Monday, October 12, 2009

सटकर बैठा चांद एक दिन मम्मी से यह बोला

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सटकर बैठा चांद एक दिन मम्मी से यह बोला

दोस्त
चिठेरा-चिठेरी काफ़ी दिन बाद मिले थे। आपस में बातचीत करने के पहले उन्होंने एक-दूसरे की असलियत पहचानने के लिये पहले से तय पासवर्ड वाक्यों का आदान-प्रदान किया।
चिठेरी:उधार प्रेम की कैंची है!
चिठेरा:यह प्रेम के रिश्तों को काटती ही नहीं संवारती भी है।

चिठेरी:आज नकद कल उधार!
चिठेरा:इसी लिये हम पहले ही ले गये यार।

चिठेरी:धर्म वह है जो धारण करने योग्य है!
चिठेरा:बाकी लड़ने भिड़ने के काम आता है।

चिठेरी:अनामी ब्लागर को कैसे पहचानें!
चिठेरा:उसको सम्मानित करने की घोषणा करके उसकी  फ़ोटो मंगायें। खतरा यह भी है कि एक मंगाओगे दस भेजेंगे।

चिठेरी:कविता क्या है?
चिठेरा:अपनी बात को एक लाइन में सीधे-सीधे न लिख पाने पर तमाम लाइनों में गोलमोल भाषा में लिखने की बकैती का नाम कविता है।

चिठेरी: अरे वाह! आखिर् हमने एक-दूजे को पहचान ही लिया। कहां गायब रहे इतने दिन?
चिठेरा: अरे मत पूछो! समझ लो भूमिगत रहना पड़ा पिछले माह।

चिठेरी: क्यों तुमने क्या किसी की भैंस खोल ली थी जो छिपना पड़े।
चिठेरा:नहीं! लेकिन डर था कि कहीं कोई पकड़ के नोबले प्राइज न थमा दे।

चिठेरी: वाह, ऐसे किसी की गुंडागर्दी है जो तुमको कोई नोबले प्राइज थमा दे। हमारे रहते किसी की ऐसे हिम्मत। मैं उसका ब्लाग नोच लूंगी जो ये हरकत करने की कोशिश करेगा।
चिठेरा:अरे चिठेरी तेरी सब बातें ठीक हैं। लेकिन जब इन लोगों ने अमेरिका के राष्ट्रपति को नहीं बक्शा जिसका लोहा दुनिया मानती है तो हम कौन चीज् हैं!  इनका कोई भरोसा नहीं किसी को भी पकड़ के सम्मानित कर सकते हैं। इनके मुंह लगने से कोई फ़ायदा नहीं। अपनी इज्जत अपने हाथ होती है। इसीलिये मैं इतने दिन भूमिगत रहा। अगर मैं सावधानी नहीं बरतता तो क्या पता क्या अनहोनी घट जाती। कोई पकड़ के नोबल प्राइज थमा देता।

 चिठेरी: अरे लेकिन ऐसे कौन तुमको सम्मानित कर सकता है?
चिठेरा: कैसे क्या जैसे बेचारे ओबामा को कर दिया। इत्ती कम उमर में बेचारा कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहा। बेचारा सफ़ाई देते घूम रहा है कि वो इस लायक नहीं लेकिन लोगों  ने इनाम थमा दिया। अब अमेरिका के राष्ट्रपति की कोई औकात तो होती नहीं जो इसके अलावा कुछ कह सके। झेलना पड़ेगा उसको। बैठे ठाले एक आफ़त।

चिठेरी: लेकिन तुमको किस बात के लिये दे देते नोबल इनाम? क्यों डर रहे थे?
चिठेरा:अरे कोई भरोसा है? कह देते कि बढ़िया बवाल जयी लेखन करते हो। अनंत संभावनायें हैं। लेव थामो साहित्य का नोबल इनाम। या फ़िर कह देते चिठेरी-चिठेरे में कहा-सुनी न करके विश्व शांति की दिशा में अद्भुत काम किया है। ये संभालो शांति का नोबल इनाम।
चिठेरा: हां ये बवाल तो हैं। ओबामा बेचारा अभी दस दिन पहले बैठा था कुर्सी पर और लोगों ने भेज दिया था उसका नाम। अपने बचाव का प्रयास तक नहीं कर पाया। दुनिया बड़ी जालिम है।

