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सुबह जल्दी उठने के बवाल
By फ़ुरसतिया on March 28, 2012
आज सुबह जरा जल्दी उठ गये।
अरे एकदम से थोड़ी न उठे। सब काम आहिस्ते-आहिस्ते किये।
पहले जगे! फ़िर आंख खोली। पलक झपकाई। पहले सोचा उठें। फ़िर सोचा थोड़ी देर और सो लें। इसके बाद मध्यम मार्ग अपनाने का विचार बनाया कि जग जायें लेकिन उठे न!
फ़िर सोचा कि नहीं उठ ही जायें। लेकिन फ़िर बहुमत लेटे रहने की तरफ़ हो गया। पर फ़ाइनली कुछ समर्थन जगने वालों का तगड़ा हो गया सो फ़ाइनली उठ ही गये।
उठने के बाद सोचा कि अब क्या किया जाये? व्हाट नेक्स्ट टाइप!
सोचा कि टहलने चला जाये।
निकल लिये।
सबेरा हो गया था। लोग सड़कों पर टहल रहे थे। कोई अकेले कोई किसी के साथ। कई मियां-बीबी टाइप के जीव भी दिखे।
सोचा सूरज भी कहीं टहलता दिखेगा। गुडमार्निंग कर लेंगे। लेकिन सूरज कहीं दिखा नहीं। मन किया उसके हाजिरी रजिस्टर में लाल पेन से अनुपस्थित मार्क कर दें। फ़िर सोचा छोड़ो कहीं फ़ंस गया होगा। रोज का मिलना-जुलना है। छोड़ दिया।
इसी भाईचारे के चक्कर में अनुशासन गड़बड़ाता है। लेकिन क्या करें भाई! कुछ तो लिहाज करना पड़ता है न अपनों का!
आज टहलने के लिये जरा अलग रास्ते निकले। आगे नाला मिला। नाले के किनारे हनुमान मंदिर। हनुमानजी का मुंह नाले की तरफ़। नाले की बदबू से बचने के लिये ही लगता है हनुमान जी मुंह कस के बंद करके फ़ुला लिये होंगे। सांस तो पक्का नहीं लेते होंगे। भक्तगण नाले की तरफ़ पीठ किये हनुमान जी को प्रणाम करके निकल ले रहे थे।
आगे दो जोड़ी बच्चे साइकिलें सड़क पर टिकाये गपिया रहे थे। बड़ी जल्दी उठ जाते हैं बच्चे। कहावत के अनुसार स्वस्थ, धनी और बुद्धिमान बनेंगे। लेकिन ऐसा होता नहीं। दुनिया के तमाम गरीब,बीमार लोग जल्दी सोते हैं और जल्दी उठते हैं। इसके बावजूद अस्वस्थ, गरीब और बेवकूफ़ बनें रहते हैं। अब इस कहावत के खिलाफ़ कौन सी अदालत में मुकदमा ठोंका जाये।
सड़क के एक किनारे मकान पर ब्यूटी पार्लर का बोर्ड लगा था। उसी के नीचे लिखा था -यहां टुपट्टे पीको किये जाते हैं।
ब्यूटी पार्लर में टुपट्टे पीको होने की बात ऐसी ही लगी जैसे कोई कहे कि संसद में बवाल किया जाता है। यहां संसद की अवमानना का मेरी कोई मंशा नहीं है। हम तो संसद को एक पवित्र मंदिर मानते हैं। अभी एक मंदिर के बारे में बताया भी।
आगे एक बीच की उमर का जवान एक बच्चे को धमकी दे रहा था- अब आगे से जो पेड़ की टहनी तोड़ी तो तेरे हाथ पैर तोड़ देंगे।
पता नहीं क्या मजा मिलेगा उस बीच की उमर वाले आदमी को बच्चे के हाथ-पैर तोड़कर लेकिन जिस तरह दोनों निर्लिप्त भाव से वहां से इधर-उधर हुये उससे लगा नहीं कि दोनों में से कोई भी अपनी जिम्मेदारी को लेकर गम्भीर हो।
