीपा ने विक्ट्री का निशान बनाया। हमने नीलू से भी बनाने को कहा । दीपा ने मना कर दिया । बोली –‘इनको नहीं आता बनाना।‘
इसके पहले चाय की बात हुई । दीपा के पति ने दीपा से कहा –‘दूध ले आओ । अंकल को चाय पिलाओ ।‘
दीपा ने कहा –‘तुम ले आओ दूध ।‘
उसके कहा –‘तुम ले आओ ।‘
हमने कहा –‘रहन देव । कोई न लाओ । हम चाय नहीं पीयेंगे ।‘
यह सुनकर दीपा उठी और दूध लेने चली गयी । लौटी थोड़ी देर में तो हाथ में एक छुटकी पेप्सी की बोतल और दूध का पैकेट था । हमको पेप्सी दी पीने के लिए ।
हमने मना किया –‘हम पेप्सी नहीं पीते । तुम पी लो ।‘
कुछ देर में चाय बनाकर लाई दीपा । हम लोग चाय पीते रहे । दीपा ने पेप्सी पी ।
थोड़ी देर में दीपा का पति नीलू चला गया काम पर । पास ही एक लोहा फैक्ट्री में काम करता है । सुबह नौ से शाम आठ तक की ड्यूटी के तीन सौ रोज के हिसाब से काम । प्राइवेट फर्मों में अमूमन यही रेट है दिहाड़ी का जबलपुर में ।
नीलू के जाने के बाद कुछ देर और बात होती रही दीपा से । उसने कहा –‘पापा के न रहने के कारण हमारी पढ़ाई नहीं हो पायी । वो होते तो हम पढ़ते रहते । उनके न रहने से पढ़ाई बंद हो गयी ।‘
शायद क्लास छह तक हुई है पढ़ाई दीपा की ।
हमने कहा –‘अब स्कूल में पढ़ना तो मुश्किल है । लेकिन अपने आप पढो । कौन सी किताब पढ़ना है बताओ । हम भेज देंगे ।‘
उसने कहा –‘हमको गणित पढना है ।‘
हम बोले –‘ठीक है पढ़ना । हम भेज देंगे किताब ।‘
उसके घर में पंखा नहीं है । गरमी में रहती है वो । उसके पति ने भी बताया था कि पंखे के लिए पैसे जमा कर रहे थे लेकिन इसका मोबाइल टूट गया तो वो बनवाया । उसमें खर्च हो गए पैसे ।
मोबाइल आज के समय की सबसे बड़ी ज़रूरत हो गया है।
हमने कहा –‘तुमको पंखा खरीद देंगे । साइकिल भी ले देंगे । क्या चाहिए पहले पंखा कि साइकिल ?’
वो बोली –‘पंखा ।‘ इसके बाद बोली –‘किताब दिला दीजिये पहले ।‘
हमने कहा- ‘ ठीक ।सब दिला देंगे।’
एक मित्र का फोन आया इस बीच । वे हमारा इन्तजार कर रहे थे । दीपा के साथ बाहर आये । उसके साथ सेल्फी ली । कुछ पैसे दिए । उसने मना किये लेकिन फिर हमने जबरदस्ती दिए तो ले लिए । बाद में बताया कि उससे अपने कुछ कपडे लाई है ।
बाद में अपने दोस्त Sagwal Pradeep के हाथ रात को पंखा भेजा । उसके यहाँ लग भी गया । अब दीपा के लिए किसी काम का इंतजाम करना है । जबलपुर के दोस्तों को बोला है । आशा है उसे भी कुछ काम मिल जाएगा ।
एक बच्ची की जिन्दगी से थोड़ा जुड़ने के बाद एहसास होता है कि गरीबी और अभाव का जीवन क्या होता है । पनपने के पहले ही तमाम ताकते उसको मुरझाने के लिए ताकतें लगाती हैं । कोई बच्चा अपनी पढ़ाई न पूरी कर पाए इससे बड़ी असफलता किसी समाज के लिए और क्या हो सकती है ?
दीपा की जिन्दगी में लफड़े और भी हैं । उसका आधार कार्ड खो गया है । नंबर याद नहीं । इसका उपाय अमित चतुर्वेदी Amit Chaturvedi ने बताया कि फिंगर प्रिंट से आधार नम्बर पता चल जाएगा । उसके बाद मोबाइल नम्बर बदल कर नया आधार कार्ड बन जाएगा । बताया है दीपा को । वह कह रही थी कि उसको पता है आधारताल में सर्विस सेंटर है । वहां जाकर बनवायेगी । लेकिन इस बीच उसका नाम भी बदल गया है । दीपा से शिवानी हो गया है नाम । सबका जोड़-तोड़ , मिलान कैसे होगा ।
लेकिन होगा । कुछ न कुछ तो होगा ही । ऐसे ही होता है कुछ न कुछ । ऐसे ही होता है सब कुछ ।
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