Thursday, October 08, 2009

सीजर हम अब भी तेरे साथ!

http://web.archive.org/web/20140419215023/http://hindini.com/fursatiya/archives/805

सीजर हम अब भी तेरे साथ!

दोस्त लड़ रहे हैं
विवेक सिंह ने कालजयी कविता ब्रूटस ! तुम भी इनके साथ ? लिख डाली आज। आज हमारे दफ़्तर में ब्रूटस आया और ये कविता देकर निकल लिया। हमसे कहा कि अपने ब्लाग पर काहे नहीं पोस्ट करते! बोला आप कर दो अपने ब्लाग पर। जब अपना ब्लाग बनायेंगे तो पोस्ट करेंगे। अब उसकी बात कैसे टालते। अंग्रेजी नाटक का पात्र। टोंकते तो अंग्रेजी बोलने लगता। लिहाजा पोस्ट करे दे रहे हैं। आप देख लीजिये। ब्लागिंग के भी क्या झमेले हैं। कोई भी आता है अपने को ब्रूटस बताता है। सीजर बन जाता है। कविता लिखवाता है। आपको झेलाता है। दोषी हमको बताता है।

सीजर हम अब भी तेरे साथ!

सीजर हम अब भी तेरे साथ!
प्रेम का बदल गया अब रूप
निकलती बारिश के संग धूप
बने हैं दानी सभी चवन्नी चोर
हर जगह उचक रहे लत खोर।
इधर धरा का बढ़ता जाता ताप
कलपते सारे बूढ़े-बूढे मां- बाप
कौन थामेंगा उनके बच्चों के हाथ
सीजर हम अब भी तेरे साथ!
शिकायत सब बच्चों जैसी बात
कहां से सब सीखे घात-आघात
खा रहे गरम-गरम क्यों भात
बात के बीच चलाते काहे लात?
मत करो रोना और विलाप
रोने से न कहीं घटता है संताप
चलो अब फ़िर से मिला लो हाथ
सीजर हम अब भी तेरे साथ!
हां मिले हम उनसे जाकर के
देखने को बस उनकी औकात
हम अभी भी तेरे दल के साथ
निकालेंगे मिलकर उनकी बारात!
प्रेम का है वैसा ही भारी स्टाक
कि देखकर रह जाओगे अवाक
चलो अब धरो हाथ में हाथ
सीजर हम अब भी तेरे साथ!
हृदय के रोने की कर बात
दिलाकर पहली मुलाकात की बात
मत करो और मुझे तुम बोर
वर्ना खाओगे हमसे अब कन्टाप।
दिखलायेंगे नया सिनेमा आज
खिलायेंगे डोसा औ पिज्जा साथ
पैसे की बिल्कुल नहीं करेंगे बात
सीजर हम अब भी तेरे साथ!
प्रेम के अब नये नये अंदाज
नयी धुन, नये नये अंदाज
पर तुम्हारा पिकअप बड़ा है स्लो
यही है ससुर कोढ़ में खाज।
मत कर स्यापा, मत फ़ैला राग
तेरे स्यापे से लगती मुझमें आग
फ़ैलती सुलगाती जाती सबको साथ
सीजर हम अब भी तेरे साथ!
कैस्का आयेगा अपने साथ
सब चलेंगे डाले हाथ में हाथ
चिंता तुम मती करो फ़्रेंड
सब षणयंत्रियों की बजेगी बैंड।
चलो अब चाय पियो हमारे साथ
संग में डबल समोसा होगा साथ
कैसियस, सिसरो से मिलवायेंगे हाथ
सीजर हम अब भी तेरे साथ!

26 responses to “सीजर हम अब भी तेरे साथ!”