वैसे भी पेड़ सड़क पर था। अतिक्रमण में पेड़ और उसका तथाकथित मालिक दोनों पकड़े जा सकते हैं लेकिन .. अब छोड़िये आप से क्या बतायें आप खुदै समझदार हैं( मजा आया न फ़्री में समझदारी का खिताब मिलने से)
सड़क पर मार-पीट की बात से घबराकर हम लौट लिये। फ़ुटकर पैसे साथ लेकर गये थे। अगर चाय की दुकान खुली होती तो उसके सामने से गुजरते हुये पियूं की आगे बढूं की दुविधा का झुला झूलते हुये बिना पिये ही वापस लौटते। दुविधा के झूले में झूलने से स्पीड थोड़ा हल्की रहती। लेकिन दुकान बन्द थी। सो कमरे में ही वापस लौटने का निर्णय लिया। थोड़ा सरपट वापस आये।
इस बीच सर झुकाये हुये टहलने से उकताकर हमने सर ऊपर किया तो देखा कि आसमान को चीरती हुई एक तेज चीज आगे जा रही है। हमसे बहुत ऊपर थी सो देख तो नहीं पाये लेकिन उसके पीछे से सफ़ेद धुंआ निकल रहा था। क्या पता कि हमसे डरकर उसकी हवा निकल गयी हो और तेज भाग रही हो वह आसमानी चीज। अपरिचय के चलते उसके पता भी नहीं होगा कि हमसे उसके डरने की कोई जरूरत तो नहीं थी। लेकिन किसी की सोच पर कौन सवारी कर सकता है भला। है न!
कमरे में लौटकर टेलीविजन खोलकर समाचार सुनने लगा। पता चला देश की सुरक्षा तैयारी पस्त है। जनरल साहब बताइन कि गोला बारूद नहीं है। हमें लगा कि हम लोगों के ऊपर तोहमत लगा रहे हैं। जबकि हम लोगों ने इस बार पिछले तमाम रिकार्ड तोड़-फ़ोड़ के सप्लाई की है।
कल भी जनरल साहब ने बताया था कि उनको किसी ने तगड़ी घूस देने की कोशिश की थी। जिससे वे इत्ते हक्के-बक्के रह गये थे कि कुछ समझ में ही न आया उनको आगे क्या कार्यवाही की जाये।
जनरल साहब के हक्के-बक्के रह जाने बात पर याद आया कि सरकारी विभागों में गोपनीय आख्या में एक कालम होता है – तनाव के समय कार्य करने की क्षमता ( capacity to work under tension)| उस खाते में जनरल साहब के नम्बर कम हो जायेंगे फ़िर तो।
हमें लगा कि लगता है ये किसी ऐसे अधिकारी के बयान हैं जो अपनी नौकरी खत्म नहीं कर बल्कि आज ही भर्ती हुआ है। अपने यहां क्या सरकारी क्या प्राइवेट जहां भी लोग प्रभावी निर्णय लेने की स्थित में हैं उनको लोग प्रलोभन देते हैं। समाज में रहने वाले हर इंसान के अनुभव हैं ये। ये तो नमस्कारी-नमस्कारा टाइप वार्तालाप हैं।
आप जैसा कहेंगे वैसा हो जायेगा/ कभी प्रोग्राम बनाकर आइये/ ये तो हमारी कम्पनी की पालिसी है/ आप जैसा अफ़सर नहीं देखा/थोड़ा ये कर दीजिये/करा दीजिये/ आदि-इत्यादि, वगैरह-वगैरह। इस तरह के वार्तालाप तो हेलो/हाय सरीखे हैं। लोग आपका इम्तहान लेते हैं। आप जैसे नम्बर पाते हैं उसी के हिसाब से आगे किस्से बढ़ते हैं। आप अगर ईमानदार हैं और इस तरह की बात सुनकर हक्के-बक्के रह जाते हैं तो लगता है कि आपने कहीं और नौकरी की है।ईमानदारी कोई गर्व का विषय नहीं है। यह तो अपरिहार्य स्थिति है। ईमानदार होने का मतलब कोई किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाना थोड़ी है!