चिठेरी: लेकिन वो मना भी तो कर सकता है न!
चिठेरा: अरे बेचारा डरता होगा। लोग उसको बदतमीज कहेंगे। उसकी राजा-बेटा की छवि खराब हो जायेगी। मिला तो उसकी आफ़त। लौटाये तो आफ़त। लौटाये तो उससे कम काबिल को मिलेगा तो उसका भी दोष इसी पर आयेगा। भले आदमी की हर तरफ़ से मरन है।

चिठेरी: सो तो खैर है। और कुछ लिखा क्या आज?
चिठेरा: हां लिखे हैं। देखो। एक ठो कविता जिसको हम कक्षा चार या पांच में पढ़े थे। कविता चांद की अपनी अम्मा से फ़रमाइश के बारे में थी। उसई कविता को घुमा-फ़िरा के लिखे हैं।

चिठेरी: ये तुम घुमा-फ़िरा के लिखना कब छोड़ोगे? चलो सुनाओ अच्छा।
चिठेरा: लेव सुनो। सुना तो रहे हैं लेकिन डर लग रहा है कि कहीं कोई साहित्य का नोबल पुरस्कार न थमा दे।

चिठेरी: अरे तुम मस्त रहो। हमारे रहते तुम्हारे साथ कोई नाइन्साफ़ी नहीं कर सकता।
चिठेरा: सच चिठेरी तुम कित्ती अच्छी हो। ये लो कविता सुनो अब।

सटकर बैठा चांद एक दिन
अपनी मम्मी से यह बोला
करने दो अब मुझे मोहब्बत 
गाने भी दो झिंगा लाला।

मेरे नाम पे कितने ही जोड़े
रोज मोहब्बत कर जाते हैं
काला अक्षर जिनको भैंस बराबर
वे भी इलू-इलू चिल्लाते हैं।

उमर हो रही मेरी भी अब
अब मैं भी प्रेम गीत गाऊंगा
किसी सुन्दरी के चक्कर में पड़
सबसे ऊंचा आशिक कहलाऊंगा।

बिना प्रेम के सड़ी जिन्दगी
गड़बड़-सड़बड़ सी लगती है
शांत-शांत से गुजर रहे दिन
मन में खड़बड़-खड़बड़  होती है।

लोग कहेंगे इस चंदा ने
कित्ते प्रेमी मिलवाये हैं
रूखे-सूखे दिल वालों में
प्रेम बीज पनपायें हैं।

लेकिन खुद न प्रेम कर सका
है नहीं किसी के लिये मरा
मिला किसी से नहीं आज तक
नहीं उठाया किसी का नखरा।

इसलिये सुनो मम्मी अब तुम
मैं भी प्रेम गीत अब गाऊंगा
इश्क मोहब्बत में जो होता है
वह सब अब मैं फ़रमाऊंगा।

मम्मी बोली सुन मेरे बच्चे
तुमने जी मेरा हर्षाया है
तेरी बातों से लगता है अब
तू सच्ची में पगलाया है।

युग बीते मैं बस रही तरसती
कब मेरा बच्चा प्रेमगीत गायेगा
गला फ़टा  है तो क्या बेटा
हल्ले-गुल्ले में सब दब जायेगा।

कन्या के संग इधर-उधर तू
डिस्को करता खूब फ़िरेगा
तेरी और बुराई छिप जायेंगी
बस मजनूंपन का हल्ला होगा।

कन्या कैसी चाहिये तुझको
बस थोड़ा ये भी बतला दो
अभी फ़ाइनल कर लेते हैं
अखबार में विज्ञापन दे दो।

दो दिन में न्यूज छपेगी
अप्लाई कन्यायें कर देंगी
दो दिन में फ़िर छांट-छूंटकर
तेरे लिये कुड़ी-चयन कर दूंगी।

