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जैसा कि हमने बताया था हमारी भतीजी की शादी आठ मई को सकुशल सम्पन्न हो गयी। तमाम लोगों के अलावा हमारे कुछ ब्लागर दोस्त भी इस अवसर पर मौजूद थे। दिल्ली से मसिजीवी आये थे और कानपुर से राजीव टंडनजी। कवि मित्र विनोद श्रीवास्तव भी थे-सपरिवार! तमाम साथियों की शुभकामनायें, आशीष मिले।
सभी के प्रति हम दिल से शुक्रगुजार हैं!
ये जो लेख छपा था जनसत्ता में उसके ही बारे में अगर चर्चा है तो सबसे पहले उसके बारे में जगदीश भाटिया जी की पोस्ट से पता चला। लेख साधारण था या असाधारण पर आमतौर पर अभी प्रिंट मीडिया में जो छपता है ब्लाग के बारे में उसके प्रति उत्साहित होकर लोग बताते ही हैं। इसे ‘हुआ-हुआ’ कहना अच्छा नहीं लगा। और यह लेख सुजाताजी ने लिखा था जो खुद शादी-शुदा हैं और उनका अलग परिवार है।
-डा.कमल मुसद्दी
कानपुर
कानपुर में ब्लागर मिलन
By फ़ुरसतिया on May 12, 2007
जैसा कि हमने बताया था हमारी भतीजी की शादी आठ मई को सकुशल सम्पन्न हो गयी। तमाम लोगों के अलावा हमारे कुछ ब्लागर दोस्त भी इस अवसर पर मौजूद थे। दिल्ली से मसिजीवी आये थे और कानपुर से राजीव टंडनजी। कवि मित्र विनोद श्रीवास्तव भी थे-सपरिवार! तमाम साथियों की शुभकामनायें, आशीष मिले।
सभी के प्रति हम दिल से शुक्रगुजार हैं!
मसिजीवी सुबह सबेरे कानपुर पधारे। मोबाइल पर संदेश आया- नमस्कार, आपके शहर आ चुका हूं जल्दी ही मुलाकात होगी।
फोन किया तो पता चला कि वे विजय नगर में थे। कुल चार किमी दूर!
बहरहाल वे आये दोपहर को! एक ठो पर्सनुमा बैग, जैसे सेविंग किट हो, साथ लिये।
यह हमारी मसिजीवी से पहली मुलाकात थी। इसके पहले जो भी परिचय था वह नेट-परिचय था।
शुरू-शुरू में जब मसिजीवी का ब्लाग देखते थे तब हम उनको ‘गयी उमर का कोई बीता सा’ प्रोफ़ेसर सा कुछ समझते थे। धीरे-धीरे कुछ-कुछ जानकारी हुयी तो उनके बारे में समझ बदलती गयी! बाद में जानकारियां बढ़ीं। पता चला नीलिमाजी उनकी पत्नी हैं, सुजाता नीलिमा जी की बहन। यह भी पता चला कि मसिजीवी और नीलिमाजी ने प्रेम विवाह किया है। विजातीय प्रेम विवाह होने के कारण कुछ समाज-विरोध भी झेला। बाद में सुजाताजी ने महाजनो येन गत: स: पन्था का अनुसरण किया। इस लिहाज से मुझे मसिजीवी प्रतापी पुरुष लगे।
प्रतापी इसलिये कि भई हमें इस बात का सदा अफ़सोस होता है कि हम बिना प्रेम के विवाहित हो गये। और उस गलती का खामियाजा आज तक भुगत रहे हैं। जो काम विवाह के पहले नहीं किया वह शादी के बाद करना पड़ रहा है। इसीलिये समझदार लोग सलाह देते हैं कि विवाह के पहले जो प्रेम-श्रेम हो कर लेना चाहिये। बाद में आराम रहता है। लेकिन हमारे भाग्य में आराम कहां!
