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प्रशस्त पुण्य पंथ है
By फ़ुरसतिया on January 16, 2006
इतवार को सबेरे-सबेरे जब शुकुल जी गीजर के पानी से नहाते हुये गाना गा रहे थे-ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिये तभी बाहर से आवाज आई शुकुलजी हैं?शुकुलजी के नहाने तथा गाने में ब्रेक लग गया।
वे बाहर आये । देखा फुरसतिया झोले की तरह मुंह लटकाये बैठे थे। शुकुलजी को देखकर वो हंसे तो शुकुलजी ने बेसाख्ता पूछा -रो काहे रहे हो?((वाक्य रचना साभार अखिलेश)
फुरसतियाजी और जोर से हंसते हुये बोले:-
कल से हम चुल्लू भर पानी की तलाश में हैं। पानी मिले तो डूब जायें। छुट्टी हो। पानी है कि मिल के ही नहीं दे रहा है। लिहाजा हम परेशान हैं।
शुकुलजी:परेशानी का कारण क्या है?
फुरसतिया:ये हम नहीं बतायेंगे। हमें शरम आती है।
शुकुलजी:फिर भी कुछ तो बता रे बेशरम!
फुरसतिया:बतायें क्या इंडिब्लॉगीज़ चुनाव हुये और हम हार गये। हमें मिले वोट कुल जमा २५ ।
शुकुलजी:हारे गये? क्या वहां कोई कुस्ती लड़े थे? फिर तुम्हारा तो समझ में आता है। लेकिन २५ वोट कैसे मिल गये तुम्हे? इत्ते ज्यादा वोट किसने दिये ? जरूर कुछ गड़बड़ किये होगे। पता करो कुछ लफड़ा है। कुछ फर्जी वोटिंग किये होगे। हमें सब पता है।
फुरसतिया:हां किये तो लेकिन केवल दो ही फर्जी वोट डाल पाये थे कि वोटिंग बंद हो गई।
शुकुलजी:तो रोना काहे का? पचीस वोट मिल गये बहुत हैं । क्या किसी का घर लोगे?
फुरसतिया:अरे हम सोचे थे कि हम बहुत पापुलर ब्लागर हैं तो १००-१५० वोट तो मिलबै करेंगे। यहां ससुर अगर अपने फर्जी वोट निकाल दें तो बीस भी नहीं हुये। इससे ज्यादा तो टिप्पणी हो जाती हैं हमारे ब्लाग पर।
शुकुलजी:अरे बच्चा,तुम टिप्पणी और वोट में अंतर कब समझोगे?टिप्पणी तो लोग मौज मजे के लिये भी कर देते हैं। लेकिन वोट तो किसी कायदे के उम्मीदवार को ही न मिलेगा। आजकल की जनता वोट की कीमत जानती है।ये कोई बख्शीश थोड़ी है कि जरा सा खुश हुये -दे दी गयी। लेकिन अगर सही में तुम्हे लगता है कि कम वोट मिले तो यह बताओ कि इतने कम वोट मिलने का कारण क्या है? कौन है इस साजिश के पीछे?
फुरसतिया:कोई एक हो तो बतायें? सारे यार-दोस्त शामिल हैं इस साजिश में।
शुकुलजी:जैसा करोगे वैसा भरोगे।तुम कौन कम बदमाश हो जो लोग तुमसे मौज नहीं लेगें? अच्छा तुम एक काम करो कि सारा मामला एक कागज में लिखकर दे दो हम देखते हैं कि सच्चाई क्या है।
शुकुलजी यह कहने के बाद धूप में लेट गये। वे ऊंघते हुये कह रहे थे -ये फुरसतियाजी, नहा-धोकर जाड़े की गुनगुनी धूप में लंबलेट होकर ऊंघने से बड़ा सुख भी कोई जानते हो तुम दुनिया में ।ये गरफिरदौस बररुये जमीनस्त ,हमीं अस्तो,हमीं अस्तो,हमीं अस्तो.. …वाला मसला तो यहां भी फिट होता है। क्या कहते हो?
लेकिन फुरसतियाजी तो अपनी व्यथा-कथा लिखने में जुटे थे। हमने झांक के पढ़ा ।वे लिख रहे थे:-
आज देबाशीष ने रिजल्ट आउट कर दिया इंडीब्लागीस का। साथ में हमें भी । हमें कुल जमा २५ वोट मिले। पिछले साल मिले थे ३३ वोट। हम इस भ्रम में थे कि हमारा ब्लाग बहुत पापुलर है।तथा यह भी तय माने थे कि पापुलरिटी बढ़ने के साथ वोट बढ़ते हैं। लेकिन यहां तो उल्टी गंगा बह रही है।पापुलरिटी बढ़ रही है वोट घट रहे हैं। रविरतलामी को पिछले साल कुल वोट मिले थे चार। इस बार आधे हो गये तथा मामला कुल दो पर अटक गया। जबकि हम पिले पड़े थे रवि भाई को लाइफ टाइम अचीवमेंट दिलाने के लिये।
देबाशीष बेचारे को इस वार्षिक आयोजन में हर बार की तरह लाखों के बोल सुनने को मिले। हम भी कोसते रहे कि ये बालक हिंदी में लेख क्यों नहीं छापता,फिर कोसा कि मेरा पन्ना को बाहर काहे किया,फाइनल खिंचाई -रविरतलामी को लाइफ टाइप अचीवमेंट के लिये नामीनेट काहे नहीं किया। देबाशीष को जितने डायलाग मारने थे मारे । हमने भी कमी नहीं की। बाकी कुछ लोगों ने और भी तकनीकी आरोप लगाये जो कि हमारे लिये महत्वहीन थे। एक ने यह भी कहा कि यह आयोजन आत्मप्रचार का सस्ता तरीका है। बहरहाल।
मामला झमाझम चलता रहा। फिर जीतेंदर ने ‘कटआफ’ पर कुछ दुख प्रकट किया जिसपर देबाशीष ने सारा मामला ट्रांसपैरेन्ट करके बताया कि हिंदी के जितने भी ब्लाग थे उनके पहले चरण के जूरी के मत के अनुसार ‘कटआफ’ का जुमला पढ़कर उनकी भौंहे टेढ़ी हुईं जो कि बाद में सीधी हो गईं।
चूंकि सभी जूरी ‘बाईडिफाल्ट’ अंग्रेजी के ब्लागर पहले हैं हिंदी के बाद में लिहाजा हमने यह धारणा बनाई कि अंग्रेजी के ब्लागर भी उतने ही कूपमण्डूक होते हैं जितने कि हिंदी के(?)।कोई बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता। किसी को कोई एतराज हो तो बताये।
जब पहले चरण के परिणाम घोषित हुये तो पाया कि हमारे ब्लाग से ज्यादा की रेटिंग जीतू तथा अतुल । पिछले साल इनको धुंआंधार वोट मिले थे। ये हमारे लिये वोट जुगाड़ देगें सो इस बार का अवार्ड तो हमारे ही पल्ले आया समझो।और हां,स्वामी भी है ना। ये कब अपना तकनीकी कौशल दिखायेगा!
