Friday, April 25, 2014

सूरज भाई की बेईज्जती ख़राब



कल सूरज भाई की जो बेईज्जती ख़राब की जहाज वालों ने उससे सूरज भाई सुबह से ही भन्नाये हुए हैं। एयरपोर्ट पर जहाज के ऊपर पाँव धरकर चमक रहे हैं।

रनवे और आसपास की धुप एकदम शांत है। अनुशासित।

परिचारिका बता रही है अब चलिए जबलपुर। चलो भाई।




Thursday, April 24, 2014

रौशनी का टुकड़ा शराफत से बाहर




कलकत्ता से दिल्ली के लिए हवाई जहाज के उड़ते ही तमाम यात्री समाधि मुद्रा में आ गए। आँखे मूंदकर इतने ध्यान से सांस ले रहे थे जिसे देखकर लग रहा था मानों ये वाली साँस लेने के लिए ही 10000 रुपया खर्च करके जहाज में बैठे हैं। जहाज में बैठते ही पैसा वसूलना शुरू कर दिए।

बाहर सूरज भाई चमकते दिखे। हम खुश हो गए कि ये भी साथ चलेंगे लेकिन वो बोले चलते तो साथ में लेकिन अब अपन की आज की डयूटी का समय पूरा हो गया है। लौटने का हूटर बजने ही वाला है। इसलिए साथ तो न चल पायेंगे। कल मुलाक़ात होगी।

हम उनको बाय बोलते इसके पहले ही सब खिडकियों पर आसमानी रंग का प्लास्टिक का पर्दा खिंच गया। सूरज भाई का दिखना बंद हो गया। लेकिन सामने के यात्री दरवाजे के पास की खिड़की पर अभी पर्दा नहीं पडा था।रौशनी का एक टुकड़ा खिड़की फलांग कर दरवज्जे पर हमारी तरफ देखकर मुस्कराने लगा। पक्का सूरज भाई ने हमको बाय बाय करने के लिए भेजा होगा। दरवज्जा बंद होते ही रौशनी का टुकड़ा भी शराफत से बहार निकल गया।

व्योमबाला ने जब आज भी उड़ान के समय मोबाईल बंद करने का अनुरोध किया तो हमें लगा कि क्या ये लोग अखबार नहीं पढ़ते! जब खबर छप चुकी है अखबार में कि अब टेक आफ करते या उतरते समय मोबाईल बंद करना जरूरी नहीं तो क्यों टोकते हैं। नाश्ता देने आये व्योमबालक से जब हमने यही पूछा तो उसने बताया-"अखबार में तो छप गया लेकिन अभी सर्कुलर नहीं आया इसलिए कहना पड़ता है। "हमने सोचा कि यहाँ भी मामला अपन के डीए की तरह है। घोषणा हुए दो महिना हुआ। दर्शन अब तक न हुए।

नाश्ता आने पर हमारे बगल की महिला सवारी ने छुटकी बोतल से पानी की बूंदों को हाथ में लेकर रगड़ते और मसलते हुए हाथ धोये। इत्ती जोर से रगड़ने पर पक्का सब बूंदों का दम घुट गया होगा। कुछ बुँदे जो रगड़ जाने से बचीं वे बेचारी दो फुट की ऊंचाई से गिरी तो उनकी हड्डी-पसली पक्का बराबर हो गयी होगी।

नाश्ते में समोसा,सैन्डविच मिला। एक 'बच्ची डिबिया' में चटनी थी। डिबिया शायद फ्रिज में काफी देर तक रही होगीं। उसका वियोग उसे शायद सहन नहीं हुआ तो आंसू टाइप बहाती दिखी। मन तो किया कि रमानाथ अवस्थी जी कि कविता सुना दें:

"आज आप हैं हम है लेकिन
कल कहां होगे कह नहीं सकते,
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।"

लेकिन फिर 'दुखी को और क्या दुखी करना '
सोचकर नहीं सुनाये।

अचानक मुझे फिर सूरज भाई की याद कि वे कहां होंगे! शायद अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद किसी नदी में डुबकी लगाकर नहाने के बाद गमझा लपेटे या बरमूडा धारण किये चाय पीते हुए आईपीएल देख रहे हों या कोई चुनावी प्रहसन! कल मिलेंगे तो पूछेंगे! तब तक आप यह फोटो देखिये! गंगा नदी कलकत्ते की एक ऊँची ईमारत से कैसी दिखती है!
 
अनूप शुक्ल
 
 

Wednesday, April 23, 2014

आसमान अपने को शायद बड़ा पवित्र समझता है



  

दिल्ली से कलकत्ता के लिए जैसे ही जहाज में बैठे तो देखा सूरज भाई बाहर चमक रहे थे। हमने कहा-बोले साथ चलेगे। हमने कहा अन्दर आ जाओ भाई! वो बोले -टिकट नहीं लिया! और फिर काहे को पैसा फूंकना? इसी जहाज की छत पर लद के चलेंगे। फ्री फंड में।

देखते-देखते जहाज उड़ा और उचक कर शहर के बाहर हो लिया। नीचे सड़क,मकान,मैदान सब छोटे होते चले गए।

ऊपर पहुंचते समय सूरज की रोशनी कम साफ़ दिखाई दी। हम पूछे -यार सुरज भाई तुम हमको नीचे तो एकदम चमकदार रौशनी भेजते हो। लेकिन यहाँ मटमैली धुप कैसे? वो बोले-ऊपर उठने में सब जगह गंदगी होती है भाई! हमें लगा वे फिलासफी वाले मूड में हैं तो हम चुप मार गए।

ऊपर से जमीन ऐसे दिख रही थी जैसे कोई बहुत बड़ा कैनवास पसरा है जमीन पर और उस पर कोई नौसिखुआ कलाकार चित्रकारी करता जा रहा हो। तरह-तरह के रंग की कलाकारी ! धूसर,मटमैले,हरे,नीले रंग की आकृतियाँ। कहीं-कहीं तो रंग मिला दिए ताकि नया रंग दिख सके।

धूसर मटमैले कैनवास के ऊपर नीला आसमान तना हुआ है। आसमान अपने को शायद बड़ा पवित्र समझता है सो उसने कैनवास और अपने बीच एक मोटी सफ़ेद पट्टी सरीखी खींच रखी है। जैसे वो कलाकार से कह रहा हो-" ये हमारे तुम्हारे बीच की लक्षमण रेखा है। इसे पार किया तो तुमको भी नीला कर देंगे।"

लेकिन धीरे-धीरे धरती का कैनवास बढ़ता जा रहा है।आसमान के नीले रंग को धकियाकर पीछे करता जा रहा है। देखते-देखते दोनों रंग एक दुसरे में घुल-मिल गए जैसे चुनाव के समय एक दुसरे की धुर विरोधी विचार धारा वाले गठबंधन बना लेते हैं।

देखते-देखते कोलकाता पहुंच गए अपन। नीचे के पेड़ पौधे मकान साफ नजर आने लगे। आयताकार खेत मैदान ऐसे दिख रहे थे कि उनका क्षेत्रफल निकालने का मन किया। लेकिन कुछ करते इसके पहले ही जहाज धड से हवाईपट्टी पर उतर गया। परिचारिका कलकाता के नेताजी सुभाष चन्द्र एयरपोर्ट पर स्वागत करते हुए सामान समेटने को कह रही है।

सामान समेट के उतरे तो सूरज भाई लपककर गले मिले और बोले -कोलकाता में स्वागत है।कोलकाता में चमकीली धूप पसरी थी। सुबह की।