  1. anil pusadkar
    सीज़र मे जरूर कोई बात रही होगी,जभी तो गली-गली सीज़र बनाने वाली फ़ेक्ट्रियां खुल गई है।हम तो ननिहाल मे पैदा हुये और उस समय नर्सिंग होम का उतना जोर नही था वर्ना हम ये नही कहते सीज़र हम अब भी तेरे साथ है,बल्कि लिख देते हम भी सीज़र हैं।
    अनिल भाई:सीजर में खाली यही एक बात रही है कि वो ससुरा हमारे सिलेबस में था और शेक्सपियर विलियम की किताब में भी। इसी को कहते हैं करेला ऊपर से नीम चढ़ा! :)
  2. अर्कजेश
    ये सीजर भी बडा खतरनाक शब्द है । सब हैं सीजर के साथ तो कैसे मिलेंगे हाथ ।
    शेक्सपियर वाला सीजर हो तो बात और है !
    अर्कजेश भैया बस समझ लेव शेक्सपियरै वाला है। मौका देखकर हमारी किताबों में घुस आया और विवेक के बहाने ब्लाग में। आफ़त है न! ससुर एक कवितानुमा झेलनी पड़ गयी। :)
  3. arvind mishra
    कोई सीजेरियन मामला लगता है -मेच्यूरिटी के पहले का !
    अरविन्दजी: हम न जानते हैं ये सब सीजेरियन मामले। आप कह सकते हो मेच्युरिटी से पहले का मामला। अनुभवी हैं! :)
  4. अमर

    यह कौन सा सीज़र है, जी..
    ज़ूलियस वाला या कानपुर घासमँडी वाला ?
    स्पष्ट किया जाय, तद्पश्चात टिप्पणी देना सँभव हो पायेगा ।

    डा.साहब: इस सीजर के बारे में हम निजता के उल्लंघन से बचने के लिये कुछ बता न सकेंगे। वैसे आप ऊपर की बातों से समझने का कोशिश कर के डाल दीजिये। जो होगा देखा जायेगा। टिप्पणी का क्या है। आती जाती हैं। कभी भी कर दीजिये। आप तो घर के आदमी हैं। :)
  5. समीर लाल
    सीज़र जीवन में पहली बार कुछ जाना पहचाना लग रहा है, जाने कहाँ मिला हूँ, याद सा नहीं आ रहा. :)
    समीर भाई: सीजर बता रहा था सीधे कनाडा से आया है। वहां किन्ही समीरलाल के कार्यक्रम में मेज-कुर्सी संभालने के काम लगा था। बता तो यह भी रहा था कि समीरलाल बोले- बेटा पहले वहां हमारे ब्लाग पर टिपिया के और फ़िर नास्ता करके आओ तब ये सब समेटना। :)
  6. रंजना
    कविता तो समझ में आ गयी और बहुतै मनभावन लगी,पर ई सीजर कौन हैं,बिल्कुलै नहीं बुझाया…….