लड़की लड़की जैसी हो बस
थोड़ी उसको अंग्रेजी आती हो
जब शरमाना तो हड़काये औ
हड़काने के मौके पर शर्माती हो।

एस.एम.एस.करना आता हो
बातें चटर-पटर करती हो
झूठ बोलने से गुस्साती हो
पर बोलने पे हल्के से लेती हो।

मम्मी अब क्या तुम्हें बताऊं
कैसी लड़की चाहिये मुझको
पहला प्यार का मामला है
मैं बतलाऊं क्या कैसे तुमको।







 

मम्मी जी ने खबर भेजवाई
सब अखबारों ने विज्ञापन छापा
अनगिन सारे  बायोडाटा आये
अनगिन ने मारा सवाल का छापा।

लड़के की लम्बाई क्या है
वजन कहो कै केजी है
लड़का लड़की के साथ रहेगा
या मम्मी का हांजी-हांजी है।

बात दहेज की भी फ़रिया लें
क्या कुछ उधार चल जायेगा
वैसे तो हम सब कैश ही देंगे
क्या कुछ काइंड में चल जायेगा।

लड़की जींस पहनती है पर
क्या घूंघट की आदत डाले?
अपने सारा अल्हड़पन क्या
लाये साथ या यहीं दफ़ना ले?

जैसे आप कहेंगी वैसे ही
लड़की तो ढ़ल जायेगी
नहीं पटेगी गर लड़के से
अपना मुंह सिल निभायेगी।

लेकिन भैया लड़के की
नाप भेजा दो फ़ौरन से
सूट सिलाना है दूल्हे का
पक्का करना है दर्जी से।

ऐसे भी रिश्ते आये थे
जिनमें कुछ उल्टी बातें थी
लड़के को उस तरफ़ जाना था
उसकी ऐसी-तैसी पक्की थी।

दो बार मिलेगा मम्मी से
लड़की के हिसाब से चलना है
धीमे-धीमे से मुस्काना है
हफ़्ते में दुइऐ बार चहकना है।

ससुराल को स्वर्ग समझना है
और पत्नीजी को आकाशपरी
मम्मी की याद करी अगर
समझो रिश्ते  पर गाज गिरी।

मम्मी ने जब चंदा से पूछा
उसकी आंखे भर्राय गयीं
बोला मम्मी तुम क्या करती
काहे मोरा व्याह कराय रही।

हमने कन्या  की बात करी
बस खाली प्यार करन को
शादी की न अभी उमर मेरी
न कोई इच्छा व्याह करन की।

अभी मुझे आवारा फ़िरने दो
कुछ मौज-मजे से रहने दो
कन्या की भी तुम चिंता छोड़ो
मैं खुद जुगाड़ कुछ कर लूंगा।

कुश की शादी में जाऊंगा
कुछ सुमुखि सुंदरियां देखूंगा
बात करूंगा हौले-हौले
उनके दिल में जा बैठूंगा।

इस तरह खोजकर कन्या कोई
मैं अब लव करके ही मानूंगा
चाहे कुछ भी करना पड़ जाये
लेकिन मैं मजनू बनकर हीमानूंगा।

मम्मी ने ली उसकी बलैयां
प्यार से उसका माथा चूमा
चांद गया फ़िर ड्यू्टी पर अपनी
खिला-खिला सा उस दिन घूमा।
कविता खतम करके चिठेरे न जब आंखें खोली तो चिठेरी जा चुकी थी। उसकी एक चिट पड़ी थी। उसमें कविता की तारीफ़ और अगली बार मिलने पर पूछे जाने वाले पासवर्ड लिखे थे। चिठेरा डरा हुआ है कि कहीं चिठेरी उसके लिये कोई साहित्यिक इनाम की साजिश न करने गयी हो। दुनिया में किसी का कोई भरोसा नहीं है जी।

51 responses to “सटकर बैठा चांद एक दिन मम्मी से यह बोला”

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