दूसरी बात कि यह भी बड़ी बचकानी लगी कि जब जनरल साहब की जन्मतिथि का मामला गड़बड़ा गया तो बता रहे हैं कि सेना के हाल खस्ता हैं। तो इत्ते दिन क्या करते रहे साहब जी आप?
जनरल साहब का जन्मदिन विवाद भी मजे में रहा। देश में साठ साल होने आये जितने भी अधिकारी हैं उनमें से आधे से ज्यादा की जन्मतिथि उनकी असली जन्मतिथि से अलग होगी। अब अगर हर अधिकारी सुप्रीम कोर्ट भागे तो कोर्ट के बारह तो बजे ही हैं मुकदमों की संख्या के चलते। तेरह -चौदह भी बज जायें।
जन्मतिथि वाले मसले पर भी जनरल साहब का बयान आया था कि उनके अधिकारी ने कहा था अभी जनरल बन जाओ आगे ठीक करवा लेना। अभी जिद करोगे तो जनरल न बन पाओगे। क्या इससे निष्कर्ष निकाला जाये कि साहब जी पद के प्रलोभन में अपनी प्रतिष्ठा भूल गये।
हम जनरल साहब से कोई व्यक्तिगत तौर पर परिचित नहीं हैं। लगे हाथ उनकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की इज्जत की भी करते हैं। लेकिन जिस तरह की खबरें सुनने में आईं उससे लगा कि अपन के जनरल साहब थोड़े छुई-मुई टाइप के है। थोड़ा जल्दी हक्के-बक्के हो जाते हैं।
ओह कहां से चले थे कहां पहुंच गये। भला हो मेस के लोगों का जो बेफ़िजूल की बहस से बचाकर शानदार चाय का साथ मुहैया करा गया।
चाय की चुस्की लेते हुये सोच रहे थे कि सुबह जल्दी उठना भी एक बवाल है।
अरे एकदम से थोड़ी न उठे। सब काम आहिस्ते-आहिस्ते किये।
पहले जगे! फ़िर आंख खोली। पलक झपकाई। पहले सोचा उठें। फ़िर सोचा थोड़ी देर और सो लें। इसके बाद मध्यम मार्ग अपनाने का विचार बनाया कि जग जायें लेकिन उठे न!
फ़िर सोचा कि नहीं उठ ही जायें। लेकिन फ़िर बहुमत लेटे रहने की तरफ़ हो गया। पर फ़ाइनली कुछ समर्थन जगने वालों का तगड़ा हो गया सो फ़ाइनली उठ ही गये।
उठने के बाद सोचा कि अब क्या किया जाये? व्हाट नेक्स्ट टाइप!
सोचा कि टहलने चला जाये।
निकल लिये।
सबेरा हो गया था। लोग सड़कों पर टहल रहे थे। कोई अकेले कोई किसी के साथ। कई मियां-बीबी टाइप के जीव भी दिखे।
सोचा सूरज भी कहीं टहलता दिखेगा। गुडमार्निंग कर लेंगे। लेकिन सूरज कहीं दिखा नहीं। मन किया उसके हाजिरी रजिस्टर में लाल पेन से अनुपस्थित मार्क कर दें। फ़िर सोचा छोड़ो कहीं फ़ंस गया होगा। रोज का मिलना-जुलना है। छोड़ दिया।
इसी भाईचारे के चक्कर में अनुशासन गड़बड़ाता है। लेकिन क्या करें भाई! कुछ तो लिहाज करना पड़ता है न अपनों का!