लेकिन पहला झटका हमें अपने स्वामी से ही मिला। हमने कहा -बालक देख रहे हो? वोट की सेटिंग-वेटिंग , कुछ कर-वर। बालक की आवाज में सन्यासी का अंदाज आ गया। गुरुदेव ,अपन इन सब सांसारिक पचडों में नहीं पड़ते। हमने कहा-अबे तू मती पड़ लेकिन मेरे को वोट तो दे-दिला?बालक ने फिर समझाया- आप कहां पड़ गये इन चक्करों में? ये लड़कपन आपको शोभा नहीं देता ।हम लड़के की बात का क्या जवाब देते? सोचा अभी हमारी उमर तो बाजपेयीजी की आधी हुयी है । उन्होंने तो अभी छोड़ी राजनीति। हम अभी से छोड़ दें लड़कपन/दुनियादारी?
बहरहाल वोटिंग के मामले में हमारा स्वामी पर भरोसे का सूचकांक गिर गया।
फिर हमने सोचा जीतू,अतुल तो हैं ही। उनको पिछले साल कुल मिलाकर ३४२ वोट मिले थे। उसमें से कम से कम दो सौ तो ये हमारे लिये जुगाड़ेंगे ही। आखिर हम अतुल के भाई साहब हैं। जीतू के भी ‘कनपुरिया खिंचाईबाज’ हैं(हम जीतू की खिंचाई नहीं करते हैं तो इनकी तथा इनसे ज्यादा दूसरों की तबियत खराब हो जाती है)।ये हमें नहीं समर्थन देंगे तो किसे देंगे।
ऐसा नहीं कि हमने सुनीलजी के अच्छे ब्लाग के बारे में नहीं सोचा। सोचा ,खूब हचक के सोचा। हमने सोचा:-
ठीक है कि सुनीलजी अच्छा लिखते हैं। फोटू भी बढ़िया चिपकाते हैं। मुस्कराते भी गजब का हैं। घूमते-घुमाते रहते हैं।सब कुछ अच्छा है। लेकिन वोट तो बंधु-बान्धव, अपने इलाके वाले को ही दिया जायेगा न! अगर काबिलियत,अच्छाई को ही वोट देने का रिवाज हो तब तो चल लिया लोकतंत्र। फिर तो असलहा धारी प्रतिभायें कभी जीत न पायें।
कुल मिलाकर हमने यह सोचा कि सबसे ज्यादा वोट तो हमें ही मिलना है। हम यह सोचकर ‘फीलगुड’ के बुखार में तपने लगे। सोचा कि पाठकों,वोटरों को धन्यवाद भी देना होगा न जीतने के बाद। सो वो मजनून भी सोच लिया। तीन-चार शेर,दस-बारह हायकू, कुछ दोहे भी तैयार कर लिये।
वोटिंग का समय नजदीक आ गया हम प्रकट रूप में तो बगुले की तरह बिना किसी चहल-पहल के शान्त बैठे थे लेकिन शैतान बच्चे की तरह इंडीब्लागीस के अंत:पुर की गतिविधियों के बारे में जायजा लेते रहते थे- ताका-झांकी वाले अंदाज में। समय सरकता गया -हथेली में जकड़ी बालू की तरह लेकिन हमें न जीतू की तरफ से कोई ‘फुरसतिया का टेम्पो हाई है’ की आवाज सुनाई दी न अतुल की तरफ से भाई साहब को जिताने की अपील। हमें अपनी फीलगुड की दीवार में दरार नजर आने लगी। हमें लगा कि हमें खुदै कुछ करना पड़ेगा। कहा भी गया है कि दुनिया में अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता।
फिर हमने वोटिंग में हिस्सा लेना शुरू किया। देबाशीष से सवाल-जवाब के दौरन बहाने से पूछा-ये बताओ भइये फर्जी वोटिंग का क्या जुगाड़ है। देबू के ऊपर भी धर्मराज की आत्मा सवार थी। बहाने से पूछे सवाल का जवाब बहाने से ही मिला। पता चला कि जितनी ई-मेल हमारे पास हैं हम उतने वोट डाल सकते हैं। वैसे यह बात हमें तभी से पता लग गई थी जब वोटिंग में आया -आपका या आपका खाता उपयोग करने वाले का वोट हो गया।
हमने पहले तो इस सूचना की सत्यता परखी । देखा कि हमारे दो ई-मेल से दो वोट पड़ गये। इस बार देबू ने शर्त लगा रखी थी कि वोटिंग के लिये सबसे अच्छे ब्लाग का के लिये वोटिंग जरूरी है। सो हमने बारी -बारी से जिस-तिसको वोट दिया फिर फुरसतिया तथा नारद को वोट दिया। अब हमारे सामने विजय पथ प्रशस्त था।
हमारे मन में फर्जी वोटिंग का अपराधबोध कुछ क्षण को हावी हुआ लेकिन हमने कहा:-
प्रशस्त पुण्य पंथ है,
दृण-प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रवीर हो जयी बनो,
बढ़े चलो,बढ़े चलो।
हमें लगा यह उद्बोधन हमारी ही मन की कमजोरी को दूर करने ले लिये लिखा गया होगा। हमें लगा कि युद्धभूमि में धर्म-अधर्म के संशय में फंसे अर्जुन के लिये यह कृष्ण का गीता ज्ञान है। लिहाजा हमने अपने मन को मजबूत कर लिया तथा फर्जी वोटिंग के लिये तैयार हो गये।
हमारे घर में मेल-फीमेल को छोड़कर कुल मिलाकर १० ईमेल हैं। हमने अपने बच्चे से कहा कि बेटा जरा इस वोटिंग यज्ञ में अपना योगदान कर। बेटे ने मुस्कराते हुये कहा(पापा आप तो कहते हैं आनेस्टी इज द बेस्ट पालिसी फिर टैक्स की चोरी क्यों?विज्ञापन की तर्ज पर )आपको वोट का इतना लालच! ये अच्छी बात नहीं है।
लेकिन हमने उसे ,प्रेम तथा युद्ध में सब जायज है नुमा डायलाग सुनाकर,प्रेम तथा युद्ध में सब जायज है नुमा डायलाग सुनाकर ,पटा लिया तथा वह फर्जी वोटिंग के लिये तैयार हो गया। हमने सोचा कि सारे गलत काम रात को किये जाते हैं। सो सफलता के लिये जरूरी है कि यह काम भी रात को किया जायेगा। नाइट शो में। ९ से १२ वाले में ।
