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डूबेजी और उनकी कार्टूनलीला
By फ़ुरसतिया on October 4, 2012
भतीजे को जहां छोड़ा वहीं पास ही दुबे जी
का घर था। फोन पर पूछ्ते भटकते हुये एक घर के सामने पहुंचे। घर के गेट पर
बोर्ड लगे थे कई दुबे लोगों के। उनमें राजेश दुबे न दिखा। सोचा कार्टूनिस्ट
हैं। कार्टून के पंच की तरह नेमप्लेट कहीं और लगी होगी। तब तक पानी झमाझम
बरसने लगा। वहीं एक शेड के नीचे खड़े होकर दुबे जी को फ़ोनियाया। पास ही घर
था। पानी भी जरा देर में ही थक कर थम गया।
दुबे जी के यहां फ़िर काफ़ी देर बैठे-बतियाये। उनके खूब सारे कार्टून देखे। खूब सारे स्मृतिचिन्ह/ सम्मान एक अलमारी में धरे हैं। कार्टून कैसे बनाते हैं यह भी बनाकर बताया दुबे जी ने। हम समझते थे कि कार्टूनिस्ट लोग कार्टून बनाकर रंग भरने में बहुत टाइम लेते होंगे। लेकिन पता चला कि कार्टून स्केच पेन से काले-सफ़ेद में बनाये जाते हैं। फ़िर कम्प्यूटर की फोटो शॉप का उपयोग करके उसमें रंग भरे जाते हैं।
दुबे जी ने मेरे सामने ही एक चित्र स्केच किया। दो-तीन मिनट लगे होंगे स्केच करने में। कार्टूनिस्टों को आइडिया भर आ जाये बस्स। इसके बाद कार्टून बनाते देर बहुत कम लगती है। कार्टून का आइडिया और उसके हिसाब से स्केचिंग दोनों की कुंडली मिलने पर मारू कार्टून बनता है। उसी समय असीम त्रिवेदी वाला मामला भी हल्ले में था। उसके बारे में भी चर्चा हुई। मध्य प्रदेश के एक कार्टूनिस्ट को मोदी जी के खिलाफ़ कार्टून बनाने पर परेशानी झेलनी पड़ी उस पर भी चर्चा हुई।
दुबे जी ने देश/विदेश के कुछ कार्टूनिस्टों के कार्टून भी दिखाये। मुझे लगा कि खुराफ़ाती दिमाग वालों को स्केचिंग सीखकर कार्टून बाजी करनी चाहिये। मेरा मन करता है कार्टून बनाने का। खूब आइडिया आते हैं लेकिन स्केचिंग माशाअल्लाह है। सो मायूस हो जाते हैं। दुबे जी ने कहा -आप हमको आइडिया बताया करो, हम कार्टून बनायेंगे। लेकिन हमें लगता है कि ये आइडिये भी बड़े शर्मीले टाइप के होते हैं। एक दिमाग से दूसरे में जाने में अलसाते, शरमाते, सकुचाते हैं। बहुत धक्का परेड करने पर जाते भी हैं तो टेढ़े-मेढे होकर पहुंचते हैं।
लेकिन मुझे लगता है कि आने वाले समय में कार्टूनकला भी गठबंधन कला बनेगी। सलीम-जावेद की तरह कार्टून जोड़ियां बनेंगी। कैमरा मैन आलने के साथ मैं फ़लाने की तरह कार्टून बनेंगे। एक कोने में आइडिया वाले का नाम होगा। दूसरे कोने में स्केच करने वाले का।
कार्टून में पंच को सबसे जरूरी तत्व मानने वाले दुबे जी ने किसी से कार्टून बनाने की ट्रेनिंग नहीं ली। धीरे-धीरे खुदै बनाने लगे। छपने लगे। चर्चित हुये। एक पत्रिका और एक अखबार में कुछ दिन काम भी किया लेकिन अखबार/पत्रिकायें अपने कार्टूनिस्टों को पैसे देने के मामले में बहुत गरीब हैं। अंतत: दुबेजी अखबार/पत्रिका से मुक्त होकर फ़िलहाल एक प्रतिष्ठित दवा कंपनी में क्षेत्रीय प्रबंधक हैं। कार्टून का काम जिसको वे फ़ुल टाइम करना चाहते हैं, शौकिया कर पाते हैं।