बहरहाल मसिजीवी जब आये तो दोपहर हो चुकी थी। धूप बरामदे में फैली थी। उसी कुछ चिलचिली होती सी धूप में बैठे हम बतियाते रहे।
मसिजीवी की जब हमने पहले रेलवे ट्रैक के पास वाली फोटो देखी थी तब लगता था कि ये महाराज कोई लम्बे शरीर के मालिक होंगे। इसके अलावा जो अभी कुछ दिन पहले की फोटो देखी थी जो इन्होंने अपने ब्लाग में लगायी थी उससे लगता था कि मसिजीवी कुछ ज्यादा ही सांवले हैं! आवाज का भी अंदाज था कि शायद कुछ धीर-गम्भीर सी आवाज होगी। लेकिन मुलाकात होने पर हमारे तीनों अनुमान हवा हो गये। मसिजीवी सामान्य कद के स्लिम-ट्रिम टाइप के जिसे लम्बा तो नहीं कह सकते, अपनी फोटो से कहीं ज्यादा खूबसूरत और आवाज भी मधुरता की तरफ़ झुकी हुयी। मुलायम टाइप की।
मसिजीवी ने जैसे कहा जाता है कहा कि वे ऐसे ही कपड़ों में चले आये। गोया अगला ये जताना चाहता हो कि अगर कायदे से पहन-ओढ़ ले तो और कायदे का लगे। हमने समझाया कि यह हसीन भ्रम बना रहे तो अच्छा! वैसे हमने सोचा तो यह भी हम और खराब बाना धारण कर लें। ऐसा चतुर्दिक हो रहा है। कोई एक खराब हरकत करता है तो अगला उससे कहीं ज्यादा वाहियात हरकतें करने लगता है इस डर से कि बेहूदगी में कहीं पिछड़ न जाये। कोई किसी से किसी बात में उन्नीस नहीं रहना चाहता!
बहरहाल, हम काफ़ी देर बतियाते रहे। चाय-शाय भी हुयी। हमने अपने बेटे से कहा भाई जरा एक फोटो बढ़िया सी खैंच दो। लेकिन उसने आधी बात मानी। सिर्फ फोटो खींची! अलबत्ता मसिजीवी पर कैमरा कुछ मेहरबान हुआ!
इस बीच घर के अन्दर पूजा की थाली के लिये आटे की दीपक बनाये जा रहे थे। आटे औ बेसन से मेज पर रखे हमारे लैपटाप के तार पूरे सन गये थे। जब हमने मसिजीवी को बताया तो वो बोले कि इस पर एक पोस्ट बनती हैं। हमने अपने बेटे से कहा कि बबुआ तनिक फोटुआ लै लेव सने हुये तार की। लेकिन तब तक किसी सफ़ाई पसंद की नजर उस आटे सने तार पर पड़ चुकी थीं और एक खांटी पोस्ट की सम्भावनायें समाप्त हो गयीं।
इस बीच घर के अन्दर पूजा की थाली के लिये आटे की दीपक बनाये जा रहे थे। आटे औ बेसन से मेज पर रखे हमारे लैपटाप के तार पूरे सन गये थे। जब हमने मसिजीवी को बताया तो वो बोले कि इस पर एक पोस्ट बनती हैं। हमने अपने बेटे से कहा कि बबुआ तनिक फोटुआ लै लेव सने हुये तार की। लेकिन तब तक किसी सफ़ाई पसंद की नजर उस आटे सने तार पर पड़ चुकी थीं और एक खांटी पोस्ट की सम्भावनायें समाप्त हो गयीं।
इस तरह तमाम बातें करते-करते शाम हो गयी। मैंने मसिजीवी को अपने गेस्ट हाउस भेज दिया! वहां से वे न जाने कहां अड्डेबाजी करने निकल गये! अगले दिन पता चला कि वे किसी नेट कैफ़े में भी गये थे! वहीं से लेखों पर टिपियाये भी!
शाम को जब बारात आने वाली थी उसी समय मसिजीवी राजा बेटा बनकर आये। हमने राजीव टंडनजी को फोनियाया। वे भी कुछ देर बाद आ गये। दोनों प्रबुद्ध ब्लागर देर तक बतियाते रहे। हम आमंत्रितों और बारातियों के स्वागत में जुट गये। राजीव टंडनजी की साली की भी उसी दिन शादी थी। वे जयमाल के बाद चले गये। कुछ देर बाद मसिजीवी भी आराम फरमाने चले गये। हम रात भर जागरण करते रहे! कन्यादान की रस्म सुबह पूरी हुयी। हम अपनी जिंदगी में शायद पहली बार व्रत रहे। ऐसा कहा गया था कि कन्यादान के व्रत रखना जरूरी होता है। जिस भतीजी ने हमेशा हमारे खाने का ख्याल रखा उसने जाते-जाते हमें भूखा रखा! क्या संयोग है!