हमने यह भी सोच लिया था कि जितनी ‘ईमेल आईडी’ पता हैं उसके अलावा ढेर सारी नयी ‘आई डी’ खोल लेंगे। एक मिनट में एक के हिसाब से तीन घंटे में दो सौ करीब तो हो ही जायेंगी। एक व्यक्ति खाते खोलता जायेगा दूसरा वोटिंग करता जायेगा। बस हो जायेगा काम।
लेकिन होनी और देबाशीष को कुछ और ही मंजूर था।
रात को नौ बजे हमने पहला खाता खोला । एक मिनट में खुल गया। इस खाते का ‘यूजर नेम’ तथा ‘पासवर्ड’ लेकर हम इंडीब्लागर में वोटिंग करने गये देखा वहां वोटिंग बंद हो चुकी थी। हम फर्जी वोटिंग के पाप से तो बच गये लेकिन वोटिंग न कर पाने का अफसोस भी था।’फीलगुड’ विदा हो गया।जिस जहाज को लूटने निकले थे वह उड़ गया था।
इसीलिये विद्वानों ने कहा है -काल करे सो आज कर,आज करे सो अब।
बाद की बात तो सबको पता है कि हमें कुल जमा २५ वोट मिले। हमें अफसोस इस बात का है कि हमारे हर दोस्त के पास दस रुपये हो या न हों लेकिन दस आई डी पास वर्ड समेत हमेशा रहती हैं। चाहे वो जीतू हों,अतुल हों,ठेलुहानरेश हों या अपने स्वामी। लेकिन लोगों ने कुछ नहीं किया। कुछ इसी तरह जैसे कि अन्न के गोदाम भरे होने के बावजूद लोग भूखे मरते रहे।
दुख है कि हमारी शानदार धन्यवादी मजनून का उपयोग न हो पाया।
दुख से ज्यादा धबराहट यह भी है कि हमारा नंबर दूसरा है। सरकरी अधिकारी होने के नाते दो नंबर का डर कुछ ज्यादा ही होता है।चाहें वो किसी भी तरह का दो नंबर हो।पता नहीं कौन शिकायत कर दे-इनको दो नंबर कुछ ज्यादा ही भाता है। जांच शुरू हो जाये।
यह सब तो मेरा अपना रोना था ।इस पर भले ही आप हंस लो लेकिन जो कुछ और सोचने लायक बात है कि क्या कारण है कि हिंदी ब्लागरों की संख्या पिछले साल के मुकाबले चार गुनी होने के बावजूद कुल वोटिंग पिछले साल के मुकाबले एक चौथाई रही।
यह कहना कि इस बार फर्जी वोटिंग के मौके कम थे मुझे सही नहीं लगते। क्योंकि पिछली बार तो एक पीसी से एक बार ही वोटिंग कर पाना सम्भव नहीं था।इस बार तो बैठे-बैठे एक ही पीसी से जितनी मन चाहे वोटिंग कर लो।इधर खाता खोलो उधर वोट डालो। सिर्फ थोड़ा आलस्य के त्याग की आवश्यकता थी।
इतना लिखने के बाद फुरसतिया ने शुकुलजी के खर्राटों में विघ्न डाला। बोले -देखो गुरू, ये है हमारा दुख।
शुकुलजी बोले- बालक तुम काहे को इतना दुखी हो? इनाम हमेशा छंटे लोगों को मिलता है। ये तो तुम्हारे लिये अच्छा बहाना है कि तुम बाहर छंट गये। अब अगर इस बार ढेर सारे वोट मिल जाते तो अगले साल क्या करते? सुधार की सारी गुंजाइशें खतम न हो जातीं। तुम दुखी न हो बालक । इस घटना के पीछे के संदेश को पढ़।
फुरसतिया पिनपिनाये- का इसके पीछे भी कोई संदेश/साजिश है?
शुकुलजी उवाचे- तब क्या? तुम देख नहीं रहे जिस-जिस के ब्लाग पर यह हिंदी वाला इंडीब्लागर अवार्ड चिपका उस-उसका लिखना कम बंद होता गया। आलोक को लिखे महीनों हो गये। अतुल ने लिखना स्थगित कर दिया। शशिसिंह ने तो यह ब्लाग ही बंद ही कर दिया पहले से ही-शायद आसन्न खतरे को भांपते हुये। सो बालक यह तुम्हारे भले के लिये है कि तुम बाल-बाल बचे। इसका मतलब है कि तुम्हारे ब्लाग में अभी कुछ और पोस्टें बदी हैं। जाओ शुक्र मनाओ। प्रसाद चढ़ाओ हनुमान
मंदिर में।
फुरसतियाजी की ने सोचा कि गरदन में शहीदाना अकड़ ले आयें। लेकिन शुकुलजी के सामने होने के कारण शुतुरमुर्ग बने रहे। सन्नाटा लंबा खिंचने पर फुरसतियाजी ने सन्नाटे के अनुपात में गरदन को लंबा करते हुये सहमते हुये पूछा-तो हमारे लिये क्या आज्ञा है?
आज्ञा क्या बस मौज करो। अपने इस फर्जी वोटिंग की साजिश को उजागर करो। अपराध बोध से मुक्त होकर दुबारा लेखन में तत्पर हो। यह सारा वाकया पोस्ट कर दो ताकि तुम्हारे सनद रहे।
फुरसतियाजी घबराते हुये बोले- ये पोस्ट करने पर कहीं कोई नाराज न हो जाये?
शुकुलजी मोहनी मुस्कराहट लपेटकर उवाचे-बालक तुम सरीखा चुगद ब्लागर हमने अभी नहीं देखा। तुम अभी तक अपने साथियों की मन:स्थिति नहीं समझ पाये। ये उस महान पत्रकार परंपरा के लोग हैं जो एक जेब में कलम तथा दूसरे में इस्तीफा डाले घूमते थे तथा कलम कम इस्तीफा ज्यादा चलाते थे। ये सब समझदार लोग हैं। कोई नाराज होगा भी तो स्थाई रूप से नहीं होगा?
शुकुलजी की संगति में फुरसतिया की सारी शंकाओं के उसी तरह धुर्रे उड़ गये जिस तरह पहले शाहिद आफरीदी की बैटिंग से भारतीय बालरों के तथा बाद में सहवाग की बैटिंग से पाकिस्तानी बालरों के उड़े थे।
वापस लौटकर वे कम्प्यूटर के ‘की बोर्ड’ पर गरदन झुकाये पकड़े गये।
इस मौज-मजे के बाद हम अब गंभीर होने की इजाजत चाहते हैं। सबसे पहले तो देबाशीष को इस सारे आयोजन को सफलतापूर्वक अंजाम देने की हार्दिक बधाई । तमाम मतभेद,लानत-मलानत के बावजूद यह काम लगभग अकेले पूरा किया । जिस बात को सही समझा उसपर बावजूद तमाम विरोध के कायम रहे। यह काबिले तारीफ है ।लिहाजा हम देबाशीष की तारीफ करते हैं चाहे वो बुरा माने या भला!
