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विवेक सिंह ने कालजयी कविता ब्रूटस ! तुम भी इनके साथ ?
लिख डाली आज। आज हमारे दफ़्तर में ब्रूटस आया और ये कविता देकर निकल लिया।
हमसे कहा कि अपने ब्लाग पर काहे नहीं पोस्ट करते! बोला आप कर दो अपने ब्लाग
पर। जब अपना ब्लाग बनायेंगे तो पोस्ट करेंगे। अब उसकी बात कैसे टालते।
अंग्रेजी नाटक का पात्र। टोंकते तो अंग्रेजी बोलने लगता। लिहाजा पोस्ट करे
दे रहे हैं। आप देख लीजिये। ब्लागिंग के भी क्या झमेले हैं। कोई भी आता है
अपने को ब्रूटस बताता है। सीजर बन जाता है। कविता लिखवाता है। आपको झेलाता
है। दोषी हमको बताता है।
सीजर हम अब भी तेरे साथ!
By फ़ुरसतिया on October 8, 2009
सीजर हम अब भी तेरे साथ!
सीजर हम अब भी तेरे साथ!
प्रेम का बदल गया अब रूप
निकलती बारिश के संग धूप
बने हैं दानी सभी चवन्नी चोर
हर जगह उचक रहे लत खोर।
इधर धरा का बढ़ता जाता ताप
कलपते सारे बूढ़े-बूढे मां- बाप
कौन थामेंगा उनके बच्चों के हाथ
सीजर हम अब भी तेरे साथ!
शिकायत सब बच्चों जैसी बात
कहां से सब सीखे घात-आघात
खा रहे गरम-गरम क्यों भात
बात के बीच चलाते काहे लात?
मत करो रोना और विलाप
रोने से न कहीं घटता है संताप
चलो अब फ़िर से मिला लो हाथ
सीजर हम अब भी तेरे साथ!
हां मिले हम उनसे जाकर के
देखने को बस उनकी औकात
हम अभी भी तेरे दल के साथ
निकालेंगे मिलकर उनकी बारात!
प्रेम का है वैसा ही भारी स्टाक
कि देखकर रह जाओगे अवाक
चलो अब धरो हाथ में हाथ
सीजर हम अब भी तेरे साथ!
हृदय के रोने की कर बात
दिलाकर पहली मुलाकात की बात
मत करो और मुझे तुम बोर
वर्ना खाओगे हमसे अब कन्टाप।
दिखलायेंगे नया सिनेमा आज
खिलायेंगे डोसा औ पिज्जा साथ
पैसे की बिल्कुल नहीं करेंगे बात
सीजर हम अब भी तेरे साथ!
प्रेम के अब नये नये अंदाज
नयी धुन, नये नये अंदाज
पर तुम्हारा पिकअप बड़ा है स्लो
यही है ससुर कोढ़ में खाज।
मत कर स्यापा, मत फ़ैला राग
तेरे स्यापे से लगती मुझमें आग
फ़ैलती सुलगाती जाती सबको साथ
सीजर हम अब भी तेरे साथ!
कैस्का आयेगा अपने साथ
सब चलेंगे डाले हाथ में हाथ
चिंता तुम मती करो फ़्रेंड
सब षणयंत्रियों की बजेगी बैंड।
चलो अब चाय पियो हमारे साथ
संग में डबल समोसा होगा साथ
कैसियस, सिसरो से मिलवायेंगे हाथ
सीजर हम अब भी तेरे साथ!
Posted in कविता, बस यूं ही | 26 Responses
अनिल भाई:सीजर में खाली यही एक बात रही है कि वो ससुरा हमारे सिलेबस में था और शेक्सपियर विलियम की किताब में भी। इसी को कहते हैं करेला ऊपर से नीम चढ़ा!
शेक्सपियर वाला सीजर हो तो बात और है !