विदाई के बाद हम पर नींद हावी थी। हम एकाध घंटा सोते रहे। फिर याद आया कि मसिजीवी को लौटना है। हम नींद से मोहलत लेकर मसिजीवी से मिलने गये।
वहीं कमरे में चाय मंगाई गयी। चायपान के साथ-साथ तमाम बातें हुयीं। चिट्ठाजगत की तमाम बातें, गतिविधियां! तमाम लोगों के बारे में भी चर्चा हुयी! अब उनका तो कोई रिकार्ड नहीं रखा गया! वैसे हमें बाद में लगा कि आमने-सामने बैठकर बतियाने की बजाय हमें किसी कैफ़े में जाकर अगल-बगल बैठकर चैटिंग करना चाहिये था और उस चैट को सुरक्षित रखना चाहिये था ताकि समय वक्त-जरूरत काम आये! आजकल इसका चलन बढ़ गया है।
वहीं कमरे में चाय मंगाई गयी। चायपान के साथ-साथ तमाम बातें हुयीं। चिट्ठाजगत की तमाम बातें, गतिविधियां! तमाम लोगों के बारे में भी चर्चा हुयी! अब उनका तो कोई रिकार्ड नहीं रखा गया! वैसे हमें बाद में लगा कि आमने-सामने बैठकर बतियाने की बजाय हमें किसी कैफ़े में जाकर अगल-बगल बैठकर चैटिंग करना चाहिये था और उस चैट को सुरक्षित रखना चाहिये था ताकि समय वक्त-जरूरत काम आये! आजकल इसका चलन बढ़ गया है।
हमें मौका मिला तो अपने बारे में हमने भी तमाम बातें हांकी! हमने मसिजीवी से कहा कि हमें यह लगता है कि अगर दो लोगों के बीच कोई भेद/बातें होती हैं तो देर-सबेर वे सबको पता चल ही जाती हैं। यह भी कि अगर किसी को मुझे कोई भेद की बात इस मंशा से बतानी है कि मैं उसे अपने तक रखूं तो इससे बेहतर है कि वो बातें मुझे न बतायीं जाये। क्योंकि किसी दूसरे को बताने न बताने की बात मैं अपने विवेक से तय करना चाहूंगा न कि किसी गोपनीयता की शर्त के आधार पर! इस बारे में मैंने एक पोस्ट भी लिखी है।
इस दौरान रात में मैंने चौपट स्वामी जी की पोस्ट भी सरसरी तौर पर देखी थी। यह पोस्ट मुख्यत: मसिजीवी पर केंद्रित है। मैंने मसिजीवी से मौज लेते हुये पूछा भी कि क्या बात है स्वामीजी उन पर इतना मेहरबान क्यों हैं! इस पर उन्होंने कुछ बातें बतायीं जिनके बारे में मुझे जानकारी नहीं थी। मैंने मसिजीवी से पूछा भी कि अब इसका जवाब लिखोगे? उनका कहना था कि वे जवाबी कीर्तन करने की बजाय अपनी संक्षिप्त टिप्पणी लिखेंगे। उन्होंने टिप्पणी लिखी भी और उसे चौपटस्वामीजी ने अच्छी तरह स्वीकार भी लिया है। यह अच्छी बात है! हालांकि यह बात अब समाप्त हो गयी है लेकिन इस बारे में मैं कुछ कहना चाहूंगा।
मैंने आज जब इस पोस्ट को दुबारा पढ़ा तो मुझे अफसोस हुआ और खराब लगा। इस तरह की पोस्ट की आशा मैं चौपटस्वामी जी नहीं करता था। जिस ऊंचाई पर इसके पहले वाली पोस्ट में वे हसनजमाल के बारे में लिखते हुये गये थे वह सारी स्थितिज ऊर्जा उन्होंने यह पोस्ट लिखकर गतिज ऊर्जा में बदल दी और वे ‘जैसे थे’ की स्थिति में पहुंच गये। उनकी पहले वाली पोस्ट काफ़ी थी इस बारे में बयान करने के लिये कि हसन जमाल जी बहुत समर्पित हैं। जब उन्होंने यह काम कर लिया उसके बाद मसिजीवी का पोस्टमार्टम करने से हसन जमालजी कद नहीं बढ़ा बल्कि यह दूसरा लेख पहले लेख से ज्यादा चर्चित हो गया। पहला वाला नेपथ्य में चला गया!