जिन ब्लागर्स के ब्लाग को विजेता चुना गया उनको हम बधाई देते हैं। खासतौर पर अपने शशिसिंह को जिनका ‘मुम्बई ब्लाग’ हिंदी के ब्लागों में प्रथम स्थान पाया। शशि ने बहुत कम समय में ब्लागिंग में बहुत कुछ लिखा। खासकर भोजपुरी ब्लागिंग के क्षेत्र में। कामना है कि वे अपने नये ब्लाग में शानदार अंदाज में लिखते रहें। दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करें।
अब कुछ जैसे को तैसा वाला काम भी किया जाय। देबाशीष ने घोषित पुरस्कारों के अलावा हालांकि बताया था कि कुछ इनाम वे देगें जिनका खुलासा नहीं किया गया था। हमारा मन रखने के लिये उन्होंने एक किताब देने की घोषणा की है। हम किताब का इंतजार कर रहे हैं।
पिछले तीन सालों से देबाशीष इंडीब्लागर का आयोजन करते आ रहे हैं। मैं देबू को इन तीन सालों के आयोजन के लिये तीन किताबें भेंट करता हूं। किताबें हैं:-
रागदरबारी-श्रीलाल शुक्ल
कसप़-मनोहर श्याम जोशी
आधा गांव-राही मासूम रजा़
राग दरबारी से अच्छा व्यंग्य उपन्यास,कसप़ से अच्छा प्रेमकथा उपन्यास तथा आधा गांव से अच्छा विभाजन की त्रासदी पर लिखा उपन्यास मैंने दूसरा नहीं पढ़ा।यह सारे सर्वश्रेष्ठ उपन्यास मैं देबाशीष को भेजूंगा जल्द ही। आशा है कि वे हमारी भेंट स्वीकार करेंगे।
एक भेंट हमारे सबसे कम वोट पाने के रिकार्ड को लगातार दूसरी बार अपने नाम करने वाले रविरतलामी के लिये भी है। रवि भाई जिस अंदाज में लगातार निर्लिप्त भाव से जुटे रहते हैं लेखन में तथा रचनाकार में वह बाकई स्तुत्य है। उनके लिये हमारे पास है हमारा अब तक का पढ़ा सबसे अच्छा उपन्यास-हावर्ड फ्रास्ट का स्पार्टाकस जिसका बहुत खूबसूरत हिंदी अनुवाद किया है अमृतराय ने आदिविद्रोही के नाम से। यह उपन्यास गुलामों के पहले विद्रोह की कहानी कहता है।जल्द ही यह किताब रवि भाई को भेज दी जायेगी।
मुझसे कहा गया कि संसद
देश की धड़कन को
प्रतिबिम्बित करने वाला दर्पण है
जनता को
जनता के विचारों का
नैतिक समर्पण है
लेकिन क्या यह सच है?
या यह सच है कि
अपने यहां संसद -
तेली की वह घानी है
जिसमें आधा तेल है
और आधा पानी है
और यदि यह सच नहीं है
तो वहाँ एक ईमानदार आदमी को
अपनी ईमानदारी का
मलाल क्यों है?
जिसने सत्य कह दिया है
उसका बुरा हाल-क्यों है?
-’धूमिल’ की लंबी कविता पटकथा से
वे बाहर आये । देखा फुरसतिया झोले की तरह मुंह लटकाये बैठे थे। शुकुलजी को देखकर वो हंसे तो शुकुलजी ने बेसाख्ता पूछा -रो काहे रहे हो?((वाक्य रचना साभार अखिलेश)
फुरसतियाजी और जोर से हंसते हुये बोले:-
कल से हम चुल्लू भर पानी की तलाश में हैं। पानी मिले तो डूब जायें। छुट्टी हो। पानी है कि मिल के ही नहीं दे रहा है। लिहाजा हम परेशान हैं।
शुकुलजी:परेशानी का कारण क्या है?
फुरसतिया:ये हम नहीं बतायेंगे। हमें शरम आती है।
शुकुलजी:फिर भी कुछ तो बता रे बेशरम!
फुरसतिया:बतायें क्या इंडिब्लॉगीज़ चुनाव हुये और हम हार गये। हमें मिले वोट कुल जमा २५ ।
शुकुलजी:हारे गये? क्या वहां कोई कुस्ती लड़े थे? फिर तुम्हारा तो समझ में आता है। लेकिन २५ वोट कैसे मिल गये तुम्हे? इत्ते ज्यादा वोट किसने दिये ? जरूर कुछ गड़बड़ किये होगे। पता करो कुछ लफड़ा है। कुछ फर्जी वोटिंग किये होगे। हमें सब पता है।
फुरसतिया:हां किये तो लेकिन केवल दो ही फर्जी वोट डाल पाये थे कि वोटिंग बंद हो गई।
शुकुलजी:तो रोना काहे का? पचीस वोट मिल गये बहुत हैं । क्या किसी का घर लोगे?
फुरसतिया:अरे हम सोचे थे कि हम बहुत पापुलर ब्लागर हैं तो १००-१५० वोट तो मिलबै करेंगे। यहां ससुर अगर अपने फर्जी वोट निकाल दें तो बीस भी नहीं हुये। इससे ज्यादा तो टिप्पणी हो जाती हैं हमारे ब्लाग पर।
शुकुलजी:अरे बच्चा,तुम टिप्पणी और वोट में अंतर कब समझोगे?टिप्पणी तो लोग मौज मजे के लिये भी कर देते हैं। लेकिन वोट तो किसी कायदे के उम्मीदवार को ही न मिलेगा। आजकल की जनता वोट की कीमत जानती है।ये कोई बख्शीश थोड़ी है कि जरा सा खुश हुये -दे दी गयी। लेकिन अगर सही में तुम्हे लगता है कि कम वोट मिले तो यह बताओ कि इतने कम वोट मिलने का कारण क्या है? कौन है इस साजिश के पीछे?
फुरसतिया:कोई एक हो तो बतायें? सारे यार-दोस्त शामिल हैं इस साजिश में।
शुकुलजी:जैसा करोगे वैसा भरोगे।तुम कौन कम बदमाश हो जो लोग तुमसे मौज नहीं लेगें? अच्छा तुम एक काम करो कि सारा मामला एक कागज में लिखकर दे दो हम देखते हैं कि सच्चाई क्या है।
शुकुलजी यह कहने के बाद धूप में लेट गये। वे ऊंघते हुये कह रहे थे -ये फुरसतियाजी, नहा-धोकर जाड़े की गुनगुनी धूप में लंबलेट होकर ऊंघने से बड़ा सुख भी कोई जानते हो तुम दुनिया में ।ये गरफिरदौस बररुये जमीनस्त ,हमीं अस्तो,हमीं अस्तो,हमीं अस्तो.. …वाला मसला तो यहां भी फिट होता है। क्या कहते हो?