कार्टून कोना भले ही हर अखबार/पत्रिका का सबसे अधिक देखे जाने वाला कोना होना होता है लेकिन फ़िलवक्त देश में कार्टून की पत्रिकायें इनी-गिनी ही हैं। रायपुर से कार्टून वाच और केरल से एक कार्टून पत्रिका निकलती है। दुबे जी का मन एक कार्टून पत्रिका निकालने का है। योजना बन चुकी है। नाम तय हो चुका है- कार्टून लीला। इसमें देश के कार्टूनकारों के कार्टून छपेंगे। कुछ छपे हुये, कुछ अनछपे। कार्टून कला के बारे में लेख भी होंगे। और भी तमाम मसाला होगा कार्टूनों से संबंधित। फ़िलहाल त्रैमासिक निकालने का विचार है। दिल्ली में इसी हफ़्ते कार्टून हस्तियों की मिस्कौट होने वाली है। वहां से लौटने के बाद दुबे जी का विचार है अपनी कार्टूनलीला शुरु करने का।
दुबे जी को देखकर कहीं से लगता नहीं कि वे कार्टूनिस्ट होंगे। काम भर के शरीफ़, गम्भीर प्राणी लगते हैं। धीर-गम्भीर। कार्टूनों की चुहल उनके चेहरे से फ़रार दिखती है। कम्प्यूटर पर बैठे हुये काम करते हुये उनका फोटो देखिये आप भी हमारी बात से सहमत होंगे।
उनकी किताबों की अलमारी काफ़ी अमीर है। हम उनसे परसाईजी पर कांतिकुमार जैन जी के लिखे संस्मरणों की किताब ’तुम्हारा परसाई’ ले आये। पढ़ भी डाली। जल्दी ही इसे लौटाने जाना है ताकि और किताबें झटक लायें बांचने के लिये। दुबेजी जी ने परसाईजी की सूत्र वाक्यों पर कुछ बहुत सटीक स्केच बनायें हैं। परसाईजी जन्मदिन के मौके पर उनकी प्रदर्शनी लगाई गयी थी।
दुबेजी के बिटिया ग्याहरवीं में पढ़ती है। पढ़ने में होशियार। उसकी खूबसूरत राइटिंग में पीरियाडिक टेबल और तमाम गणित के सूत्र एक अलमारी के ऊपर लगे थे। देखकर मन खुश हो गया। बच्चा हमारे लिये चाय-नास्ते लाया। हमने उससे कहा- तुमको परेशान कर दिया। उसने उदारता पूर्वक कहा- चलता है। क्या इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कलाकारों के बच्चे स्वाभाविक रूप से उदार होते हैं।
श्रीमती दुबे स्थानीय विद्यालय में अध्यापन करती हैं। पढ़ाती वे कैसा हैं यह उनके छात्र जाने लेकिन नाश्ता उन्होंने जो भरपूर कराया उससे फ़िर दोपहर का खाना खाने की जरूरत नहीं पड़ी।
दुबेजी ने जिस पैड पर एक स्केच बनाया था वह मुझे दे दिया। हमने बाद में कार्टून स्केचिंग को बायें हाथ का खेल समझते हुये दायें हाथ से कई बार स्केच करने की कोशिश की। सोचा था मामला ’माशाअल्लाह’ भले न हो पर सो-सो तो हो ही जायेगा लेकिन जब स्केच किया तो पाया कि मामला ’लाहौलविलाकूवत’ होकर ही रह गया। आप भी जरा मुलाहिजा फ़र्माइये हमारी स्केचिंग पर और खुश होइये इस बात पर कि इससे बढिया तो आप भी कर लेते हैं।
तो यह रही राजेश कुमार दुबे उर्फ़ डूबे जी से मुलाकात जिससे दोस्तों की मांग पर पेश किया गया। बाकी किस्से फ़िर कभी। ठीक है न?