इस प्रकरण में ऐसा ही हुआ। हसनजमाल जी पर बहस के चलते मनीषा कुलश्रेष्ठजी के लेखन का अधकचरापन छिप गया। मसिजीवी पर लिखे इस लेख के चलते हसनजमाल नेपथ्य में चले गये। संभव है कि मेरी इस टिप्पणी के चलते मसिजीवी पर लिखा लेख नेपथ्य में चला जाये।
मैं न मसिजीवी के लेखन की तारीफ़ कर रहा हूं न उनका पक्ष सही ठहरा रहा हूं। लेकिन मुझे लगता है कि चौपटस्वामी जी को इस पोलखोलक पोस्ट को लिखने का मोह संवरण करना चाहिये।
चौपटस्वामीजी ने मसिजीवी के बारे में जो लिखा मैं उसके विवरण में न जाकर यह कहना चाहूंगा कि उन्होंने जो सुजाता और नीलिमाजी के बारे में लिखा वह सही नहीं है। हालांकि उन्होंने कहा नीलिमा और नोटपैड की क्षमता आश्वस्त करने वाली है. ये मसिजीवी की मदद के बिना भी अपनी जगह बनाने में सक्षम हैं. लेकिन उन्होंने और भी बहुत कुछ कहा जो अच्छा नहीं लगा! खासकर ये दो बातें:-
१.अपने साधारण से लेखों के छपने पर मसिजीवी-परिवार गोलबंद होकर नारद को हुआ-हुआ के ऐसे कोलाहल से भर देने की क्षमता रखता है कि मुर्दे भी उठ खड़े हों.२.स्त्रियों के सशक्तीकरण का ऐसा त्वरित उदाहरण इतिहास में विरल ही होगा जहां कोई स्त्री फ़रवरी07 में ब्लॉग लिखना शुरु करे और मार्च07 में, यानी एक माह के भीतर उसका सशक्तीकरण हो जाए और वह चिट्ठा-चर्चा के दल में शामिल हो जाए और पहली अप्रैल को इस सशक्तीकरण के फ़ल भी मिलने लगें . इतने ही कम समय में,इतने ही वेग से और इसी प्रक्रिया से नोटपैड जी का सशक्तीकरण हुआ . पर जो इसे परिवारवाद कहे उस पर भरोसा मत कीजिएगा. एक ही प्रतिभाशाली परिवार के एक साथ तीन-तीन सदस्य चिट्ठा जगत के कर्णधारों में शामिल हो जाएं तो इसे प्रतिभा का विस्फोट ही मानना चाहिए. जनता अविनाश के पीछे पड़ी रही और पता ही नहीं चला कि कब पर्दे के पीछे यह सशक्तीकरण हो गया .