लेकिन फुरसतियाजी तो अपनी व्यथा-कथा लिखने में जुटे थे। हमने झांक के पढ़ा ।वे लिख रहे थे:-
आज देबाशीष ने रिजल्ट आउट कर दिया इंडीब्लागीस का। साथ में हमें भी । हमें कुल जमा २५ वोट मिले। पिछले साल मिले थे ३३ वोट। हम इस भ्रम में थे कि हमारा ब्लाग बहुत पापुलर है।तथा यह भी तय माने थे कि पापुलरिटी बढ़ने के साथ वोट बढ़ते हैं। लेकिन यहां तो उल्टी गंगा बह रही है।पापुलरिटी बढ़ रही है वोट घट रहे हैं। रविरतलामी को पिछले साल कुल वोट मिले थे चार। इस बार आधे हो गये तथा मामला कुल दो पर अटक गया। जबकि हम पिले पड़े थे रवि भाई को लाइफ टाइम अचीवमेंट दिलाने के लिये।
देबाशीष बेचारे को इस वार्षिक आयोजन में हर बार की तरह लाखों के बोल सुनने को मिले। हम भी कोसते रहे कि ये बालक हिंदी में लेख क्यों नहीं छापता,फिर कोसा कि मेरा पन्ना को बाहर काहे किया,फाइनल खिंचाई -रविरतलामी को लाइफ टाइप अचीवमेंट के लिये नामीनेट काहे नहीं किया। देबाशीष को जितने डायलाग मारने थे मारे । हमने भी कमी नहीं की। बाकी कुछ लोगों ने और भी तकनीकी आरोप लगाये जो कि हमारे लिये महत्वहीन थे। एक ने यह भी कहा कि यह आयोजन आत्मप्रचार का सस्ता तरीका है। बहरहाल।
मामला झमाझम चलता रहा। फिर जीतेंदर ने ‘कटआफ’ पर कुछ दुख प्रकट किया जिसपर देबाशीष ने सारा मामला ट्रांसपैरेन्ट करके बताया कि हिंदी के जितने भी ब्लाग थे उनके पहले चरण के जूरी के मत के अनुसार ‘कटआफ’ का जुमला पढ़कर उनकी भौंहे टेढ़ी हुईं जो कि बाद में सीधी हो गईं।
चूंकि सभी जूरी ‘बाईडिफाल्ट’ अंग्रेजी के ब्लागर पहले हैं हिंदी के बाद में लिहाजा हमने यह धारणा बनाई कि अंग्रेजी के ब्लागर भी उतने ही कूपमण्डूक होते हैं जितने कि हिंदी के(?)।कोई बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता। किसी को कोई एतराज हो तो बताये।
जब पहले चरण के परिणाम घोषित हुये तो पाया कि हमारे ब्लाग से ज्यादा की रेटिंग जीतू तथा अतुल । पिछले साल इनको धुंआंधार वोट मिले थे। ये हमारे लिये वोट जुगाड़ देगें सो इस बार का अवार्ड तो हमारे ही पल्ले आया समझो।और हां,स्वामी भी है ना। ये कब अपना तकनीकी कौशल दिखायेगा!
लेकिन पहला झटका हमें अपने स्वामी से ही मिला। हमने कहा -बालक देख रहे हो? वोट की सेटिंग-वेटिंग , कुछ कर-वर। बालक की आवाज में सन्यासी का अंदाज आ गया। गुरुदेव ,अपन इन सब सांसारिक पचडों में नहीं पड़ते। हमने कहा-अबे तू मती पड़ लेकिन मेरे को वोट तो दे-दिला?बालक ने फिर समझाया- आप कहां पड़ गये इन चक्करों में? ये लड़कपन आपको शोभा नहीं देता ।हम लड़के की बात का क्या जवाब देते? सोचा अभी हमारी उमर तो बाजपेयीजी की आधी हुयी है । उन्होंने तो अभी छोड़ी राजनीति। हम अभी से छोड़ दें लड़कपन/दुनियादारी?
बहरहाल वोटिंग के मामले में हमारा स्वामी पर भरोसे का सूचकांक गिर गया।
फिर हमने सोचा जीतू,अतुल तो हैं ही। उनको पिछले साल कुल मिलाकर ३४२ वोट मिले थे। उसमें से कम से कम दो सौ तो ये हमारे लिये जुगाड़ेंगे ही। आखिर हम अतुल के भाई साहब हैं। जीतू के भी ‘कनपुरिया खिंचाईबाज’ हैं(हम जीतू की खिंचाई नहीं करते हैं तो इनकी तथा इनसे ज्यादा दूसरों की तबियत खराब हो जाती है)।ये हमें नहीं समर्थन देंगे तो किसे देंगे।
ऐसा नहीं कि हमने सुनीलजी के अच्छे ब्लाग के बारे में नहीं सोचा। सोचा ,खूब हचक के सोचा। हमने सोचा:-
ठीक है कि सुनीलजी अच्छा लिखते हैं। फोटू भी बढ़िया चिपकाते हैं। मुस्कराते भी गजब का हैं। घूमते-घुमाते रहते हैं।सब कुछ अच्छा है। लेकिन वोट तो बंधु-बान्धव, अपने इलाके वाले को ही दिया जायेगा न! अगर काबिलियत,अच्छाई को ही वोट देने का रिवाज हो तब तो चल लिया लोकतंत्र। फिर तो असलहा धारी प्रतिभायें कभी जीत न पायें।
कुल मिलाकर हमने यह सोचा कि सबसे ज्यादा वोट तो हमें ही मिलना है। हम यह सोचकर ‘फीलगुड’ के बुखार में तपने लगे। सोचा कि पाठकों,वोटरों को धन्यवाद भी देना होगा न जीतने के बाद। सो वो मजनून भी सोच लिया। तीन-चार शेर,दस-बारह हायकू, कुछ दोहे भी तैयार कर लिये।
वोटिंग का समय नजदीक आ गया हम प्रकट रूप में तो बगुले की तरह बिना किसी चहल-पहल के शान्त बैठे थे लेकिन शैतान बच्चे की तरह इंडीब्लागीस के अंत:पुर की गतिविधियों के बारे में जायजा लेते रहते थे- ताका-झांकी वाले अंदाज में। समय सरकता गया -हथेली में जकड़ी बालू की तरह लेकिन हमें न जीतू की तरफ से कोई ‘फुरसतिया का टेम्पो हाई है’ की आवाज सुनाई दी न अतुल की तरफ से भाई साहब को जिताने की अपील। हमें अपनी फीलगुड की दीवार में दरार नजर आने लगी। हमें लगा कि हमें खुदै कुछ करना पड़ेगा। कहा भी गया है कि दुनिया में अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता।
फिर हमने वोटिंग में हिस्सा लेना शुरू किया। देबाशीष से सवाल-जवाब के दौरन बहाने से पूछा-ये बताओ भइये फर्जी वोटिंग का क्या जुगाड़ है। देबू के ऊपर भी धर्मराज की आत्मा सवार थी। बहाने से पूछे सवाल का जवाब बहाने से ही मिला। पता चला कि जितनी ई-मेल हमारे पास हैं हम उतने वोट डाल सकते हैं। वैसे यह बात हमें तभी से पता लग गई थी जब वोटिंग में आया -आपका या आपका खाता उपयोग करने वाले का वोट हो गया।