यहां देखिये परसाईजी के सूत्र वाक्यों पर बनाये गये दुबेजी के दो स्केच। साथ ही मेरी पसंद में आराधना की कविता। बहुत दिन बाद कोई कविता बहुत अच्छी लगी।
जब-जब लड़के ने डूब जाना चाहा
लड़की उसे उबार लाई।
जब-जब लड़के ने खो जाना चाहा प्यार में
लड़की ने उसे नयी पहचान दी।
लड़के ने कहा, “प्यार करते हुए अभी इसी वक्त
मर जाना चाहता हूँ मैं तुम्हारी बाहों में”
लड़की बोली, “देखो तो ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है,
और वो तुम्हारी ही तो नहीं, मेरी भी है
तुम्हारे परिवार, समाज और इस विश्व की भी है।”
प्यार करते हुए
लीन हो गए दोनों एक सत्ता में
पर लड़की ने बचाए रखा अपना अस्तित्व
ताकि लड़के का वजूद बना रह सके ।
लड़का कहता ‘प्यार समर्पण है एक-दूसरे में
अपने-अपने स्वत्व का’
लड़की कहती ‘प्यार मिलन है दो स्वतन्त्र सत्ताओं का
अपने-अपने स्वत्व को बचाए रखते हुए ‘
प्यार करते हुए
लड़का सो गया गहरी नींद में देखने सुन्दर सपने
लड़की जागकर उसे हवा करती रही।
लड़के ने टूटकर चाहा लड़की को
लड़की ने भी टूटकर प्यार किया उसे
प्यार करते हुए
लड़के ने जी ली पूरी ज़िंदगी
और लड़की ने मौत के डर को जीत लिया।
लड़का खुश है आज अपनी ज़िंदगी में
लड़की पूरे ब्रम्हाण्ड में फैल गयी।
आराधना चतुर्वेदी
दुबे जी के यहां फ़िर काफ़ी देर बैठे-बतियाये। उनके खूब सारे कार्टून देखे। खूब सारे स्मृतिचिन्ह/ सम्मान एक अलमारी में धरे हैं। कार्टून कैसे बनाते हैं यह भी बनाकर बताया दुबे जी ने। हम समझते थे कि कार्टूनिस्ट लोग कार्टून बनाकर रंग भरने में बहुत टाइम लेते होंगे। लेकिन पता चला कि कार्टून स्केच पेन से काले-सफ़ेद में बनाये जाते हैं। फ़िर कम्प्यूटर की फोटो शॉप का उपयोग करके उसमें रंग भरे जाते हैं।
दुबे जी ने मेरे सामने ही एक चित्र स्केच किया। दो-तीन मिनट लगे होंगे स्केच करने में। कार्टूनिस्टों को आइडिया भर आ जाये बस्स। इसके बाद कार्टून बनाते देर बहुत कम लगती है। कार्टून का आइडिया और उसके हिसाब से स्केचिंग दोनों की कुंडली मिलने पर मारू कार्टून बनता है। उसी समय असीम त्रिवेदी वाला मामला भी हल्ले में था। उसके बारे में भी चर्चा हुई। मध्य प्रदेश के एक कार्टूनिस्ट को मोदी जी के खिलाफ़ कार्टून बनाने पर परेशानी झेलनी पड़ी उस पर भी चर्चा हुई।
दुबे जी ने देश/विदेश के कुछ कार्टूनिस्टों के कार्टून भी दिखाये। मुझे लगा कि खुराफ़ाती दिमाग वालों को स्केचिंग सीखकर कार्टून बाजी करनी चाहिये। मेरा मन करता है कार्टून बनाने का। खूब आइडिया आते हैं लेकिन स्केचिंग माशाअल्लाह है। सो मायूस हो जाते हैं। दुबे जी ने कहा -आप हमको आइडिया बताया करो, हम कार्टून बनायेंगे। लेकिन हमें लगता है कि ये आइडिये भी बड़े शर्मीले टाइप के होते हैं। एक दिमाग से दूसरे में जाने में अलसाते, शरमाते, सकुचाते हैं। बहुत धक्का परेड करने पर जाते भी हैं तो टेढ़े-मेढे होकर पहुंचते हैं।
लेकिन मुझे लगता है कि आने वाले समय में कार्टूनकला भी गठबंधन कला बनेगी। सलीम-जावेद की तरह कार्टून जोड़ियां बनेंगी। कैमरा मैन आलने के साथ मैं फ़लाने की तरह कार्टून बनेंगे। एक कोने में आइडिया वाले का नाम होगा। दूसरे कोने में स्केच करने वाले का।