ये जो लेख छपा था जनसत्ता में उसके ही बारे में अगर चर्चा है तो सबसे पहले उसके बारे में जगदीश भाटिया जी की पोस्ट से पता चला। लेख साधारण था या असाधारण पर आमतौर पर अभी प्रिंट मीडिया में जो छपता है ब्लाग के बारे में उसके प्रति उत्साहित होकर लोग बताते ही हैं। इसे ‘हुआ-हुआ’ कहना अच्छा नहीं लगा। और यह लेख सुजाताजी ने लिखा था जो खुद शादी-शुदा हैं और उनका अलग परिवार है।
नीलिमाजी और सुजाताजी भले ही मसिजीवी के परिवार से जुड़े हैं। लेकिन इनका अपना स्वतंत्र असतित्व भी है। जरूरी नहीं कि मसिजीवी के अपराध की सजा इनको दी जाये! मसिजीवी की खिंचाई इन पर महीन मार किये बिना भी की जा सकती थी।
नोटपैड(सुजाताजी) के चिट्ठाचर्चा दल में शामिल होने को अगर आप स्त्री सशक्तिकरण, परिवारवाद आदि चीजों से जोड़ते हुये जो समझना चाहते हों समझें आपको पूरा हक है। लेकिन यह बता दूं कि सुजाताजी को चिट्ठाचर्चा दल में शामिल करने का निर्णय मेरा सिर्फ़ मेरा है। उनके लेखन से मैं प्रभावित हुआ और मैंने उनको चिट्ठाचर्चा दल में शामिल किया। इसमें और कोई बात देखते हों तो यह आपका सोच है।
वैसे भी चर्चा दल में शामिल होना कोई सीनियारिटी पर निर्भर नहीं करता। अगर सीनियारिटी ही देखें तो अनामदासजी, धुरविरोधी, रवीशकुमारजी, अभयतिवारीजी और प्रमोदसिंहजी, जिनकी भाषा के आप और हम भी मुरीद हैं, ने तो अभी कुछ दिन पहले ही लिखना शुरू किया। क्या पसंद के लिये भी वरिष्ठता क्रम बनेगा!
मुझे बाद में पता चला कि नीलिमा, सुजाता बहनें हमेशा पढ़ने में अच्छी रहीं। सुजाताजी ने तो बी.ए., एम.ए.में गोल्ड मेडल भी पाया। दोनों पी.एच.डी. हैं। अच्छा खासा लिखती हैं। फिर अगर मैं इनको चिट्ठाचर्चा दल में शामिल करता हूं तो इसमें कहां से महिला सशक्तिकरण आ गया? कहां से परिवारवाद जुड़ गया। परिवारवाद की बात कहें तो बेंगाणी बन्धु भी भाई है और इनसे पहले से चर्चा करना शुरु करके अब स्थगित भी कर चुके हैं।:)
मुझे इस बात का अफ़सोस है कि चौपटस्वामी मसिजीवी की खटिया करने के चक्कर में जड़त्व के नियम के चलते उनके परिवारी जन पर भी हावी हुये जो कि मेरे ख्याल से नहीं करना चाहिये। खासकर तब जब उनको चिट्ठाचर्चा के बारे में जानकारी नहीं है।
यह भी बता दें कि चिट्ठाचर्चा में स्वामीजी आपके नाम निमंत्रणपत्र दो माह पहले भेजा जा चुका है लेकिन आपने अभी तक उसे शायद स्वीकार तक नहीं किया। जबकि इसके लिये मुझसे सृजनशिल्पी और जीतेंद्र ने एक ही दिन में कई बार तकादा किया।
चिट्ठाचर्चा की बात हुयी तो कहता चलूं कि तमाम साथी तमाम तरह की कमियों की ओर इशारा करते हैं। उनकी बात जायज हो सकती है। लेकिन चर्चाकरने वाले की सीमायें होती हैं। और चर्चाकार चिट्ठाचर्चा अपने घर परिवार के समय में से समय निकाल कर करता हैं। मैं तो कहता हूं कि जो साथी इसमें रुचि रखते हैं वे बताने की बजाय इसे करें करके दिखायें बतायें कि ऐसे करना चाहिये और ऐसे करते रहना चाहिये! प्रतिभा होना अलग बात है तथा प्रतिभा का निरंतर काम में लगे रहने दूसरी बात हैं। आप एक दिन तो कोई काम शानदार करके बता सकते हैं लेकिन नियमित करना कुछ अलग ही जज्बे की मांग करता है।
यह बिल्कुल बेवुनियाद बात है कि सृजन शिल्पी या सागर के ब्लाग को नारद से हटाने की बात हुयी कहीं। हां अविनाश के मोहल्ले को नारद से हटाने की बात कुछ लोगों ने की थी लेकिन ज्यादातर लोग किसी भी बैन के लिखाफ थे।
हालांकि मेरे तमाम दोस्त मुझे टोंकते हैं कि मैं विवादास्पद पोस्टों के पचड़े में न पड़ा करूं लेकिन यह सब मैं न चाहते हुये भी लिख गया। अपनी नापसंदगी जताने का मुझे अधिकार है। दूसरी बात यह भी है कि हम अगर तटस्थ रहे तो समय हमारे खाते में अपराध चढ़ा देगा। है कि नहीं
हालांकि जरूरी नहीं लेकिन स्पष्टीकरण दे देना अच्छा है कि यह जो चौपटस्वामीजी की पोस्ट पर मैंने अपने विचार लिखे वे मेरे अपने हैं। इनका मसिजीवी से मेरी मुलाकात से कोई लेना-देना नहीं है!
