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फ़ुरसतिया टाइम्स का पहला अंक
By फ़ुरसतिया on May 23, 2007
हम रोज-रोज सुनते-सुनते तंग आ गये कि फलाने का लेख अखबार में छपा। इसने ये लिखा उसने वो छपवाया। हमने सोचा हम भी काहे न अखबार निकालें। जब कोई किसी अखबार में किसी का लेख छपने की बात करेगा हम भी तड़ से अपने अखबार में अपना फोटू सहित लेख छाप देंगे। आपको भी छपाना है तो बताओ।
हां, ई बता दें कि हमें छापाखाना के बारे में उतनी ही जानकारी है जितनी जीतेंन्दर को ब्लागिंग के बारे में। इसलिये तमाम बेवकूफियां हुयी हैं। राजीवटंडनजी का नाम जानबूझकर नहीं डाले नहीं तो वो गुस्साते हैं कि कहां ई आउट आफ डेट तकनीक में पांव फंसा रहे हो। देखा-देखा सब लोग इंक-ब्लागिंग के तालाब में छपाक से कूद पड़ेंगे। वैसे सच तो है लोग कूदने तो लगे हैं। आज ही समीरजी अपनी ब्लाग-पोस्ट पर जो ग्राफ़ चिपकाये उसमें इंक-ब्लागिंग की तरफ़ बढ़े हुये कदम हैं।
बहरहाल आज सरसरा के ई अखबार बांचिये। ई ड्राफ्ट है। कल इसको सजा-संवार के फिर से दिखायेंगे। तब तक बताइये आप कैसा लगा।
और हां! कोई भैया, बहिनी, दोस्त, सहेली गुस्से की तोप न चलाना। काहे से कहा गया है-जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो। तो अखबार हम पहिले ही निकाल दिये। अब तोप काहे निकालते हो- बहुत भारी होती है। है कि नहीं?
इसके प्रकाशन में समीरलालजी, मृणाल ने आधी रात को हमारा दूसरा पन्ना हमें इस रूप में सौंपा। इस तरह यह अखबार कानपुर, कलकत्ता और कनाडा की खुराफ़ात है। रचनाजी का भी सहयोग रहा। उन्होंने कुछ टाइटिल सुझाये थे। लोग अनुमान लगायें कि कौन सा टाइटिल उन्होंने दिया। अब इन लोगों धन्यवाद देंगे तब तो निकल चुका अखबार! है कि नहीं:)
फिलहाल तो आप अखबार बांचिये और अपनी प्रतिक्रिया अखबार दांये-बांये करने के पहले बता दीजिये तो अच्छा है। वर्ना हम पता तो कर ही लेंगे।
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