हमने पहले तो इस सूचना की सत्यता परखी । देखा कि हमारे दो ई-मेल से दो वोट पड़ गये। इस बार देबू ने शर्त लगा रखी थी कि वोटिंग के लिये सबसे अच्छे ब्लाग का के लिये वोटिंग जरूरी है। सो हमने बारी -बारी से जिस-तिसको वोट दिया फिर फुरसतिया तथा नारद को वोट दिया। अब हमारे सामने विजय पथ प्रशस्त था।
हमारे मन में फर्जी वोटिंग का अपराधबोध कुछ क्षण को हावी हुआ लेकिन हमने कहा:-
प्रशस्त पुण्य पंथ है,
दृण-प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रवीर हो जयी बनो,
बढ़े चलो,बढ़े चलो।
हमें लगा यह उद्बोधन हमारी ही मन की कमजोरी को दूर करने ले लिये लिखा गया होगा। हमें लगा कि युद्धभूमि में धर्म-अधर्म के संशय में फंसे अर्जुन के लिये यह कृष्ण का गीता ज्ञान है। लिहाजा हमने अपने मन को मजबूत कर लिया तथा फर्जी वोटिंग के लिये तैयार हो गये।
हमारे घर में मेल-फीमेल को छोड़कर कुल मिलाकर १० ईमेल हैं। हमने अपने बच्चे से कहा कि बेटा जरा इस वोटिंग यज्ञ में अपना योगदान कर। बेटे ने मुस्कराते हुये कहा(पापा आप तो कहते हैं आनेस्टी इज द बेस्ट पालिसी फिर टैक्स की चोरी क्यों?विज्ञापन की तर्ज पर )आपको वोट का इतना लालच! ये अच्छी बात नहीं है।
लेकिन हमने उसे ,प्रेम तथा युद्ध में सब जायज है नुमा डायलाग सुनाकर,प्रेम तथा युद्ध में सब जायज है नुमा डायलाग सुनाकर ,पटा लिया तथा वह फर्जी वोटिंग के लिये तैयार हो गया। हमने सोचा कि सारे गलत काम रात को किये जाते हैं। सो सफलता के लिये जरूरी है कि यह काम भी रात को किया जायेगा। नाइट शो में। ९ से १२ वाले में ।
हमने यह भी सोच लिया था कि जितनी ‘ईमेल आईडी’ पता हैं उसके अलावा ढेर सारी नयी ‘आई डी’ खोल लेंगे। एक मिनट में एक के हिसाब से तीन घंटे में दो सौ करीब तो हो ही जायेंगी। एक व्यक्ति खाते खोलता जायेगा दूसरा वोटिंग करता जायेगा। बस हो जायेगा काम।
लेकिन होनी और देबाशीष को कुछ और ही मंजूर था।
रात को नौ बजे हमने पहला खाता खोला । एक मिनट में खुल गया। इस खाते का ‘यूजर नेम’ तथा ‘पासवर्ड’ लेकर हम इंडीब्लागर में वोटिंग करने गये देखा वहां वोटिंग बंद हो चुकी थी। हम फर्जी वोटिंग के पाप से तो बच गये लेकिन वोटिंग न कर पाने का अफसोस भी था।’फीलगुड’ विदा हो गया।जिस जहाज को लूटने निकले थे वह उड़ गया था।
इसीलिये विद्वानों ने कहा है -काल करे सो आज कर,आज करे सो अब।
बाद की बात तो सबको पता है कि हमें कुल जमा २५ वोट मिले। हमें अफसोस इस बात का है कि हमारे हर दोस्त के पास दस रुपये हो या न हों लेकिन दस आई डी पास वर्ड समेत हमेशा रहती हैं। चाहे वो जीतू हों,अतुल हों,ठेलुहानरेश हों या अपने स्वामी। लेकिन लोगों ने कुछ नहीं किया। कुछ इसी तरह जैसे कि अन्न के गोदाम भरे होने के बावजूद लोग भूखे मरते रहे।
दुख है कि हमारी शानदार धन्यवादी मजनून का उपयोग न हो पाया।
दुख से ज्यादा धबराहट यह भी है कि हमारा नंबर दूसरा है। सरकरी अधिकारी होने के नाते दो नंबर का डर कुछ ज्यादा ही होता है।चाहें वो किसी भी तरह का दो नंबर हो।पता नहीं कौन शिकायत कर दे-इनको दो नंबर कुछ ज्यादा ही भाता है। जांच शुरू हो जाये।
यह सब तो मेरा अपना रोना था ।इस पर भले ही आप हंस लो लेकिन जो कुछ और सोचने लायक बात है कि क्या कारण है कि हिंदी ब्लागरों की संख्या पिछले साल के मुकाबले चार गुनी होने के बावजूद कुल वोटिंग पिछले साल के मुकाबले एक चौथाई रही।
यह कहना कि इस बार फर्जी वोटिंग के मौके कम थे मुझे सही नहीं लगते। क्योंकि पिछली बार तो एक पीसी से एक बार ही वोटिंग कर पाना सम्भव नहीं था।इस बार तो बैठे-बैठे एक ही पीसी से जितनी मन चाहे वोटिंग कर लो।इधर खाता खोलो उधर वोट डालो। सिर्फ थोड़ा आलस्य के त्याग की आवश्यकता थी।
इतना लिखने के बाद फुरसतिया ने शुकुलजी के खर्राटों में विघ्न डाला। बोले -देखो गुरू, ये है हमारा दुख।
शुकुलजी बोले- बालक तुम काहे को इतना दुखी हो? इनाम हमेशा छंटे लोगों को मिलता है। ये तो तुम्हारे लिये अच्छा बहाना है कि तुम बाहर छंट गये। अब अगर इस बार ढेर सारे वोट मिल जाते तो अगले साल क्या करते? सुधार की सारी गुंजाइशें खतम न हो जातीं। तुम दुखी न हो बालक । इस घटना के पीछे के संदेश को पढ़।
फुरसतिया पिनपिनाये- का इसके पीछे भी कोई संदेश/साजिश है?
शुकुलजी उवाचे- तब क्या? तुम देख नहीं रहे जिस-जिस के ब्लाग पर यह हिंदी वाला इंडीब्लागर अवार्ड चिपका उस-उसका लिखना कम बंद होता गया। आलोक को लिखे महीनों हो गये। अतुल ने लिखना स्थगित कर दिया। शशिसिंह ने तो यह ब्लाग ही बंद ही कर दिया पहले से ही-शायद आसन्न खतरे को भांपते हुये। सो बालक यह तुम्हारे भले के लिये है कि तुम बाल-बाल बचे। इसका मतलब है कि तुम्हारे ब्लाग में अभी कुछ और पोस्टें बदी हैं। जाओ शुक्र मनाओ। प्रसाद चढ़ाओ हनुमान
मंदिर में।
फुरसतियाजी की ने सोचा कि गरदन में शहीदाना अकड़ ले आयें। लेकिन शुकुलजी के सामने होने के कारण शुतुरमुर्ग बने रहे। सन्नाटा लंबा खिंचने पर फुरसतियाजी ने सन्नाटे के अनुपात में गरदन को लंबा करते हुये सहमते हुये पूछा-तो हमारे लिये क्या आज्ञा है?
