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महापुरुष पेटेंट बिल
By फ़ुरसतिया on November 1, 2013
आजकल स्व. सरदार वल्लभ पटेल को देश बड़े हल्ले-गुल्ले से स्मरण कर रहा है।
सब पार्टियां लौह पुरुष को हथियाने के चक्कर में धींगा-मुस्ती कर रहीं हैं। लग रहा है जैसे तमाम ठेकेदार “लौहपुरुष प्रोजेक्ट” अपने कब्जे में लेने के लिये लॉबीइंग कर रहे हैं। किसी तरह कब्जे में आये महापुरुष तो आगे का रास्ता आसान हो।
मजे की बात है कि कोई भी लौह पुरुष को पूरा का पूरा, जैसा का तैसा लेने को तैयार नहीं है। पूरे के पूरे सरदार पटेल बहुत जगह घेरेंगे। मतलब भर का महापुरुष हथियाओ, अपना काम बनाओ। किसी को पटेल की दृढ़ता चाहिये तो कोई कहता है इसमें थोड़ा सा हिन्दुत्व वाला हिस्सा भी पैक कर दो भाई। किसी को केवल उनकी साम्प्रदायिकता विरोधी अपील से मतलब है। किसी की मांग है हमें पटेल का वो वाला हिस्सा चाहिये जिसमें वो नेहरू जी की मर्जी के खिलाफ़ तमाम देश के हित के काम अंजाम देते हैं। कोई दूसरा जवाहर को प्रेम करने वाले पटेल की मांग कर रहा है। भारत के एकीकरण करने वाले पटेल के बारे में तो लोगों को पता ही है कि वे हर पैकेज के साथ मुफ़्त में मिलेंगे ही।
पार्टियों के अलावा फ़िर महापुरुष की जाति, शहर, गली-मोहल्ले वाले भी होते हैं। उनका भी महापुरुष पर हक बनता है, बल्कि पहले बनता है। गर्ज यह कि खुदा न खास्ता अगर कोई इंसान महापुरुष बन गया तो जिंदा रहते उसके चाहे जो हाल हों लेकिन दुनिया से गुजरने के बाद उसकी महानता पंजीरी की तरह बंटती है। जिसने पहले हाथ मार लिया, महापुरुष पर उसका ही कब्जा रहता है। बाकी फ़िर अगर कोई जबर भक्त आ गया तो फ़िर महापुरुष उसके खाते में ट्रांसफ़र हो जाता है।
अब कोई स्वयं सेवक या कार्यकर्ता कोई हथियाये तो कोई बात नहीं। वे तो दिहाड़ी में मिल जाते हैं। लेकिन किसी पार्टी का कोई महापुरुष अगर कोई दूसरी पार्टी हथियाने की कोशिश करे तो बवाल स्वाभाविक है। अपने महापुरुष की हम खुद भले ने इज्जत करें, उनको दुत्कारते रहें तो कोई बात नहीं। लेकिन कोई दूसरा उनको भली निगाह से भी देख ले तो लगता है अगले ने हमारी इज्जत पर हमला कर दिया। और इज्जत पर हमला तो वो भी सहन नहीं कर सकता जिसकी कोई इज्जत भी न हो।
आजकल जिस तरह आये दिन महापुरुषों के न रहने पर उनकी महानता पर कब्जे और अपहरण की साजिशें होती हैं उसके चलते लोग महापुरुष बनने में हिचकने लगे हैं। लोगों को लगता है जिन लोगों लिये वे आज अपना जीवन कुर्बान कर रहे हैं, उनके न रहने पर उन लोगों खिलाफ़ ही उनकी महानता का उपयोग होगा। इससे लोगों की महापुरुष बनने की इच्छा में भीषण गिरावट आयी है। यह स्थिति देश और समाज के लिये बड़ी भयावह है। जब महापुरुष ही नहीं रहेंगे तो सड़क, पुल, स्टेडियम, योजनायें किसके नाम से बनेंगी। जनता की भलाई के तमाम कार्यक्रमों के नामकरण के लिये महापुरुष कहां मिलेंगे? महापुरुषों के नाम पर होने वाले घपले-घोटाले कैसे होंगे? देश का विकास ठप्प हो जायेगा। जनता त्राहि-त्राहि कर उठेगी।
इसलिये बेहतर यही है कि कोई ऐसा उपाय सोचा जाये ताकि ढेर सारे महापुरुष हरेक पार्टी के पास हों। किसी को दूसरे से महापुरुष उधार न लेना पढ़ा और न जबरियन कब्जा करना पड़े। हरेक पार्टी के पास ढेर सारे महापुरुष कैसे हों यह तो पार्टियां अपने-अपने दल की नीतियों के हिसाब से तय कर सकती हैं। एक उपाय यह भी सोचा जा सकता है कि हरेक दल अपने प्राथमिक सदस्य को महापुरुष घोषित कर दे। जैसे ही किसी ने सदस्यता फ़ार्म भरा अगला महापुरुष बन गया। इस तरह किसी भी दल के पास महापुरुषों की कमी नहीं रहेगी।