बहरहाल इसके बाद मसिजीवी खाना खाकर कमरे में वापस आये। हम उनको विजय नगर चौराहे तक छोड़ने गये। वे करीब साढ़े तीन बजे चले गये। उनको शाम को शताब्दी पकड़नी थी।
उनके हाथ हमने दिल्ली -गुड़गांव के साथियों के लिये मिठाई भेजी थी। साथी लोग अपना हिस्सा उनसे प्राप्त करें।
कानपुर में हुये ब्लागर मिलन का अपने हिस्से का बयान विवरण मैंने लिखा। अब मसिजीवी और राजीव टंडनजी अपने किस्से बयान करें!
मेरी पसंद
कानपुर में हुये ब्लागर मिलन का अपने हिस्से का बयान विवरण मैंने लिखा। अब मसिजीवी और राजीव टंडनजी अपने किस्से बयान करें!
मेरी पसंद
उसकी हथेली पर
मेंहदी रचने लगी है
स्वेटर बुनते-बुनते
वह सो जाती है
और फिर
जागते ही बुनने लगती है स्वेटर
उसे अच्छा लगता है आंगन में
कबूतरों का आना
हर रोज नाखू़नों पर
नये रंग की पालिश लगना
वह
सड़क पर पहले से ज्यादा सावधान होकर
आने-जाने लगी है
बात-बात पर
अपनी उम्र का जोड़ लगाने लगी है
वह बनावटी खत लिखती है
जब सारा घर सोता है
यह सब वह सप्रयास नहीं करती
सब अपने आप होता है।मां ने कहा-
ज्यादा हंसा मत कर
उसने लगभग हंसना छोड़ दिया है।
पिता ने कहा-
बहुत बोलने लगी है
उसने लगभग बोलना छोड़ दिया है।
भाभी बोलीं-
तू बेबी नहीं है अब
उसे बेबी और गुड़ियों के संबोधन डसने लगे हैं।
भैया ने कहा-
सहेलीबाजी कम कर कुछ
उसे सहेलियों के बुलावे करने लगे हैं।
दादी ने कहा-
थोड़ा सऊर सीख
तुझे पराये घर जाना है।वह सोचती है
वह घर पराया ही होगा
जहां जाने की तैयारी में
हंसी, बोली, मुस्कराहट
सब बेमानी हो गयी है
वह समझ नहीं पाती
कि वह ही बेबी है अभी
याकि दुनिया सयानी हो गयी है।
-डा.कमल मुसद्दी
कानपुर
Posted in बस यूं ही | 28 Responses
गोया अगला ये जताना चाहता हो कि अगर कायदे से पहन-ओढ़ ले तो और कायदे का लगे। हमने समझाया कि यह हसीन भ्रम बना रहे तो अच्छा! वैसे हमने सोचा तो यह भी हम और खराब बाना धारण कर लें। ऐसा चतुर्दिक हो रहा है। कोई एक खराब हरकत करता है तो अगला उससे कहीं ज्यादा वाहियात हरकतें करने लगता है इस डर से कि बेहूदगी में कहीं पिछड़ न जाये। कोई किसी से किसी बात में उन्नीस नहीं रहना चाहता!
–क्या बात कही है.