आज्ञा क्या बस मौज करो। अपने इस फर्जी वोटिंग की साजिश को उजागर करो। अपराध बोध से मुक्त होकर दुबारा लेखन में तत्पर हो। यह सारा वाकया पोस्ट कर दो ताकि तुम्हारे सनद रहे।
फुरसतियाजी घबराते हुये बोले- ये पोस्ट करने पर कहीं कोई नाराज न हो जाये?
शुकुलजी मोहनी मुस्कराहट लपेटकर उवाचे-बालक तुम सरीखा चुगद ब्लागर हमने अभी नहीं देखा। तुम अभी तक अपने साथियों की मन:स्थिति नहीं समझ पाये। ये उस महान पत्रकार परंपरा के लोग हैं जो एक जेब में कलम तथा दूसरे में इस्तीफा डाले घूमते थे तथा कलम कम इस्तीफा ज्यादा चलाते थे। ये सब समझदार लोग हैं। कोई नाराज होगा भी तो स्थाई रूप से नहीं होगा?
शुकुलजी की संगति में फुरसतिया की सारी शंकाओं के उसी तरह धुर्रे उड़ गये जिस तरह पहले शाहिद आफरीदी की बैटिंग से भारतीय बालरों के तथा बाद में सहवाग की बैटिंग से पाकिस्तानी बालरों के उड़े थे।
वापस लौटकर वे कम्प्यूटर के ‘की बोर्ड’ पर गरदन झुकाये पकड़े गये।
इस मौज-मजे के बाद हम अब गंभीर होने की इजाजत चाहते हैं। सबसे पहले तो देबाशीष को इस सारे आयोजन को सफलतापूर्वक अंजाम देने की हार्दिक बधाई । तमाम मतभेद,लानत-मलानत के बावजूद यह काम लगभग अकेले पूरा किया । जिस बात को सही समझा उसपर बावजूद तमाम विरोध के कायम रहे। यह काबिले तारीफ है ।लिहाजा हम देबाशीष की तारीफ करते हैं चाहे वो बुरा माने या भला!
जिन ब्लागर्स के ब्लाग को विजेता चुना गया उनको हम बधाई देते हैं। खासतौर पर अपने शशिसिंह को जिनका ‘मुम्बई ब्लाग’ हिंदी के ब्लागों में प्रथम स्थान पाया। शशि ने बहुत कम समय में ब्लागिंग में बहुत कुछ लिखा। खासकर भोजपुरी ब्लागिंग के क्षेत्र में। कामना है कि वे अपने नये ब्लाग में शानदार अंदाज में लिखते रहें। दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करें।
अब कुछ जैसे को तैसा वाला काम भी किया जाय। देबाशीष ने घोषित पुरस्कारों के अलावा हालांकि बताया था कि कुछ इनाम वे देगें जिनका खुलासा नहीं किया गया था। हमारा मन रखने के लिये उन्होंने एक किताब देने की घोषणा की है। हम किताब का इंतजार कर रहे हैं।
पिछले तीन सालों से देबाशीष इंडीब्लागर का आयोजन करते आ रहे हैं। मैं देबू को इन तीन सालों के आयोजन के लिये तीन किताबें भेंट करता हूं। किताबें हैं:-
रागदरबारी-श्रीलाल शुक्ल
कसप़-मनोहर श्याम जोशी
आधा गांव-राही मासूम रजा़
राग दरबारी से अच्छा व्यंग्य उपन्यास,कसप़ से अच्छा प्रेमकथा उपन्यास तथा आधा गांव से अच्छा विभाजन की त्रासदी पर लिखा उपन्यास मैंने दूसरा नहीं पढ़ा।यह सारे सर्वश्रेष्ठ उपन्यास मैं देबाशीष को भेजूंगा जल्द ही। आशा है कि वे हमारी भेंट स्वीकार करेंगे।
एक भेंट हमारे सबसे कम वोट पाने के रिकार्ड को लगातार दूसरी बार अपने नाम करने वाले रविरतलामी के लिये भी है। रवि भाई जिस अंदाज में लगातार निर्लिप्त भाव से जुटे रहते हैं लेखन में तथा रचनाकार में वह बाकई स्तुत्य है। उनके लिये हमारे पास है हमारा अब तक का पढ़ा सबसे अच्छा उपन्यास-हावर्ड फ्रास्ट का स्पार्टाकस जिसका बहुत खूबसूरत हिंदी अनुवाद किया है अमृतराय ने आदिविद्रोही के नाम से। यह उपन्यास गुलामों के पहले विद्रोह की कहानी कहता है।जल्द ही यह किताब रवि भाई को भेज दी जायेगी।
मेरी पसंद
मुझसे कहा गया कि संसद
देश की धड़कन को
प्रतिबिम्बित करने वाला दर्पण है
जनता को
जनता के विचारों का
नैतिक समर्पण है
लेकिन क्या यह सच है?
या यह सच है कि
अपने यहां संसद -
तेली की वह घानी है
जिसमें आधा तेल है
और आधा पानी है
और यदि यह सच नहीं है
तो वहाँ एक ईमानदार आदमी को
अपनी ईमानदारी का
मलाल क्यों है?
जिसने सत्य कह दिया है
उसका बुरा हाल-क्यों है?
-’धूमिल’ की लंबी कविता पटकथा से
Posted in बस यूं ही | 15 Responses
बहुत सही गुरूवर। आपको उपविजेता बनने पर हार्दिक बधाई।इस बात पर जाँच आयोग बैठाल देना चाहिये कि , इस बार ब्लागसंख्या ज्यादा और वोटिंग कम काहे हुई!
जवाब आपको पता है.
इस पोस्ट को पढ़ कर हँसा, ऐसा हँसा कि आँख से आँसू निकल आए.
आप मुझे इनाम स्वरूप एक किताब भेज रहे हैं. धन्यवाद.
पर, मेरी ओर से एक अदद इनाम के हकदार तो आप भी हैं ! आखिर मैंने भी तो आपका नामांकन किया था – और क्या सही किया था-
“… चिट्ठे की हर पंक्ति और हर अक्षर पढ़ने में आनंददायी!…”
इस पोस्ट को दुबारा पढ़ कर मजे ले रहा हूँ!
अब अवार्ड वगैरहा के पचड़े मे ना पड़कर सीधी सीधी बात की जाय। मेरे लिये हिन्दी ब्लॉगिंग मे तुमसे और सुनील से अच्छा लिखने वाला नही दिखा,कम से कम अब तक तो नही।तुम्हारे ब्लॉग की लोकप्रियता बढती रहे, यही सबसे बड़ा पुरस्कार है। इन्डीब्लॉगीज पुरस्कारों के से मुझे लगता है कि इसबार हिन्दी के ब्लॉगर बन्धु ही इससे जुड़ नही सके,कारण क्या रहे, इसके लिये देबू दा खुद आत्म मंथन करें, उनको कुछ कहना, नये पचड़े को न्योता देना है, इसलिये ओम शान्ति शान्ति।
रही बात हमारे वोटिंग ना करने की, तो भैया हम बीस तारीख के आसपास लौटेंगे, तब तक तो सारी परसादी बँट चुकी होगी। तुम लिखते रहो, मौज लेते रहो, यही सही है, ये अवार्ड वगैरहा से अपने को जितना दूर रख सकते हो, रखो।
अब लगे हाथों कुछ और ईनाम की भी घोषणा की जाय. उम्मीदवारों की लिस्ट हम भेजते हैं आपको.