एक दल की पार्टी के महापुरुष पर दूसरे दल के लोग कब्जा न कर सकें इसके लिये महापुरुषों का पेटेंट कराया जा सकता है। हर दल अपने महापुरुष का पेटेंट करा सकता है। एक बार महापुरुष का पेटेंट हो जाने के बाद उसके दूसरी पार्टी द्वारा दुरुपयोग किये जाने की संभावना कम हो जायेगी। “महापुरुष पेटेंट बिल” का मसौदा कुछ-कुछ इस तरह हो सकता है:
सब पार्टियां लौह पुरुष को हथियाने के चक्कर में धींगा-मुस्ती कर रहीं हैं। लग रहा है जैसे तमाम ठेकेदार “लौहपुरुष प्रोजेक्ट” अपने कब्जे में लेने के लिये लॉबीइंग कर रहे हैं। किसी तरह कब्जे में आये महापुरुष तो आगे का रास्ता आसान हो।
मजे की बात है कि कोई भी लौह पुरुष को पूरा का पूरा, जैसा का तैसा लेने को तैयार नहीं है। पूरे के पूरे सरदार पटेल बहुत जगह घेरेंगे। मतलब भर का महापुरुष हथियाओ, अपना काम बनाओ। किसी को पटेल की दृढ़ता चाहिये तो कोई कहता है इसमें थोड़ा सा हिन्दुत्व वाला हिस्सा भी पैक कर दो भाई। किसी को केवल उनकी साम्प्रदायिकता विरोधी अपील से मतलब है। किसी की मांग है हमें पटेल का वो वाला हिस्सा चाहिये जिसमें वो नेहरू जी की मर्जी के खिलाफ़ तमाम देश के हित के काम अंजाम देते हैं। कोई दूसरा जवाहर को प्रेम करने वाले पटेल की मांग कर रहा है। भारत के एकीकरण करने वाले पटेल के बारे में तो लोगों को पता ही है कि वे हर पैकेज के साथ मुफ़्त में मिलेंगे ही।
पार्टियों के अलावा फ़िर महापुरुष की जाति, शहर, गली-मोहल्ले वाले भी होते हैं। उनका भी महापुरुष पर हक बनता है, बल्कि पहले बनता है। गर्ज यह कि खुदा न खास्ता अगर कोई इंसान महापुरुष बन गया तो जिंदा रहते उसके चाहे जो हाल हों लेकिन दुनिया से गुजरने के बाद उसकी महानता पंजीरी की तरह बंटती है। जिसने पहले हाथ मार लिया, महापुरुष पर उसका ही कब्जा रहता है। बाकी फ़िर अगर कोई जबर भक्त आ गया तो फ़िर महापुरुष उसके खाते में ट्रांसफ़र हो जाता है।
अब कोई स्वयं सेवक या कार्यकर्ता कोई हथियाये तो कोई बात नहीं। वे तो दिहाड़ी में मिल जाते हैं। लेकिन किसी पार्टी का कोई महापुरुष अगर कोई दूसरी पार्टी हथियाने की कोशिश करे तो बवाल स्वाभाविक है। अपने महापुरुष की हम खुद भले ने इज्जत करें, उनको दुत्कारते रहें तो कोई बात नहीं। लेकिन कोई दूसरा उनको भली निगाह से भी देख ले तो लगता है अगले ने हमारी इज्जत पर हमला कर दिया। और इज्जत पर हमला तो वो भी सहन नहीं कर सकता जिसकी कोई इज्जत भी न हो।
आजकल जिस तरह आये दिन महापुरुषों के न रहने पर उनकी महानता पर कब्जे और अपहरण की साजिशें होती हैं उसके चलते लोग महापुरुष बनने में हिचकने लगे हैं। लोगों को लगता है जिन लोगों लिये वे आज अपना जीवन कुर्बान कर रहे हैं, उनके न रहने पर उन लोगों खिलाफ़ ही उनकी महानता का उपयोग होगा। इससे लोगों की महापुरुष बनने की इच्छा में भीषण गिरावट आयी है। यह स्थिति देश और समाज के लिये बड़ी भयावह है। जब महापुरुष ही नहीं रहेंगे तो सड़क, पुल, स्टेडियम, योजनायें किसके नाम से बनेंगी। जनता की भलाई के तमाम कार्यक्रमों के नामकरण के लिये महापुरुष कहां मिलेंगे? महापुरुषों के नाम पर होने वाले घपले-घोटाले कैसे होंगे? देश का विकास ठप्प हो जायेगा। जनता त्राहि-त्राहि कर उठेगी।
इसलिये बेहतर यही है कि कोई ऐसा उपाय सोचा जाये ताकि ढेर सारे महापुरुष हरेक पार्टी के पास हों। किसी को दूसरे से महापुरुष उधार न लेना पढ़ा और न जबरियन कब्जा करना पड़े। हरेक पार्टी के पास ढेर सारे महापुरुष कैसे हों यह तो पार्टियां अपने-अपने दल की नीतियों के हिसाब से तय कर सकती हैं। एक उपाय यह भी सोचा जा सकता है कि हरेक दल अपने प्राथमिक सदस्य को महापुरुष घोषित कर दे। जैसे ही किसी ने सदस्यता फ़ार्म भरा अगला महापुरुष बन गया। इस तरह किसी भी दल के पास महापुरुषों की कमी नहीं रहेगी।
