http://web.archive.org/web/20110109023343/http://hindini.com/fursatiya/archives/1343
अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
…जिन्दगी ऐसी नदी है जिसमें देर तक साथ बह नहीं सकते
कल दिन भर पुराने कैसेट खोजकर कवितायें सुनी। स्व. रमानाथ अवस्थी जी
की एक कविता मैं बहुत दिनों से खोज रहा था। कैसेट मिल नहीं रहा था बहुत
दिनों से। कल एक बार फ़िर खोजा तब मिल ही गया। इस कैसेट में स्व. रमानाथ
अवस्थी जी की कविता :
उनकी ही आवाज में है। यह मैंने उनसे करीब बारह-तेरह साल पहले शाहजहांपुर के कवि सम्मेलन में सुनी थी। उस समय तक उनकी बाई पास सर्जरी हो चुकी थी। गाकर गीत कम पढ़ने लगे थे। स्वास्थ्य अच्छा नहीं था। लेकिन हमारे आग्रह पर वे शाहजहांपुर आये। और गीतों के अलावा यह गीत उन्होंने गाकर पढ़ा था। तबसे मेरे मन में बसा है उनका यह गीत। कैसेट इधर-उधर होते रहते हैं। इसलिये मैं इसे सुरक्षित रखने की मंशा से यहां पोस्ट कर रहा हूं। सुनिये शायद आपको भी अच्छा लगे।
कविता सुनाने से पहले दो शब्द कहने का मन है। कविता लिखना जितना कठिन है उससे कठिन है उसके साथ होना। हमारे मंच पर और हमारी आडियेन्स में बहुत अच्छे-अच्छे लोग विराजमान हैं। आप सबका मैं कविता के इस क्षण में स्वागत करता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि आपका अधिक से अधिक समय शब्द के साथ कटे। शब्द कभी हमको आपको धोखा नहीं देता। मैं आपसे एक बड़े दिल से प्रार्थना कर रहा हूं। आपका शहर (शाहजहांपुर) जहां एक बलिदानी शहर है वहीं पर इस शहर के कुछ कवियों ने अपनी कविता के द्वारा इस शहर को बहुत बड़ा नाम दिया है। दामोदर स्वरूप ’विद्रोही’ , अग्निवेश शुक्ल आपने इनको अवश्य ही सुना होगा। मैं बहुत प्रसन्न हूं कि श्रोताओं में आपके शहर के इतने गण्यमान कवि उपस्थित हैं। आप सबको मैं अपना स्नेह प्रदान करता हूं।
आप मुझको शान्ति से सुनेंगे तो मुझको बड़ा अच्छा लगेगा क्योंकि दिल से जो सुना जाता है वही भजन भी होता है और वही शब्द भी होता है। ये जो ताली या जो आशीर्वाद के बहाने जो ताली बजवाने का सिलसिला है, क्षमा करिये ये शुद्ध कवि को शोभा नहीं देता। जो कुछ मेरे पास शब्द हैं मैं आपको दे रहा हूं। आप मेरे पास शब्दों के पास होने की कृपा करें। बस! इतना ही मैं निवेदन करता हूं। आप अपने हाथों को कष्ट न दें। मैं आपसे बिल्कुल नहीं कहूंगा कि आप ताली बजाइये, आप मुझे आशीर्वाद दीजिये। ये मैं आपसे आग्रह बिल्कुल नहीं करूंगा। मेरा आग्रह है कि अगर आप मुझको सुनते हैं तो यही मेरे लिये आपका सबसे बड़ा आदर होगा,प्रेम होगा। मैं पहले कुछ पंक्तियां आपको सुना रहा हूं। उसके बाद दो-एक गीत आपको छोटे-छोटे सुनाना चाहता हूं। अगर आपका हिसाब-मेरा हिसाब ठीक रहा। पहले कुछ पंक्तियां हैं:
आज इस वक्त आप हैं,हम हैं
कल कहां होंगे कह नहीं सकते।