    रंजनाजी: सीजर के बारे में आप ई समझ लीजिये कि ब्लाग जगत का अनामी ब्लागर है। सब कोई है और कोई नहीं है।
    :)
  7. विवेक सिंह
    हम और आप ही लगता है कमजोर ब्लॉगर मिले हैं इन रोमनों को,
    सीजर ने हमसे जबरदस्ती ठिलवा दी कविता और निकल लिया,
    ब्रूटस ने आपको जा पकड़ा कमजोर समझकर :)
    विवेक: कमजोर नहीं उनके दुख को समझने वाला। हमसे ब्रूटस जिस तरह बात कर रहा था उससे लग रहा था कि बेचारा कोई ब्लागर अपनी शिकायत कर रहा है हमसे कि उसकी पोस्ट की हम चर्चा काहे नहीं करते। लेकिन जब उसने अपनी कविता दी तो फ़िर हमने कहा इसे तो पोस्ट कर ही देना चाहिये। :)
  8. dhiru singh
    यह सीजरवा छा गया गुरु चेले के बीच . गुरु ने सीजर याद किया और चेले ने ब्रुट्स . कहीं रुस्तम और सोहराब तो अगली पोस्ट में होंगे क्या
    धीरूजी: रुस्तम और सोहराब जब अर्जी लगायेंगे तो उनकी पीड़ा भी देख ली जायेगी:)
  9. shefali pande
    सीसर के इस चक्कर में
    सब गए किल्यो को भूल
    मत भूलें बस इतना लेकिन
    थी वही सब झगडों की मूल
    शेफ़ाली जी: मास्टरनी जी तनिक एक बार सारा मामला समझाइये न फ़िर से। :)
  10. Saagar
    केतना तो ज्ञान है आपको और ताज्जुब है हर कला में महारथ! बातो त ऐसा बानाते है जैसे जैसे गाँव का गंवार, समझदार भी उतने हैं जैसे मंथर चाल से चलता समंदर…
    सागर भाई: आप भी मौज लेने लगे क्रांति गीत लिखकर:)
  11. arvind mishra
    मेच्यूरिटी की मैटेर्निटी अनूप जी -सारे झाम वही से तो अंकुरण पाते हैं !
    अरविंदजी: अब आप जो कहें सब ठीक है। और का कहें! :)
  12. दिनेशराय द्विवेदी
    अरे! क्या कविता है? वाह भाई वाह! बस बहरी नहीं है।
    द्विवेदीजी: शुक्रिया। बहरी कविता आती ही नहीं अपन को। सो ऐसे ही झेलें। :)
  13. चंद्र मौलेश्वर
    ई सब तो ठीक है पर इन सब के बीच किलियोपात्रा का क्या भया…….कोई बताएगा:)
    चंद्र मौलेश्वर: शुक्रिया। किलियोपात्रा से संपर्क होते ही आपको मिलवायेंगे। :)
  14. पं. डी.के.शर्मा "वत्स"
    अब कुछ कुछ समझ में आ रहा है कि ये ब्रूटस और सीजर की क्या राम कहानी चल रही है :)
    पं.डी.के.शर्मा जी: आप ज्ञानी हैं। हमको तो कुच्छ समझ में नहीं आ रहा। :)
  15. satish saxena
    बढ़िया जुगल बंदी है …
    सतीश जी शुक्रिया। :)
  16. ताऊ रामपुरिया लट्ठ वाले
    भाई ये रहस्यवादी कविता बाजी चल रही है अपने लट्ठ और भैंस के समझ के बाहर सो कुछ कहा नही जा सकता. :)
    रामराम.
  17. seema gupta
    सीजर इ कौन भा जी……कविता तो धांसू है
    regards
  18. प्रवीण त्रिवेदी...प्राइमरी का मास्टर
    अरे ! हमें पूरा भरोसा है ” ब्रूटस अब भी सीजर के ही साथ है और आगे रहेगा भी ”
    बकिया ये चेला काहे गुरु पे इल्जाम लगा रहे ?
    अभी एक ठो अभी जांच कमेटी भिजवाई रहें हैं!

    फुरसतिया जी ने सही कहा यह चिट्ठाकारी तो निन्यानवे का फेर है…….और हम पड़े 99 के चक्कर में

  19. dr anurag
    कुल जमा कितने सीजर हुए जी टोटल करके ?
  20. वन्दना अवस्थी दुबे
    हे राम!! क्या-क्या हो रहा है!! विवेक जी ब्रूट्स पर लिख रहे हैं तो आप सीज़र पर!! चलो किसी बहाने से सही, शेक्सपियर भी घुस ही गये ब्लौग-जगत में..
  21. alpver06
    कभी कभी पूरबिया बोली पछादिया वालों के समझ नहीं आती !
    पर अब के समझ आ गयी..
  22. Alpana Verma
    कभी कभी पूरबिया बोली पछादिया वालों के समझ नहीं आती !
    पर अब के समझ आ गयी..
  23. गौतम राजरिशी
    देव, जबरदस्त….ये इस “वर्ना खाओगे हमसे अब कन्टाप” पे इतनी जोर की हँसी निकल पड़ी कि अगल-बगल बेड वाले आश्चर्य से देख रहे हैं हमें….
    अभी विवेक की अद्‍भुत कृति की झलक देख कर आ रहा हूँ।
    लेकिन इस तोले भर-भर के ठहाकों के लिये दिल से नवाजिश-करम-शुक्रिया-मेहरबानी…
  24. kishore ghildiyal
    vakai hum bhi is ceasar ke saath hain
  25. Arshia
    बहुत बढिया जुगलबंदी चल रही है। लगे रहिए।
    ——————
    और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
    एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।
  26. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
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