आज टहलने के लिये जरा अलग रास्ते निकले। आगे नाला मिला। नाले के किनारे हनुमान मंदिर। हनुमानजी का मुंह नाले की तरफ़। नाले की बदबू से बचने के लिये ही लगता है हनुमान जी मुंह कस के बंद करके फ़ुला लिये होंगे। सांस तो पक्का नहीं लेते होंगे। भक्तगण नाले की तरफ़ पीठ किये हनुमान जी को प्रणाम करके निकल ले रहे थे।
आगे दो जोड़ी बच्चे साइकिलें सड़क पर टिकाये गपिया रहे थे। बड़ी जल्दी उठ जाते हैं बच्चे। कहावत के अनुसार स्वस्थ, धनी और बुद्धिमान बनेंगे। लेकिन ऐसा होता नहीं। दुनिया के तमाम गरीब,बीमार लोग जल्दी सोते हैं और जल्दी उठते हैं। इसके बावजूद अस्वस्थ, गरीब और बेवकूफ़ बनें रहते हैं। अब इस कहावत के खिलाफ़ कौन सी अदालत में मुकदमा ठोंका जाये।
सड़क के एक किनारे मकान पर ब्यूटी पार्लर का बोर्ड लगा था। उसी के नीचे लिखा था -यहां टुपट्टे पीको किये जाते हैं।
ब्यूटी पार्लर में टुपट्टे पीको होने की बात ऐसी ही लगी जैसे कोई कहे कि संसद में बवाल किया जाता है। यहां संसद की अवमानना का मेरी कोई मंशा नहीं है। हम तो संसद को एक पवित्र मंदिर मानते हैं। अभी एक मंदिर के बारे में बताया भी।
आगे एक बीच की उमर का जवान एक बच्चे को धमकी दे रहा था- अब आगे से जो पेड़ की टहनी तोड़ी तो तेरे हाथ पैर तोड़ देंगे।
पता नहीं क्या मजा मिलेगा उस बीच की उमर वाले आदमी को बच्चे के हाथ-पैर तोड़कर लेकिन जिस तरह दोनों निर्लिप्त भाव से वहां से इधर-उधर हुये उससे लगा नहीं कि दोनों में से कोई भी अपनी जिम्मेदारी को लेकर गम्भीर हो।
वैसे भी पेड़ सड़क पर था। अतिक्रमण में पेड़ और उसका तथाकथित मालिक दोनों पकड़े जा सकते हैं लेकिन .. अब छोड़िये आप से क्या बतायें आप खुदै समझदार हैं( मजा आया न फ़्री में समझदारी का खिताब मिलने से)
सड़क पर मार-पीट की बात से घबराकर हम लौट लिये। फ़ुटकर पैसे साथ लेकर गये थे। अगर चाय की दुकान खुली होती तो उसके सामने से गुजरते हुये पियूं की आगे बढूं की दुविधा का झुला झूलते हुये बिना पिये ही वापस लौटते। दुविधा के झूले में झूलने से स्पीड थोड़ा हल्की रहती। लेकिन दुकान बन्द थी। सो कमरे में ही वापस लौटने का निर्णय लिया। थोड़ा सरपट वापस आये।
इस बीच सर झुकाये हुये टहलने से उकताकर हमने सर ऊपर किया तो देखा कि आसमान को चीरती हुई एक तेज चीज आगे जा रही है। हमसे बहुत ऊपर थी सो देख तो नहीं पाये लेकिन उसके पीछे से सफ़ेद धुंआ निकल रहा था। क्या पता कि हमसे डरकर उसकी हवा निकल गयी हो और तेज भाग रही हो वह आसमानी चीज। अपरिचय के चलते उसके पता भी नहीं होगा कि हमसे उसके डरने की कोई जरूरत तो नहीं थी। लेकिन किसी की सोच पर कौन सवारी कर सकता है भला। है न!