प्रत्यक्षा
सब कहते हैं कि पोल का यह तरीका ठीक नहीं वो गड़बड़ है।फिलहाल तो हाल है यह है कि जो जीते हैँ वो भी सुना रहे हैँ जो नहीँ जीत पाये वे भी कोस रहे हैँ।
भइयै नैट पर इससे ज्यादा क्या करोगे, व्यक्ति की पहचान ईमेल पते से ही होती है सो यह प्रयोग करना सबसे उचित है। कुकी लोग चट कर जाते हैं और आईपी ब्लॉकिंग से निर्दोष लपेटे में आ जाते हैं, अब रेटिना स्कैन तो करा नहीं सकते, ना ही कीबोर्ड पर स्याही पोत सकते हैं। आपको ज्यादा विश्वस्नीय तरीका पता हो तो हमें भी बतायें।
रही बात फर्जी वोटिंग की तो यह सारा चुनाव यह मानते हुये किये जाते हैं ताकि कुछ अच्छे/ ब्लाग लेखक सामने आये। लोग उनके बारे में जाने। अब अगर कोई इस बात पर तुल ही गया है कि चुनाव में गड़बड़ी ही करनी है तो ऐसों को तो सरकारें भी नहीं रोक पाती-हमारी क्या औकात?
जो ईनाम मैंने देने की घोषणा की थी वो यही किताबें थीं जो आपको और शशि को दी जा रही हैं। बकिया यही कहेंगे बीती ताहि बिसार दे, आपकी कलम का जोर बिना आजमाये ही हम पहचानते हैं।
किताबों के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद। हम बेताबी से किताबों के इंतजार में हैं।
सफल आयोजन के साधुवाद। बाकी हिंदी ब्लागजगत के बारे में जहाँ तक मेरा ख्याल है, फर्जी वोटिंग के बारे में शायद किसी को शिकवा नही है। अनूप जी ने सिर्फ व्यंग्य किया है, इतना तो आप भी समझ गये हैं। बाकी जीतू जो कहना चाह रहे हैं वह शायद कुछेक लोगो की निर्लिप्तता का उल्लेख भर है। अब यह व्यक्तिगत , समयबद्ध मजबूरियाँ हैं, पूर्वाग्रह है, भ्रम है , अहँकार है या महज निरपेक्ष भाव, यह मनन का विषय है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि जीतू शायद निंरतर की (अ)भूतपूर्व टीम की और अधिक भागीदारी चाह रहे थे आयोजन में, अनूप जी ने भी उल्लेख किया था इसका। आपका तर्क अपनी जगह सही था कि ” क्या किसी और भारतीय भाषा का लेख आपको इंडीब्लॉगीज़ पर नज़र आया?” खैर इन सब तर्को के बीच मुझे बार बार कुछ लोगो की कही बातें याद आ रही थी । पर साथ ही याद आ रही थी अपने तीन तीन बार एक एक घँटे खर्च करके तैयार किये गये प्रस्तावों की अकाल मौत। उन सबके किये भी मेरे साथ साथ वह सब भागीदार हैं जिन पर आज निर्लिप्तता की तोहमत है। हमारी अर्ज सिर्फ इतनी ही कि बात जो शुरू की है उसे और सलाह मशविरा करके निंरतर से भी से बड़ा , उपयोगी और एकीकृत प्रयास साकर किया जाये। पर किसी को समय की कमी है तो किसी को प्रोजेक्ट सीधे ही इंप्लिमेंट करना अच्छा लगता है । सबकी अपनी अपनी बँदिशे हैं, अपने अपने व्यक्तित्व। पर यह सब मेरी अपनी सोच है। पर खुद पर शर्म आती है जब सारिका और पूर्णिमा जी को अकेले दम पर मासिक पत्रिकायें निकालते देखता हूँ और साथ ही देखता हूँ कि हम सात आठ लोग मिलकर ऐसा प्रयास भी नही कर सकते जिससे एक ऐसी साईट बने जिससे हिंदी ब्लागजगत की समूची पहचान जाहिर हो। जब ऐसा नही हो सकता तो अनूप भाई जो हो रहा है उसी का यशोगान करना यथोचित है। मौज वहाँ लेने में मजा है जहाँ जिसकी मौज ली जा रही हो उसको भी मजा आये और मौज मौज में वह काम भी हो जाये जिसमें मौज लेने वाले के साथ जनता जनार्दन को भी मौज आये। हय कि नही?
लक्ष्मीनारायण
प्रशस्त पुण्य पंथ है,
दृण-प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रवीर हो जयी बनो,
बढ़े चलो,बढ़े चलो।
सो हे वीर पुरुषोँ उठो-जागो और पाने के लिये सार्थक पराक्रम के लिये जुट जाओ.हम तो हैँ हइसा कहकर जोर लगाने और मौज लेने के लिये.इस बीच तमाम और महारथी जुडे हैँ उनको भी उकसाया जाय.क्या कहते हो?
हमारा ये कमेंट दुबारा जरा मुस्करा के( मोनालिसा वाली नहीं अपनी खुद की) पढ़ो.देखो क्या अंतर पड़ता है.
हंसने-हंसाने के मौके ढूंढना तो कोई आपसे सीखे. ये अवार्ड-उवार्ड को एक दिन की बात है बाकी बचे 364 दिन तो आप ही के जलवे हैं.
बकौल शुकुलजी अवार्ड पाकर हमारा नाम भी आलोकजी और अतुल भाई तरह शहीदों में शुमार हो गया हैं. अब आप बतायें शहीद होकर कोई जीत के मजे ले सकता है भला? मुझे तो लगता है कि मेरे वोटरों (तथाकथित शुभचिंतक) ने मेरे मजे लेने के लिए मुझे वोट किया है. अबतक मैं लेखन की रणभूमि में अक्सर किनारे से निकल जाया करता था… अब वो जरूर खुश हो रहे होंगे कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे.
मेरे तो हाथ-पांव फूल रहे हैं कि इस ऊंट पर सबने उम्मीदों के ढेरों बोझे लाद दिये हैं, अगर यह ढो न सका तो जुते पड़ने तय है.
ये खुदा रहम कर.
यह सच है कि हममें अपने आप पर हँसने का माद्दा कम ही होता है. दूसरों पर तो भले ही गाहे बगाहे हँस लेते हों…
शशि, आपने अपने आप पर ठहाका लगाकर यह इंगित कर दिया है कि सच में, लोगों ने मज़े लेने के लिए, आपको वोट नहीं दिया है…