अर्कजेश भैया बस समझ लेव शेक्सपियरै वाला है। मौका देखकर हमारी किताबों में घुस आया और विवेक के बहाने ब्लाग में। आफ़त है न! ससुर एक कवितानुमा झेलनी पड़ गयी।
अरविन्दजी: हम न जानते हैं ये सब सीजेरियन मामले। आप कह सकते हो मेच्युरिटी से पहले का मामला। अनुभवी हैं!
यह कौन सा सीज़र है, जी..
ज़ूलियस वाला या कानपुर घासमँडी वाला ?
स्पष्ट किया जाय, तद्पश्चात टिप्पणी देना सँभव हो पायेगा ।
डा.साहब: इस सीजर के बारे में हम निजता के उल्लंघन से बचने के लिये कुछ बता न सकेंगे। वैसे आप ऊपर की बातों से समझने का कोशिश कर के डाल दीजिये। जो होगा देखा जायेगा। टिप्पणी का क्या है। आती जाती हैं। कभी भी कर दीजिये। आप तो घर के आदमी हैं।
समीर भाई: सीजर बता रहा था सीधे कनाडा से आया है। वहां किन्ही समीरलाल के कार्यक्रम में मेज-कुर्सी संभालने के काम लगा था। बता तो यह भी रहा था कि समीरलाल बोले- बेटा पहले वहां हमारे ब्लाग पर टिपिया के और फ़िर नास्ता करके आओ तब ये सब समेटना।
रंजनाजी: सीजर के बारे में आप ई समझ लीजिये कि ब्लाग जगत का अनामी ब्लागर है। सब कोई है और कोई नहीं है।
सीजर ने हमसे जबरदस्ती ठिलवा दी कविता और निकल लिया,
ब्रूटस ने आपको जा पकड़ा कमजोर समझकर
विवेक: कमजोर नहीं उनके दुख को समझने वाला। हमसे ब्रूटस जिस तरह बात कर रहा था उससे लग रहा था कि बेचारा कोई ब्लागर अपनी शिकायत कर रहा है हमसे कि उसकी पोस्ट की हम चर्चा काहे नहीं करते। लेकिन जब उसने अपनी कविता दी तो फ़िर हमने कहा इसे तो पोस्ट कर ही देना चाहिये।
धीरूजी: रुस्तम और सोहराब जब अर्जी लगायेंगे तो उनकी पीड़ा भी देख ली जायेगी।
सब गए किल्यो को भूल
मत भूलें बस इतना लेकिन
थी वही सब झगडों की मूल
शेफ़ाली जी: मास्टरनी जी तनिक एक बार सारा मामला समझाइये न फ़िर से।
सागर भाई: आप भी मौज लेने लगे क्रांति गीत लिखकर।
अरविंदजी: अब आप जो कहें सब ठीक है। और का कहें!
द्विवेदीजी: शुक्रिया। बहरी कविता आती ही नहीं अपन को। सो ऐसे ही झेलें।
चंद्र मौलेश्वर: शुक्रिया। किलियोपात्रा से संपर्क होते ही आपको मिलवायेंगे।
पं.डी.के.शर्मा जी: आप ज्ञानी हैं। हमको तो कुच्छ समझ में नहीं आ रहा।
सतीश जी शुक्रिया।
रामराम.
regards
बकिया ये चेला काहे गुरु पे इल्जाम लगा रहे ?
अभी एक ठो अभी जांच कमेटी भिजवाई रहें हैं!
फुरसतिया जी ने सही कहा यह चिट्ठाकारी तो निन्यानवे का फेर है…….और हम पड़े 99 के चक्कर में
पर अब के समझ आ गयी..
पर अब के समझ आ गयी..
अभी विवेक की अद्भुत कृति की झलक देख कर आ रहा हूँ।
लेकिन इस तोले भर-भर के ठहाकों के लिये दिल से नवाजिश-करम-शुक्रिया-मेहरबानी…
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और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।