एक दल की पार्टी के महापुरुष पर दूसरे दल के लोग कब्जा न कर सकें इसके लिये महापुरुषों का पेटेंट कराया जा सकता है। हर दल अपने महापुरुष का पेटेंट करा सकता है। एक बार महापुरुष का पेटेंट हो जाने के बाद उसके दूसरी पार्टी द्वारा दुरुपयोग किये जाने की संभावना कम हो जायेगी। “महापुरुष पेटेंट बिल” का मसौदा कुछ-कुछ इस तरह हो सकता है:
- किसी भी महापुरुष पर अधिकार उसी पार्टी या संस्था का माना जायेगा जिसने उस महापुरुष की महानता का पेटेंट करा रखा है।
- एक पार्टी द्वारा पेंटेंटित महापुरुष का किसी दूसरी पार्टी द्वारा उपयोग ‘महापुरुष पेटेंट बिल’ का उल्लंघन माना जायेगा।
- किसी भी महापुरुष का पेटेंट उसके जीवित रहते नही कराया जा सकता है।
- महापुरुष के पेटेंट में संबंधित महापुरुष को अपना मत देने का अधिकार नहीं होगा। महापुरुष का पेटेंट साक्ष्यों के आधार पर ही होगा।
- महापुरुष के पेटेंट में सीनियारिटी का ध्यान रखा जायेगा। एक बार देश के महापुरुष के रूप में पेटेंट होने के बाद राज्य, जिले , मोहल्ले, गली स्तर पर नहीं होगा।
- गली, मोहल्ले, जिले, राज्य स्तर के महापुरुषों के पेटेंट नीचे से ऊपर के क्रम में देश स्तर तक कराये जा सकते हैं।
- किसी महापुरुष का पेटेंट जिस पार्टी ने करा रखा है उस पर उसई का अधिकार माना जायेगा। दूसरी पार्टियां अगर उस महापुरुष की महानता का का किसी भी कारण से उपयोग करना चाहती हैं तो इसके लिये उनको उस पार्टी से लिखित या मौखिक अनुमति लेनी पड़ेगी जिसने उस महापुरुष का पेटेंट करा रखा है। पार्टियां इसके लिये फ़ीस भी वसूल सकती हैं।
- जब पार्टियों का विलय किसी दूसरी पार्टी में होगा तो महापुरुष भी नयी पार्टी में शामिल मान लिये जायेंगे। इसके लिये नयी पार्टी को अलग से पेटेंट नहीं कराना पड़ेगा।
- पार्टी के बंटवारे की स्थिति में महापुरुषों के पेटेंट भी बंट जायेंगे। बंटवारे के बाद बनी पार्टियां केवल उन महापुरुषों के नाम का उपयोग कर सकती हैं जिसका पेटेंट उनको बंटवारे में मिला है।
- अगर बंटवारे के बाद बनी दो या अधिक पार्टियां में से सभी या कुछ पार्टियां किसी ऐसे महापुरुष के नाम का उपयोग करना चाहती हैं तो उनको उस महापुरुष को फ़िर से पेटेंटित कराना पड़ेगा। इसमें यह भी घोषणा करना होगी कि वे उस महापुरुष की किन अच्छाइयों अपनी पार्टी के लिये पेटेंट कराना चाहती हैं। बंटवारे में अलग हुई पार्टियां चाहें तो महापुरुष की एक ही अच्छाई का पेटेंट अपने नाम करा सकती हैं। इसके लिये दोनों को पेटेंट फ़ीस अलग-अलग देनी होगी। किसी महापुरुष की बुराइयों का औपचारिक पेटेंट नहीं कराया जायेगा। लेकिन पार्टियां अनौपचारिक रूप से किसी महापुरुष की बुराइयों का उपयोग करती रह सकती हैं।
- उपरोक्त में से कोई भी कानून जाति, धर्म पर लागू नहीं होगा। महापुरुष की जाति, कुल, गोत्र और धर्म वाले महापुरुष की महानता का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिये उनको न किसी से पूछने की जरूरत है न कोई फ़ीस देने की।
Posted in बस यूं ही | 12 Responses
आप पार्टी टाईप कोई शुरु कर दिजिये इस बिल की डिमांड लेकर.
समीर लाल “भूतपूर्व स्टार टिपिण्णीकार” की हालिया प्रविष्टी..कुछ वाँ की.. तो कुछ याँ की…
फुर्सत ही फुर्सत का फुरसतिया चिंतन -मान गए
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..एक थे निगम साहब! (सेवा संस्मरण -9)
हर्षवर्धन की हालिया प्रविष्टी..प्रतिष्ठित भारत, धूमिल चीन
बहरहाल, आप की चुटीली….नुकीली….व्यंग च मौज ……… बांच कर बालक किलकित…पुलकित…प्रमुदित हुआ.
प्रणाम.
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..एक सपने का लोचा लफड़ा…
shefali की हालिया प्रविष्टी..आओ गुडलक निकालें …….