कमरे में लौटकर टेलीविजन खोलकर समाचार सुनने लगा। पता चला देश की सुरक्षा तैयारी पस्त है। जनरल साहब बताइन कि गोला बारूद नहीं है। हमें लगा कि हम लोगों के ऊपर तोहमत लगा रहे हैं। जबकि हम लोगों ने इस बार पिछले तमाम रिकार्ड तोड़-फ़ोड़ के सप्लाई की है।
कल भी जनरल साहब ने बताया था कि उनको किसी ने तगड़ी घूस देने की कोशिश की थी। जिससे वे इत्ते हक्के-बक्के रह गये थे कि कुछ समझ में ही न आया उनको आगे क्या कार्यवाही की जाये।
जनरल साहब के हक्के-बक्के रह जाने बात पर याद आया कि सरकारी विभागों में गोपनीय आख्या में एक कालम होता है – तनाव के समय कार्य करने की क्षमता ( capacity to work under tension)| उस खाते में जनरल साहब के नम्बर कम हो जायेंगे फ़िर तो।
हमें लगा कि लगता है ये किसी ऐसे अधिकारी के बयान हैं जो अपनी नौकरी खत्म नहीं कर बल्कि आज ही भर्ती हुआ है। अपने यहां क्या सरकारी क्या प्राइवेट जहां भी लोग प्रभावी निर्णय लेने की स्थित में हैं उनको लोग प्रलोभन देते हैं। समाज में रहने वाले हर इंसान के अनुभव हैं ये। ये तो नमस्कारी-नमस्कारा टाइप वार्तालाप हैं।
आप जैसा कहेंगे वैसा हो जायेगा/ कभी प्रोग्राम बनाकर आइये/ ये तो हमारी कम्पनी की पालिसी है/ आप जैसा अफ़सर नहीं देखा/थोड़ा ये कर दीजिये/करा दीजिये/ आदि-इत्यादि, वगैरह-वगैरह। इस तरह के वार्तालाप तो हेलो/हाय सरीखे हैं। लोग आपका इम्तहान लेते हैं। आप जैसे नम्बर पाते हैं उसी के हिसाब से आगे किस्से बढ़ते हैं। आप अगर ईमानदार हैं और इस तरह की बात सुनकर हक्के-बक्के रह जाते हैं तो लगता है कि आपने कहीं और नौकरी की है।ईमानदारी कोई गर्व का विषय नहीं है। यह तो अपरिहार्य स्थिति है। ईमानदार होने का मतलब कोई किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाना थोड़ी है!
दूसरी बात कि यह भी बड़ी बचकानी लगी कि जब जनरल साहब की जन्मतिथि का मामला गड़बड़ा गया तो बता रहे हैं कि सेना के हाल खस्ता हैं। तो इत्ते दिन क्या करते रहे साहब जी आप?
जनरल साहब का जन्मदिन विवाद भी मजे में रहा। देश में साठ साल होने आये जितने भी अधिकारी हैं उनमें से आधे से ज्यादा की जन्मतिथि उनकी असली जन्मतिथि से अलग होगी। अब अगर हर अधिकारी सुप्रीम कोर्ट भागे तो कोर्ट के बारह तो बजे ही हैं मुकदमों की संख्या के चलते। तेरह -चौदह भी बज जायें।
जन्मतिथि वाले मसले पर भी जनरल साहब का बयान आया था कि उनके अधिकारी ने कहा था अभी जनरल बन जाओ आगे ठीक करवा लेना। अभी जिद करोगे तो जनरल न बन पाओगे। क्या इससे निष्कर्ष निकाला जाये कि साहब जी पद के प्रलोभन में अपनी प्रतिष्ठा भूल गये।
हम जनरल साहब से कोई व्यक्तिगत तौर पर परिचित नहीं हैं। लगे हाथ उनकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की इज्जत की भी करते हैं। लेकिन जिस तरह की खबरें सुनने में आईं उससे लगा कि अपन के जनरल साहब थोड़े छुई-मुई टाइप के है। थोड़ा जल्दी हक्के-बक्के हो जाते हैं।
ओह कहां से चले थे कहां पहुंच गये। भला हो मेस के लोगों का जो बेफ़िजूल की बहस से बचाकर शानदार चाय का साथ मुहैया करा गया।
चाय की चुस्की लेते हुये सोच रहे थे कि सुबह जल्दी उठना भी एक बवाल है।
Posted in बस यूं ही | 37 Responses
हमारी कुछ समझ नहीं आया गुरु , आपके मन में क्या है ??