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।
वक्त मुश्किल है कुछ सरल बनिये
प्यास पथरा गई तरल बनिये।
जिसको पीने से कृष्ण मिलता हो,
आप मीरा का वह गरल बनिये।
जिसको जो होना है वही होगा,
जो भी होगा वही सही होगा।
किसलिये होते हो उदास यहाँ,
जो नहीं होना है नहीं होगा।।
आपने चाहा हम चले आये,
आप कह देंगे हम लौट जायेंगे।
एक दिन होगा हम नहीं होंगे,
आप चाहेंगे हम न आयेंगे॥
रमानाथ अवस्थी
संबंधित कड़ियां:
1. तुम मेरे होकर रहो कहीं…
2.मेरे पंख कट गये हैं वरना मैं गगन को गाता
आज इस वक्त आप हैं लेकिन,
कल कहां होंगे कह नहीं सकते।
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।
उनकी ही आवाज में है। यह मैंने उनसे करीब बारह-तेरह साल पहले शाहजहांपुर के कवि सम्मेलन में सुनी थी। उस समय तक उनकी बाई पास सर्जरी हो चुकी थी। गाकर गीत कम पढ़ने लगे थे। स्वास्थ्य अच्छा नहीं था। लेकिन हमारे आग्रह पर वे शाहजहांपुर आये। और गीतों के अलावा यह गीत उन्होंने गाकर पढ़ा था। तबसे मेरे मन में बसा है उनका यह गीत। कैसेट इधर-उधर होते रहते हैं। इसलिये मैं इसे सुरक्षित रखने की मंशा से यहां पोस्ट कर रहा हूं। सुनिये शायद आपको भी अच्छा लगे।
आज इस वक्त आप हैं लेकिन, कल कहां होंगे कह नहीं सकते।
कविता सुनाने से पहले दो शब्द कहने का मन है। कविता लिखना जितना कठिन है उससे कठिन है उसके साथ होना। हमारे मंच पर और हमारी आडियेन्स में बहुत अच्छे-अच्छे लोग विराजमान हैं। आप सबका मैं कविता के इस क्षण में स्वागत करता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि आपका अधिक से अधिक समय शब्द के साथ कटे। शब्द कभी हमको आपको धोखा नहीं देता। मैं आपसे एक बड़े दिल से प्रार्थना कर रहा हूं। आपका शहर (शाहजहांपुर) जहां एक बलिदानी शहर है वहीं पर इस शहर के कुछ कवियों ने अपनी कविता के द्वारा इस शहर को बहुत बड़ा नाम दिया है। दामोदर स्वरूप ’विद्रोही’ , अग्निवेश शुक्ल आपने इनको अवश्य ही सुना होगा। मैं बहुत प्रसन्न हूं कि श्रोताओं में आपके शहर के इतने गण्यमान कवि उपस्थित हैं। आप सबको मैं अपना स्नेह प्रदान करता हूं।
आप मुझको शान्ति से सुनेंगे तो मुझको बड़ा अच्छा लगेगा क्योंकि दिल से जो सुना जाता है वही भजन भी होता है और वही शब्द भी होता है। ये जो ताली या जो आशीर्वाद के बहाने जो ताली बजवाने का सिलसिला है, क्षमा करिये ये शुद्ध कवि को शोभा नहीं देता। जो कुछ मेरे पास शब्द हैं मैं आपको दे रहा हूं। आप मेरे पास शब्दों के पास होने की कृपा करें। बस! इतना ही मैं निवेदन करता हूं। आप अपने हाथों को कष्ट न दें। मैं आपसे बिल्कुल नहीं कहूंगा कि आप ताली बजाइये, आप मुझे आशीर्वाद दीजिये। ये मैं आपसे आग्रह बिल्कुल नहीं करूंगा। मेरा आग्रह है कि अगर आप मुझको सुनते हैं तो यही मेरे लिये आपका सबसे बड़ा आदर होगा,प्रेम होगा। मैं पहले कुछ पंक्तियां आपको सुना रहा हूं। उसके बाद दो-एक गीत आपको छोटे-छोटे सुनाना चाहता हूं। अगर आपका हिसाब-मेरा हिसाब ठीक रहा। पहले कुछ पंक्तियां हैं:
आज इस वक्त आप हैं,हम हैं
कल कहां होंगे कह नहीं सकते।
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।
वक्त मुश्किल है कुछ सरल बनिये
प्यास पथरा गई तरल बनिये।
जिसको पीने से कृष्ण मिलता हो,
आप मीरा का वह गरल बनिये।
जिसको जो होना है वही होगा,
जो भी होगा वही सही होगा।
किसलिये होते हो उदास यहाँ,
जो नहीं होना है नहीं होगा।।
आपने चाहा हम चले आये,
आप कह देंगे हम लौट जायेंगे।
एक दिन होगा हम नहीं होंगे,
आप चाहेंगे हम न आयेंगे॥
रमानाथ अवस्थी
संबंधित कड़ियां:
1. तुम मेरे होकर रहो कहीं…
2.मेरे पंख कट गये हैं वरना मैं गगन को गाता
Posted in कविता, पाडकास्टिंग, मेरी पसंद | Tagged जिन्दगी, नदी, बह, रमानाथ अवस्थी, साथ | 31 Responses
पहले सुना हुआ था पर भूल सा चला था. आज सुनवाने के लिए आभार.
सफ़र की थकान उतारने में सहायक रही है ये!
मैने अपने लिये ये उठाया:
“किसलिये होते हो उदास यहाँ,
जो नहीं होना है नहीं होगा।।”
इस कवि सम्मेलन को सुनने के लिये आप शाहजहापुर गये थे.. सही है..
बड़ा अच्छा लगा .. आभार !
bahut sundar khayal he aap ke
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com
प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.
आप कह देंगे हम लौट जायेंगे।
एक दिन होगा हम नहीं होंगे,
आप चाहेंगे हम न आयेंगे॥
क्या कहूं रमानाथ अवस्थी जी के इस गीत पर? आभार.
“जिसको जो होना है वही होगा,
जो भी होगा वही सही होगा।
किसलिये होते हो उदास यहाँ,
जो नहीं होना है नहीं होगा।।”
शब्द कभी हमको आपको धोखा नहीं देता।
दिल से जो सुना जाता है वही भजन भी होता है और वही शब्द भी होता है.
आज इस वक्त आप हैं,हम हैं
कल कहां होंगे कह नहीं सकते।
‘वक्त मुश्किल है कुछ सरल बनिये
प्यास पथरा गई तरल बनिये।
जिसको पीने से कृष्ण मिलता हो,
आप मीरा का वह गरल बनिये।’
बहुत सटीक!
उनका काव्य पाठ बहुत पसंद आया .आभार अनूप जी इस प्रस्तुति के लिए.
कल कहां होंगे कह नहीं सकते।
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।
आपने चाहा हम चले आये,
आप कह देंगे हम लौट जायेंगे।
एक दिन होगा हम नहीं होंगे,
आप चाहेंगे हम न आयेंगे॥
bantane ka aabahar…..
रमानाथ अवस्थी के गीतों को दीवानगी की हद तक सुना, गाया, गुनगुनाया है !
उनके स्वर में तो बस यहीं सुन पाता हूँ ! हम अभागों ने उन्हें साक्षात कहां सुना है !
आभार ।
धन्यवाद
कल कहां होंगे कह नहीं सकते।
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।
आपने चाहा हम चले आये,
आप कह देंगे हम लौट जायेंगे।
एक दिन होगा हम नहीं होंगे,
आप चाहेंगे हम न आयेंगे॥
प्यास पथरा गई तरल बनिए
एकदम अपनाएबुल बात है।
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