देरी से ही सही, शुभकामनायें स्वीकार करें
आपने अपने विवेक और सज्जनता से जो कुछ भी गलत पाया उसकी निन्दा की है । मै अपनी टिप्पणी पहले ही चौपट जी को दे चुकी हूँ ।पर आपकी ओर से इस मुद्दे पर बोला जाना महत्वपूर्ण है । आशा है चौपट जी विवेक से काम लेते हुए ,बिना उत्तेजित हुए इसे समझेंगे ।
और फिर यहाँ कोई सत्ता की जंग तो है नही कि हम एक परिवार के लोगो के शामिल हो जाने को पैकेज कहने लगें । ब्लॉग जगत में यही तो खासियत है कि यहाँ कोई खडा होकर यह नही कह सकता कि’हिन्दी ब्लॉगिंग मेरे दम से है ‘…..एक जाए तो हज़ारो ब्लॉगर कल लिखना शुरु कर देंगे । यहँ किसी की पार्टी , किसी का झंडा, किसी के नियम , किसी के कानून नही चलने वाले ।
सो , निश्चिंत रहें , निश्चिंत लिखें , आपकी लेखनी ही आपको गिराएगी या खडा करेगी।
हमारे जैसे न जाने कितने पैकेज यहाँ पहले से विद्यमान हैं सबकी चिंता करें तो लिखना असम्भव हो जाए ।
चौपट जी मस्त रहें ।
फुरसतिया जी ,धुरविरोधी जी, ककेश और समीर जी की तरह ।
मिसीजिवी (का अर्थ पता नहीं) तो एकदम छरहरे हैं उनकि ब्लोग फोटो झुठ बोल रही है.
सच कहें तो आपने जिस विवाद पर लिखा है, उससे में एकदम अनजान हूँ. इन लोगो के लेख इतने साहित्यीक होते है कि अपने सर के उपर से जाते है.
हम तो अभी नये और कच्चे हैं, आपका पढ़ पढ़ कर सीख रहे हैं. हमारा नाम इत्ते बढ़े ब्लागर के बीच में? आपका बढ़प्पन है, सनेह है. पर हम इतने सनेह के अधिकारी नहीं हैं.
चौपटस्वामी जी भी बहुत भले आदमी हैं. बात ये है कि आदमी जिस को पसंद करता है, उसके बारे में थोड़ा भी नहीं सुन पाता. (पसंदगी के पीछे तो बेटा अकबर जैसे बाप तक से भिड़ जाता है.) हसन जमाल जी को रवि साहब के चिठ्ठे पर पढ़ा. बेहतर लिखते हैं. चौपटस्वामी जी उन्हें पसंद करते होंगे, बस इसी वजह से. एसा हमें प्रतीत होता है.
बाकी अंत भला सो सब भला.
ब्लागर मीट की जानकारी देने के लिए शुक्रिया।
रही बात विवाद की तो इसकी खबर आपकी पोस्ट से मिली ।
मैं आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ कि चिट्ठाकारों को पारिवारिक आक्षेप से सदा दूर रहना चाहिए ।
घुघूती बासूती
आपसे मिलने की इच्छा मेरी भी है.. जो इस दीवाली के आस पास पूरी होगी.. जब मेरा कानपुर जाना होगा..
हल्दी-कुंकुम और केसर-केवड़े के माहौल से सीधे चौपटस्वामी-मसिजीवी विवाद के कीचड़ में . अरे इतनी भी क्या ‘अरजेंसी’ थी . थोड़ा बहुत थकान उतार लेते तब आराम से और बेहतर तथा और वस्तुनिष्ठ ढंग से लिखते .
@अरुणजी, फुरसत मिली होगी पोस्ट पढ़ने की। आदमी जो था उसी के हाथ मिठाई भेजी गयी थी। आप देर से बताये कि वो गलत आदमी है!:)
@मैथिलीजी, आपकी शुभकामनाऒं एवं प्रशंसा के लिये शुक्रिया!
@तरुण, शुक्रिया बधाई के लिये!
@सुजाताजी, शुभकामनाओं, बधाई एवं टिप्पणी के लिये शुक्रिया!
@पंकज, शुभकामनाऒं के लिये धन्यवाद!
@ संजय, शुक्रिया! ये बताओ दिन कैसा गुजरा था?
@ धुरविरोधीजी, आप स्वंय समर्थ लेखक हैं। मिठाई आप जरूर मांगे मसिजीवी से। चौपटस्वामीजी की भलमनसाहत पर हमें कोई शक नहीं है। लेकिन उनके लेख पर जो एतराज था वह मैंने दर्ज कराया!