फ़िलहाल शुभकामनायें स्वीकारें !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..बेटी या बहू ? – सतीश सक्सेना
आजकल तो संसद के मंदिर में भी काफी लोग मुंह फुला के बैठे हैं !!!! वहां के कारणों पे भी प्रकाश डालें कभी
सेना प्रमुख की खिंचाई भी हो गयी आपके सुबह जल्दी उठने के चक्कर में अब तो आपको न जाने कहाँ कहाँ से नींद की गोलियां भेजी जायेंगी !!!! तैयार और तैनात रहने का समय आ गया है !!!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..आलू कोई मसाला नहीं होता….
सेना प्रमुख ने तो उसके बाद और चिट्ठियां दाग दीं। लगता है चलते-चलते पूरे मन से नौकरी कर रहे हैं।
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..फितरत …
aradhana की हालिया प्रविष्टी..क्योंकि हर एक दोस्त – – – होता है
बहुत ही गहरी और सच्ची बात -सरल शब्दों में |आशा है आप इस तरह सैर पे जाते रहें |
Prasoon की हालिया प्रविष्टी..मेरी एकतरफा बातें
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..बेतरतीब विचार
आशीष श्रीवास्तव की हालिया प्रविष्टी..सरल क्वांटम भौतिकी:कणों का क्षय और विनाश(Particle Decay and Annihilation)
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..नकल का अधिकार
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..पुराण कथाओं में झलकता है भविष्य(1)-मन से चालित विमान सौभ!
राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..भूल-गलती
मंदिर की तुलना संसद से और मंदिर नाले के पास……मान लेता हूँ कि बदबू नहीं आती होगी या लोग अभ्यस्त हो गए होंगे !
अपने बॉस को लेट आने पर लाल निशान तो लगाने की नहीं सोच रहे हैं,सोचना भी मत,नहीं बादल घिरेंगे और बिजली-पानी फट पड़ेगा !
जनरल अब सोच रहे हैं कि उनके आगे का जीतता गोला-बारूद बचा है ऊ इस सरकार के ऊपर ही जाते-जाते गिरा जाएं ताकि मामला ‘फुल-रिडीम’ जैसा हो जाये !
कहीं अब सेवाकाल न बढ़ा पाने वाले जनरल अपना कार्यकाल भी पूरा न कर पायें !
परसाईंजी ज़रूर खुश हो रहे होंगे आपसे मिलकर…!
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..गुजरी हुई फिज़ा !
सुबह जल्दी उठना सच में बवाल है, हमने तो अपना नजरिया ही बदल लिया ’जब जागो तभी सवेरा’
sanjay @ mo sam kaun…? की हालिया प्रविष्टी..बंधन
प्रणाम.
ऐसी मज़े की पोस्ट आपके सुबह उठने के कारण ही नसीब हो सकी न? वैसे अपुन भी जागने के बाद बड़ी देर तक उठने के बारे में सोचते रहते हैं
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..अस्तित्व ?
विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..भयावह स्वप्न – ड्रेगन, बख्तरबंद ट्रक और पेड़ पर हरे पत्तों को ट्रांसप्लांट करना
सुबह जल्दी उठने की तकलीफ़ कर डाली, बवाल पर बवाल होते चले गए | कितने सारे फायदे भी हुए | अद्भुत– पर बहुत व्यवस्थित चिंतन है आपका | क्या बात है—नियमित रूप से अनियमित |
आपके चिंतन के बहुत सारे गुणग्राहक सहभागी हैं, बहुत सही टिप्पणी पाई कि ” कितना कठिन होता है सरकारी नौकरी में सही सलामत चल पाना |”
आप न जान पाए हों पर कोई तो जरूर होगा जो समझता है कि आपके मन में क्या है?
—-विज्ञानशंकर
बहुत मज़ा आया जी ,इस बार देर हो गयी ये मज़ा तो २९ को ही आ जाना था
आशीष श्रीवास्तव