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सुबह की सैर , नर्मदा मैया और लट्टू नचाती बच्ची
By फ़ुरसतिया on December 22, 2013
आज
सुबह जरा धक्काड़े वाला प्रात:भ्रमण हुआ। इतवार था। छुट्टी थी। सो सुब-सुबह
छह बजे निकल लिये मार्निंग वाल पर। लक्ष्य था करीब दस किलोमीटर दूर
इंडियन कॉफ़ी हाउस। चल दिये जाड़े के जिरह बख्तर स्वेटर/टोपी, मोजा जूता
डांटकर। साथ में दो साल पुराना ब्लैकबेरी मोबाइल।
मोबाइल के फोटू से हमारे साथी त्रस्त रहते हैं। जो भी दिखा उसको कैमरा में बटोर के फ़ेसबुक पर उड़ेल देते हैं। फ़ेसबुक को अपने मोबाइल के कैमरे का डस्टबिन बनाये हुये हैं हम। पहले हम कम डालते थे फ़ोटू फ़ेसबुक पर। लेकिन इधर कुछ ज्यादा हो गया। उसका भी कारण है तनि सुन लिया जाये।
हुआ यह दो साल पहले लिये गये मोबाइल में शुरु में तो खूब फ़ोटू खैंचे। ठीक-ठाक आये भी। लेकिन कुछ महीने पहले मोबाइल का कैमरा धृतराष्ट्र हो गया। फ़ोटों खैंचने बंद कर दिये। हम भी चुप हो गये। मोबाइल के भाग्य में जित्ते फ़ोटो बदे थे उत्ते उसने खैंच लिये।
लेकिन एक दिन अचानक न जाने क्या हुआ कि कैमरा अचानक फोटो खैंचने लगा। सो हमने दनादन फोटू खैंचना शुरु किया दुबारा। पता नहीं कित्ती ’क्लिक सांसे’ बची हैं कैमरे की। अब जब कैमरे में फ़ोटू है तो उसको फ़ेसबुक पर न डालना सामाजिक अपराध है न। इसलिये जो खैंचते हैं उसे दिखा भी देते हैं दोस्तों को।
रांझी, जीसीएफ़, रेलवे स्टेशन होते हुये सदर पहुंचे तो एक चाय की दुकान का ये सीन दिखा। कुछ लोग चाय की दुकान पर चाय पी रहे थे। एक आदमी दुकान से सटे खम्भे पर बैठा चाय पी रहा था। फ़ोटो खैंचने की बोहनी करते हुये हम अपने गंतव्य ’इंडियन काफ़ी हाउस’ में बिराजे जाकर। इडली, बडा और नाश्ते में चांपकर प्रफ़ुल्लित हुये। कायदे से तो हमें वहां से वापस लौट लेना चाहिये था। लेकिन तीन निट्ठले साथ हों तो फ़िर काहे का कायदा? तय हुआ कि अब जवान लोग ग्वारी घाट जायेगा। गाड़ी का इंतजाम हुआ और हम चल दिया ग्वारी घाट को। घाट पर पहुंचते ही एक नाव वाले भैया ने 20 रुपये प्रति खोपड़ी की दर से नाव में घुमाने का प्रस्ताव धरा। हमने मान लिया और चल दिये जाड़े की इतवारी सुबह को नौका विहार पर। हाथ में कैमरा था सो फोटू खैंचा हमने अपने साथियों राजीव कुमार और ए.के.राय का। देखिये:
हमने खैंचा तो बदले की भावना के चलते हमारी भी खैची गयी फोटू।
नौका विहार के बाद वहीं घाट पर परकम्मा वासियों से बतियाने लगे। ये सब वरिष्ठ नागरिकों की उमर के बुजुर्ग नर्मदा मैया की परकम्मा करने निकले थे। दस दिन में सौ से ऊपर किलोमीटर यात्रा कर चुके हैं। सामने खड़े साथी पहले भी यात्रा कर चुके हैं:
पहले कभी नर्मदा परिक्रमा करते होंगे लोग तो लौटने का पता नहीं चलता होगा। लेकिन मोबाइल के चलते घड़ी-घड़ी के अपडेट देते रहते हैं। लोग अपने परिवारों को। फोन पर बात करते हुये परकम्मावासी।
बुजुर्गों ने बताया कि अक्सर उनको कोई न कोई खिला ही देता है। नहीं खिलाता तो बना लेते हैं। उनसे बात करने के लालच में हमने उनसे कहा चलिये हमारे साथ चाय पीजिये। वे साथ में अपने ग्लास लेकर चाय की दुकान पर आ गये साथ में और अपने अनुभव सुनाते रहे। सुनिये परकम्मा वासियों से अपन की बातचीत:
वहीं चाय की दुकान पर एक और ’परकम्मावासी’ मिल गये। ’एकला चलो रे’ वाले अन्दाज में महीने भर पहले नरसिंहपुर से निकले बुजुर्ग ने अभी तक एक भी दिन खाना नहीं बताया। सब ’मैया’ देती है।
चाय की दुकान पर ही एक महिला मिली। नाम बताया गया वन्दना राठौर उर्फ़ रामकली। अपना सामान का थैला बगल में रखकर सड़क पर ठसक्के के साथ बैठकर चाय पी।
साथ में एक बाबा जी आ मिले। किन्ही बड़े गुरुजी का नाम बताकर बोले वे हमारे गुरुजी हैं। इसबीच चाय की दुकान वाली महिला ने बताया कि वन्दना राठौर उर्फ़ रामकली भक्ति गीत बहुत गाती हैं। सबेरे पांच बजे से गान शुरु कर देती है। हमारे अनुरोध पर उन्होंने एक गीत गाकर सुनाया। उसमें लगभग सभी देवी-देवताओं का जिक्र था।
वहीं घाट पर ही दो बच्चियां लट्टू नचा रही थीं। लट्टू रस्सी में बांधकर नीचे फ़ेंकना। फ़िर नाचते लट्टू को रस्सी से उठाना। मस्त, बिन्दास खेलती बच्ची को देखते हुये मैं सोच रहा था कि क्या कुछ सालों बाद भी बच्ची इसी तरह बिन्दास रह सकेगी या फ़िर समाज में लड़कियों की स्थिति के हिसाब से चौकन्ना और सजग सदैव अपनी सुरक्षा के लिये चिन्तित रहने वाली लड़की बन जायेगी। बच्चियों का चित्र सबसे ऊपर।
लौटते समय हम सोच रहे थे जीवन दायिनी नदियों के प्रति आम आदमी कितना श्रद्दालु होता है। नदी को मां मानता है। उसकी पूजा करता है। परिक्रमा करता है। लेकिन आधुनिक समाज की जरूरतों के चलते कित्ता लापरवाही और उदासीन रहते हैं हम नदियों की साफ़-सफ़ाई के प्रति।
सुबह की सैर के बहाने नर्मदा जी के दर्शन हुये और परकम्मावासियों से मिलना हुआ। दस बजने तक हम लौट पड़े वापस।
भागती दौड़ती जिन्दगी का एक यादगार दिन रहा कल।
मोबाइल के फोटू से हमारे साथी त्रस्त रहते हैं। जो भी दिखा उसको कैमरा में बटोर के फ़ेसबुक पर उड़ेल देते हैं। फ़ेसबुक को अपने मोबाइल के कैमरे का डस्टबिन बनाये हुये हैं हम। पहले हम कम डालते थे फ़ोटू फ़ेसबुक पर। लेकिन इधर कुछ ज्यादा हो गया। उसका भी कारण है तनि सुन लिया जाये।
हुआ यह दो साल पहले लिये गये मोबाइल में शुरु में तो खूब फ़ोटू खैंचे। ठीक-ठाक आये भी। लेकिन कुछ महीने पहले मोबाइल का कैमरा धृतराष्ट्र हो गया। फ़ोटों खैंचने बंद कर दिये। हम भी चुप हो गये। मोबाइल के भाग्य में जित्ते फ़ोटो बदे थे उत्ते उसने खैंच लिये।
लेकिन एक दिन अचानक न जाने क्या हुआ कि कैमरा अचानक फोटो खैंचने लगा। सो हमने दनादन फोटू खैंचना शुरु किया दुबारा। पता नहीं कित्ती ’क्लिक सांसे’ बची हैं कैमरे की। अब जब कैमरे में फ़ोटू है तो उसको फ़ेसबुक पर न डालना सामाजिक अपराध है न। इसलिये जो खैंचते हैं उसे दिखा भी देते हैं दोस्तों को।
रांझी, जीसीएफ़, रेलवे स्टेशन होते हुये सदर पहुंचे तो एक चाय की दुकान का ये सीन दिखा। कुछ लोग चाय की दुकान पर चाय पी रहे थे। एक आदमी दुकान से सटे खम्भे पर बैठा चाय पी रहा था। फ़ोटो खैंचने की बोहनी करते हुये हम अपने गंतव्य ’इंडियन काफ़ी हाउस’ में बिराजे जाकर। इडली, बडा और नाश्ते में चांपकर प्रफ़ुल्लित हुये। कायदे से तो हमें वहां से वापस लौट लेना चाहिये था। लेकिन तीन निट्ठले साथ हों तो फ़िर काहे का कायदा? तय हुआ कि अब जवान लोग ग्वारी घाट जायेगा। गाड़ी का इंतजाम हुआ और हम चल दिया ग्वारी घाट को। घाट पर पहुंचते ही एक नाव वाले भैया ने 20 रुपये प्रति खोपड़ी की दर से नाव में घुमाने का प्रस्ताव धरा। हमने मान लिया और चल दिये जाड़े की इतवारी सुबह को नौका विहार पर। हाथ में कैमरा था सो फोटू खैंचा हमने अपने साथियों राजीव कुमार और ए.के.राय का। देखिये:
हमने खैंचा तो बदले की भावना के चलते हमारी भी खैची गयी फोटू।
नौका विहार के बाद वहीं घाट पर परकम्मा वासियों से बतियाने लगे। ये सब वरिष्ठ नागरिकों की उमर के बुजुर्ग नर्मदा मैया की परकम्मा करने निकले थे। दस दिन में सौ से ऊपर किलोमीटर यात्रा कर चुके हैं। सामने खड़े साथी पहले भी यात्रा कर चुके हैं:
पहले कभी नर्मदा परिक्रमा करते होंगे लोग तो लौटने का पता नहीं चलता होगा। लेकिन मोबाइल के चलते घड़ी-घड़ी के अपडेट देते रहते हैं। लोग अपने परिवारों को। फोन पर बात करते हुये परकम्मावासी।
बुजुर्गों ने बताया कि अक्सर उनको कोई न कोई खिला ही देता है। नहीं खिलाता तो बना लेते हैं। उनसे बात करने के लालच में हमने उनसे कहा चलिये हमारे साथ चाय पीजिये। वे साथ में अपने ग्लास लेकर चाय की दुकान पर आ गये साथ में और अपने अनुभव सुनाते रहे। सुनिये परकम्मा वासियों से अपन की बातचीत:
वहीं चाय की दुकान पर एक और ’परकम्मावासी’ मिल गये। ’एकला चलो रे’ वाले अन्दाज में महीने भर पहले नरसिंहपुर से निकले बुजुर्ग ने अभी तक एक भी दिन खाना नहीं बताया। सब ’मैया’ देती है।
चाय की दुकान पर ही एक महिला मिली। नाम बताया गया वन्दना राठौर उर्फ़ रामकली। अपना सामान का थैला बगल में रखकर सड़क पर ठसक्के के साथ बैठकर चाय पी।
साथ में एक बाबा जी आ मिले। किन्ही बड़े गुरुजी का नाम बताकर बोले वे हमारे गुरुजी हैं। इसबीच चाय की दुकान वाली महिला ने बताया कि वन्दना राठौर उर्फ़ रामकली भक्ति गीत बहुत गाती हैं। सबेरे पांच बजे से गान शुरु कर देती है। हमारे अनुरोध पर उन्होंने एक गीत गाकर सुनाया। उसमें लगभग सभी देवी-देवताओं का जिक्र था।
वहीं घाट पर ही दो बच्चियां लट्टू नचा रही थीं। लट्टू रस्सी में बांधकर नीचे फ़ेंकना। फ़िर नाचते लट्टू को रस्सी से उठाना। मस्त, बिन्दास खेलती बच्ची को देखते हुये मैं सोच रहा था कि क्या कुछ सालों बाद भी बच्ची इसी तरह बिन्दास रह सकेगी या फ़िर समाज में लड़कियों की स्थिति के हिसाब से चौकन्ना और सजग सदैव अपनी सुरक्षा के लिये चिन्तित रहने वाली लड़की बन जायेगी। बच्चियों का चित्र सबसे ऊपर।
लौटते समय हम सोच रहे थे जीवन दायिनी नदियों के प्रति आम आदमी कितना श्रद्दालु होता है। नदी को मां मानता है। उसकी पूजा करता है। परिक्रमा करता है। लेकिन आधुनिक समाज की जरूरतों के चलते कित्ता लापरवाही और उदासीन रहते हैं हम नदियों की साफ़-सफ़ाई के प्रति।
सुबह की सैर के बहाने नर्मदा जी के दर्शन हुये और परकम्मावासियों से मिलना हुआ। दस बजने तक हम लौट पड़े वापस।
भागती दौड़ती जिन्दगी का एक यादगार दिन रहा कल।
Posted in बस यूं ही | 4 Responses
Salil Varma की हालिया प्रविष्टी..तुम मुझमें ज़िन्दा हो
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..घर से माल कमाने निकले, रंग बदलते गंदे लोग -सतीश सक्सेना