कार्टून में पंच को सबसे जरूरी तत्व मानने वाले दुबे जी ने किसी से कार्टून बनाने की ट्रेनिंग नहीं ली। धीरे-धीरे खुदै बनाने लगे। छपने लगे। चर्चित हुये। एक पत्रिका और एक अखबार में कुछ दिन काम भी किया लेकिन अखबार/पत्रिकायें अपने कार्टूनिस्टों को पैसे देने के मामले में बहुत गरीब हैं। अंतत: दुबेजी अखबार/पत्रिका से मुक्त होकर फ़िलहाल एक प्रतिष्ठित दवा कंपनी में क्षेत्रीय प्रबंधक हैं। कार्टून का काम जिसको वे फ़ुल टाइम करना चाहते हैं, शौकिया कर पाते हैं।
कार्टून कोना भले ही हर अखबार/पत्रिका का सबसे अधिक देखे जाने वाला कोना होना होता है लेकिन फ़िलवक्त देश में कार्टून की पत्रिकायें इनी-गिनी ही हैं। रायपुर से कार्टून वाच और केरल से एक कार्टून पत्रिका निकलती है। दुबे जी का मन एक कार्टून पत्रिका निकालने का है। योजना बन चुकी है। नाम तय हो चुका है- कार्टून लीला। इसमें देश के कार्टूनकारों के कार्टून छपेंगे। कुछ छपे हुये, कुछ अनछपे। कार्टून कला के बारे में लेख भी होंगे। और भी तमाम मसाला होगा कार्टूनों से संबंधित। फ़िलहाल त्रैमासिक निकालने का विचार है। दिल्ली में इसी हफ़्ते कार्टून हस्तियों की मिस्कौट होने वाली है। वहां से लौटने के बाद दुबे जी का विचार है अपनी कार्टूनलीला शुरु करने का।
दुबे जी को देखकर कहीं से लगता नहीं कि वे कार्टूनिस्ट होंगे। काम भर के शरीफ़, गम्भीर प्राणी लगते हैं। धीर-गम्भीर। कार्टूनों की चुहल उनके चेहरे से फ़रार दिखती है। कम्प्यूटर पर बैठे हुये काम करते हुये उनका फोटो देखिये आप भी हमारी बात से सहमत होंगे।
उनकी किताबों की अलमारी काफ़ी अमीर है। हम उनसे परसाईजी पर कांतिकुमार जैन जी के लिखे संस्मरणों की किताब ’तुम्हारा परसाई’ ले आये। पढ़ भी डाली। जल्दी ही इसे लौटाने जाना है ताकि और किताबें झटक लायें बांचने के लिये। दुबेजी जी ने परसाईजी की सूत्र वाक्यों पर कुछ बहुत सटीक स्केच बनायें हैं। परसाईजी जन्मदिन के मौके पर उनकी प्रदर्शनी लगाई गयी थी।
दुबेजी के बिटिया ग्याहरवीं में पढ़ती है। पढ़ने में होशियार। उसकी खूबसूरत राइटिंग में पीरियाडिक टेबल और तमाम गणित के सूत्र एक अलमारी के ऊपर लगे थे। देखकर मन खुश हो गया। बच्चा हमारे लिये चाय-नास्ते लाया। हमने उससे कहा- तुमको परेशान कर दिया। उसने उदारता पूर्वक कहा- चलता है। क्या इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कलाकारों के बच्चे स्वाभाविक रूप से उदार होते हैं।
श्रीमती दुबे स्थानीय विद्यालय में अध्यापन करती हैं। पढ़ाती वे कैसा हैं यह उनके छात्र जाने लेकिन नाश्ता उन्होंने जो भरपूर कराया उससे फ़िर दोपहर का खाना खाने की जरूरत नहीं पड़ी।
दुबेजी ने जिस पैड पर एक स्केच बनाया था वह मुझे दे दिया। हमने बाद में कार्टून स्केचिंग को बायें हाथ का खेल समझते हुये दायें हाथ से कई बार स्केच करने की कोशिश की। सोचा था मामला ’माशाअल्लाह’ भले न हो पर सो-सो तो हो ही जायेगा लेकिन जब स्केच किया तो पाया कि मामला ’लाहौलविलाकूवत’ होकर ही रह गया। आप भी जरा मुलाहिजा फ़र्माइये हमारी स्केचिंग पर और खुश होइये इस बात पर कि इससे बढिया तो आप भी कर लेते हैं।
तो यह रही राजेश कुमार दुबे उर्फ़ डूबे जी से मुलाकात जिससे दोस्तों की मांग पर पेश किया गया। बाकी किस्से फ़िर कभी। ठीक है न?