@ संजीत त्रिपाठी, बधाई के लिये शुक्रिया! तान के सोने के बाद उठने पर ही यह लेख लिखा गया था!
@झाजी, शुक्रिया। मसिजीवी की ये बात बहुत खराब है कि खुद मिठाई हजम कर गये! कुछ करना पड़ेगा
@मनीषजी, आपकी बधाई ,शुभकामनाऒं एवं तारीफ़ का शुक्रिया। मैंने मसिजीवी के बारे में कुछ नहीं लिखा। मेरा एतराज जिन बातों पर था उस पर लिखना जरूरी समझा मैंने !
@श्रीश, मुबारकबाद के लिये धन्यवाद! हां मुझे यही लगा कि चौपटस्वामी जी को यह लिखने से बचना चाहिये लेकिन उनका मत है कि यह सही था। बहरहाल मैंने अपनी बात कही! सहमत होना न होना उनपर है!
@ सृजन शिल्पी, टिप्पणी और बधाई के लिये शुक्रिया!वैसे मैं दुविधा में हूं कि मैं किस बात को सच मानूं ताज़ा विवाद में बुजुर्गाना हस्तक्षेप करने पर बधाई की बात को जो तुमने यहां लिखी या इसे गैर-जरूरी और स्तरहीन कार्य मानूं जो तुमने सुजाताजी की बात का जवाब देते हुये चौपटस्वामीजी के चिट्ठे पर लिखा! मिठाई खाने आने के लिये सदैव स्वागत है।
@जीतू, शुक्रिया। लगा देंगे वहां भी यार विवरण काहे परेशान हो!:)
@घुघुतीबासुतीजी, आपकी शुभकामनाऒं के लिये धन्यवाद!
@ राजीवजी, आपने बहुत अच्छा लिखा! लेकिन लोग आपके मन मुताबिक चौंके नहीं!
@ अभय तिवारीजी, आपकी शुभकामनाऒं के लिये शुक्रिया। वैसे यह कोई विवाद नहीं था। चौपटस्वामीजी की कुछ बात पर मेरा एतराज था। वह मैंने जाहिर किया। कानपुर आने पर मुलाकात अवश्य होगी।
@ काकेशजी, शुक्रिया। आइये कानपुर में मुलाकात होगी।
@ चौपटस्वामीजी, यह लेख हमने बिटिया को विदा करने के तीन दिन बाद लिखा आराम करके। बधाई के लिये शुक्रिया। मसिजीवी आये इसके लिये मैं उनका आभारी हूं। लेकिन इसके चलते उनके प्रति ‘साफ़्ट कार्नर’ वाली बात आपकी अपनी सोच है। मसिजीवी ने जो बातें बतायीं वे आपके और उनके बीच के कुछ पुराने किस्से, वार्तालाप थे। उनको पेश करने की न मेरी मंशा है न मन ! वे आप दोनों के बीच की बाते हैं। आप जाने। अफसोस है कि आप अभी तक यह नहीं समझ पाये कि नारद और चिट्ठाचर्चा अलग-अलग हैं। चिट्ठाचर्चा से नारद का सिर्फ़ एक ब्लाग और एग्रीगेटर का संबंध है। आप सीधी-साधी बात को गड़बड़झाला मानना चाहते हैं तो माने भाई आपकी मर्जी। मैंने जवाब देने के पहले आपकी पोस्ट कई बार पढ़ी। मेरा स्पष्ट मानना है कि जिस तरह से आपने अपनी पोस्ट में सुजाताजी/नीलिमाजी के बारे में लिखा वह लिखे बिना भी आप मसिजीवी से अपना जो भी हिसाब बराबर करना हो कर सकते थे। यही मेरा एतराज था। अभी भी है। आप इसे मानना चाहें तो मानें न मानना चा्हें तो न मानें। तर्क से तो न जाने क्या-क्या साबित किया जा सकता है।
मुझे जो कहना था कह चुका। अब और कुछ कहने को नहीं है। हां, मैंने जो लिखा वह सुनी-सुनाई बातों के आधार पर नहीं बल्कि आपकी पोस्ट पढ़कर लिखा वह मेरी कल्पना नहीं है!
समझ गए न?