यहां देखिये परसाईजी के सूत्र वाक्यों पर बनाये गये दुबेजी के दो स्केच। साथ ही मेरी पसंद में आराधना की कविता। बहुत दिन बाद कोई कविता बहुत अच्छी लगी।
मेरी पसंद
प्यार करते हुएजब-जब लड़के ने डूब जाना चाहा
लड़की उसे उबार लाई।
जब-जब लड़के ने खो जाना चाहा प्यार में
लड़की ने उसे नयी पहचान दी।
लड़के ने कहा, “प्यार करते हुए अभी इसी वक्त
मर जाना चाहता हूँ मैं तुम्हारी बाहों में”
लड़की बोली, “देखो तो ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है,
और वो तुम्हारी ही तो नहीं, मेरी भी है
तुम्हारे परिवार, समाज और इस विश्व की भी है।”
प्यार करते हुए
लीन हो गए दोनों एक सत्ता में
पर लड़की ने बचाए रखा अपना अस्तित्व
ताकि लड़के का वजूद बना रह सके ।
लड़का कहता ‘प्यार समर्पण है एक-दूसरे में
अपने-अपने स्वत्व का’
लड़की कहती ‘प्यार मिलन है दो स्वतन्त्र सत्ताओं का
अपने-अपने स्वत्व को बचाए रखते हुए ‘
प्यार करते हुए
लड़का सो गया गहरी नींद में देखने सुन्दर सपने
लड़की जागकर उसे हवा करती रही।
लड़के ने टूटकर चाहा लड़की को
लड़की ने भी टूटकर प्यार किया उसे
प्यार करते हुए
लड़के ने जी ली पूरी ज़िंदगी
और लड़की ने मौत के डर को जीत लिया।
लड़का खुश है आज अपनी ज़िंदगी में
लड़की पूरे ब्रम्हाण्ड में फैल गयी।
आराधना चतुर्वेदी
Posted in बस यूं ही | 20 Responses
बकिया पोस्ट नैसर्गिक आनंद वाली बन पडी है , सीख रहे हैं आपसे , अईसे लिखना , जल्दीए बानगी पेश करेंगे । यात्रा ज़ारी रहे , अबकि संडे कहां सन्नाट हुआ बताया जाए
अजय कुमार झा की हालिया प्रविष्टी..म्यूट मॉनिटर की रिपोर्ट कार्ड
“लाहौलबिलाकुव्वत
तुम्हारी ये हिम्मत
कि मेरे सामने तुम
हिलाओ अपनी दम”
सोचिये तो धन्य होगा वो कुत्ता जिस पर मेरी जैसी महान(?)कवयित्री ने ग्यारह साल की उम्र में कविता लिखी
खैर, मेरी कविता अपनी पसंद में लगाने के लिए शुक्रिया. हम धन्य हो गए ज़रा कविता के नीचे वाला सरनेम तो सुधार दीजिए:)
aradhana की हालिया प्रविष्टी..Freshly Pressed: Editors’ Picks for September 2012
हमेसा के तरह आपकी पसंद …. खूब पसंद आये|
प्रणाम.
श्री दुबे जी ने कम्प्यूटर को जिस तरह संभाल कर रखा है वह देखकर बहुत अच्छा लगा..
आपका नीचे वाला कार्टून तो चलेबुल टाईप बन पड़ा है….
“कलाकारों के बच्चे स्वाभाविक रूप से उदार होते हैं”
आराधना जी की कविता उनके ब्लॉग पर पहले पढ़ी थी, बढ़िया लगी थी | आज फिर पढ़े, फिर बढ़िया लगी |
आप ऐसे ही लोगो से मिलवाते रहिये , बढ़िया लगता है
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..काश!!! कुछ छोड़ पाना आसान होता…
गुड लगा
Kajal Kumar की हालिया प्रविष्टी..कार्टून :- फ़ेसबुक के टैगियों को समर्पित
अखबार/पत्रिकाएं हरेक को पैसा देने के मामले में सदा से ही गरीब रही हैं.:)
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..मैं समय की भँवर में हूँ
वैसे सीरियसली कह रहा हूँ कि डूबे जी से आपको अपना एक कार्टून बनवाना चाहिए था और यहाँ शेयर करना चाहिए था.. खैर, अच्छा लगा.. डूबे जी की कूची और चौबे जी की कविता सुकुल जी के पोस्ट में!!
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..मैं हूँ ना!!
अच्छे असरदार कैरीकेचर बनाते हैं..
गिरीश बिल्लोरे मुकुल की हालिया प्रविष्टी..प्रोजेक्ट प्रोत्साहन
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ नाना बने!